श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शूचिः।
महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा ।।
जो श्वेत वृषभ पर आरुढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें.
त्रिशक्ति के स्वरूप-8
देवताओं ने महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती रूपी त्रिशक्ति के स्वरूप के संबंध में कहा है कि – आप ही सबकी आधारभूत हैं, यह समस्त जगत आपका अंशभूत है, क्योंकि आप सबकी आदिभूता अव्याकृता परा प्रकृति हैं –
सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूतः
मव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या।।
सृष्टि की आदि में देवी ही थीं- सैषा परा शक्तिः। इसी पराशक्ति भगवती से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा संपूर्ण स्थावर-जंगमात्मक सृष्टि उत्पन्न हुई. संसार में जो कुछ है,इसी में संनिविष्ट है. भुवनेश्वरी, प्रत्यंगिरा, सीता, सावित्री, सरस्वती, ब्रह्मानंदकला आदि अनेक नाम इसी पराशक्ति के हैं.
देवी ने स्वयं कहा है- सर्व खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम। अर्थात यह समस्त जगत मैं ही हूं,मेरे सिवा अन्य कोई अविनाशी वस्तु नहीं है.
ये महाशक्ति दुर्गा ही सर्वकारणरूप प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सृजन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता,भोक्ता और महेश्वर होती हैं. ये ही आदि के तीन जोड़े उत्पन्न करनेवाली महालक्ष्मी हैं. इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं.
दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्तिकी शक्तियां हैं. ये ही गोलक में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, क्षीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गतिनाशिनी मेनका पुत्री दुर्गा हैं. वास्तविक रूप में तो वह एक ही हैं- एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीयाका ममापरा। देवी के अवतार का यही कारण है, जो स्वयं देवी ने देवीभागवत में कहा है-
साधूनां रक्षणं कार्य हन्तव्या येअप्यसाधवः।
वेदसंरक्षणं कार्यमवतारैरनेकशः।।
युगे युगे तानेवाहमवतारान् विभर्मि च।।
साधुओं की रक्षा, दुष्टों का संहार, वेदों का संरक्षण करने के लिए ही देवी प्रत्येक युग में अवतार लेती हैं.
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा