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बजट पाठशाला 2016 : जरूरी पहलुओं को ऐसे समझें
हर साल बजट से पहले लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं. लोग सोचते हैं कि पता नहीं कौन-कौन सी चीज सस्ती होगी, कौन-कौन सी चीज महंगी. किन चीजों पर टैक्स बढ़ेगा, किन पर घटेगा. आम आदमी की जेब और रसोई पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. इसके साथ कुछ और अहम सवाल […]
हर साल बजट से पहले लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं. लोग सोचते हैं कि पता नहीं कौन-कौन सी चीज सस्ती होगी, कौन-कौन सी चीज महंगी. किन चीजों पर टैक्स बढ़ेगा, किन पर घटेगा. आम आदमी की जेब और रसोई पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. इसके साथ कुछ और अहम सवाल भी बजट से जुड़े होते हैं. मसलन- बजट है क्या? इसकी तैयारियां कैसे होती हैं?
भारत सरकार अपना वित्तीय काम किस तरह से करती है? सरकार की कमाई कहां से होती है और खर्च कहां करती है? अभी भारत सरकार की आमदनी कितनी है, खर्च कितना है? आमद और खर्च के अलावा सरकार के ऊपर कितना ऋण है? लोगों के मन में उठते ऐसे ही सवालों का ‘आज तक’ के एक कार्यक्रम में सरल उत्तर दिया है केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने. आप बजट को आसानी से समझ सकें, इसी कोशिश के तहत पेश है बजट से जुड़े कुछ खास सवालों पर जयंत सिन्हा के जवाब के संपादित अंश.
बजट को कैसे समझें?
ब जट को समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि किस प्रकार से सरकार चलती है, सरकार की कमाई कहां से होती है और सरकार के खर्चे कहां होते हैं. सरकार की कमाई एवं खर्चों को जानने के लिए सबसे पहले यह समझ लेना चाहिए, और यह सबसे महत्वपूर्ण भी है, कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र क्या हैं? जब हम सरकारों के कार्यक्षेत्र समझ लेंगे, तब यह पता चलेगा कि सरकार की कमाई कहां से होती है और उसका खर्च कहां पर होता है. इसके बाद ही हम यह समझ पाएंगे कि बजट को किस प्रकार से तैयार किया जाता है.
केंद्र और राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र को समझें
पहले यह समझें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र क्या-क्या हैं. केंद्र सरकार के जो काम है, उसके लिए बजट तैयार करना केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में आता है. जैसे- भारतीय सेना, वित्तीय परिस्थितियां, बैंक, रेल, राजमार्ग- ये सब काम केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. राज्य सरकार का काम है- कृषि क्षेत्र, स्वास्थ्य, आवास और रियल स्टेट, सड़कें जो राज्य सरकार बनाती हैं, पुलिस और विधि व्यवस्था. कुछ काम ऐसे भी हैं, जो केंद्र और राज्य सरकार दोनों के जिम्मे है, जिसमें बिजली, शिक्षा, वन आदि इसमें केंद्र सरकार की भी भूमिका है और राज्य सरकार की भी भूमिका है.
पैसा सरकार के पास आता कहां से है?
केंद्र सरकार इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, सर्विस टैक्स, फैक्ट्री पर एक्साइज टैक्स लगाती है और इसे वसूलती है. जो राज्य सरकारें है, वह भी कुछ चीजों पर टैक्स लगाती हैं. इसमें वैट, स्टैंप ड्यूटी आदि राज्य सरकार की कमाई के साधन है. हमारे संविधान के अनुसार जो सरकारी ढांचा है, उसमें केंद्र और राज्स सरकारों के कार्यक्षेत्र भी अलग है और उनकी कमाई के साधन भी अलग हैं. यानी केंद्र सरकार की कमाई का जरिया अलग है और राज्य सरकार की कमाई का जरिया अलग है.
एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार की कमाई से एक बड़ा भाग राज्य सरकारों को जाता है. पहले केंद्र सरकार के पास जो टैक्स रेवेन्यू आते थे, उसका 32 प्रतिशत राज्यों को जाता था. लेकिन, संविधान में ‘फाइनेंस कमीशन’ का प्रावधान है और हर पांच साल बाद फाइनेंस कमीशन यह तय करता है कि केंद्र सरकार की कमाई में से कितना भाग राज्य सरकार को जायेगा.
