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हेडफोन नहीं है अकेले का साथी

आज कल युवाओं में हेडफोन या ईयरफोन का काफी क्रेज है. अधिकतर लोगों का मानना है कि हेडफोन हमारे अकेलेपन का साथी होता है. हम इसे काम करते हुए या ट्रेवल के दौरान घंटों कान में लगाये रहते हैं, तो इसकी हमें आदत-सी हो जाती है, जो कि काफी खतरनाक है. डॉक्टरों के मुताबिक, यह […]

आज कल युवाओं में हेडफोन या ईयरफोन का काफी क्रेज है. अधिकतर लोगों का मानना है कि हेडफोन हमारे अकेलेपन का साथी होता है. हम इसे काम करते हुए या ट्रेवल के दौरान घंटों कान में लगाये रहते हैं, तो इसकी हमें आदत-सी हो जाती है, जो कि काफी खतरनाक है. डॉक्टरों के मुताबिक, यह उपकरण देखने में तो छोटा है, लेकिन आपको बहरा बना सकता है.

इंडियन मेडिकल रिसर्च की मानें, तो 12 में से एक भारतीय सुनने की समस्या से पीड़ित हैं, जिसकी बड़ी वजह इयरफोन और हेडफोन है. हेडफोन से ऊंची आवाज में म्यूजिक सुनने या देर-देर तक बात करने से कान की नसों पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है. कान का संतुलन बनानेवाली नसें ध्वनि भी प्रभावित होती है.

आमतौर पर कान 65 डेसिबल की ध्वनि को बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन हेडफोन पर 90 डेसिबल की ध्वनि और 40 घंटे से ज्यादा सुनते हैं, तो कान की नसें पूरी तरह से समाप्त हो सकती है. हेडफोन या इयरफोन की वजह से कान में छन-छन की आवाज आना, सनसनाहट महसूस होना, नींद न आना, सिर में चक्कर आना और कान में दर्द आदि इसके अलावा ज्यादा लाउड सुनने से दिल के दौरा का खतरा बढ़ जाता है.

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