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आर्थिक तरक्की और जागरूकता की शुरुआत है डिजिटल वॉलेट

फोन रिचार्ज करना हो या ऑनलाइन शॉपिंग, बिजली बिल जमा करना हो, बस टिकट बुक कराना हो, ऐसे कामों के लिए जेब में नकदी रखने की चिंता अब करोड़ों लोगों के लिए बीते दिनों की बात हो गयी है. इसे मुमकिन बनाया है लोगों के स्मार्टफोन और लैपटॉप में मौजूद डिजिटल वॉलेट ने. इससे न […]

फोन रिचार्ज करना हो या ऑनलाइन शॉपिंग, बिजली बिल जमा करना हो, बस टिकट बुक कराना हो, ऐसे कामों के लिए जेब में नकदी रखने की चिंता अब करोड़ों लोगों के लिए बीते दिनों की बात हो गयी है.
इसे मुमकिन बनाया है लोगों के स्मार्टफोन और लैपटॉप में
मौजूद डिजिटल वॉलेट ने. इससे न केवल लोग दिन-रात कभी भी और कहीं से भी अपने कई जरूरी काम निपटा रहे हैं, बल्कि व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के मौजूदा दौर में इस पर समय-समय पर छूट का भी लाभ उठा रहे हैं. क्या है डिजिटल वॉलेट की तकनीक, कैसे यह लोगों की जिंदगी को बना रहा है आसान, क्या है इससे जुड़ी चिंताएं और कैसा है इसका भविष्य, इसी पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.
तकनीकें हमेशा से इनसान को तरक्की के लिए प्रेरित करती हैं. इनसान की तरक्की ही किसी देश की तरक्की का मार्ग प्रशस्त करती है. लोगों को तरक्की के मार्ग पर ले जानेवाली एक खास तकनीक है डिजिटल पेमेंट की तकनीक. आज की डिजिटल दुनिया में लाइफ स्टाइल से जुड़ा हर कार्य इस प्लेटफार्म से जुड़ता जा रहा है. इसकी पीछे सबसे बड़ा कारण है कि हम समय और सुरक्षा को लेकर हमेशा सतर्क रहते हैं. आज ऑनलाइन शॉपिंग, फूड ऑर्डर, रिचार्ज, होम डिलिवरी जैसे तमाम कार्यों के लिए हम ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम पर निर्भर होते जा रहे हैं.
स्मार्टफोन जैसी क्रांतिकारी डिवाइस आने से हम ऐसे कार्य स्क्रीन पर उंगलियां चलाकर कुछ ही मिनटों में कर सकते हैं. इसके लिए पेटीएम, मोबीक्विक जैसी अनेक कंपनियां अपने सेवाओं का दिनोंदिन विस्तार कर रही हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आरएआइ) ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि 93 प्रतिशत भारतीय रिटेलर्स डिजिटल वालेट जैसी तकनीकों को स्वीकार करना चाहते हैं. तकरीबन 69 प्रतिशत रिटेलर्स कस्टमर रिव्यू के लिए मोबाइल स्टोर एप्प का सहारा लेते हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लगभग 55 प्रतिशत ग्राहक उत्पाद के बारे में जानने के लिए ऑनलाइन माध्यमों पर निर्भर हैं.
क्या है डिजिटल वाॅलेट
वालेट यानी पर्स से हम सब परिचित हैं. परंपरागत पर्स का इस्तेमाल हम जरूरी वस्तुओं को सुरक्षित तरीके से अपने साथ लेकर चलने के लिए करते हैं. बाहर निकलते समय वालेट में कैश के अलावा, क्रेडिट कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, इंश्योरेंस, पहचान पत्र सहित तमाम जरूरी कागजात लेकर चलने के हम सब आदी हैं.
इस दौरान सुरक्षा को लेकर आशंकित रहना लाजिमी है. ज्यादातर चोरी और लूट की घटनाओं का शिकार भी लोग पैसे आदि की लूट की वजह से होते हैं. दरअसल, डिजिटल वालेट इन समस्याओं के समाधान का ही एक विकल्प है. साथ ही यह आपको बिना कैश के खरीदारी समेत कई सुविधाएं भी देता है.
डिजिटल वालेट इसी फिजिकल वालेट का इलेक्ट्रॉनिक वर्जन है. सामान्य तौर पर डिजिटल वालेट एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन होता है, जिसका इस्तेमाल स्मार्टफोन के लिए किया जाता है. गूगल ने वर्ष 2011 में गूगल वालेट नाम से एप्लीकेशन लांच किया था, जिसमें यह दावा किया गया था कि यह एप्लीकेशन अन्य कार्ड जैसे ड्राइविंग लाइसेंस, हेल्थकेयर कार्ड आदि की जानकारी सहेजने में सक्षम है.
