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कम उम्र में फहराया कामयाबी का परचम
दुनियाभर में प्रख्यात मैगजीन फोर्ब्स ने हाल ही में भारत के युवा कारोबारियों की एक सूची बनायी है, जिसमें 30 वर्ष से कम उम्र के उन उद्यमियों का जिक्र किया गया है, जिन्होंने अपने कौशल के बूते अपना उद्यम शुरू किया और शुरुआती कामयाबी पायी है. ‘30 अंडर 30’ में चुने गये इन्हीं में से […]
दुनियाभर में प्रख्यात मैगजीन फोर्ब्स ने हाल ही में भारत के युवा कारोबारियों की एक सूची बनायी है, जिसमें 30 वर्ष से कम उम्र के उन उद्यमियों का जिक्र किया गया है, जिन्होंने अपने कौशल के बूते अपना उद्यम शुरू किया और शुरुआती कामयाबी पायी है. ‘30 अंडर 30’ में चुने गये इन्हीं में से तीन युवा उद्यमियों की कामयाबी के बारे में बता रहा है आज का स्टार्टअप पेज …
उपासना मकती
संस्थापक और प्रकाशक, व्हाइट प्रिंट
दृष्टिहीन व्यक्ति उपासना से अक्सर यह सवाल करते थे, ‘हमारे लिए आप यह सब क्यों करती हैं?’ या ‘क्या आप दृष्टिहीन हैं?’ ये लोग यह जानने के लिए उत्सुक रहते थे कि कनाडा के ओटावा यूनिवर्सिटी में कॉरपाेरेट कम्युनिकेशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उपासना इस तरह का काम क्यों करती हैं. दरअसल, उपासना कुछ अलग करना चाहती थीं.
उपासनी कहती हैं, ‘मार्च, 2012 के आसपास का समय ऐसा था, जब मैं बहुत निराश थी. मैं अपने पब्लिक रिलेशन के जॉब से संतुष्ट नहीं थी. एक दिन मैंने यह महसूस किया कि जिस तरह से मैं अपने दिन की शुरुआत करती हूं, क्या दृष्टिहीन भी उसी तरह से करते होंगे. मैंने सोचा कि आखिर वे कैसे पढ़ते होंगे? लिहाजा मैंने उस पर काम शुरू किया. नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड के डायरेक्टर से मिलने के बाद मुझे पता चला कि दुनियाभर में इनकी संख्या करीब डेढ़ करोड़ है.
इसी दौरान मैंने नोटिस किया कि आज बाजार में सामान्य लोगों के लिए लाइफस्टाइल से जुड़ी एक नहीं, बल्कि अनेक भाषाओं में सैकड़ों पत्रिकाएं उपलब्ध हैं, लेकिन आंखों की रोशनी के बिना जीनेवाले लोगों के लिए ऐसी एक भी पत्रिका नहीं है, जिसे पढ़ कर वे समाज में आये बदलावों को जान सकें. तभी मेरे जेहन में ऐसी किसी मैगजीन को लॉन्च करने का ख्याल आया. इसके बाद मैंने कई दृष्टिहीनों से मिल कर यह जानने की कोशिश की थी कि यदि मैं उनके लिए लाइफस्टाइल मैगजीन तैयार करूंगी, तो क्या वे उसे पढ़ना पसंद करेंगे. मेरे इस विचार को ज्यादातर लोगों ने पसंद किया.
उन्हें यह जान कर अच्छा लगा कि बाजार में उनके लिए भी एक ऐसी पत्रिका आ सकती है, जो उन्हें फैशन, सेहत और फिटनेट के क्षेत्र में होनेवाले परिवर्तनों की जानकारी देगी. लोगों से मिली इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद मैंने ‘व्हाइट प्रिंट’ को लॉन्च करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया.’
म ई, 2015 में उपासना ने भारत में पहली बार ब्रेल (दृष्टिहीनों के लिए खास लिपि) में मासिक अंगरेजी पत्रिका लॉन्च की. हालांकि, इसकी पहुंच कम लोगों तक ही हो पायी है और बिक्री का आंकड़ा भी कम ही है, लेकिन कॉरपोरेट सेक्टर से मदद हासिल करते हुए उन्होंने इसे काफी आगे बढ़ाया है.
अब वे बच्चों के लिए ब्रेल में किताबें लिख रही हैं. अपनी मैगजीन के लिए उनकी योजना टैक्टाइल इमेज प्रिंटिंग की भी है. हैदराबाद के एलवी प्रसाद आइ इंस्टीट्यूट में सर्जन एंथोनी विपिन दास का कहना है, ‘बतौर डॉक्टर दृष्टिहीनों के इलाज की हमारे लिए कुछ सीमाएं हैं और हम उसी दायरे में उनके लिए कुछ कर पाते हैं, लेकिन ‘व्हाइट प्रिंट’ के रूप में एक मैगजीन उनके लिए बहुत कुछ कर सकती है. उपासना का यह प्रयास इन लोगों के लिए सार्थक दिशा में किया जानेवाला एक सराहनीय प्रयास है.
