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हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स की मदद से हवाई जहाज उड़ाने की तैयारी

हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स को स्वच्छ ऊर्जा का बेहद अच्छा स्रोत समझा जा रहा है. हालांकि, विशेषज्ञों ने इसकी राह में अभी अनेक बाधाएं बतायी हैं, लेकिन अनेक कंपनियों ने अपने स्तर से इसका विकास किया है. कपंनियों ने कार, बस से आगे बढ़ते हुए विमान तक संचालित होने की न केवल संभावना जतायी है, बल्कि […]

हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स को स्वच्छ ऊर्जा का बेहद अच्छा स्रोत समझा जा रहा है. हालांकि, विशेषज्ञों ने इसकी राह में अभी अनेक बाधाएं बतायी हैं, लेकिन अनेक कंपनियों ने अपने स्तर से इसका विकास किया है. कपंनियों ने कार, बस से आगे बढ़ते हुए विमान तक संचालित होने की न केवल संभावना जतायी है, बल्कि उस दिशा में आगे भी बढ़ चुके हैं. क्या है हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स और बतौर ईंधन कितनी व्यापक क्षमता मौजूद है. इससे संबंधित अनेक पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का नॉलेज ….
अब तक के सबसे सफल एयरशिप कमांडर में शामिल रहे जानेवाले डॉ ह्यूगो एकनर ने कभी कहा था कि हाइड्रोजन और हवाई यात्रा का परफेक्ट मैच है. जर्मनी निवासी हॉ ह्यूगो अब तक के दोनों ही विश्व युद्ध में शामिल रह चुके हैं और उस दौरान वे हवाई जहाज से उड़ान भरने का रिकॉर्ड दर्ज करा चुके हैं. हालांकि, इस बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है कि वास्तविक में उन्होंने किस दिन ऐसा कहा था, लेकिन जिप्पेलिन कंपनी के चेयरमैन रह चुके डॉ ह्यूगो को हवाई उड़ानों का व्यापक अनुभव था और शायद इसी आधार पर उन्होंने यह उम्मीद जतायी होगी. माना जाता है कि 1940 के दशक में ही उन्होंने यह संभावना जतायी थी.
बहरहाल, दुनियाभर में अक्षय ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों को हासिल करने के क्रम में वैज्ञानिक हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स के रूप में ऊर्जा के बेहद स्वच्छ प्रारूप को विकसित करने में जुटे हैं. इसे भविष्य के लिए न केवल परिवहन ईंधन के रूप में बेहद सक्षम समझा जा रहा है, बल्कि इसमें कीमत, भंडारण और आपूर्ति से संबंधित उल्लेखनीय बाधाओं से निबटने की भी क्षमता पायी गयी है.
‘साइंस एलर्ट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंगलैंड की बजट एयरलाइन कंपनी ‘इजीजेट’ ने एक ऐसे सिस्टम को विकसित किया है, जिसके जरिये हवाई जहाजों में इस्तेमाल के लायक हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स बनाये जा सकते हैं. इसकी बड़ी खासियत होगी कि यह स्वच्छ ईंधन होने के साथ कम लागतवाला होगा. हालांकि, कुछ देशों में हाइड्रोजन ईंधन आधारित गाड़ियां मौजूद हैं और रीफ्यूलिंग स्टेशन यानी ईंधन भरे जाने वाले आउटलेट्स कम होने के कारण वाहन मालिकों को दिक्कतें होती हैं, लेकिन हवाई जहाजों के लिए इसे आसानी से मुहैया होने लायक बनाया जा रहा है.
चूंकि इस ईंधन के विमान में भरे जाने की प्रक्रिया में समय ज्यादा लगता है, लिहाजा इजीजेट की योजना है कि विमानों में उस समय ईंधन भरे जाएं, जब वे हैंगर में खड़े रहते हैं. ऐसा होने पर किसी एयरपोर्ट पर विमान के उतरने पर वहां हानिकारक कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकेगा.
हाल ही में टेक्नोलॉजी फर्म ‘सेफरान’ और ‘हनीवेल’ ने एक परीक्षण के जरिये यह पाया कि रनवे पर विमान के उड़ान के दौरान उसमें खपत होने वाले ईंधन की मात्रा आधी की जा सकती है.
इसके लिए उन्होंने ऑग्जिलियरी इलेक्ट्रिक पावर यूनिट का इस्तेमाल किया. ‘इजीजेट’ के इंजीनियरिंग के प्रमुख इयान डेविस का कहना है कि इस इलेक्ट्रिक सिस्टम को पावर देने के लिए हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. पर्यावरण के लिहाज से इसका एक बड़ा फायदा यह होगा कि विमान के टेक-ऑफ से पहले और लैंडिंग करने के बाद होने वाला कार्बन उत्सर्जन नहीं के बराबर होगा. इस संदर्भ में उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि आज हम जिस हाइब्रिड विमान की बात कर रहे हैं, वह भविष्य में पैदा होनेवाली ऊर्जा चुनौतियों और कार्बन उत्सर्जन कम करने, यानी दो तरीकों से फायदेमंद साबित हो सकता है.