इंटरनेट से जुड़े होने की वजह से डिजिटल वालेट में न केवल पैसे को, बल्कि लेन-देन सहित तमाम जानकारियों को भी सुरक्षित रखा जा सकता है. लेन-देन की प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए इसमें मोबाइल एप्प, मोबाइल हार्डवेयर डिवाइसेस, नियर-फील्ड कम्युनिकेशन टोकेनाइजेशन (सिक्योरिटी मेथड) जैसी कई तकनीकें जुड़ रही हैं. डिजिटल वालेट या मोबाइल वालेट उपभोक्ताओं को डिस्काउंट जैसी तमाम सुविधाएं भी देते हैं.
कैसे काम करता है इ- वाॅलेट
डिजिटल वालेट को दो अर्थों में समझा जा सकता है, पहला क्लाइंट साइड और दूसरा सर्वर साइड. दोनों का ही उद्देश्य वित्तीय लेन-देन होता है. क्लाइंट साइड वालेट वह वालेट है जिस पर आपका अधिकार है. आप अपने पर्सनल कंप्यूटर पर एप्लीकेशन को डाउनलोड और इंस्टॉल करते हैं. इसके द्वारा आप पेमेंट के लिए शिपिंग इन्फॉरेमेशन आदि की जानकारी को सर्वर से साझा करते हैं. जब आप किसी विशेष वेबसाइट को देख रहे होते हैं तो, इस दौरान आपका वालेट सॉफ्टवेयर बेसिक इन्फॉरमेशन को इकट्ठा कर लेता है.
दूसरी तरफ, सर्वर वालेट आपको लेन-देन की सुविधा देनेवाली कंपनी के पास होता है, यह आपके वालेट डाटा को अपने पास स्टोर और उसकी देखभाल करता है. यानी कंपनी आपके इ-वालेट अकाउंट को अपने सर्वर पर सुरक्षित कर लेती है. मोबाइल डिजिटल वालेट की सुविधा स्मार्टफोन में उपलब्ध होती है.
इससे आप कहीं भी और कभी भी ऑनलाइन शॉपिंग, रिचार्ज और अन्य ऑनलाइन कार्य कर सकते हैं. भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में स्मार्टफोन उपभोक्ताओं की लगातार बढ़ रही संख्या इस तकनीक के विकास के लिए सबसे बड़ी उत्प्रेरक है. कुछ कंपनियां एनएफसी चिप (नियर-फील्ड कम्युनिकेशन) की सुविधा देती हैं.
यह मोबाइल डिजिटल वालेट इन्फ्रॉस्ट्रक्चर का सबसे महत्वपूर्ण घटक है. एनएफसी कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर होनेवाले वायरलेस कम्युनिकेशन की तकनीक पर आधारित है. इस प्रक्रिया के तहत आप फोन को पीओएस (प्वाइंट-टू-सेल) टर्मिनल के संपर्क में लाकर पेमेंट कर सकते हैं. कनेक्ट होने पर आपको सेक्रेट पिन को इंटर करना होता है. हालांकि इस तकनीक पर गूगल वालेट पहले से ही काम शुरू कर चुका है. गूगल वालेट सुरक्षा के मामले में अन्य एप्स के मुकाबले बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह क्रेडिट कार्ड डाटा सहित अन्य सूचनाओं को आपके फोन में सेव करने के बजाय गूगल के सर्वर पर सेव करता है.
चिंताएं भी कम नहीं हैं
डिजिटल तकनीकें जब आम आदमी के जद में पहुंचती हैं तो सब बड़ा मुद्दा सुरक्षा और गोपनीयता का आ जाता है. हमारा सोचना जायज भी है, क्योंकि डिजिटल वालेट को अपराधी निशाना बनाने की फिराक में रहते हैं. साइबर क्रिमिनल आपके अकाउंट को हैक करके मेहनत से इकट्ठा की गयी बचत राशि और क्रेडिट कार्ड बैलेंस को उड़ा सकते हैं. इतना ही नहीं आपकी आइडेंटिटी चोरी होने का भी खतरा रहता है. जाहिर तौर पर जब आप पेमेंट करते हैं तो आपका डाटा स्मार्टफोन सॉफ्टवेयर और ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ-साथ पेमेंट एप्प और अंतत: पेमेंट सोर्स-जैसे आपके बैंक या कंपनी अकाउंट से होकर गुजरता है.
