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पढ़ने की ललक : बेटियों ने ठानी पहले पढ़ाई, फिर विदाई

रीमा डे जमशेदपुर : गांव की लड़कियों ने ठान ली है कि पूरी होगी पढ़ाई, तभी होगी विदाई. गया जमाना, जब ब्याहने का मिलता था बहाना. अब बेटियां पढ़ लिख कर शिक्षित समाज का निर्माण करेंगी. स्वावलंबी बनेंगी. शहर की लड़कियों की तरह गांव की लड़कियां भी जागरूक हो रही हैं. पिछले कुछ दिनों में […]

रीमा डे

जमशेदपुर : गांव की लड़कियों ने ठान ली है कि पूरी होगी पढ़ाई, तभी होगी विदाई. गया जमाना, जब ब्याहने का मिलता था बहाना. अब बेटियां पढ़ लिख कर शिक्षित समाज का निर्माण करेंगी. स्वावलंबी बनेंगी. शहर की लड़कियों की तरह गांव की लड़कियां भी जागरूक हो रही हैं. पिछले कुछ दिनों में कई लड़कियों ने शादी से इनकार करके इसे साबित कर दिया है. इन्होंने सिर्फ ब्याह करने से इनकार ही नहीं किया, अपने घरवालों को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर भी किया. इन्होंने जो राह दिखायी है, वह आनेवाली पीढ़ियों के लिए एक नजीर बनेगी.

केस- 1

मार्च, 2015. पटमदा प्रखंड का गेगाडा गांव. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की नौवीं कक्षा की छात्रा मनी दास का रिश्ता आया. मनी रिश्ते से सहमत नहीं थी. वह और पढ़ना चाहती थी. उसमें यह भी िहम्मत नहीं थी कि वह पिता की इच्छा का विरोध कर सके. मनी की मां भी चाहती थी कि उसकी बेटी आगे पढ़े. पति के आदेश का पालन उसका पत्नी धर्म था.

लेकिन बेटी की शिक्षा में आ रही इस बाधा को दूर करने के लिए मनी की मां ने साहस दिखाया. पति का विरोध नहीं किया, लेकिन क्षेत्र की महिला समूह के पास गयी. अपनी व्यथा बतायी. महिला समूह ने वर पक्ष के बारे में पूरी जानकारी जुटायी. मनी के पिता को बताया कि लड़का बहुत कम पढ़ा-लिखा है. शराब पीता है. पारिवारिक स्थिति भी अच्छी नहीं है. पिता ने सारी बातें सुनीं, तो ब्याह का विचार त्याग दिया. मनी ने इस वर्ष मैट्रिक की परीक्षा दी है और उसे उम्मीद है कि वह बेहतर अंकों से पास होगी.

केस – 2

जूड़ामनी हांसदा (15) धालभूमगढ़ प्रखंड के जुनबुनी गांव में मां के साथ रहती है. बलदेवदास बालिका उच्च विद्यालय घाटशिला में पढ़ रही है. सिर पर पिता का साया नहीं, घर की माली हालत अच्छी नहीं. मां ने बेटी से पूछे बिना रिश्ता तय कर दिया. जूड़ामनी ने विरोध किया. मां नहीं मानी, तो उसने शिव पार्वती महिला समूह की सदस्यों की मदद ली. समूह की महिलाओं ने उसकी मां को समझाया और बताया कि कानूनी तौर पर उसकी बेटी की उम्र शादी के लायक नहीं है. बेटी पढ़-लिख जायेगी, तो अपना और परिवार की जिम्मेदारी उठायेगी. मां मान गयी, चूड़ामणि हर दिन स्कूल जाती है.

केस – 3

16 साल की उज्जला सरदार के घरवालों ने मैट्रिक की परीक्षा के बाद ही उसकी शादी तय कर दी थी. उज्जला ने अपनी शादी रुकवाने के लिए अपने प्रखंड के सृजन महिला समूह की मदद ली. समूह के प्रयास से शादी रुक गयी. उज्जला मैट्रिक की परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन में पास हुई. इन दिनों मुसाबनी माइंस कॉलेज से इंटर में आर्ट्स की पढ़ाई कर रही है.

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