पिछले साल फाइनेंस कमीशन ने अनुशंसा की और हमलोगों ने उनका पूरा पालन किया है कि अब केंद्र सरकार की कमाई का 32 प्रतिशत नहीं, बल्कि 42 प्रतिशत राज्यों को दिया जायेगा. यानी केंद्र सरकार की जो कमाई है, उसमें से 42 प्रतिशत सरकार राज्यों को भेजती है और राज्य सरकारें उसमें से अपने यहां विकास के वे काम करती है, जो उनके कार्यक्षेत्र में हैं. इसलिए यह समझना भी जरूरी है कि केंद्र सरकार टैक्स तो लेती है, लेकिन उनमें से काफी पैसा टैक्स डिवोलुशन, जो अब 42 प्रतिशत हो गया, या फिर केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत राज्य सरकारों को चला जाता है.
– क्या इसका कोई सीधा-लेना देना केंद्र के खजाने से होता है या फिर सिर्फ राज्य को देकर चैनल बदला जा रहा है?
चूंकि अब केंद्र सरकार के खजाने से ज्यादा पैसे राज्य सरकार के पास चले जाते हैं. इसलिए पहले जितना काम केंद्र सरकार कर सकती थी, अब उनमें से कुछ काम राज्य सरकारों को करना है.
कुल मिला कर नागरिक के दृष्टिकोण से देखें, तो विकास के काम तो चलेगा ही. जो स्वास्थ्य का काम हो रहा था, जो शिक्षा का काम हो रहा था, वह तो चलेगा ही, लेकिन उसके लिए पूंजी अब राज्य सरकारों के माध्यम से जारी की जायेगी, सीधे केंद्र सरकार के माध्यम से नहीं. यह पिछले साल से एक बड़ा बदलाव आया है, जब केंद्र सरकार 32 फीसदी की बजाय राज्यों को 42 फीसदी कमाई देने लगी है.
प्रमुख देशों की तुलना में भारत में टैक्स कम है या ज्यादा?
इस प्रश्न का जवाब देने से पहले मैं यह बताना चाहता हूं कि इस समय सरकार की वित्तीय परिस्थिति कैसी है.फिर हम टैक्स पर जायेंगे. पहले यह समझना चाहिए कि केंद्र सरकार इतना टैक्स लागू कर रही है और राज्य सरकार भी अलग से टैक्स लागू कर रही है, तो ये कमाई और खर्चे का हिसाब क्या है? आपको मालूम है कि जब आप अपना घर चलाते हैं, या फिर अपनी कंपनी चलाते हैं, तो आपको यह देखना होता है कि आपकी कमाई कितनी है और खर्चे कितने हैं. अगर खर्चें ज्यादा हैं तो आपको ऋण लेना पड़ेगा या फिर कुछ और उपाय करना पड़ेगा. यही हाल केंद्र सरकार का भी है, जिसे आपको समझाने की कोशिश कर रहा हूं.
केंद्र सरकार के आय-व्यय
आज के समय में हम देखें कि केंद्र सरकार के जो खर्चे हैं, वे कितने हैं, तो करीब 18 लाख करोड़ केंद्र सरकार के खर्चे हैं. केंद्र सरकार के जो कार्यक्षेत्र हैं, जैसे- सेना का काम, वित्तीय सिस्टम (बैंको को देखना), रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग आदि पर केंद्र सरकार को करीब 18 लाख करोड़ खर्च करना पड़ता है.
केंद्र सरकार की कमाई इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स एक्साइज टैक्स से होती है, उसे कुल मिला कर देखें तो कमाई करीब 12 लाख करोड़ है. यानी हर साल केंद्र सरकार 5.6 लाख करोड़ के घाटे पर चलती है. यहां मुझे एक फिल्म का गाना याद आ रहा है कि आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया. ठीक यही हाल केंद्र सरकार का भी है, जो साल में करीब 5.6 लाख करोड़ के घाटे में चल रही है.
घाटे की भरपाई कैसे
अब सवाल उठता है कि यदि केंद्र सरकार घाटे में चल रही है, तो यह पैसे कहां से आते हैं, क्योंकि केंद्र सरकार की ओर खर्चा तो हो ही रहा है. तो आपको जानना चाहिए कि ये पैसे हमलोग बाजार से उठाते हैं. ऋण के तौर पर लेते हैं और उससे अपना खर्च चलाते हैं. तो हर साल सरकार ऋण लेती है और अपने खर्च चलाती है. तो हर साल सरकार घाटे में चलती है और हमलोग ऋण के आधार पर सरकार को चला पाते हैं.
