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इ-कॉमर्स में एफडीआइ : ऑनलाइन खरीदारी के बदलेंगे तौर-तरीके

इ-कॉमर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा सौ फीसदी तक करने के निर्णय के साथ सरकार ने इस बाजार के संचालन के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश भी जारी किया है. ऑनलाइन खरीददारी के प्रचलन और इ-कॉमर्स में प्रतिस्पर्द्धा में तीव्र विस्तार हो रहा है.इंटरनेट और मोबाइल तकनीक के कारण खरीद-बिक्री और भुगतान के तौर-तरीके में […]

इ-कॉमर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा सौ फीसदी तक करने के निर्णय के साथ सरकार ने इस बाजार के संचालन के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश भी जारी किया है. ऑनलाइन खरीददारी के प्रचलन और इ-कॉमर्स में प्रतिस्पर्द्धा में तीव्र विस्तार हो रहा है.इंटरनेट और मोबाइल तकनीक के कारण खरीद-बिक्री और भुगतान के तौर-तरीके में हो रहे परिवर्तन पर इन नये निर्देशों के भारी असर संभावित हैं. उद्यमियों और ग्राहकों के संदर्भ में इन प्रभावों को विश्लेषित करती आज की यह प्रस्तुति…
आलोक पटनिया/वाणिज्य विशेषज्ञ
पिछले ही दिनों भारत सरकार ने अधिक विदेशी निवेश आकृष्ट करने की खातिर खुदरा इ-कॉमर्स के मार्केटप्लेस (बाजार) मॉडल के लिए 100 प्रतिशत एफडीआइ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की इजाजत दे दी. इस घोषणा के पहले भी, कारोबार-से-कारोबार के आधार पर इ-कॉमर्स में 100 प्रतिशत एफडीआइ की अनुमति थी. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इ-कॉमर्स के ही इन्वेंटरी (भंडारसूची) आधारित मॉडल के लिए यह सुविधा नहीं दी गयी है.
इ-कॉमर्स के अमेजन तथा इबे जैसे बड़े वैश्विक नाम भारत में ऑनलाइन बाजार संचालित कर रहे हैं. ऑनलाइन खुदरा विक्रय के विभिन्न मॉडलों में एफडीआइ संबंधी कोई स्पष्ट मार्गदर्शिका न रहने पर भी फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी भारतीय इ-कॉमर्स कंपनियों ने विदेशी निवेश हासिल कर रखा है. चूंकि मार्केटप्लेस मॉडल की परिभाषा में अस्पष्टता रही है, अतः यह देखना दिलचस्प होगा कि फ्लिपकार्ट, अमेजन और स्नैपडील जैसी इस क्षेत्र की वर्तमान प्रतिष्ठित कंपनियों को इस नयी नीति से कोई फायदा पहुंच पाता है या नहीं.
सरकार द्वारा इ-कॉमर्स, इन्वेंटरी मॉडल एवं मार्केटप्लेस मॉडल की परिभाषाएं भी प्रस्तुत की गयी हैं. इसके अनुसार इ-कॉमर्स के मार्केटप्लेस मॉडल का मतलब डिजिटल अथवा इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर एक आइटी प्लेटफार्म मुहैया करना है, जो खरीदार और विक्रेता के बीच संबंधों को सुगम बनाने का कार्य कर सके. दूसरी ओर, इन्वेंटरी आधारित मॉडल का तात्पर्य एक ऐसी इ-कॉमर्स गतिविधि से है, जिसमें सामानों तथा सेवाओं का स्वामित्व किसी इ-कॉमर्स कंपनी के पास होता है, जिसे वह सीधा ग्राहकों को बेचती है.
मार्केटप्लेस मुहैया करनेवाली कंपनी को अपने प्लेटफार्म पर निबंधित विक्रेताओं से कारोबार-से-कारोबार के आधार पर लेनदेन करने की अनुमति होगी. इसके अलावा, यह प्रावधान भी किया गया है कि एक इ-कॉमर्स कंपनी को अपने प्लेटफार्म की कुल बिक्री के 25 प्रतिशत से अधिक की बिक्री किसी एक वेंडर अथवा उसके ही समूह की कंपनियों से करने की अनुमति नहीं होगी. सरकार के इस फैसले के इ-कॉमर्स के पूरे तंत्र पर कई प्रभाव होंगे.
अब बड़ी छूटें नहीं िमलेंगी
कीमतों में बड़ी छूटों का दौर अब इतिहास की बात हो जायेगी, क्योंकि सरकार का जोर इस बात पर है कि इ-कॉमर्स कंपनियां अपने सूचीबद्ध वेंडरों को सिर्फ विक्रय में गमता पहुंचायें, न कि खुद नुकसान सहते हुए भी उनकी न्यूनतम कीमतों पर छूटों की पेशकश किया करें. यह प्रावधान एक वरदान भी साबित हो सकता है, क्योंकि अब इ-कॉमर्स कंपनियां केवल उसी सीमा तक छूटों की पेशकश कर सकेंगी, जिन्हें उनके वेंडर स्वयं दे सकें. इससे इन कंपनियों का मुनाफा बढ़ेगा और नतीजतन, उन पर निवेशकों के भरोसे में भी बढ़ोतरी होगी. दूसरी ओर, अब चूंकि ऑनलाइन कीमतें खुले बाजार की कीमतों के स्तर पर आ जायेंगी, खरीदारों तथा निवेशकों के लिए ऑनलाइन बाजारों का आकर्षण घटेगा.
अब ब्रांड वैल्यू में मनमानी नहीं
इ-कॉमर्स की कीमतों का मूल्यांकन फिलहाल तो नीचे आ जायेगा, क्योंकि अब ये कंपनियां अपनी आय में भारी वृद्धि नहीं दिखा सकेंगी. अभी पिछले ही महीने मॉर्गन स्टैनली ने फ्लिपकार्ट में अपने निवेश की कीमत 27 प्रतिशत घटा डाली. मगर मध्यम से लंबे अरसों में इन कंपनियों की मुनाफा कमाने की क्षमता लौटेगी, क्योंकि भारी छूटें खत्म हो जायेंगी, जिससे इनके प्रति निवेशकों के नजरिये में बदलाव के द्वारा इनका मूल्यांकन भी ऊपर उठेगा. तीसरा, वर्तमान इ-कॉमर्स कंपनियों को अपनी कार्यप्रणालियां बदलने को बाध्य होना पड़ेगा, क्योंकि वे किसी एक ही वेंडर अथवा उनके समूह की बहुत ज्यादा बिक्री नहीं कर पायेंगी.
इस तरह, फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसी कंपनियां, जिनकी ज्यादातर बिक्री उनकी खुद से संबद्ध फर्मों की होती है, आगे मुश्किलें महसूस करेंगी. हालांकि, फ्लिपकार्ट ने डब्लूएस रिटेल नामक अपने वेंडर प्रभाग के वैधानिक स्वामित्व को खुद से अलग कर लिया है, फिर भी वह उससे खरीदारी करने को बढ़ावा देता है. अमेजन भी कैटमरान वेंचर्स के साथ अपने संयुक्त उद्यम के लिए यही करता है. इसके अतिरिक्त, ये इ-कॉमर्स कंपनियां अपने द्वारा बेची गयी चीजों पर कोई वारंटी भी नहीं दे पायेंगी, अतः उसके लिए भी उन्हें अपनी कार्यप्रणाली तय करनी पड़ेगी.
सरकार द्वारा जारी की गयी इस प्रेस विज्ञप्ति की विशेषता यह है कि यह सेवा क्षेत्र के इ-कॉमर्स बाजार सहित सभी इ-कॉमर्स बाजारों की भूमिका बिलकुल साफ कर देती है, जिसका असर ऊबर तथा ओला जैसी यात्री परिवहन कंपनियों पर भी पड़ेगा. उन्हें भी छूट देने अथवा ग्राहकों को खींचने के लिए अपनाये जानेवाले अन्य उपायों को लेकर मुश्किलों का सामना करना होगा.
