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दूसरों की अमानत संभाल कर रखें

दक्षा वैदकर बचपन में जब भी एग्जाम के बाद गरमी की छुट्टियां शुरू होती थीं, मैं कपड़े की गुड़िया बनाने में लग जाती थी. पहले गुड़िया बनाती और फिर उसके ढेर सारे कपड़े बनाती. इन्हीं सब में छुट्टियां बीत जाती थीं. बाद में गुड़िया कब गायब हो जाती और स्कूल शुरू हो जाता, पता ही […]

दक्षा वैदकर

बचपन में जब भी एग्जाम के बाद गरमी की छुट्टियां शुरू होती थीं, मैं कपड़े की गुड़िया बनाने में लग जाती थी. पहले गुड़िया बनाती और फिर उसके ढेर सारे कपड़े बनाती. इन्हीं सब में छुट्टियां बीत जाती थीं. बाद में गुड़िया कब गायब हो जाती और स्कूल शुरू हो जाता, पता ही नहीं चलता. एक बार मैंने सोचा कि इस बार मैं बड़ा-सा गुड्डा बनाऊंगी, जो सालों-साल मेरे पास रहेगा. मैंने करीब चार-पांच दिन मेहनत कर कपड़े का गुड्डा बनाया. आंख, नाक, मुंह सब बनाया. उसे कपड़े के साथ टोपी भी पहनायी. वह बहुत सुंदर दिख रहा था.

सब ने मेरी तारीफ की. एक-दो दिन बाद पापा के करीबी दोस्त अपने परिवार के साथ आये. उनकी बेटी को मेरा गुड्डा पसंद आ गया. वह उसे साथ ले जाने के लिए रोने लगी. पापा ने उसे वह गुड्डा दे दिया, मुझे यह कहते हुए कि मेरी बेटी बहुत गुणी है. वह तो दूसरा बना सकती है. मैं खून के घूंट पी कर रह गयी.

अब मुझमें ताकत नहीं थी कि मैं दोबारा गुड्डा बनाती, तो मैंने नहीं बनाया. करीब एक महीने बाद उनकी बेटी के बर्थडे पर गयी, तो देखा कि मेरा गुड्डा उसके घर में गंदगी में पड़ा है.

उसके अंदर भरी रुई, कपड़े की चिंदिया सब बाहर आ रही हैं. चेहरे पर पेन से बहुत सारे निशान बना दिये गये हैं. मुझे बहुत रोना आया. घर आ कर मैंने सभी को खूब सुनाया कि ऐसे लोगों को गुड्डा देने की क्या जरूरत थी, जिन्हें लोगों की अमानत संभालना नहीं आता.

यह किस्सा तो हुआ बचपन का, लेकिन आज कई लोग दूसरों की बेटियों के साथ ऐसा ही करते हैं. अपने बेटे से शादी कर के उसे धूमधाम से घर में लाते हैं और बाद में उसे तकलीफ देते हैं. वे भूल जाते हैं कि वह भी किसी की गुड़िया है. किसी ने उसे बड़े प्यार से पाला-पोसा है. वे कभी उसे दहेज के लिए तंग करते हैं, तो कभी वारिस के लिए. वैसे बात नकली गुड़िया की हो या असली गुड़िया की, लोगों को अपने भीतर संवेदनाएं जगाने की जरूरत है. हम जब भी किसी से उनकी कोई प्रिय चीज लें, तो उसका ख्याल जरूर रखें. यह हमारी जिम्मेवारी है, क्योंकि हमने ही उसे मांगा है और उसे अपने घर ले आये हैं.

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

बात पते की..

– जिस तरह आपको अपने घर की हर वस्तु प्यारी है, हर सदस्य प्यारा है, उसी तरह सामनेवाले को भी. उनकी प्रिय चीजों को संभाल कर रखें.

– लोगों से ऐसी चीजें बिल्कुल न लें, जिन्हें आप जतन से, प्रेम से रख न सकते हों. फिर वह छोटा-सा पपी (कुत्ते का पिल्ला) ही क्यों न हो.

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