दुनिया में हर सरकार इसी तरीके से चलती है, लेकिन जितना हमारा घाटा है वह अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है. इसीलिए हमलोगों को बहुत ही समझदारी से, विवेक से अपने खर्चे चलाने हैं और अपनी कमाई करनी है, जिससे यह जो घाटा है, वह थोड़ा कम हो.
यह भी समझना जरूरी है कि यदि हम ऋण ले रहे हैं, तो इसका भुगतान कौन करेगा? इसे चुकायेगा कौन? इस पर ब्याज कौन देगा? तो ये सब चुकानेवाले हमारे बच्चे होंगे. अगर आज हमलोग खा रहे हैं, खर्चा कर रहे हैं, तो हम उसे अपने बच्चों से ऋण के तौर पर लेकर खा रहे हैं, क्योंकि भुगतान तो कल उन्हें ही करना है. इसीलिए हमलोगों को बहुत ही सोच-समझ कर खर्चें करने चाहिए. आपकी दुकान, आपका बिजनेस, आपका घर ऐसे तो नहीं चल पायेगा. इसलिए आपको भी थोड़ी बुद्धि दिखानी होगी, हमें भी थोड़ी बुद्धि दिखानी होगी.
सरकार पर िकतना है उधार
एक और आंकड़ा मैं आपको समझाना चाहता हूं, जो बहुत ही महत्वपूर्ण आंकड़ा है. वह यह है कि कि इस तरह से यदि घाटे में सरकार चलती है, तो हमलोगों का ऋण कितना हो गया है?
आज के समय केंद्र सरकार पर जो ऋण है, वह करीब 70 लाख करोड़ है. यानी हम सभी नागरिकों को मिल-जुल कर 70 लाख करोड़ का ऋण लौटाना होगा. यदि इस पर हम ब्याज की बात करें, तो इस ऋण पर प्रतिवर्ष 4.6 लाख करोड़ हमें सिर्फ ब्याज में देना पड़ता है. जितना हमलोग टैक्स में ले रहे हैं, उसमें से करीब 40 प्रतिशत तो ब्याज में ही देना होता है. ये हमारी वित्तीय परिस्थितियां है.
जीडीपी में टैक्स का योगदान
अब टैक्स की बात पर आते हैं. कई लोग हमलोगों से पूछते हैं कि टैक्स भारत में कम है या ज्यादा और लोग जो टैक्स दे रहे हैं, उसे कैसे समझा जाये? इसके लिए मैं कुछ आंकड़े बताना चाहता हूं.
पहले हमें यह समझना चाहिए कि हमें कितना टैक्स मिल रहा है. इसमें हम अन्य देशों के साथ तुलना करें, साथ ही टैक्स टू जीडीपीओ रेशियो की तुलना देखें. जीडीपीओ यानी देश में कितना आर्थिक उत्पादन हो रहा है. इस तरह से हमलोग समझते हैं कि हमारी आर्थिक व्यवस्था कैसे चल रही है. हमारे जीडीपी में टैक्स का जो अनुपात है, वह 16-17 फीसदी है.
यानी अगर हमलोग केंद्र और राज्य सरकार को मिला कर देखें, तो हमारी जो टैक्स की कमाई है, वह 16 से 17 प्रतिशत. अन्य देशों यानी बड़े देशों या विकसित देशों से तुलना करें, तो उनका टैक्स और जीडीपी अनुपात भारत से बहुत ज्यादा है. यदि हम औसत तौर पर देखें, तो अमेरिका, ब्रिटेन में जीडीपी में टैक्स का योगदान 29 फीसदी है. जबकि भारत का 16 से 17 फीसदी. यानी जितना टैक्स सरकार को आज के दिन में मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल रहा है.
जो बड़ा तबका है, जो टैक्स देता ही नहीं है, उसके लिए सरकार क्या करने जा रही है, जिससे टैक्स जुटाने में सहुलियत हो?
