
फरवरी में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में कथित तौर पर देश-विरोधी नारे लगने के बादजेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष गिरफ्तार हुई. लेकिन इसके बाद, देश के कई और शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों ने शिक्षकों और छात्रों की ओर कड़ा रुख़ अपनाया है.
कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब विश्वविद्यालयों में कुलपति, रेजिस्ट्रार या कॉलेज के प्रिंसिपल शिक्षा संस्थानों में सेमिनार, लेक्चर, छात्रों के विरोध पर ख़ासा ‘प्रो-एक्टिव’ रवैया अपना रहे हैं.
एक नज़र कुछ चर्चित संस्थानों में शीर्ष पर बैठे उन लोगों पर जिन्होंने शिक्षकों और छात्रों के ख़िलाफ़ सस्पेंशन से लेकर पुलिस कार्रवाई तक की पहल की है.
प्रोफ़ेसर नंद कुमार ‘इंदू’, कुलपति, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय-

28 मार्च को झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (जेसीयू) के कुलपति प्रोफ़ेसर नंद कुमार यादव ‘इंदू’ ने एक शिक्षक को जेएनयू के एक प्रोफ़ेसर एनएम पाणिनी को जेसीयू में आकर बोलने का न्यौता देने के लिए सस्पेंड कर दिया.
सस्पेंशन की चिट्ठी में कहा गया- “प्रोफ़ेसर पाणिनी जेएनयू के उन छात्रों के उस्ताद हैं जो देश-विरोधी हरकतों से जुड़े हुए थे. ऐसे में उन्हें न्यौता देने से जेसीयू की छवि ख़राब हुई और कुलपति की इज़्ज़त दांव पर लग गई.”
जेसीयू की शिक्षक डॉ. श्रेया भट्टाचार्जी ने प्रोफ़ेसर पाणिनी को सरदार वल्लभभाई पटेल की 140वीं जयंति के समारोह पर बोलने के लिए न्यौता दिया था.
बीआर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय में प्रो-वाइस चांस्लर रहे और जर्मनी में पीएचडी कर चुके प्रोफ़ेसर नंद कुमार यादव को अगस्त 2015 में झारखंड विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया था.
एम सुधाकर, रेजिस्ट्रार, हैदराबाद विश्वविद्यालय-

23 मार्च को हैदराबाद यूनीवर्सिटी में छात्रों पर लाठीचार्ज के रेजिस्ट्रार, एम सुधाकर ने हैदराबाद के पुलिस आयुक्त को चिट्ठी लिखकर उनसे विश्वविद्यालय परिसर के हर गेट पर पुलिस तैनात करने का अनुरोध किया.
चिट्ठी में उन्होंने 22 मार्च को हुई तोड़फोड़ का हवाला देते हुए कहा- “विश्वविद्यालय के प्रमुख गेट के अलावा हर दरवाज़े को बंद कर मीडियाकर्मी, राजनीतिक संगठन और बाहरी छात्र संगठनों के प्रवेश पर रोक लगाने में पुलिस की मदद चाहिए.”
सितंबर 2015 में हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गएविश्वविद्यालय में क्या सबकुछ सामान्य है? को दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद छुट्टी पर भेजा गया था और 22 मार्च को उन्होंने वापस अपना कार्यभार संभाला था, जिसका छात्र विरोध कर रहे थे.
कुलपति अप्पा राव के घर पर तोड़-फोड़ की गई और हैदाराबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों को ज़मानत पर इन गतिविधियों में भाग लेने का आरोप लगाया गया. उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर कुछ दिन के बाद, अब वो ज़मानत पर बाहर आए हैं.
छात्रों का आरोप है कि कुलपति अप्पा राव और रेजिस्ट्रार एम सुधाकर जाति के आधार पर भेदभाव कर रहे हैं.
डॉ. आरजी परदेशी, प्रिंसिपल, फ़र्ग्यूसन कॉलेज

22 मार्च को पुणे के फ़र्ग्यूसन कॉलेज के प्रिंसिपल आरजी परदेशी ने पुलिस को चिट्ठी लिखकर ‘देश-विरोधी’ नारे लगाने वाले छात्रों की पहचान कर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अनुरोध किया था.
उस दिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और कुछ वाम संगठनों ने कॉलेज में ‘जेएनयू के सच’ पर बहस आयोजित की थी जो तल्ख़ हो गई. इसमें ‘आज़ादी’ से जुड़े कई नारे लगाए गए.
जब परदेशी की चिट्ठी का विरोध हुआ तो अगले ही दिन उन्होंने उसे वापस लिया और कहा कि ‘देश-विरोधी’ गलती से लिखा गया था. पुलिस को अब तक देश-विरोधी नारे लगाए जाने के कोई सबूत नहीं मिले हैं.
स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक फ़र्ग्यूसन कॉलेज की गवर्निंग काउंसिल के कई सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं.
अब कई छात्र ये मांग कर रहे है कि साल 2009 में फ़र्ग्यूसन कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त किए गए डॉ परदेशी को हटाया जाए.
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