रांची : झारखंड के सभी जलाशयों का जल स्तर गिर गया है. केंद्रीय जल आयोग की मानें, तो झारखंड के छह जलाशयों का पानी पिछले वर्ष की तुलना में 23 फीसदी कम हो गया है. केंद्रीय जल आयोग ने डैमों के जल स्तर कम होने पर चिंता जतायी है. केंद्र ने देश भर के 91 जलाशयों में पानी कम होने की बातें कही हैं. राज्य के चतरा जिले में बना हीरू डैम 20 वर्ष बाद पहली बार सूख गया है. गुमला का कतरी, पारस, तिलवरी और सतखारी जलाशय सूख चुका है. सिमडेगा का केलाघाघ जलाशय भी 20 वर्ष बाद सूखने के कगार पर पहुंच गया है. आधा दर्जन से अधिक जलाशय सूखने के कगार पर पहुंच गये हैं.
चतरा के लक्ष्मणपुर में सिर्फ 12 दिन का ही पानी बचा है, जबकि मयूरहंड और अंजनवा में तीन दिन का पानी ही बचा है. राजधानी के हटिया, गोंदा डैम और जमशेदपुर के सीतारामपुर डैम में सिर्फ जून तक ही पानी का स्टॉक बचा है. राजधानी रांची के तीसरे डैम रुक्का से सितंबर माह तक ही जलापूर्ति हो सकेगी. जमशेदपुर के डिमना डैम में एक माह का पानी बचा है. मुख्यमंत्री रघुवर दास और पेयजल और स्वच्छता मंत्री के हस्तक्षेप करने के बाद हटिया और गोंदा डैम को गहरा करने का काम भी शुरू कर दिया गया है. राजधानी के अलावा जमशेदपुर के सीतारामपुर डैम, चांडिल डैम, कोडरमा के तिलैया डैम, हजारीबाग के छड़वा डैम, दुमका के मसानजोर, धनबाद के मैथन, पंचेत हिल और गिरिडीह के खंडोली डैम में पीने के पानी का स्तर लगातार कम हो रहा है.
सिमडेगा के डैमों की स्थिति भी दयनीय
शहरी क्षेत्र से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केलाघाघ डैम में इस बार अप्रैल में ही रिकॉर्ड जलस्तर की गिरावट आयी है. पिछले दो दशकों में केलराघाघ डैम का पानी इतना नहीं सूखा था. शहरी क्षेत्र में जलापूर्ति व्यवस्था केलाघाघ डैम पर ही निर्भर है. किंतु केलाघाघ डैम का पानी लगातार कम होने से विभाग के लोग चिंतित हैं. शहरी क्षेत्र में लगातार तीन समय पानी आपूर्ति का निर्देश दिया गया है किंतु पानी की कमी को देखते हुए दिन में सिर्फ एक बार ही किसी प्रकार जलापूर्ति संभव हो पा रहा है.
नगर परिषद की जेई उत्पला सरदार ने कहा कि अगर डैम का पानी ऐसे ही सूखता रहा, तो मई के अंत तक जलापूर्ति व्यवस्था गड़बड़ा सकती है. अगर ऐसा हुआ, तो शहरी क्षेत्र में गंभीर पेयजल संकट उत्पन्न हो जायेगा. केलाघाघ डैम से ही मेरोमडेगा बस्ती तथा आसपास के इलाकों में सिंचाई भी होती है. यहां पर गरमा धान तथा गेंहू की फसल केलाघाघ डैम के पानी के बदौलत ही लहलहाती है. किंतु डैम का पानी नहर के लेबल से भी नीचे चले के कारण सिंचाई व्यवस्था भी प्रभावित होगी. अगर ऐसा हुआ, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.
ऐसी स्थिति कभी नहीं हुई
जलपथ प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता रामकुमार प्रसाद ने बताया कि केलाघाघ डैम की अप्रैल में ऐसी स्थिति कभी नहीं हुई थी. इस बार रबी फसल के लिये जरूरत से ज्यादा पानी छोड़ने के कारण जलस्तर में कमी आयी है. डैम का पानी नहर के लेबल से नीचे हो गया है. ऐसी स्थिति में सिंचाई के लिए पानी नहीं अब उपलब्ध नहीं हो पायेगा. श्री प्रसाद ने यह भी कहा कि जलापूर्ति में प्रतिदिन डेढ़ से दो लाख गैलन पानी डैम से निकल रहा है.
