मंगल ग्रह तक की बहुप्रचारित यात्रा ‘मार्स-वन’ शुरू से सवालों और आशंकाओं के घेरे में रही है. इसे आत्महत्या मिशन भी कहा गया, क्योंकि इस यात्रा पर जानेवाले धरती पर वापस नहीं आयेंगे.
बावजूद इसके, इसके लिए दुनियाभर से लाखों आवेदन पहुंचना बताता है कि धरतीवासी प्रकृति के रहस्य को समझने के लिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार हैं. अब दुनियाभर से 1058 लोगों का प्रारंभिक चयन कर लिया गया है, जिनमें 62 भारतीय भी शामिल हैं. मार्स-वन पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.
मंगल ग्रह पर स्थायी बस्ती बसाने के बहुप्रचारित मिशन ‘मार्स-वन’ के लिए एक हजार से ज्यादा लोगों की सूची तैयार कर ली गयी है. इनमें 62 भारतीय भी शामिल हैं. वर्ष 2024 में मंगल ग्रह तक होनेवाली इस एकतरफा निजी यात्रा को कहनेवाले आत्महत्या मिशन भी कह रहे हैं, क्योंकि जो लोग इस यात्रा पर जाएंगे वे धरती पर वापस लौट कर नहीं आयेंगे.
बावजूद इसके यात्रा के लिए दुनियाभर से दो लाख से अधिक आवेदन पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि धरती से इतर दुनिया को जानने के प्रति लोगों में कितनी जिज्ञासा है. संगठन का लक्ष्य शुरू में इस ग्रह पर 2016 से 2022 के बीच 20 लोगों की एक बस्ती विकसित करने का है.
बाद में हर 2 वर्ष में 4 से 10 लोगों को मंगल ग्रह पर भेजा जायेगा. इस योजना की आरंभिक लागत छह बिलियन डॉलर (334 अरब रुपये से ज्यादा) बतायी गयी है और प्रसिद्ध धारावाहिक ‘बिग ब्रदर’ के निर्माता पॉल रोमर इस मिशन के लिए रकम मुहैया करायेंगे.
मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने का यह आइडिया 35 वर्षीय इंजीनियर बास लैंसड्रॉप का है, जिन्होंने इसे ‘मार्स-वन’ नाम दिया है. नीदरलैंड के गैर-लाभकारी संगठन ने इसके लिए पूरी दुनिया से आये लाखों आवेदनों में से 1058 लोगों को चुना है. ये लोग मंगल की जमीन पर मानव जीवन की बुनियाद रखना चाहते हैं. मार्स-वन की ओर से कहा गया है कि फिलहाल उन लोगों का चयन किया गया है जो शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद स्वस्थ हैं.
सात-आठ माह की यात्रा
दरअसल, मार्स-वन की योजना मंगल पर मानव बस्ती बसाने की है. यह मिशन 2018 में संपन्न होने की उम्मीद है.
बीबीसी के मुताबिक, मार्स-वन के सह संस्थापक बैस लैंसडोर्प ने कहा कि पृथ्वी से मंगल पर जाने की सात-आठ महीने का यात्रा के दौरान अंतरिक्षयात्री अपनी हड्डियों और मांसपेशियों का वजन खो देंगे. मंगल के बेहद कमजोर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में समय गुजारने के बाद उनके लिए खुद को पृथ्वी के वातावरण के मुताबिक ढालना मुमकिन नहीं होगा. सफल अभ्यर्थियों को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण दिया जायेगा.
इस परियोजना में टीम सभी क्षेत्रों में मौजूदा तकनीक का ही इस्तेमाल करेगी. सोलर पैनलों से ऊर्जा पैदा की जायेगी, पानी रिसाइकिल किया जायेगा और इसे मिट्टी से निचोड़ा जायेगा. ये खुद अपना खाना तैयार करेंगे. हर दो साल में नये लोग उनसे जुड़ेंगे.
लेकिन क्या वास्तव में इस ग्रह पर मानव बस्ती फलफूल सकती है? मंगल ग्रह सूर्य से निकलनेवाली हवाओं के रास्ते में पड़ता है. उसका वायुमंडल बेहद छितरा है. माना जाता है कि सौर हवाओं ने मंगल का ये हाल किया है. पृथ्वी को सौर हवाओं से बचाने के लिए सशक्त चुंबकीय क्षेत्र मौजूद है. मंगल पर भी चार अरब साल पहले ऐसा था, लेकिन आज ऐसा नहीं है.
मिशन को लेकर आशंकाएं
कुछ विशेषज्ञों को इस परियोजना की सफलता को लेकर तमाम आशंकाएं हैं. एरिजोना यूनिवर्सिटी के लूनर एंड प्लेनेटरी लेबोरेटरी की डॉक्टर वेरोनिका ब्रे को इस परियोजना के कामयाब होने पर संदेह है. उनका कहना है कि मंगल की सतह इनसानों के रहने के लायक नहीं है. मंगल पर पानी तरल अवस्था में मौजूद नहीं है, विकिरण का स्तर बहुत ज्यादा है और तापमान बहुत तेजी से बदलता है.
यात्रा के दौरान खासकर विकिरण सबसे बड़ी चिंता है. इससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है और प्रतिरोधी क्षमता प्रभावित होती है. हालांकि, उनका मानना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि इस ग्रह पर इनसान को भेजने में हम कामयाब तो हो सकते हैं, लेकिन मुख्य आशंका इस बात की है कि वहां पर वे कब तक जिंदा रह पायेंगे.
मार्स-वन की परियोजना के एंबेसडर और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर गेरार्ड हूफ्ट का भी मानना है कि इसमें मानव स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर जोखिम हैं, लेकिन उन्हें सहनीय स्तर तक रखा जायेगा.
कहां से आयेगा पैसा
माना जा रहा है कि यह मिशन 21वीं सदी का ऐसा मिशन है, जिसने लोगों की कल्पनाशक्ति को सबसे ज्यादा झिंझोड़ा है. यह मिशन उस सपने को पूरा करने का वादा करता है, जिसे मानव जाति बरसों से देखती रही है यानी लाल ग्रह की धरती पर इनसान के कदम.
परियोजना के आलोचकों का कहना है कि इतनी बड़ी परियोजना के लिए पैसे का इंतजाम करना एक समस्या है. पहले ग्रुप को भेजने के लिए छह अरब डॉलर का खर्च आने की उम्मीद है.
इसके संस्थापक डच कारोबारी बास लैंसडॉर्प कहते हैं कि उन्हें मंगल तक अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने और उन्हें उतारने के लिए 10 साल बाद छह अरब डॉलर चाहिए. बास इसे मानवजाति का मिशन बनाना चाहते हैं.
वे कहते हैं कि एक फीसदी धरतीवासी महज एक डॉलर प्रतिमाह भी दें, तो यह मिशन मुमकिन होगा. इसके अलावा, वे अन्य विकल्पों की तलाश में भी हैं. लोग दान देंगे या नहीं यह तय नहीं है, पर उन्हें उम्मीद है कि कंपनी रकम जुटा लेगी.
तकनीक का सवाल
मार्स-वन की तकनीक को लेकर भी कई सवाल खड़े हुए हैं. सबसे पहला सवाल उस कंपनी की तलाश है, जो 2016 में पहली मंगल यात्रा के लिए अंतरिक्षयान (स्पेसक्राफ्ट) और रॉकेट मुहैया करायेगी. इसके लिए अभी तक किसी कंपनी के साथ करार नहीं हुआ है. मार्स-वन का अभी तक सिर्फ एक ही कंपनी (अमेरिका की पैरागन स्पेस डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन) के साथ करार हुआ है. यह कंपनी मंगल पर जीवन संबंधी सिस्टम का अध्ययन करेगी.
मार्स-वन पर सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि उसे दुनिया की किसी भी स्थापित स्पेस एजेंसी का समर्थन हासिल नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि स्पेस एजेंसियां मंगल पर स्थायी बसावट नहीं करना चाहेंगी. वे लोगों को वहां से वापस लाती रहेंगी. मार्स-वन का दावा है कि उन्हें कई अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का समर्थन हासिल है.
नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी प्रो. जेरार्ड हूफ्ट मार्स-वन के समर्थक हैं. उनका मानना है कि यह मिशन तकनीकी तौर पर मुमकिन है. उन्होंने कहा कि भविष्य में नासा मार्स-वन का समर्थन करेगा, इसमें उन्हें संदेह है. उनका कहना है, ‘नासा कभी ऐसे मिशन को बढ़ावा नहीं देगा, जिसमें लोगों की वापसी न हो. वापसी बेहद खर्चीली और मुश्किल है.’
उधर, बास लैंसडॉर्प का मानना है कि मौजूदा तकनीक से फिलहाल यही मुमकिन है कि हम हर दो साल में अंतरिक्षयात्रियों का नया दल भेजते रहें, जो वहां रहें. लेकिन अंतरिक्ष एजेंसियां मंगल के छोटे दौरे का ही प्रस्ताव रखती हैं. बास लैंसडॉर्प ने इंस्पिरेशन मार्स मिशन के संस्थापक से भी मुलाकात की है.
वे 2018 में मंगल पर दो अंतरिक्षयात्रियों को भेजने की परियोजना पर काम कर रहे हैं. हो सकता है कि मार्स-वन इंस्पिरेशन मार्स मिशन के साथ मिलकर तकनीकी सहयोग के लिए काम करे.
हालांकि, इस बारे में अधिकृत रूप से कुछ नहीं कहा गया है. संबंधित विशेषज्ञ महज संभावनाओं को टटोलते हुए ऐसा होने की उम्मीद जता रहे हैं.
आलोचनाओं के घेरे में मिशन
मार्स-वन लगातार आलोचना के घेरे में है. यह मिशन उस समय आलोचनाओं के घेरे में आया, जब बास लैंसडॉर्प ने अपनी योजना को एक सोशल मीडिया वेबसाइट रैडिट पर रखा. जून, 2012 में रैडिट कॉन्फ्रेंस के दौरान कई भागीदारों ने मार्स-वन मिशन पर सवाल खड़े किये. इस दौरान उठाये गये तकनीकी सवालों पर वे पूरी तरह जवाब नहीं दे पाये थे.
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो से संबंधित रहे और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के पूर्व एमडी डॉ केआर श्रीधर मूर्ति भी मार्स-वन के एक सलाहकार हैं. उनका मानना है कि झूठ या घोटाले का सवाल हरेक भागीदार के नजरिये से देखा जाना चाहिए. भागीदारों की इस प्रोजेक्ट में अपनी-अपनी प्रतिबद्धताएं हैं.
उनकी प्रतिबद्धताओं को देखते हुए बास को देखना है कि वे उनसे संतुष्ट हैं या नहीं और यही अहम है. दरअसल, अभी तक ऐसा कुछ नहीं कि इसे कोई झूठ कहा जाये. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह बेहद जोखिमभरा काम है.
मार्स-वन मिशन पर संदेह जतानेवालों के बारे में बास का कहना है, ‘हमारे साथ नोबेल पुरस्कार विजेता और अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं. हमें नासा के वैज्ञानिकों का समर्थन हासिल है. अगर यह सब झूठ होता तो वे हमें कभी समर्थन नहीं देते. मिशन से जुड़े अन्य पक्षकारों के साथ भी यही बात लागू होती है.
परियोजना की सफलता के लिए कई एजेंसियों के साथ संगठन का अनुबंध हो चुका है और नीदरलैंड्स में यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रैंट हमारा विज्ञान और शैक्षणिक सहयोगी है. यदि इन लोगों को इस बात का विश्वास होता कि यह मिशन झूठ है, तो ये लोग कभी भी हमारे साथ जुड़कर काम नहीं करते.’ (स्नेत: बीबीसी एवं अन्य प्रमुख न्यूज वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी)
मंगल का वायुमंडल
– विशेषज्ञों का मानना है कि पृथ्वी और मंगल का वायुमंडल कभी एक समान था, लेकिन उनका विकास अलग-अलग तरीके से हुआ.
– मंगल का वायुमंडल काफी छितरा हुआ और बहुत ठंडा है. यहां जो भी पानी है वह या तो जमा हुआ है या सतह के भीतर है.
– वायुमंडल के छितरा होने की वजह से सूर्य की गरमी सीधे उसकी सतह पर पड़ती है.
– मंगल पर समुद्र होने के प्रमाण भी मिले हैं. इसके चलते माना जा रहा है कि यहां पानी का विशाल स्नेत रहा होगा. हाल ही में वैज्ञानिकों ने यहां प्राचीन झीलों की मौजूदगी के बारे में भी बताया है.