सुरक्षा मानकों की जहां तक बात है तो यह काफी हद तक डिजिटल वालेट की विश्वसनीयता पर निर्भर करता है. डिजिटल सर्टिफिकेट आपकी आइडेंटिटी को सत्यापित करता है और एनकोड रिप्लाइ की सुविधा देता है.ज्यादातर एनएफसी युक्त स्मार्टफोन एनक्रिप्टेड चिप्स से बने होते हैं, जो वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं. सबसे खास बात यह है कि एनएफसी संचालित होने के लिए बैटरी पावर का इस्तेमाल नहीं करती. इन सुरक्षाओं को सुनिश्चित करने के लिए स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां, बैंक, क्रेडिट कार्ड कंपनी और वायरलेस तकनीकी फर्में कर रही हैं.
यूएन की ऑनलाइन पेमेंट मुहिम में भारत शामिल
दुनियाभर में कैशलेश प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र कैपिटल डेवलपमेंट फंड (यूएनसीडीएप) द्वारा विकासशील देशों, निजी संस्थानों को प्रेरित किया जा रहा है. यूएन के विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल पेमेंट द्वारा बचत, लागत मूल्यों में कमी और पारदर्शिता को बढ़ावा देना अपेक्षाकृत आसान है. संयुक्त राष्ट्र के अलावा वैश्विक स्तर पर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, सिटी, फोर्ड फाउंडेशन, यूएसएआइडी और वीजा इंक जैसी कई अन्य संस्थान प्रयासरत हैं.
सितंबर, 2012 में ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ लांच किया गया, जो निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों में मांग के अनुसार डिजिटल पेमेंट कार्यक्रम के लिए शोध व मार्गदर्शन की सुविधा मुहैया कराता है. यूएन के इस कार्यक्रम में भारत भी शामिल हो चुका है. डिजिटल पेमेंट की तकनीकों से गरीबी उन्मूलन, समावेशी विकास जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है. भारत सरकार वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री जन-धन योजना में कामयाबी हासिल कर चुकी है.
सरकार का दावा है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा फाइनेंशियल एन्क्लूजन प्रोग्राम है. इसके तहत एक वर्ष में 180 मिलियन नये बैंक खाते खोले जा चुके हैं. बेटर दैन कैश एलायंस के प्रबंध निदेशक रूथ गुडविन ग्रोइन के अनुसार भारत के नेतृत्व और विकास गति को दुनिया के तमाम विकासशील देशों के लिए प्रेरणा है.
मोबाइल वॉलेट से कई काम
ऑनलाइन शॉपिंग : इंटरनेट और स्मार्टफोन इस्तेमाल करनेवाला शायद ही कोई इनसान हो, जिसे ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में पता न हो. हम में ज्यादातर लोग ऑनलाइन शॉपिंग नियमित तौर पर करते भी हैं. समय निकाल कर मार्केट में दुकान-दर-दुकान भटकने के लिए बजाय यह सबसे सहज माध्यम है. आप घर बैठे कभी भी किसी जरूरी सामान का ऑर्डर कर सकते हैं. हालांकि ज्यादातर लोग वेबसाइट पर जाकर क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से भुगतान करने के बजाय कैश ऑन डिलिवरी में ज्यादा विश्वास रखते हैं, लेकिन यदि आपके पास डिजिटल वालेट है तो आप आसानी से भुगतान कर सकते हैं. इससे फायदा आप कैशबैक या फ्रीरिचार्ज जैसी सुविधाओं के रूप में उठा सकते हैं.
रिचार्ज : डिजिटल वालेट का सबसे अधिक इस्तेमाल रीचार्ज के लिए ही होता है. आपके मोबाइल का बैलेंस खत्म होने पर टेलीकॉम रिचार्ज की शॉप के चक्कर काटने होते हैं. अनजानी जगहों पर आपको और भी समस्याओं को सामना करना होता है. लेकिन, डिजिटल वालेट से आप रात में, दिन में, कभी भी और कहीं भी आसानी से रिचार्ज कर सकते हैं.
कैश ट्रांसफर : कई बार अपने शहर से दूर होने पर आपको पैसे कई जरूरत पड़े जाये तो आप डिजिटल वालेट के माध्यम से पैसे आसानी से मंगवा सकते हैं. वीकेंड पर बैंक की ब्रांच नहीं खुली होने की वजह से आप पैसे ट्रांसफर नहीं कर पाते, ऐसे में डिजिटल वालेट पैसे के लिए लेन-देन का सबसे सुरक्षित माध्यम है.
