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सारिदकेल की सभ्यता से दुनिया अनजान

आज (18 अप्रैल) विश्व विरासत दिवस (वर्ल्ड हेरिटेज डे) है. दुनिया भर में प्राचीन इमारतों, भवनों, वस्तुअों तथा साइट (जगहों) को याद करने तथा इनके संरक्षण के प्रण लेने का दिन. राज्य में अब तक 156 पुरातात्विक स्मारकों को संरक्षण व विकास के लिए चिह्नित किया गया है. इनमें से ज्यादातर का काम अभी बाकी […]

आज (18 अप्रैल) विश्व विरासत दिवस (वर्ल्ड हेरिटेज डे) है. दुनिया भर में प्राचीन इमारतों, भवनों, वस्तुअों तथा साइट (जगहों) को याद करने तथा इनके संरक्षण के प्रण लेने का दिन. राज्य में अब तक 156 पुरातात्विक स्मारकों को संरक्षण व विकास के लिए चिह्नित किया गया है. इनमें से ज्यादातर का काम अभी बाकी है. वहीं प्राचीन नगर सभ्यता वाला खूंटी का सारिदकेल तथा राजमहल के फोस्सिल कुछ ऐसी महत्वपूर्ण विरासत है, जिन्हें सहेजने-संवारने में हमसे देर हो रही है.

रांची: पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार खूंटी जिले के सारिदकेल में प्राचीन सभ्यता के अवशेष दबे हैं. यह जगह खूंटी से तमाड़ जाने के रास्ते पर तजना नदी के किनारे स्थित है. इस इलाके पर नजर रखनेवाले आर्कियोलॉजिस्ट इस बात से आश्वस्त हैं कि यहां कभी नगर सभ्यता बसती थी. अॉर्कियोलॉजिकल सर्वे अॉफ इंडिया (एएसआइ) के पुरातत्वविदों को यहां दुर्लभ जानकारियां मिलने की उम्मीद है, पर अफसोस कि सारिदकेल की सभ्यता अब भी जमींदोज है.

यहां शुरुआती खुदाई के बाद स्थानीय लोगों ने इसका विरोध कर दिया था. तब से करीब 10 वर्ष गुजर गये, यहां दोबारा खुदाई शुरू नहीं हुई. जानकारों के अनुसार सारिदकेल की जमीन लगभग बंजर है. पुरातत्वविदों के अनुसार सारिदकेल की नगर सभ्यता प्रथम शताब्दी की हो सकती है. यहां नगर की चहारदीवारी की ईंटों की संरचना व इसके प्रवेश द्वार के चिह्न मिले हैं. एएसआइ को अब भी उम्मीद है कि राज्य सरकार लोगों को समझा कर सारिदकेल की नगर सभ्यता से दुनिया को वाकिफ कराने में मदद करेगी. अामतौर पर यह माना जाता रहा है कि झारखंड के इस क्षेत्र में हमेशा से घने जंगल रहे हैं तथा यहां नगर सभ्यता जैसी कोई चीज कभी नहीं रही.

जूरासिक पीरियड का है राजमहल फोस्सिल

रांची. राजमहल के फोस्सिल (जीवाश्म) 150 से 200 मिलियन वर्ष पुराने हैं. जूरासिक पीरियड के ये जीवाश्म पेड़-पौधों के हैं. बिरबल साहनी इंस्टीट्यूट अॉफ पोलियोबॉटनी, लखनऊ के वरीय वैज्ञानिक एके श्रीवास्तव के अनुसार ऐसे फोस्सिल अॉस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में मिले हैं, पर झारखंड में इसके संरक्षण के गंभीर प्रयास नहीं हो रहे. राजमहल की पहाड़ी से लगे गुरमी, तारा बासगो, बेदो बासगो व मंदल मोदो गांव सहित अन्य इलाके में जीवाश्म जमीनी सतह के ऊपर अौर अंदर मौजूद हैं. वैसे तो राजमहल की पहाड़ी व रामपुर में फोस्सिल पाये जाते हैं, पर साहेबगंज से करीब 39 किमी दूर मंदरो में ये सघन रूप से मिलते हैं. यह क्षेत्र वन भूमि है. इसके संरक्षण की मांग लंबे समय से होती रही है. झारखंड गठन के बाद वर्ष 2002 में विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग के तहत यहां फोस्सिल पार्क निर्माण की योजना बनी. करीब 30 एकड़ क्षेत्रफल में मंदरो में इसे बनना था, पर आज तक यह पार्क नहीं बना. निवर्तमान मुख्य सचिव राजीव गौबा ने इस काम में तेजी लाने के लिए उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग, वन विभाग व पर्यटन विभाग की एक बैठक बुलायी थी. अब पर्यटन विभाग को पार्क निर्माण के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है. अब इसी विभाग को पार्क निर्माण की पहल करनी है. अन्य विभाग इसे सहयोग करेंगे.

महापाषाण स्थल को वर्ल्ड हेरिटेज घोषित करने की मांग

रांची. हजारीबाग के बरवाडीह व चोकाहातू तथा रामगढ़ के होनेंग सहित राज्य भर में कई मेगालिथिक साइट (महापाषाण स्थल) हैं. हजारीबाग का चोकाहातू साइट का इतिहास करीब 2500 वर्ष पुराना हो सकता है. यह स्थल रांची से करीब 75 किलोमीटर की दूरी है. चोकाहातू सहित झारखंड के अन्य मेगालिथिक साइट पर करीब 20 वर्षों से शोध कर रहे सुभाशिष दास के अनुसार यह साइट करीब सात एकड़ क्षेत्रफल में फैला है. यहां करीब 7360 हड़गड़ी (बूरियल) पत्थर हैं. यह झारखंड का सबसे बड़ा मेगालिथिक स्थल है. मुंडा समुदाय के लोग यहां आज भी प्रस्तर बनाते हैं. श्री दास के अनुसार सभ्यता की निरंतरता के इतने लंबे वर्ष दुनिया में शायद ही कहीं देखने को मिलता है. चोकाहातू यूनेस्को के लंबी सभ्यता वाली शर्त पूरी करता है तथा यह वर्ल्ड हेरिटेज घोषित होने के लायक है. देश विदेश का भ्रमण कर मेगालिथिक साइट पर व्याख्यान देने वाले श्री दास के कई लेख अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छपते रहे हैं.

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