हमलोग इस पर बहुत ही मेहनत कर रहे हैं. यदि हमलोग टैक्स की दर देखें, तो हमारा सबसे कम टैक्स रेट जीरो फीसदी है, जबकि अन्य देशों में यह पांच फीसदी तक है. हमलोगों का अधिकतम टैक्स रेट 35 फीसदी है, जबकि अन्य देशों में अधिकतम टैक्स रेट देखें, तो चीन में यह 45 फीसदी है. अमेरिका में 55 फीसदी से ज्यादा है. ब्रिटेन में 45 फीसदी है.
कंपनी टैक्स हमारे देश में 30 फीसदी है, तो अन्य देशों में कहीं 25 फीसदी तो कहीं 20 फीसदी है. वैट और जीएसटी आदि देखें, तो इसमें भी नजर आयेगा कि भारत में टैक्स ज्यादा नहीं है. कुल मिलाकर यदि हम अन्य देशों के साथ तुलना करें तो हमारे यहां टैक्स रेट मॉडरेट है, रिजनेबल है.
िकतने परिवार दे रहे टैैैैक्स
अब हमें देखना चाहिए कि हमारा टैक्स बेस सही है या नहीं. इसका मतलब यह हुआ कि जितने लोगों को टैक्स देना चाहिए, वे टैक्स दे रहे हैं या नहीं. इसमें सबसे पहले हमें देखना चाहिए कि हमारा टैक्स कवरेज कितना है. आज हमारे देश में करीब 24 करोड़ परिवार हैं.
उनमें से कुल मिला कर करीब चार करोड़ परिवार टैक्स भर रहे हैं. जब हम देखते हैं कि कितने लोग कितना टैक्स देते हैं, तो आज के समय में देश में सिर्फ 83 हजार ऐसे परिवार हैं, जिनकी घोषित आमदनी एक करोड़ से ज्यादा है. जबकि लगता है कि देश में बहुत सारे अमीर लोग मौजूद हैं. इसलिए इस आंकड़े पर हमलोगों को चिंता करनी चाहिए. हमारे यहां टैक्स रेट रिजनेबल है, लेकिन जितना टैक्स हमें चार करोड़ परिवारों से मिलना चाहिए, वह उतना नहीं मिल रहा है. यानी हमलोगों को टैक्स से जितनी कमाई होनी चाहिए, वह नहीं हो रही है. हमलोगों को लगता है कि बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिन्हें और टैक्स देना चाहिए, लेकिन वह नहीं दे रहे हैं.
इसलिए हमलोगों को लगता है कि टैक्स ज्यादा बढ़ाने की बजाय चिंता इस बात की करनी चाहिए कि जो भी लोग टैक्स के दायरे में हैं, वे सही तरीके से अपना पूरा टैक्स जमा करें. यदि हम इस पर विशेष ध्यान दें, कि टैक्स दायरे में आनेवाले लोग पूरा टैक्स दे रहे हैं या नहीं, तो टैक्स कलेक्शन बढ़ सकता है. इस समय देश में 83 हजार लोग ही अपनी आमदनी एक करोड़ से ज्यादा बता रहे हैं. इससे लगता है कि बहुत से लोग अपनी आमदनी कम बता कर कम टैक्स दे रहे हैं.
केंद्र सरकार की आमदनी व खर्च (2015-2016)
– खर्च 17.8 लाख करोड़
– आमदनी 12.2 लाख करोड़
– कर्ज 5.6 लाख करोड़
स्राोत : बजट 2015-16 डॉक्यूमेंट
केंद्र और राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र
केंद्र सरकार समवर्ती राज्य सरकार
– राष्ट्रीय सुरक्षा – िबजली – कृिष
– िवदेशी मामले – िशक्षा – स्वास्थ्य और
– िवत्तीय प्रणाली बैंक, – अन्य सफाई व्यवस्था
एनबीएफसी, करंेसी – मूल्य िनयंत्रण – िरयल एस्टेट – रेलवे – सड़कें
– राष्ट्रीय राजमार्ग – जल आपूिर्त -पुिलस
आम बजट कल
आर्थिक सवाल हमारे जीवन, समाज और देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इसीलिए आर्थिक विकास आज की राजनीति का सबसे प्रमुख मुद्दा बन गया है. ऐसे समय में यह जानना जरूरी है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था की चाल को कैसे समझें. अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा तय करनेवाला सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है सालाना आम बजट. कल संसद में वित्त वर्ष 2016-17 का आम बजट पेश होना है. आम लोग बजट को आसानी से समझ सकें, इसी कोशिश के तहत पेश हैं दो विशेष पेज.
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