राह में आयी अनेक चुनौतियां
कारोबार की अपनी चुनौतियां होती हैं. खासतौर से जब कुछ नया काम शुरू कर रहे हों, तो नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है. ‘व्हाइट प्रिंट’ टाइटल को रजिस्टर कराने के लिए आठ महीने का समय लगा. पहले दो बार इस नाम को रिजेक्ट कर दिया गया.
तीसरी बार में इसका रजिस्ट्रेशन पूरा हुआ. दूसरी चुनौती थी मैगजीन के प्रकाशन के लिए रकम का इंतजाम करना. उपासना चाहती थीं कि इस पत्रिका का प्रकाशन किसी प्रकार की चैरिटी से न हो. शुरू से ही वे इसे व्यवसाय का रूप देना चाहती थीं, इसीलिए फंड के लिए अनेक कंपनियों से विज्ञापन लेना ठीक समझा. विज्ञापन हासिल करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. इस तरह से पत्रिका का काम आगे बढ़ने लगा और एक टीम तैयार करके पत्रिका के कंटेंट पर जोर देना शुरू कर दिया.
करिश्मा शाहनी खान
क्रिएटिव डायरेक्टर, क-श
वर्ष 2010 में लंदन कॉलेज ऑफ फैशन से ग्रेजुएशन करने के बाद डिजाइनिंग में अपने करियर की शुरुआत करनेवाली करिश्मा ने लंदन में भी भारतीय परंपरा के अनुरूप ही रंगों का इस्तेमाल किया. करिश्मा के ग्रेजुएशन कलेक्शन ने उस वर्ष ‘बेस्ट सरफेस टेक्सटाइल कलेक्शन’ का पुरस्कार हासिल किया था. फैशन को एक नये रूप में लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहीं डिजाइनर करिश्मा शाहनी खान पुणे की रहनेवाली हैं. जिस काम में मन करिश्मा का लग जाता है, वे वही करने लगती थीं. मन एक जगह ठहरता नहीं था.
और ऐसा शायद इसलिए था कि एक दिन उन को कुछ बड़ा काम करना था. अपनी पढ़ाई के सिलसिले में करिश्मा ने कई देशों की यात्रा की और अलग-अलग जगहों की संस्कृतियों और पहनावे के बारे में जानकारी भी हासिल की. इस के बाद उन्होंने भारत वापस आ कर अपने लिए काम करने का मन बनाया. भारत की कला और संस्कृति को उन्होंने डिजाइन के जरीये दर्शाने की कोशिश की है. 29 वर्षीया करिश्मा का ब्रैंड ‘क.श’ देश के हैंडीक्राफ्ट को विश्व स्तर तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है. उनके डिजाइनिंग की एक बड़ी खासियत यह है कि उत्पाद निर्माण के दौरान बहुत कम मात्रा में माल वेस्टेज होता है.
जैकेट, फुटवियर समेत अनेक एक्सेसरीज का वे डिजाइन तैयार करती हैं. इस प्रक्रिया में वे नेचुरल फाइबर्स का इस्तेमाल करती हैं. कॉलेज में आखिरी शो के बेहद प्रशंसनीय होने से एक बड़ा बदलाव आया और उन्हें अपना काम शुरू करने का प्रोत्साहन मिला. सोमैया कला विद्या के फाउंडर-डायरेक्टर जुडी फ्रेटर का कहना है, ‘करिश्मा को एस्थेटिक्स यानी सौंदर्यशास्त्र की बेहतर समझ है. कुछ वर्ष पहले जब मैं उनसे जुड़ी, तो मैं भारतीय टेक्सटाइल की उनकी समझ को देख कर दंग रह गयी. उनकी कलाकारी अनोखी है.’
यश भणगे
संस्थापक और सीओओ, बॉम्बे कैंटीन
आपको यह जान कर थोड़ा अटपटा लग सकता है कि अपना रेस्टोरेंट चलानेवाले यश भणगे को स्वाभाविक रूप से बचपन से खाना पकाने यानी किचेन से कोई खास लगाव नहीं था.