ट्रेवल, होटल, मूवी बुकिंग : डिजिटल वालेट के माध्यम से आप घर बैठे कैब, बस, ट्रेन और फ्लाइट के साथ किसी अपरिचित स्थान पर पहुंचने से पहले ही बुकिंग कर सकते हैं. बुकिंग से पहले पहले आपके पास ढेर सारे विकल्प होते हैं. अलग-अलग वेबसाइट पर जाकर आसानी से समय, रेट, सुविधाओं आदि की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
डिजिटल वॉलेट के माध्यम से रुपये चुरा रहे चोर
डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल अनेक तरीकों से बढ़ता जा रहा है. सभी प्रकार के डिजिटल भुगतानों समेत विविध बिलों का भुगतान आसानी से होने के कारण इस सिस्टम को बढ़ावा मिल रहा है और दिन-ब-दिन इसका दायरा बढ़ता जा रहा है. लेकिन इससे एक नयी चुनौती भी सामने आयी है.
अनेक शातिर गिरोह पनप रहे हैं, जो डिजिटल वॉलेट के माध्यम से चोरी के नये-नये तरीकों को अंजाम दे रहे हैं. हाल के दिनों में दिल्ली समेत देश के अनेक शहरों में ऐसी घटनाएं सामने आयी हैं, जिनमें चाेरी की गयी रकम को ट्रांसफर करने के लिए चोर इन डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल करते पाये गये हैं. साइबर चोर गिरोहों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो रही है और वे इसका फायदा उठा रहे हैं.
कैसे होती है डिजिटल चोरी
इस चोर गिरोह के सदस्य कम समझ वाले बैंक खाताधारकों को फोन करके उन्हें यह कहते हुए झांसे में लेते हैं कि वे बैंक अधिकारी हैं और बैंक से बोल रहे हैं. खाताधारकों से वे फोन पर उनके बैंक खाते से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर लेते हैं. कई बार वे उन्हें यह कह कर जानकारियां हासिल कर लेते हैं कि आपकी केवाइसी प्रक्रिया यानी खाताधारक के पहचान की पुष्टि नहीं हुई है, जिसे वे कंफर्म करना चाह रहे हैं.
कई बार वे खाताधारक को किसी कारणवश उसका एटीएम ब्लॉक हो जाने की बात कह कर उससे सभी जानकारियां हासिल कर लेते हैं. इसके बाद वे उनके खाते में से रकम निकाल लेते हैं या उसका इस्तेमाल पेटीएम, पेयूमनी और इस तरह के अनेक डिजिटल मोबाइल वॉलेट के माध्यम से कर लेते हैं.
दिल्ली में हाल में हुई एक घटना के तहत ऐसी धोखाधड़ी करनेवाले एक गिरोह ने एक कारोबारी से उसके एटीएम की जानकारी हासिल कर ली. कुछ ही देर बाद उसके बैंक खाते से 85,000 रुपये निकाले जाने का मैसेज आया. डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल बेहद आसान हो गया है. जैसे ही आप वॉलेट के साथ अपना बैंक एकाउंट नंबर जोड़ते हैं, तो तुरंत ओटीपी यानी वन टाइम पासवर्ड जेनरेट होता है. ओटीपी शेयर करने की दशा में तुरंत रकम ट्रांसफर हो जाती है और सारा खेल खत्म.
ऐसे ही एक मामले की जांच के लिए हाल में एक पुलिस टीम का गठन किया गया. इस टीम से जुड़े एक पुलिस इंस्पेक्टर का कहना है कि जांच के दौरान पाया गया कि जो रकम ट्रांसफर की गयी, वे अलग-अलग फोन नंबरों के जरिये इ-वॉलेट से रजिस्टर्ड किये गये थे अौर उन सभी में फर्जी पहचानपत्रों का इस्तेमाल किया गया था. एक बार इ-वॉलेट में रकम जमा हो जाने पर वे तुरंत ही उसे दूसरे बैंकों में ट्रांसफर कर देते हैं. ये खाते छत्तीसगढ़ के एक बैंक के पाये गये और इस आधार पर दो आरोपियों को पकड़ा गया.
कौन हैं ये चोर?
पुलिस के मुताबिक, ये दोनों ही आरोपी अच्छे घरों के हैं और इनमें से एक बीसीए ग्रेजुएट है, जबकि दूसरा कॉलेज में पढ़ रहा है. डिजिटल वॉलेट के कॉन्सेप्ट ने ही इन्हें इस घटना को अंजाम देने के लिए प्रेरित किया था. पहले इन्होंने खाताधारकों को खुद को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का अधिकारी बता कर फोन किया और आसानी से चंगुल में फंसे भोले-भाले खाताधारकों से सारी जानकारी एकत्रित कर ली.
