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कुछ नया सीखने में संकोच कैसा

सफलता प्रतिभा, प्रयत्न और प्रयोग से मिलती है. प्रतिभा को निखारने के लिए व्यापक ज्ञान होना चाहिए. यह तभी आता है, जब व्यक्ति सीखने को लेकर प्रतिबद्ध, सतर्क और जिज्ञासु होता है. सीखने की कोई उम्र या ज्ञान की कोई सीमा नहीं है. इसके लिए पूरा जीवन भी कम है. यह सभी मनुष्य के जीवन […]

सफलता प्रतिभा, प्रयत्न और प्रयोग से मिलती है. प्रतिभा को निखारने के लिए व्यापक ज्ञान होना चाहिए. यह तभी आता है, जब व्यक्ति सीखने को लेकर प्रतिबद्ध, सतर्क और जिज्ञासु होता है. सीखने की कोई उम्र या ज्ञान की कोई सीमा नहीं है. इसके लिए पूरा जीवन भी कम है. यह सभी मनुष्य के जीवन का सत्य है. इसलिए सीखने के मामले में संकोच या शर्म नहीं करना चाहिए. यह करियर की बड़ी बाधा है. वास्तविक सफलता इस बाधा से स्वयं से बाहर निकालना पहली बड़ी जरूरत है.
1. ज्ञान की सीमा नहीं
दुनिया में जितने भी सफल व्यक्ति हुए, सब ने खुद को जीवन भर सीखने की प्रक्रिया में रखा. जिस तरह कोई व्यक्ति सीख कर दुनिया में नहीं आता, सब कुछ यहीं सीखता है. उसी प्रकार किसी व्यक्ति के लिए सब कुछ लेना असंभव है. जिज्ञासा और जानकारी का कोई अंतिम पड़ाव नहीं है.
आप जिस भी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं, उसमें भी ज्ञान की कोई सीमा नहीं है. आपकी पूरी उम्र सीखते रहने के लिए है. इसलिए स्वयं को हमेशा सीखने की प्रक्रिया में रखें. जिस दिन और जीवन के जिस पड़ाव पर आप यह मान लेंगे कि आप ने सब कुछ सीख लिया है. अब और सीखना जरूरी नहीं है. उसी दिन आपके करियर, आपकी प्रगति का अंत हो जायेगा. इसलिए जब भी, जहां भी, जिस व्यक्ति से भी कुछ सीखने का अवसर मिले या उससे सीखने की जरूरत पड़े, बेहिचक सीखें. सीखने की प्रक्रिया इस बात का प्रतीक है कि आप जीवंत हैं और निरंतर आगे बढ़ना चाहते हैं. यह मूर्खता या अज्ञानता का प्रमाण नहीं है, बल्कि न सीखना मूर्खता है.
2. अहंकार से बाहर निकलें
जिस तरह जिज्ञासु होना मानव स्वभाव है. उसी प्रकार जिज्ञासा व्यक्त करने में झिझक का होना मानवीय स्वभाव का घटक है. अहंकार इस स्वभाव को और जटिल बना देता है. यह जिज्ञासा की अभिव्यक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है. जब आप जानने और सीखने की प्रक्रिया में स्वयं को तत्पर करेंगे, तब यह लज्जा का भाव भी उत्पन्न करेगा. कोई बात पूछने या कुछ जानने के लिए स्वयं को व्यक्त होने में शर्म महसूस करेंगे, किंतु यह वास्तव में आपकी हीन ग्रंथियां हैं. इन्हें तोड़ने की जरूरत होगी. जब एक बार इससे बाहर निकल जायेंगे, तब महसूस करेंगे कि आपके पास सीखने और जानने के असीमित अवसर और साधन हैं.
तब आप सार्वजनिक रूप से, भीड़-भाड़ के बीच भी, भरे क्लास रूम में और बड़ी सभा में भी बड़ी सहजता से अपनी जिज्ञासा रख पा रहे हैं. इससे आपको अपने ज्ञानकोश को बढ़ाने में जबरदस्त मदद मिल रही है. जिसे आप शुरू में शर्म का कारण मानते थे, वह आपका गुण बन चुका है. लोग खुद भी आपसे प्रश्न पूछने और कुछ सीखने की अपेक्षा करने लगे हैं. उनके और आपके बीच की मानसिक दूर मिट चुकी है. आपको करियर को आगे ले जाने के लिए कई मददगार मिल चुके हैं.
3. प्रयोगधर्मी बनें
सीखने का उद्देश्य तभी पूर्ण होगा, जब आप उसे व्यवहार में लायेंगे. प्रत्येक ज्ञान की सार्थकता उसके प्रयोग में है. अन्यथा आपका प्रयत्न और इसके परिणाम औचित्यहीन हैं. इसलिए प्रयोगधर्मी बनें. प्रत्येक ज्ञान के व्यावहारिक पक्ष को अपने जीवन, आचरण, विचार और कर्म में उतारें. प्रयोगधर्मिता का अर्थ केवल व्यावहारिक होना नहीं है, अपितु प्राप्त ज्ञान और अपनी विशिष्ट प्रतिभा से नये परिणाम की तलाश प्रयोगधर्मिता है. आप जितने प्रयोगधर्मी होंगे, उतने ही नये परिणाम उत्पन्न कर सकेंगे. यह परिणाम निजी हित में हो सकता है और समाज, राष्ट्र व विश्व के व्यापक हित में भी. इसकी मात्रा और इसका स्वरूप आपके उद्देश्य, प्रयत्न और प्रयोग की मात्रा व स्वरूप पर निर्भर करता है.
4. स्वयं को इस अवस्था में लाएं
डान सुलिवन का कहना है कि ‘कम श्रम में अधिक पैसे प्राप्त करो’. सुलिवन के कथन में आये ‘पैसा’ शब्द को आप अपने प्रयत्न के परिणाम के रूप में समझें. यह उस अवस्था का परिणाम है, जब आप अपने करियर को एक निश्चित मुकाम तक पहुंचा पाते हैं.
इसलिए आपकी सफलता का पैमाना ‘जितना श्रम, उतना पैसा’ या ‘जिनता श्रम, उतना परिणाम’ नहीं होना चाहिए है, बल्कि सफलता पाने के लिए आपको एक पायदान और ऊपर जाना होगा. इसके लिए कुछ विशिष्ट तत्वों को अपने जीवन से जोड़ें. जैसे, जिस वस्तु से समन्वय नहीं बैठ सकता, उसे छोड़ दें. जो व्यक्ति आपके जीवन की राह में रूकावट हो सकते हैं, उनसे अलग हो जाएं, खुद को ऐसा बनाएं कि आपके मेंटर आप की ओर आकर्षित हों.
आप ने जो टीम बनायी है, वह आपके कार्य में गुणात्मक वृद्धि करने वाली हो. प्राप्त समय का का ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग करें. अपने जीवन को आसान बनाएं. स्वयं को हमेशा फिट रखें.

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