इतना पानी कभी कम नहीं हुआ था
केलाघाघ जलापूर्ति योजना में कार्यरत श्री साहू ने बताया पिछले दो दशकों में पहली बार डैम सूखने के कगार पर पहुंच गया है. श्री साहू ने कहा कि पानी अगर और 8 फीट सूखा, तो जलापूर्ति व्यवस्था ठप हो जायेगी.
आधा दर्जन से अधिक जलाशय सूखे
जिले में कुल 17 बड़े जलाशय हैं. सभी ग्रामीण इलाके व दूरस्थ क्षेत्र में हैं. चैनपुर प्रखंड के अपरशंख जलाशय में सिर्फ दस फीट पानी है. बाकी सभी जलाशय सूख गये हैं. कहीं पानी है, तो वह भी सूख रहा है.
अपरशंख डैम : यह चैनपुर प्रखंड के नवागई में है. वर्ष 1984 में इसका काम शुरू हुआ था. अभी भी काम चल रहा है. डेढ़ अरब रुपये की योजना है. 10 फीट पानी है. मई के अंत तक सूखकर पांच फीट पानी बचता है.
कतरी डैम : यह गुमला के कतरी गांव में है. वर्ष 1987 में इसका काम शुरू हुआ था. 85 करोड़ रुपये की लागत से बना है. गरमी की वजह से डैम का पानी सूख गया है. हर साल यह सूखता है. किसानों को इससे कोई लाभ नहीं मिल रहा है.
पारस डैम : भरनो प्रखंड में है. वर्ष 1973 में बना था. 50 करोड़ रुपये से अधिक निर्माण पर खर्च हो गये. अभी डैम सूखा है. कहीं-कहीं बूंदभर पानी है. पर इसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है. हर साल सूखता है.
तिलवरी डैम : यह चैनपुर प्रखंड के तिलवरी गांव में है. वर्ष 1983 में 45 करोड़ रुपये की लगात से इसे बनाया गया था. यह पूरी तरह सूख गया है. कुछ जगह पर बूंद भर पानी है. वह भी सूखने के कगार पर है.
सतखारी डैम : यह पालकोट प्रखंड में पड़ता है. आज से 65 साल पहले यह डैम बना था. करोड़ों रुपये खर्च हुआ. लेकिन आज यह बेकार पड़ा है. डैम में बूंद भर भी पानी नहीं है. पूरा डैम सूख गया है.
धनसिंह डैम : यह बसिया प्रखंड में है. 31 साल पहले बना था. एक अरब रुपये खर्च हो चुका है. अभी डैम में 15 फीट गहराई तक पानी है. हालांकि 30 से 35 फीट तक पानी रहता है. लेकिन डैम सूखने लगा है.
20 वर्ष बाद सूखा हीरू डैम
शहर के लोगों को जलापूर्ति किया जानेवाला एकमात्र हीरू डैम मार्च माह में ही सूख चुका है. 20 वर्षों के बाद इस बार हीरू डैम सूखा है. डैम के सूखने के बाद से वैकल्पिक व्यवस्था के तहत नगरवासियों को उंटा के लक्ष्मणपुर डैम से पेयजल आपूर्ति की जा रही है. यहां 12 दिन का पानी शेष बचा है. विभागीय अधिकारी पेयजल की बड़ी संकट उत्पन्न होने की आशंका जता रहे हैं. पिछले वर्ष हीरू डैम के पानी से ही शहर को पेयजल आपूर्ति की गयी थी. इटखोरी के बक्सा डैम का जलस्तर दिन-प्रतिदिन गिरता चला जा रहा है.
मयूरहंड के अंजनवा डैम सूखने की कगार पर है. इस डैम में मात्र दो-तीन का ही पानी बचा हुआ है. गिद्धौर प्रखंड के लोटार व रामसागर डैम की भी स्थिति ठीक नहीं है. सदर प्रखंड के डहुरी डैम का जलस्तर काफी तेजी से नीचे की ओर खिसक रहा है. इसके सूखने से आसपास के गांवों में कई कुआं, चापानल का जलस्तर सूख गया है. सिमरिया के चाडरम, कुट्टी डैम को दस वर्षों के बाद पहली बार सूखता हुआ देखा जा रहा है. हंटरगंज प्रखंड के दुलकी डैम भी सूखने की कगार पर है.