एप्स से भी खाते में सेंधमारी
इ-बैंकिंग की ओर लोगों का झुकाव बढ़ रहा है. सभी बैंक अपने ग्राहकों को मोबाइल एप्स का इस्तेमाल करने की सलाह दे रहे हैं. हालांकि, इसके पीछे बैंक का मकसद ग्राहकों को जल्द और बेहतर बैंकिंग सेवाएं मुहैया कराना है, लेकिन इससे ग्राहकों की कई जानकारी लीक हो रही है और बैंक अपने अन्य उत्पादों को बेचने में इनका इस्तेमाल करते हैं. बैंक का इरादा भले ही नेक हो, लेकिन इसमें भी नये प्रकार का फर्जीवाड़ा सामने आया है. और मजे की बात यह है कि ऐसे फर्जीवाड़े को अंजाम देने में बाहरी ही नहीं, बल्कि बैंक के कर्मचारी भी शामिल हो रहे हैं.
‘ट्रैक डॉट इन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्ष मैसूर स्थित एक बैंक के खाताधारकों ने उनके खातों से बड़ी रकम निकाले जाने की रिपोर्ट दर्ज करायी. साइबर क्राइम विभाग की जांच से पता चला कि इस धोखाधड़ी को बैंक कर्मचारियों ने ही अंजाम दिया है.
इसके लिए उन्होंने फर्जी दस्तावेजों और खाताधारकों के डुप्लिकेट सिम कार्ड बनवाये और एक खास एप्प के माध्यम से दूसरे खातों में रकम ट्रांसफर कर दी. इस घटना की जांच के बाद संबंधित बैंक ने उस खास एप्प को असुरक्षित मानते हुए उसे बंद कर दिया.
कंपनियां भी शक के दायरे में
खबरों के मुताबिक, फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से डुप्लिकेट सिम कार्ड जारी होना भी इस धोखाधड़ी का एक हिस्सा है, जिससे टेलीकॉम कंपनियों को भी शंकाओं के घेरे में ला दिया है.
संबंधित पुलिस अधिकारियों का मानना है कि टेलीकॉम कंपनियां यदि समुचित जांच-पड़ताल और वेरिफिकेशन के बाद डुप्लिकेट सिम कार्ड जारी करेंगी, तो ऐसे मामले नहीं होंगे. दिल्ली पुलिस ने विगत माह टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी ट्राइ को एक अर्जी दी थी, जिसमें समुचित जांच-पड़ताल और वेरिफिकेशन के बिना डुप्लिकेट सिम कार्ड जारी करने वाली टेलीकॉम कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने की बात कही थी. प्रस्तुति : ब्रह्मानंद मिश्र
साइबर धोखाधड़ी से बचाव के लिए ‘मास्टरकार्ड’ ने अब नया तरीका ईजाद किया है और इसके लिए वह खाताधारक की ‘सेल्फी’ या ‘फिंगरप्रिंट’ का इस्तेमाल करेगा. इस कंपनी के एक अधिकारी का कहना है कि ज्यादातर बैंक ग्राहक अब स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, लिहाजा ‘सेल्फी’ से उनकी पहचान की पुष्टि करना अब मुश्किल काम नहीं रहा. इसके लिए पहले खाताधारक को मास्टरकार्ड एप्प डाउनलोड करना होगा. इसमें ऑथेंटिकेशन ‘सेल्फी’ से या ‘फिंगरप्रिंट’ के जरिये किया जा सकता है. यह एप्प आपके चेहरे की खासियतों का परीक्षण करेगा और उस तसवीर को एल्गोरिदम में तब्दील करते हुए सर्वर को भेज देगा. कंपनी का मानना है कि साइबर हैकिंग से बचाव का यह बेहतर समाधान हो सकता है.
असुरक्षित हैं 70 फीसदी मोबाइल बैंकिंग एप्स
वैध सिम कार्ड होने के बावजूद मोबाइल बैंकिंग एप्स से डाटा चोरी होने के कारण भी भारत में इसे पूरी तरह सुरक्षित नहीं माना गया है. ‘एप्पविजिल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 70 फीसदी मोबाइल बैंकिंग एप्स सुरक्षित नहीं हैं. इसका बड़ा कारण डाटा लिकेज, पासवर्ड चोरी होना और इंटरनेट स्पूफिंग समेत अनेक अन्य अपराध बताया गया है. साथ ही इस रिपोर्ट में बैंक और टेलीकॉम कंपनियों, दोनों ही को इसके लिए जिम्मेवार ठहराया गया है.

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