हालांकि, यह योजना अभी आरंभिक दौर में है और फिलहाल इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब इसे अमलीजामा पहनाया जा सकता है, लेकिन इजीजेट का कहना है कि हाइड्रोजन सेल्स बैटरियों के साथ मिल कर सोलर पैनल से ऊर्जा एकत्रित करेंगे और विमान में इसकी गतिज ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसमें ‘वेस्ट प्रोडक्ट’ के रूप में केवल स्वच्छ पानी हासिल होगा, जिसका इस्तेमाल विमान में लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जायेगा. कंपनी के मुताबिक, इस वर्ष के आखिर तक पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया जायेगा और उम्मीद है कि वर्ष 2018 तक पूरी तरह से इसका संचालन शुरू किया जा सकता है.
टेक-ऑफ के लिए होगा इस्तेमाल
विमान के टेक-ऑफ के लिए हाइड्रोजन ईंधन का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है. इजीजेट का कहना है कि बहुत से ऐसे तत्व मौजूद हैं, जिनके माध्यम से इसे बनाया जा सकता है, लेकिन अभी इस राह में बड़ी बाधा है उससे पैदा होनेवाले ग्रीनहाउस गैसों की तादाद. इसकी डिलीवरी और इंफ्रास्ट्रक्चर भी इसकी राह में बड़ी बाधा है. इन मसलों को सुलझाने के बाद भविष्य में हमारे पास ऊर्जा का ऐसा स्रोत होगा, जिससे उत्सर्जन नहीं के बराबर होगा.
इजीजेट ने उम्मीद जतायी है कि उसके ये विमान सालभर में करीब 64 लाख किमी की यात्रा करने में सक्षम होंगे. यह दूरी धरती से चंद्रमा तक आठ बार जाने और आने के बराबर है. इंगलैंड में क्रेनफिल्ड यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग छात्रों के साथ मिल कर इस हाइब्रिड विमान के कॉन्सेप्ट को बढ़ावा दिया जा रहा है.
हाइड्रोजन और हाइड्रोजन ईंधन
हाइड्रोजन एक साधारण तत्व है. हाइड्रोजन के एक अणु में केवल एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन होता है. इसकी बड़ी खासियत यह भी है कि यह धरती पर बेहद प्रचुरता में पाया जाता है. इसके बावजूद इसके साथ एक बड़ी दिक्कत है कि धरती पर यह स्वतंत्र अवस्था में नहीं के बराबर पाया जाता है. यह किसी न किसी अन्य तत्वों के साथ मिश्रित अवस्था में पाया जाता है. जैसे- पानी, जिसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों तत्व शामिल होते हैं.
बहुत से ऑर्गेनिक कंपाउंड्स में भी हाइड्रोजन पाया जाता है. गैसोलीन, नेचुरल गैस, मीथेनॉल और प्रोपेन जैसे ईंधनों के निर्माण में हाइड्रोकार्बन का उल्लेखनीय रूप से इस्तेमाल किया जाता है.
उष्मा का प्रयोग करते हुए हाइड्रोकार्बन से हाइड्रोजन को अलग किया जा सकता है, जिस प्रक्रिया को ‘रिफॉर्मिंग’ के नाम से जाना जाता है. ‘रीन्यूएबल एनर्जी वर्ल्ड डॉट कॉम’ की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में नेचुरल गैस से ज्यादातर हाइड्रोजन इसी तरीके से बनाया जाता है. जल में से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन तत्वों को पृथक करने के लिए इलेक्ट्रिक करेंट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस के नाम से जाना जाता है. बतौर ऊर्जा सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल करते हुए कुछ एल्गाइ और बैक्टीरिया कुछ निर्धारित परिस्थितियों में हाइड्रोजन को अलग करने में सक्षम पाये गये हैं.
जीरो उत्सर्जन
हाइड्रोजन में उच्च ऊर्जा पायी जाती है और इंजन में इसका दहन होने पर कोई प्रदूषण नहीं होता है. स्पेस शटल समेत अन्य रॉकेट को ऑरबिट में भेजने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ वर्ष 1970 से ही द्रव हाइड्रोजन का इस्तेमाल कर रही है. इन स्पेस शटल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम को हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स के जरिये पावर मुहैया कराया जाता है. इससे पानी के रूप में स्वच्छ सह-उत्पाद पैदा होता है, जिसका इस्तेमाल अंतरिक्षयात्री पीने के लिए करते हैं.
