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पर्यावरण संरक्षण : …महिलाओं ने बचाया मिश्राइनमोढ़ा का जंगल

अजय कुमार ती न दशक तक मिश्राइनमोढ़ा के जंगलों की रक्षा करनेवालों ने इसकी सुरक्षा की जिम्मेवारी अब महिलाओं को दे दी है. विभिन्न प्रजाति के लाखों पेड़ों की सुरक्षा महिलाएं बखूबी कर रहे हैं. यह सब हो रहा है बिना वन विभाग की मदद या प्रोत्साहन के. हालांकि, प्रशासन और वन विभाग से सहयोग […]

अजय कुमार
ती न दशक तक मिश्राइनमोढ़ा के जंगलों की रक्षा करनेवालों ने इसकी सुरक्षा की जिम्मेवारी अब महिलाओं को दे दी है. विभिन्न प्रजाति के लाखों पेड़ों की सुरक्षा महिलाएं बखूबी कर रहे हैं. यह सब हो रहा है बिना वन विभाग की मदद या प्रोत्साहन के. हालांकि, प्रशासन और वन विभाग से सहयोग न मिलने से महिलाएं निराश हैं, लेकिन जंगल बचाने का जज्बा कम नहीं हुआ. वन विभाग भी मानता है कि वास्तव में ग्रामीणों के कारण ही मिश्राइनमोढ़ा का जंगल बचा है. ग्रामीण बताते हैं कि दशकों पूर्व गांव में एक मिश्रा परिवार रहता था.
मिश्राजी गांव के सर्वेसर्वा थे. उनके नाम से ही इस गांव का नाम मिश्राइनमोढ़ा पड़ा. गांव में आदिवासी व मुसलिम जाति की बहुलता है. ग्रामीण बताते हैं कि 70 के दशक में जंगल कटाई के बाद गांव में छोटे-छोटे पौधे ही बचे थे. जंगल न होने से ग्रामीणों को कई तरह की परेशानियां होती थीं. इसी के मद्देनजर लोगों ने इन पौधों को बचाने का संकल्प लिया.
दतवन तक के लिए सखुआ के पौधों को तोड़ने की इजाजत नहीं थी. देखते ही देखते पौधे पेड़ बन गये और जंगल का क्षेत्र बढ़ने लगा. वन सुरक्षा समिति बनायी गयी. जंगल के महत्व के बारे में लोगों को बताया गया. 90 के दशक में समिति को और मजबूत किया गया. पेड़ काटनेवालों को समिति ने आर्थिक व शारीरिक दंड का फरमान सुनाया. पेड़ों की कटाई रुक गयी. आज 292 हेक्टेयर में फैले जंगल में लगभग दो लाख से अधिक पेड़-पौधे हैं. इसमें सखुआ, सीधा, सलाई, आसन सहित फलदार पौधे है. शीशम सहित कुछ कीमती पौधे भी हैं.
जंगल से गांव कीपह चान है. वातावरण भी स्वच्छ है. वन सुरक्षा समिति की अध्यक्ष नीलम देवी, सचिव कमला देवी, कोषाध्यक्ष चंदा देवी हैं. चूंकि पेड़ों की कटाई आमतौर पर गांव की महिलाएं ही करती थीं, सो उन्हें ही इसकी सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंप दी गयी. वन सुरक्षा समिति का मानना है कि पर्यावरण के लिए जंगल को बचाना बेहद जरूरी है. इसी संकल्प के साथ सभी जंगल की रक्षा कर रही हैं.

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