ऑॅफलाइन बाजार पर दबाव घटेगा
इस घोषणा ने इ-कॉमर्स मार्केटप्लेस मुहैया करनेवाली कंपनियों की भूमिकाएं सीमित कर उन्हें पारंपरिक ऑफलाइन बाजारों के साथ समान धरातल पर ला दिया है. इस संबंध में अब तक की नीतियों की अस्पष्टता का लाभ उठाते हुए ये कंपनियां अपने मार्फत होनेवाले विक्रय पर भारी छूटें देते हुए वस्तुतः खुद ही खुदरा विक्रेता बन बैठी थीं, जिससे कई विसंगतियां पैदा हो गयीं. अब उन्हें अपने संचालन के तौर-तरीके बदलने होंगे, ताकि वे अपने वर्तमान मूल्यांकनों के आधार पर फंड की उगाही कर सकें. फिर चूंकि इ-कॉमर्स के इन्वेंटरी आधारित मॉडल में एफडीआइ की अनुमति नहीं है, इ-कॉमर्स कंपनियों के लिए उस मॉडल में बड़े फंड की उगाही करना कठिन बन जायेगा.
(योरस्टोरी डॉट कॉम से साभार)
(अनुवाद: विजय नंदन)
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इ-कॉमर्स में 100 फीसदी विदेशी निवेश पर सरकारी िदशा-िनर्देश
इ-कॉमर्स के संबंध में वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) निर्मला सीतारमण ने 30 नवंबर, 2015 को लोकसभा को जानकारी दी थी कि सरकार की प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश नीति तहत उन कंपनियों को ऑटोमैटिक रूट से 100 फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति होगी जो सिर्फ बिजनेस-टू-बिजनेस इ-कॉमर्स में संलग्न हैं. उन्होंने यह भी बताया था कि महज निम्न स्थितियों मेंही किसी कंपनी को खुदरा व्यापार की अनुमति होगी.
– निर्माता को भारत में निर्मित अपने उत्पादों को इ-कॉमर्स रिटेल के जरिये बेचने की अनुमति होगी.
-आम दुकानों के जरिये एकल ब्रांड बेचनेवाली इकाई को इ-कॉमर्स के द्वारा उत्पाद की खुदरा बिक्री की अनुमति होगी.
– भारतीय निर्माता अपने एकल ब्रांड उत्पादों को इ-कॉमर्स के जरिये बेच सकता है. ऐसे निर्माता निवेशी कंपनी होंगे जो भारतीय ब्रांड के स्वामी हैं और जो मूल्य के अनुसार 70 फीसदी उत्पाद स्वयं उत्पादित करते हों तथा वे अधिक-से-अधिक 30 फीसदी उत्पाद अन्य भारतीय उत्पादकों से ले सकते हैं.
इस घोषणा को स्पष्ट करते हुए मंत्रालय के औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग ने 29 मार्च को अनेक दिशा-निर्देश जारी किया है तथा विभिन्न व्यापारिक श्रेणियों को परिभाषित किया है ताकि किसी तरह के भ्रम से बचा सके. इसमें कहा गया है कि बिजनेस-टू-कंज्यूमर इ-कॉमर्स में किसी तरह के विदेशी निवेश की अनुमति नहीं होगी. लेकिन मंत्री द्वारा वर्णित स्थितियों में बिजनेस-टू-कंज्यूमर इ-कॉमर्स में भी विदेशी निवेश किया जा सकता है. उन स्थितियों का उल्लेख ऊपर किया गया है.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संबंध में दिशा-निर्देश-
1. मार्केटप्लेस मॉडल के इ-कॉमर्स में ऑटोमैटिक रूट से 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेशी की अनुमति दी गयी है.
2. इंवेंटरी आधारित इ-कॉमर्स में विदेशी निवेश की अनुमति नहीं होगी.
अन्य शर्तेंः
1. डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क में कंप्यूटरों के नेटवर्क, टेलीविजन चैनल और ऑटोमैटेड तरीके से प्रयुक्त होनेवाले अन्य इंटरनेट एप्लीकेशन, जैसे-वेब पेजेज, एक्स्ट्रानेट, मोबाइल आदि शामिल हैं.
2. मार्केटप्लेस इ-कॉमर्स इकाईयों को अपने प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत विक्रेताओं से बिजनेस-टू-बिजनेस आधार पर लेन-देन की अनुमति होगी.
3. इ-कॉमर्स मार्केटप्लेस विक्रेताओं को वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक, ऑर्डर पूरा करने, कॉल सेंटर, भुगतान लेने और अन्य सेवाएं से संबंधित सहयोग प्रदान कर सकती हैं.
4. मार्केटप्लेस उपलब्ध करानेवाली इ-कॉमर्स इकाई इंवेंटरी यानी बेचे जानेवाले सामान पर मालिकाना नहीं रखेगी. यदि ऐसा स्वामित्व है तो ऐसे कारोबार को इंवेंटरी आधारित मॉडल की श्रेणी में रखा जायेगा.
5. कोई इ-कॉमर्स इकाई अपने मार्केटप्लेस से एक वेंडर या उनकी समूह कंपनियों के कुल विक्रय के 25 फीसदी से अधिक बिक्री की अनुमति नहीं देगी.
6. मार्केटप्लेस में वेबसाइट पर बेची जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं के साथ विक्रेता का पूरा नाम और पता उल्लिखित होगा. बिक्री के बाद की जरूरतों, वस्तु की आपूर्ति और ग्राहक का संतोष विक्रेता की जिम्मेवारी होगी.
7. मार्केटप्लेस मॉडल में भुगतान से जुड़ी सुविधाएं भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों के मुताबिक इ-कॉमर्स इकाई द्वारा प्रदान की जा सकती हैं.
8. मार्केटप्लेस मॉडल में बेची गयी वस्तु की वारंटी या गारंटी की जिम्मेवारी विक्रेता की होगी.
9. इ-कॉमर्स इकाईयां प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकती हैं और उन्हें बराबरी का अवसर मुहैया कराना होगा.
10. बिजनेस-टू-बिजनेस इ-कॉमर्स में थोक व्यापार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीतियों के अनुरूप होगा.
जरूरी परिभाषाएं
भारत सरकार ने विभिन्न श्रेणियों को नीतिगत स्पष्टता के लिए परिभाषित किया है.
1. इ-कॉमर्स- इ-कॉमर्स का अर्थ है डिजिटल तथा इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर डिजिटल उत्पादों समेत वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री.
2. इ-कॉमर्स इकाई- यह इ-कॉमर्स कारोबार करनेवाली ऐसी कंपनी है जो कंपनीज एक्ट, 1956 या कंपनीज एक्ट, 2013 के तहत पंजीकृत हो या कंपनीज एक्ट, 2013 के सेक्शन दो (42) के तहत कोई विदेशी कंपनी या फेमा, 1999 के अनुसार भारत में कोई कार्यालय, शाखा या एजेंसी हो जिसका स्वामित्व या नियंत्रण भारत के बाहर रहनेवाले निवासी के जिम्मे हो.
3. इ-कॉमर्स का इन्वेंटरी आधारित मॉडल- इसका तात्पर्य ऐसी इ-कॉमर्स गतिविधि से है जहां वस्तुओं और सेवाओं की इन्वेंटरी इ-कॉमर्स इकाई के स्वामित्व में हो तथा उन्हें सीधे उपभोक्ताओं को बेचा जाता है.
4. इ-कॉमर्स का मार्केटप्लेस आधारित मॉडल- इस मॉडल में इ-कॉमर्स इकाई डिजिटल और इ-कॉमर्स नेटवर्क पर सूचना तकनीक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती है जो विक्रेता और उपभोक्ता के बीच कड़ी का काम करता है.
इ-रिटेल की मौजूदा हालत
विदेशी निवेश की अनुमति और नये दिशा-निर्देशों के बाद इ-कॉमर्स के परिदृश्य में कई बदलाव आ सकते हैं. ऐसे में मौजूदा स्थिति पर नजर डालना समीचीन होगा.
– इ-कॉमर्स की लगभग सभी रिटेल कंपनियां घाटे में हैं. वर्ष 2014-15 के वित्त वर्ष में फ्लिप्कार्ट को दो हजार करोड़, अमेजन इंडिया को 1,723.6 करोड़ और स्नैपडील को 1,328.01 करोड़ घाटा हुआ था. ऐसे में ग्राहकों को मिलनेवाली छूट पर सीधा असर पड़ा है.
– कुछ महीनों पहले तक कई रिटेल साइटों पर 50 फीसदी या अधिक की छूट आम बात थी, किंतु अब यह संख्या सिर्फ स्टॉक क्लियेरेंस में ही दिखती है. महिलाओं के कपड़ों और जूते-चप्प्लों जैसे खूब बिकनेवाली वस्तुओं पर छूट मात्र 30-35 फीसदी के
आसपास आ गयी है. स्मार्ट फोन और फर्नीचर पर छूट भी 10-15 फीसदी के स्तर पर है.
– यह रूझान निवेश में कमी का सीधा नतीजा है. पीडब्ल्यूसी के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 के वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में पहली छमाही की तुलना में प्राइवेट इक्विटी डीलों में 119 फीसदी की कमी आयी है. वर्ष 2015 के अप्रैल और सितंबर के बीच ऐसे 118 डीलों से 273.41 बिलियन डॉलर निवेशित हुए थे, जबकि 2015 के अक्तूबर और इस वर्ष मार्च के बीच 108 डील ही हुए जिनसे 124.83 बिलियन डॉलर राशि जुटायी गयी.(स्रोतः फाइनेंसियल एक्सप्रेस)
तेजी से बढ़ता इ-कॉमर्स
38 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है इ-कॉमर्स कारोबार 2016 में.
67 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है इस वर्ष इ-कॉमर्स के क्षेत्र में.
23 बिलियन डॉलर राजस्व था इस उद्योग का 2015 में. वर्ष 2009 में यह आंकड़ा मात्र 3.8 बिलियन और 2014 में 17 बिलियन डॉलर था.
70 फीसदी हिस्सा कुल इ-कॉमर्स राजस्व का एम-कॉमर्स यानी मोबाइल के जरिये होनेवाली खरीद-बिक्री से आने का अनुमान है.
65 फीसदी के करीब मौजूदा इ-कामर्स कारोबार मोबाइल और टैबलेट के जरिये होता है जो कि पिछले साल से 50 फीसदी अधिक है. स्मार्ट फोन उपभोक्ताओं की निरंतर बढ़ती संख्या को देखते हुए इस रुझान में तेजी आने की उम्मीद है.
78 फीसदी खरीददारी संबंधी पूछताछ या ऑर्डर मोबाइल यंत्रों के द्वारा संपन्न किये गये थे 2015 में, जबकि यह संख्या 2013 में मात्र 46 फीसदी रही थी.
45 फीसदी ऑनलाइन ग्राहकों ने भुगतान नगद किया जबकि 16 फीसदी ने क्रेडिट कार्ड और 21 फीसदी ने डेबिट कार्ड का इस्तेमाल किया पिछले साल. इंटरनेट बैंकिंग और कैश कार्ड का उपयोग करनेवाले ऑनलाइन ग्राहकों की संख्या क्रमशः 10 और सात फीसदी रही थी.
52 फीसदी नियमित ऑनलाइन ग्राहकों की आयु 26 से 35 वर्ष है, जबकि 18 से 25 वर्ष आयु के 38 फीसदी ग्राहक हैं और दो फीसदी ग्राहक 45 से 60 वर्ष आयु-सीमा के हैं.65 फीसदी ऑनलाइन खरीददार पुरुष और 35 फीसदी महिलाएं हैं.

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