सीतारामपुर डैम में दो माह का पानी बचा
रांची. जमशेदपुर के सीतारामपुर डैम में जून तक का ही पानी बचा है. फिलहाल डैम का जल स्तर 12 फीट है. इस डैम से औद्योगिक क्षेत्र समेत शहरी क्षेत्र के कई इलाकों में पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है. जिले में अवस्थित डिमना डैम में एक माह का पानी ही बचा है.
तेजी से िगर रहा नंदिनी डैम का स्तर
लोहरदगा जिला के कैरो प्रखंड में बना नंदिनी डैम का जल स्तर लगातार कम होता जा रहा है. डैम में अब आधे से भी कम पानी रह गया है. जल संसाधन विभाग द्वारा 1983-84 में इसे गड्ढा कराया गया था. पिछले लगभग 10 वर्षों से डैम के नहर मिट्टी से भर गये, जगह-जगह टूट गये जिसके कारण पानी का बहाव रुक गया. नहरों की सफाई 18 करोड़ की लागत से हो रही है.
धनबाद व गिरिडीह में पीने के पानी की हो रही है राशनिंग
रांची-धनबाद : धनबाद और गिरिडीह जिले में गरमी को लेकर पीने के पानी की कटौती शुरू कर दी गयी है. धनबाद के कतरास में दो दिन ही पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है. जिले के मैथन डैम और पंचेत डैम में पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम पानी बचा है. अधिकारियों का कहना है कि डैम से 10 जून तक ही पीने के पानी की आपूर्ति हो सकती है. समय पर बारिश नहीं होने से धनबाद शहर में जल संकट की स्थिति भयावह हो जायेगी. पानी का असर बिजली उत्पादन पर भी पड़ रहा है. पंचेत डैम की सफाई को लेकर विश्व बैंक से संपर्क किया गया है. डीवीसी प्रबंधन भी इस दिशा में अग्रेतर कार्रवाई कर रहा है.
तोपचांची डैम की स्थिति सबसे खराब
धनबाद जिले के तोपचांची डैम की स्थिति गंभीर है. डैम की क्षमता 72 फुट है. अभी डैम में 28 फुट गाद और केवल तीन फीट पानी बचा है. बचा हुआ पानी पीने के लायक नहीं है. इस माह के अंत तक पानी समाप्त हो जायेगा. यहां से कतरास और तोपचांची के लोगों को पेयजल मिलता है. पानी की कमी के कारण पिछले महीने से सप्ताह में एक दिन कतरास के तिलाटांड़ रिजरवायर तक पानी छोड़ा जा रहा है. वहीं, तोपचांची को सप्ताह में दो दिन पानी दिया जा रहा है. डैम में गाद की सफाई 1966 में ही हुई थी, जिसके बाद डैम की सफाई नहीं हुई.
खंडोली डैम से मिल रहा है एक वक्त का पानी
शहरी क्षेत्र के लोगों की प्यास बुझाने वाला खंडोली जलाशय से एहतियात के तौर पर एक समय जलापूर्ति हो रही है. डैम का जलस्तर आठ फीट नीचे चला गया है. इसके तल में दस फीट मिट्टी जमा हो गयी है. पिछले पांच दशक से इसकी सफाई नहीं हो पायी है. वर्तमान में 20 फीट पानी मौजूद है.
इससे दो माह तक निर्बाध रूप से सुबह-शाम पेयजलापूर्ति की जा सकती है. प्रचंड गरमी को देखते हुए एहतियात के तौर पर सिर्फ एक वक्त ही पेयजलापूर्ति की जा रही है. पीएचइडी के कार्यपालक अभियंता कुमार नीरज ने कहा कि खंडोली डैम की सफाई को लेकर अब तक नगर पर्षद द्वारा लिखित व बोर्ड से पारित प्रस्ताव उन्हें नहीं मिला है.
संताल के डैमाें में पानी, पर घटा जलस्तर
देवघर : संतालपरगना में तीन बड़े डैम हैं. देवघर में अजय बराज योजना (सिकटिया), दुमका में मसानजोर डैम व गोड्डा में सुंदर जलाशय योजना काफी उपयोगी साबित हो रहा है. इन तीनों डैम में पानी तो भरा है, पर अपेक्षाकृत जल स्तर काफी घटा है. बताया जा रहा है कि तकरीबन 5 से 10 फीट तक जल स्तर घटा है. क्योंकि कई डैम से शहरी जलापूर्ति योजनाएं जुड़ी हैं. इसलिए मसानजोर, अजय बराज डैम का गेट बंद रखा गया है, ताकि वाटर लेवल मेनटेन रहे. डैम में पानी रहने के से तकरीबन 10 किमी एरिया का जल स्तर और जगहों की अपेक्षा बेहतर है.