केमिकल रिएक्शन से पैदा होती ऊर्जा
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण से फ्यूल सेल्स इलेक्ट्रिसिटी, हीट और पानी का उत्पादन होता है. फ्यूल सेल्स की तुलना अक्सर बैटरियों से की जाती है. दरअसल, दोनों ही केमिकल रिएक्शन के जरिये ऊर्जा पैदा करते हैं, जिसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक पावर के रूप में किया जाता है. लेकिन, फ्यूल सेल्स तब तक ही इलेक्ट्रिसिटी पैदा करने में सक्षम होते हैं, जब तक उनमें बतौर ईंधन हाइड्रोजन की आपूर्ति बनी रहती है. फ्यूल सेल्स एक ऐसी तकनीक है, जिसका इस्तेमाल मकानों के लिए हीट और इलेक्ट्रिसिटी के स्रोत के रूप में किया जाता है.
साथ ही इसके जरिये इलेक्ट्रिक मोटर से चलनेवाले वाहनों को भी ऊर्जा मुहैया करायी जाती है. विशुद्ध हाइड्रोजन से फ्यूल सेल्स का संचालन बेहतर तरीके से होता है. लेकिन नेचुरल गैस, मीथेनॉल या गैसोलीन जैसे ईंधन को फ्यूल सेल्स के लिए जरूरी हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए रिफॉर्म्ड किया जा सकता है. यहां तक कि कुछ फ्यूल सेल्स रिफॉर्मर का इस्तेमाल किये बिना मीथेनॉल के साथ सीधे भरे जा सकते हैं.
(प्रस्तुति : कन्हैया झा)
क्या है फ्यूल सेल्स?
एक सिंगल फ्यूल सेल्स में दो इलेक्ट्रॉड्स के बीच एक इलेक्ट्रोलाइट मौजूद होता है. अमेरिका की ‘नेशनल रीन्यूएबल एनर्जी लैबोरेटरी’ के मुताबिक, सेल के दोनों ओर मौजूद बाइपोलर प्लेट्स गैसों को वितरित करने और करेंट एकत्रित करने के तौर पर अपनी सेवा देते हैं. एक फ्यूल सेल्स स्टेक में कई लेयर्स में सौ की संख्या तक के फ्यूल सेल्स हो सकते हैं. स्टेशनरी पावर स्टेशंस, पॉर्टेबल डिवाइसेज और ट्रांसपोर्टेशन जैसे अलग-अलग मामलों के आधार पर ही फ्यूल सेल्स के इन लेयर्स का निर्धारण किया जाता है.
फ्यूल सेल्स का भविष्य
भविष्य में हाइड्रोजन इलेक्ट्रिसिटी के रूप में एक महत्वपूर्ण ऊर्जा वाहक के तौर पर उभर सकता है. एक ऐसा ऊर्जा वाहक, जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सके और उपभोक्ताओं को उनकी जरूरतों के मुताबिक मुहैया कराया जा सके. सोलर और विंड जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोतों से नियमित रूप से ऊर्जा हासिल नहीं की जा सकती, लेकिन हाइड्रोजन से हासिल की जा सकती है और इसे जरूरत के मुताबिक स्टोर भी किया जा सकता है.
हाइड्रोजन पावर्ड कार : रिवरसिंपल
यूरोप के एक स्टार्ट-अप ने हाल ही में घोषणा की है कि उसने कार में महज 18 पुरजों में तब्दीली लाते हुए उसे हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने लायक बनाया है. हाल ही में इसका परीक्षण भी किया गया है और इस दौरान इसे सार्वजनिक सड़क पर दौड़ाया गया.
‘रिवरसिंपल’ नामक अभियान के तहत इस हाइड्रोजन फ्यूल सेल कार के चेसिस को कार्बन फाइबर से बनाया गया है, जिसका वजन 90 पाउंड से कम है. हालांकि, अब तक इस कार के प्रोटोटाइप को 100 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ाते हुए परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन आनेवाले अगले एक साल में अभी इसका कम से कम 20 बार और परीक्षण किया जायेगा.
