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उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से आने वाली ज़्यादातर ख़बरें इन दिनों सूखे, पानी की कमी, भुखमरी, आत्महत्या और पलायन की हैं.
फ़सलें न होने से किसान परेशान हैं. आमदनी का कोई और ज़रिया न होने से लोग या तो गांवों से पलायन कर रहे हैं या फिर सरकारी योजनाओं के तहत कर्ज़ ले रहे हैं. कर्ज़ न चुका पाने के कारण किसान आत्महत्या के लिए विवश हो रहे हैं.
बुंदेलखंड के हालात का जायज़ा लेने के लिए जिस दिन हम यहां पहुंचे, उससे एक दिन पहले ही आत्महत्या की ख़बरें मिलीं. एक आत्महत्या बांदा ज़िले के पचनेही गांव में और दूसरी झांसी ज़िले के समथर गांव में.
पचनेही गांव के शिवमोहन सिंह ने अपने खेत में ही फाँसी लगा ली. उनकी माँ ने बताया कि तीन महीने पहले ही उनके पति की मौत हो गई थी. शिवमोहन तभी से तनाव में थे.
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मां का कहना था, ”पति के ऊपर ढाई लाख रुपए का कर्ज़ था. चार बेटों में से सिर्फ़ एक बेटा ही बाहर रहता है, बाकी तीनों गांव में ही रहकर खेती करते हैं.”
शिवमोहन के परिवार के पास क़रीब तीन बीघा ज़मीन है, आय के अन्य साधन के रूप में उन्होंने एक छोटी गाड़ी ख़रीदी थी लेकिन कर्ज़ लेकर.
पिछले तीन साल से ज़मीन में पैदावार न के बराबर हुई, लागत भी नहीं निकल सकी. पैसा उधार लेकर लगाया था, उसे चुकाना भी था. उधार बैंक से भी लिया था, साहूकार से भी. परिवार वालों के मुताबिक़ ये सब तनाव वो सहन नहीं कर सका और ख़ुद को ख़त्म कर लिया.
दरअसल ये स्थिति सिर्फ़ शिवमोहन की ही नहीं है, बल्कि इसे पूरे बुंदेलखंड में देखा जा सकता है. हालांकि अधिकारी कहते हैं कि किसी भी मौत को आत्महत्या बता देना और फिर आत्महत्या को सूखे से जोड़ देना ठीक नहीं है.
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लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आँकड़ों की मानें तो अकेले चित्रकूट धाम मंडल में पिछले चार साल में 1021 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
इस मंडल में चित्रकूट, बांदा, महोबा और हमीरपुर ज़िले आते हैं. ये बात अलग है कि प्रशासन इन आत्महत्याओं की वजह सूखे और भुखमरी को नहीं मानता.
इस बारे में बांदा के ज़िलाधिकारी योगेश कुमार कहते हैं कि सरकारी योजनाओं को गांव के हर व्यक्ति तक पहुंचाने की कोशिश हो रही है और पहुंचाया भी जा रहा है.
आत्महत्याओं के सवाल पर वो कहते हैं कि इस बारे में पूरी छानबीन करने की कोशिश की गई है और उस पर कड़ा रुख़ अपनाया गया है.
योगेश कुमार कहते हैं, ”बैंकों से हमने फ़िलहाल वसूली न करने का आग्रह किया है और निजी सूदखोरों के बारे में सीधे तौर पर कह दिया गया है कि जिनके पास ऋण देने का लाइसेंस नहीं है, उनसे डरने की ज़रूरत नहीं है. प्रशासन किसानों के साथ है.”
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योगेश कुमार कहना हैं कि आत्महत्याओं के पीछे सिर्फ़ ग़रीबी, भुखमरी और कर्ज़ का बोझ ही नहीं है, अन्य कारण भी हैं जिनकी जानकारी की जानी चाहिए. हर तरह की आत्महत्या को इसी से जोड़ देना ठीक नहीं है.
वहीं झांसी के ज़िलाधिकारी अजय शुक्ल कहते हैं कि समस्याएं ज़रूर हैं लेकिन प्रशासन उन्हें दूर करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि फ़िलहाल तात्कालिक ज़रूरतों, मसलन खाद्यान्न और पेयजल की उपलब्धता पर ज़ोर है.
बुंदेलखंड का पूरा इलाक़ा पथरीली ज़मीन वाला है. पानी की कमी की समस्या यहां हमेशा रही है. लेकिन पिछले तीन साल से मॉनसून ने जिस तरह से बेरूखी दिखाई, उससे कभी हरा-भरा दिखने वाला ये इलाक़ा वीरान हो गया है.
पहली नज़र में ऐसा नहीं लगता कि यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी होगी कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़े या फिर वो भुखमरी के शिकार होंगे.
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पचनेही गांव की प्रधान साधना सिंह के पति कल्लू सिंह बताते हैं कि शिवमोहन के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उस पर कर्ज भी था. लेकिन उन्हें किसी साहूकार या बैंक वाले ने परेशान नहीं किया था.
कल्लू सिंह बताते हैं कि जिनके पास सिंचाई के साधन हैं, उनके यहां फ़सल हुई है लेकिन सिंचाई के प्राकृतिक, सामूहिक या फिर सरकारी साधनों पर निर्भर रहने वालों को मजबूरी में खेतों को परती रखना पड़ा है.
स्थानीय पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर कहते हैं कि इसी गांव में कुछ दिन पहले ही एक बड़ा धार्मिक आयोजन हुआ था. उस पर लाखों रुपए ख़र्च हुए थे और हज़ारों लोग यहां पहुंचे थे.
सूखे और पानी की कमी से उपजी परिस्थितियों ने बड़ी संख्या में लोगों को पलायन के लिए मजबूर किया है. सरकारी आँकड़े तो ऐसा नहीं बताते लेकिन घरों पर लटके ताले और पास-पड़ोस के लोग इसकी तस्दीक करते हैं.
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