मसानजोर डैम, दुमका
दुमका के मसानजोर डैम में पानी है, लेकिन अप्रत्याशित रूप से तकरीबन 10 फीट पानी नीचे चला गया है. इस डैम से दुमका शहर को जलापूर्ति होती है. साथ ही मसानजोर के आसपास के इलाके में कुएं, चापाकल आदि का लेयर भी मेनटेन है. भीषण गर्मी व तपिश में बढ़ती वाटर क्राइसिस को लेकर दुमका जिला प्रशासन पहले से ही अलर्ट है. चिंतित प्रशासन ने अभी से निबटने की तैयारी शुरू कर दी है. इसी को लेकर दुमका डीसी ने वीरभूम प्रशासन को पत्र लिखकर कहा है कि इस डैम के पानी का उपयोग सिंचाई में नहीं करें क्योंकि इससे पीने के पानी की क्राइसिस हो सकती है. इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि डैम में स्टोर जल की क्या स्थिति है. जिस स्पीड से पानी की खपत हो रही है. प्राप्त जानकारी के अनुसार मात्र 25 दिन का ही पानी स्टॉक है मसानजोर डैम में.
सिर्फ पीने के लिए ही करें पानी का उपयोग : डीसी
दुमका के उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा ने सिर्फ पीने के लिए ही पानी का उपयोग करने का निर्देश दिया है. उन्होंने मसानजोर डैम का निरीक्षण करने के बाद यह बातें कहीं. उन्होंने जल की बरबादी कम करने की बातें भी कहीं हैं. उन्होंने दुमका शहर में निर्बाध जलापूर्ति करने का निर्देश भी दिया है. उन्होंने कहा कि शहरवासी जल संकट को देखते हुए कम से कम पानी का उपयोग करें. जिला परिषद से भी पानी के संकट को देखते हुए एहतियाती कदम उठाने और तीन वर्ष के जल स्तर की रिपोर्ट भी अधिकारियों से मांगी है.
तेनुघाट डैम से जुलाई तक हो सकती है जलापूर्ति
बोकारो : बोकारो के तेनुघाट डैम में बेड लेबल से डैम में करीब 90 फीट पानी है. 1972 से इस डैम से बोकारो प्लांट को पानी भेजा जा रहा है. डैम के पदाधिकारियों के अनुसार डैम में जलस्तर पर्याप्त है. जनवरी माह में पश्चिम बंगाल को 28 करोड़ का पानी बेचा गया था, जिसके चलते डैम का जलस्तर थोड़ा घटा है. जून-जुलाई तक डैम में पानी की कमी नहीं होगी.
डैम से नहर के जरिये बोकारो स्टील प्लांट को पानी भेजा जाता है. इसके अलावा ललपनिया स्थित टीटीपीएस पावर प्लांट को भी पानी जाता है. तेनुघाट कॉलोनी में भी जलापूर्ति की जाती है. डैम में 10 रैडियल (ऊपरी) गेट है. फिलहाल सभी रैडियल गेट ड्राई जोन में हैं. रेडियल गेट से जलस्तर नीचे चला गया है. 843 फीट पर इस गेट तक पानी का जलस्तर होना चाहिए. वहीं, पूरे डैम में समुद्रतल से जलस्तर की क्षमता 855 फुट है. डैम में अंडर सुलीस गेटों की संख्या आठ है. ऊपरी गेट में पानी का लेबल नीचे आने पर सुलीस गेटों से ही पानी छोड़ा जाता है. जिले के बालीडीह स्थित गरगा डैम के जलस्तर में 03 मीटर से ज्यादा की गिरावट आयी है.
अजय बराज योजना (सिकटिया), देवघर
जिले के सारठ प्रखंड के सिकटिया में अजय बराज योजना है. जहां डैम में पानी स्टोरेज है. यहां भी पानी की क्राइसिस को देखते हुए बराज के सारे गेट बंद रखे गये हैं. जल स्तर बेहतर है. यहां 20 फीट पानी स्टोर है. इससे आसपास के लगभग 10 किमी के इलाके में जल स्तर मेनटेन है. परियोजना से जामता़डा, नाला, सारठ, कुंडहित, सिकटिया व कुलदांगल इलाके लाभान्वित हो रहे हैं.