फिलहाल कंपनी ने इसकी कीमत के बारे में नहीं बताया है. लेकिन, यह उम्मीद जतायी है कि वर्ष 2018 तक यह बाजार में लॉन्च की जा सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा होने पर दुनिया के कार बाजार में नया बदलाव देखने को मिल सकता है. यह कार जब मोशन में होगी, तो एक छोटे से 8.5 किलोवॉट फ्यूल सेल के जरिये इसमें हाइड्रोजन प्रवाहित होगा, जो 11 हॉर्सपावर के समान है. फ्यूल सेल के माध्यम से जैसे ही हाइड्रोजन प्रवाहित होता है, तो ऑक्सीजन से मिश्रित होकर यह पानी और इलेक्ट्रिसिटी तैयार करता है, जो इस कार के चारों पहियों में लगे हुए मोटर को संचालित करता है. इसमें एक्जॉस्ट के रूप में केवल पानी निकलता है. 1.5 किलो हाइड्रोजन से यह कार करीब 500 किमी की दूरी तय करने में सक्षम पायी गयी है.
वेल्श की सरकार ने इस परियोजना के विकास के लिए कंपनी को 20 लाख डॉलर का अनुदान पिछले वर्ष दिया था. इस कार की कामयाबी को देखते हुए दुनिया की बड़ी ऑटो कंपनियाें ने हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित वाहनों पर काम शुरू करने की योजना के बारे में घोषणा की है. पिछले साल टोयोटा, निसान और हाेंडा ने मिल कर इस दिशा में काम आगे बढ़ाने पर जोर दिया था, ताकि ज्यादा से ज्यादा हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहनाें का उत्पादन किया जा सके.
साथ ही लोगों के लिए इसे सुविधाजनक बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा फीलिंग स्टेशंस मुहैया कराये जा सकें. हाइड्रोजन एक अत्यधिक ज्वलनशील गैस होने के बावजूद कार पारंपरिक पेट्रोल मॉडल से ज्यादा सुरक्षित होने का दावा किया जा रहा है. इस कार के बूट में फिट एक टैंक इंजन से दूर डिजाइन किया गया है, ताकि दुर्घटना की हालत में ज्यादा नुकसान न हो. रासा के इंजीनियरों ने 15 वर्षों की मेहनत के बाद इस कार को तैयार किया है. यह कार दस महज 10 सेकेंड में 90 किमी प्रति घंटे की स्पीड पर पहुंच जाती है. इस कार में गियर की बजाय बटन का इस्तेमाल किया गया है. कंपनी की योजना फिलहाल इस कार को उपभोक्ताओं को लीज पर मुहैया कराने की है.
टोयोटा की साझा योजना
जापान की कार बनानेवाली कंपनी टोयोटा की योजना हाइड्रोजन ईंधन से चलनेवाली कार का निर्माण बढ़ाना है. इस अभियान से जुड़े अन्य संगठनों के साथ टोयोटा अपने हजारों पेटेंट्स को दूसरी कंपनियों के साथ साझा करने जा रही है. ‘बीबीसी’ के मुताबिक, टोयोटा ने इसी साल हाइड्रोजन से चलनेवाली अपनी मिराई कार का निर्यात ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी और डेनमार्क को किया है.
टोयोटा की इस कार की कीमत ब्रिटेन में 66 हजार पाउंड यानी लगभग 66 लाख रुपये है. अमेरिका की सरकार कैलिफोर्निया में इस कार पर करीब 25 फीसदी सब्सिडी दे रही है, जबकि जापान में 40 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी दी जा रही है. हालांकि, ब्रिटेन में इस पर कोई सब्सिडी नहीं है.
कंपनी को उम्मीद है कि पेटेंट साझा करने से दूसरी कंपनियां भी हाइड्रोजन ईंधन की सस्ती कार बनायेंगी. टोयोटा के एक अधिकारी का कहना है कि उन्होंने कार को बेहद सुरक्षित बनाया है. हाइड्रोजन ज्वलनशील होती है, इसलिए उसमें आग से बचाव की व्यवस्था की गयी है. इसके अलावा इस कार के ईंधन की टंकी पर 150 टन का दबाव भी है और उस लिहाज से भी कार सुरक्षित है. इस कार के लिए होंडा कंपनी के हाइड्रोजन स्टेशन तैयार किये हैं, जहां हाइड्रोजन गैस का निर्माण होता है और उसे एकत्र किया जाता है.
हाइड्रोजन चालित बस
मास ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी ने हाइड्राेजन फ्यूल सेल बस को सड़क पर लॉन्च करने में कामयाबी हासिल की है. ‘एमलाइव’ के मुताबिक, इस बस से आवाज बहुत कम आती है.
यात्रियों को बस की आवाज बिलकुल नहीं सुनाई देती है. मास ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी के जनरल मैनेजर इडी बेनिंग के मुताबिक, यूनाइटेड टेक्नोलॉजीज कॉरपोरेशन की मदद से कंपनी ने इस बस का निर्माण किया है. कंपनी का मानना है कि पहले चरण में हाइड्रोजन ईंधनवाले स्टेशंस का विस्तार होने के बाद ही ऐसे और बसों का निर्माण किया जायेगा.

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