हालांकि, उनका परिवार अक्सर बाहर खाना खाता था. जब भी वे रेस्टोरेंट में जाते, तो देखते कि वहां का मैनेजर बेहद अनुशासित तरीके से उन लोगों की खातिरदारी करता था और यही चीज भणगे को भा गयी. हाइ स्कूल में साइंस की पढ़ाई करनेवाले यश को रेस्टोरेंट ने अपनी ओर ऐसे खींचा कि वे केमिस्ट्री की लैबोरेटरी छोड़ कर गोवा के एक होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने पहुंच गये. यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद भणगे ने कॉरनेल यूनिवर्सिटी से हॉस्पीटैलिटी मैनेजमेंट का काेर्स किया. वापस लौट कर उन्होंने मुंबई के एक बड़े होटल में काम शुरू किया. शुरुआत में तो उन्होंने फ्रंट आॅफिस की जिम्मेवारी संभाली, लेकिन महीना पूरा होते-होते उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि यह जॉब उनके लिए सूटेबल नहीं है.
भणगे कहते हैं, ‘इस होटल को छोड़ कर मैंने एक रेस्टोरेंट में वेटर का काम शुरू किया. मेरे दिमाग में भारतीय खानपान वाले एक रेस्टोरेंट की कल्पना आकार ले रही थी, जिसे मैं साकार करना चाहता था. बॉम्बे कैंटीन इसी कल्पना का नतीजा है.’ हालांकि, रेस्टोरेंट के संचालन में उनके कॉरनेल के क्लासमेट रह चुके समीर सेठ का भी योगदान है.
जीरोसेहीरो
कॉमेडियन और एक्टर
जिम कैरी
क रीब 20 मिलियन डॉलर की संपत्ति के मालिक प्रख्यात कनेडियन-अमेरिकी फिल्म अभिनेता और हॉलीवुड के जाने-माने हास्य कलाकार का बचपन बेहद गरीबी में बीता था. वर्ष 1962 में कनाडा के ओंटारियो में पैदा हुए जिम कैरी को अपने परिवार के खर्चों में भागीदारी निभाने के लिए सुरक्षा गार्ड की नौकरी भी करनी पड़ी थी. लेकिन अभिनय के प्रति उनके जज्बे ने उन्हें इस ओर खींच लिया. जब वे 15 साल के थे, उसी समय ही उन्होंने टोरंटो कॉमेडी क्लब ज्वाइन किया और उसके बाद वे आगे बढ़ते चले गये. परिवार छोड़ कर वे लॉस एंजिल्स आ गये और काफी संघर्ष किया.
हालांकि, इस क्षेत्र में उन्हें पहला ब्रेक 1983 में ही मिला, लेकिन ‘लिविंग कलर’ की कामयाबी के बाद वे चर्चित हुए. 1990 का दशक उनके लिए बेहद अच्छा रहा और उनके एक के बाद एक प्राेग्राम लोकप्रिय होते चले गये. 1994 में ‘द मास्क’ और ‘डंब एंड डंबर’, 1995 में ‘एस वेंचुरा : व्हेन नेचर कॉल्स’, 1995 में ‘बैटमेन फॉरएवर’, 1996 में ‘द केबल गाइ’ और 1997 में ‘लायर लायर’. वर्ष 1998 में ‘द ट्रूमैन शो’ की सफलता के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का गोल्डेन ग्लोब एवॉर्ड भी दिया गया. इसके बाद उनकी गिनती हॉलीवुड के श्रेष्ठ कलाकारों में होने लगी.
शुरू होगा स्टार्टअप वेब पोर्टल
केंद्र सरकार स्टार्टअप के लिए जल्द वेब पोर्टल शुरू करने जा रही है. उभर रहे उद्यमियों को कारोबार में सुगमता प्रदान करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया भी शुरू की जायेगी.
औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआइपीपी) में सचिव रमेश अभिषेक के हवाले से खबरों में बताया गया है कि स्टार्टअप इंडिया एक महत्वपूर्ण पहल है और सरकार द्वारा कार्रवाई योजना के क्रियान्वयन के लिए पहले ही कदम उठाये जा चुके हैं. डीआइपीपी ने हाल में स्टार्टअप की परिभाषा जारी की है और उनके लिए बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) के लिए आवेदन की प्रक्रिया को आसान बनाया है. राज्य सरकारों के साथ यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि स्टार्टअप के लिए श्रम और कौशल विकास कानूनों के मामले में स्व-सत्यापन किया जाये.
प्रोत्साहन पैकेज
वर्ष 2016-17 के बजट में केंद्र सरकार ने स्टार्टअप के लिए कई घोषणाएं की हैं. इसमें तीन साल तक 100 प्रतिशत कर छूट भी शामिल है. इससे इस क्षेत्र में आने के लिए युवाओं को प्रोत्साहन मिलेगा़ पेटेंट फाइलिंग से होने वाली आमदनी पर भी 10 फीसदी की छूट दी गयी है़ इसके अलावा, पेटेंट की जांच का काम तेज करने के लिए स्टार्टअप को कानूनी सहायता मुहैया कराने पर भी सरकार विचार कर रही है़
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