बहुत कठिन है यह ठौर
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरिक्षयात्री स्टेन लव को पता है कि उनके साथियों को अंतरिक्ष में तकनीक के साथ किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. वे हाल ही में अंटार्कटिका से लौटे हैं. उनका कहना है कि मंगल की तुलना में अंटार्कटिका पिकनिक के समान है.
वहां पर्याप्त पानी है. बाहर निकल कर टहल सकते हैं और ताजी हवा में सांस ले सकते हैं, लेकिन फिर भी कोई स्थायी तौर पर वहां नहीं रहता.
मंगल की जमीन पर उतरने की तमन्ना रखने वाले मार्स वन के इन आवेदकों में से अगर कोई चुना गया, तो वो उन चार अंतरिक्ष यात्रियों में होंगे, जिन्होंने मंगल को अपना नया घर बनाने का फैसला किया है.
वर्ष 2024 में एक रॉकेट धरती से चार यात्रियों को लेकर मंगल की तरफ रवाना होगा. तकरीबन सात-आठ महीने तक एक छोटे से कमरे में काले अंतरिक्ष में वे सफर करेंगे. एक दिन उनका यान लाल ग्रह की जमीन छुएगा, कभी वापस न लौटने के लिए.
मिशन के लिए चुने गये भारतीय
– इस मिशन के लिए भारत से भी हजारों लोगों ने आवेदन किया था. इसमें 62 लोगों को चुना गया है. इसमें शामिल एक सख्स हैं विनोद. ये एक सरकारी कंपनी में मैनेजर हैं.
हालांकि, शुरू में इनका परिवार नहीं चाहता था कि ये इस मिशन के लिए आवेदन करें, लेकिन विनोद के जज्बे के आगे परिवारवालों ने रजामंदी दे दी. वैसे, अभी अंतिम रूप से किसी को चयनित नहीं किया गया है.
– तमिलनाडु के कोयंबटूर की श्रद्धा प्रसाद मंगल पर जाने की इच्छुक हैं. एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए तैयारी कर रहीं श्रद्धा अभी सिर्फ 18 साल की हैं. जब उन्होंने मार्स वन मिशन के लिए अपना आवेदन भेजा, तो उनके घर में किसी को यकीन नहीं था कि वह ऐसा कर सकती हैं. उनके माता-पिता उनके फैसले के सख्त खिलाफ थे.
– दिल्ली के सौरभ रॉडी का भी इस मिशन के लिए चयन किया गया है. वे कहते हैं कि जरूरी नहीं कि यह जरूरी नहीं कि अंतिम रूप से उनका चयन हो ही जायेगा, लेकिन अपनी भागीदारी को वे काफी अहम मानते हैं.
मार्स-वन का रोडमैप
2015 पहले बैच में चयनित आवेदकों को प्रशिक्षण मुहैया कराया जायेगा.
2018 इस वर्ष मई माह में एक डिमॉन्सट्रेशन मिशन लॉन्च किया जायेगा. मानव मिशन के लिए महत्वपूर्ण तकनीकों को मुहैया कराने के दृष्टिकोण से ऐसा किया जायेगा. इस वर्ष एक संचार सेटेलाइट भी लॉन्च किया जायेगा, ताकि दोनों ग्रहों के बीच संचार संपर्क कायम हो सके.
2020 एक उन्नत रोवर और एक ट्रेलर लॉन्च किया जायेगा. रोवर का इस्तेमाल ट्रेलर को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए किया जा सकता है. इसी वर्ष एक दूसरा संचार सेटेलाइट भी लॉन्च किया जायेगा.
2022 इस वर्ष जुलाई में छह कारगो (मंगल पर इनसान के रहने और सामान रखने के लिए केबिन) भेजे जायेंगे. इनमें जीवन-रक्षक जरूरी सामग्री भी होगी.
2023 छह कारगो इस वर्ष मंगल पर पहुंच जायेंगे.
2024 इस वर्ष अप्रैल में धरती से मंगल तक की यात्रा की शुरुआत होगी. दूसरे चरण में भेजे जाने वाले यात्रियों के लिए भी इसी माह कारगो भेजे जायेंगे.