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ब्रिटेन में समुद्र में बन रहे इस सबसे बड़े विंड फार्म को जानिये

दुनियाभर में अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली हासिल करने के नये-नये तरीकों पर जोर दिया जा रहा है़ समुद्र के किनारे ज्यादा तेज हवा बहती है, इसलिए पवन ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ज्यादातर पवन चक्कियां इन्हीं इलाकों में लगायी गयी हैं. लेकिन, समुद्र के बीच में जाने पर हवा और भी तेज चलती है. […]

दुनियाभर में अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली हासिल करने के नये-नये तरीकों पर जोर दिया जा रहा है़ समुद्र के किनारे ज्यादा तेज हवा बहती है, इसलिए पवन ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ज्यादातर पवन चक्कियां इन्हीं इलाकों में लगायी गयी हैं.
लेकिन, समुद्र के बीच में जाने पर हवा और भी तेज चलती है. इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए ब्रिटेन में समुद्र के बीचोंबीच दुनिया का सबसे बड़ा पवन चक्की संयंत्र स्थापित किया जा रहा है़ इस विंड टरबाइन समेत अब तक के बड़े टरबाइन और उससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है नॉलेज.
ब्रिटेन में समुद्रतट से दूर यानी समुद्र के भीतरी इलाके में लगाये जा रहे विंड फार्म (पवन चक्की संयंत्र) को देख कर उसे इंगित करने के लिए ‘बड़ा’ शब्द भी शायद पर्याप्त नहीं होगा. जब आप इसके टरबाइनों के आकार और क्षमता की बात करेंगे, तो उस लिहाज से ‘बड़ा’ शब्द भी आपको छोटा लग सकता है.
इसके लिए आपको विशालकाय शब्द का इस्तेमाल करना होगा. जी हां, तेज समुद्री हवाओं से ऊर्जा हासिल हो सकने की व्यापक क्षमताओं के मद्देनजर डेनमार्क की एक फर्म ‘डॉन्ग एनर्जी’ ने ब्रिटेन के पूर्वोत्तर तटीय इलाके में दुनिया का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की घोषणा की है. ‘साइंस एलर्ट’ के मुताबिक, यॉर्कशायर के तट से करीब 121 किलोमीटर दूर इस विंड फार्म को स्थापित किया जायेगा.
इसकी बड़ी खासियत यह होगी कि यह दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा ऑफशॉर (समुद्र में तट से दूर) विंड फार्म होगा, जिसकी ऊर्जा उत्पादन की क्षमता एक गीगावॉट से भी ज्यादा हो सकती है.
इसके टरबाइन 190 मीटर (623 फीट) की ऊंचाई वाले होंगे. इस विंड फार्म के वर्ष 2020 तक पूरी तरह से तैयार हो जाने की उम्मीद है. इससे करीब 10 लाख घरों को बिजली मुहैया करायी जा सकेगी. समुद्र के भीतर बननेवाले ऊर्जा को खपत होनेवाले इलाकों तक पहुंचाने के लिए 965 किलोमीटर लंबी केबल बिछायी जायेगी. ‘डॉन्ग एनर्जी’ के यूके कंट्री चेयरमैन ब्रेंट चेशाइर का कहना है कि ग्राउंड-ब्रेकिंग और इनोवेटिव होने के साथ इस प्रोजेक्ट के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा घरों तक स्वच्छ ऊर्जा से हासिल बिजली मुहैया करायी जा सकेगी. लो-कार्बन एनर्जी के लिहाज से भी इसे बेहद उल्लेखनीय माना जा रहा है.
2030 तक एक-तिहाई ऊर्जा हवा से
‘द गार्डियन’ के मुताबिक, किसी भी अन्य देश के मुकाबले ब्रिटेन अपने तटों पर विंड एनर्जी के लिए सबसे ज्यादा पवन चक्कियों को इंस्टॉल कर रहा है. हालांकि, तटवर्ती इलाके से दूर समुद्र के भीतर विंड फार्म को इंस्टॉल करना और उनका मेंटेनेंस करना ज्यादा खर्चीला है, लेकिन इसकी अन्य खासियतों के कारण सरकार की ओर से इस तरह की परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है. ‘डॉन्ग एनर्जी’ का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यूके में कुल ऊर्जा उत्पादन का करीब एक-तिहाई हिस्सा विंड से हासिल किया जायेगा.
चूंकि यह तकनीक दुनिया में अभी नयी है और इसमें खर्चा ज्यादा आता है, लिहाजा वहां की सरकार इसे प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी मदद मुहैया कराती है. इसके लिए सरकार निजी कंपनियों को धन भी देती है.
करदाताओं के बोझ को कम करने के लिए ब्रिटेन सरकार ने ऑफशॉअर विंड, सोलर और बायोमास एनर्जी इनिशिएटिव को दी जानेवाली सब्सिडी में कटौती कर दी थी, जिस कारण स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने की दिशा में इनोवेटिव आइडिया पर काम कुछ हद तक थम गया था. लेकिन, अब सरकार और कंपनियों की कोशिशों के कारण फिर से नयी तकनीकों पर आधारित ऊर्जा प्राप्ति के नवीन स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है.
करीब 2,000 नये रोजगार पैदा होंगे
इस नये विंड फार्म का निर्माण होने से करीब 2,000 नये रोजगार पैदा होंगे और इसके संचालन और रखरखाव के लिए 300 स्थायी कर्मचारियों की जरूरत होगी. फिलहाल यहां के नजदीकी शहर ह्यूल में सात मेगावॉट के अनेक टरबाइन लगाये जा रहे हैं. स्टेट फॉर एनर्जी एंड क्लाइमेट चेंज के सेक्रेटरी आंबेर रुड का कहना है कि इस प्रोजेक्ट का मतलब इस देश को साफ और सुरक्षित ऊर्जा का हासिल होना है, जिससे नये जॉब्स क्रिएट होंगे.
(प्रस्तुति : कन्हैया झा/ ब्रह्मानंद मिश्र)
भारत में 302 गीगावॉट विंड एनर्जी उत्पादन की क्षमता
भारत में 100 मीटर ऊंचे टॉवर्स इंस्टॉल करते हुए 302 गीगावॉट तक विंड एनर्जी हासिल करने की क्षमता है़ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ विंड एनर्जी ने कुछ नये तथ्यों के आधार पर यह अनुमान लगाया है़ ऊर्जा मंत्रालय की ओर से हाल ही में इस संबंध में एक एटलस जारी किया गया है, जिसमें पवन ऊर्जा हासिल होने और उसके बेहतर ट्रांसमीशन नेटवर्क के बारे में बताया गया है़
इस आंकडे को इस लिहाज से उल्लेखनीय बताया जा रहा है, क्योंकि पूर्व में किये गये मूल्यांकनों के मुताबिक भारत में 80 मीटर की ऊंचाई वाले विंड टावर और 100 गीगावॉट तक इसके उत्पादन की क्षमता का आकलन किया गया था़ भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक विंड पावर की क्षमता को 60 गीगावॉट तक हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है़ बीते वित्तीय वर्ष 31 मार्च, 2015 तक भारत में विंड एनर्जी के क्षेत्र में इंस्टॉल्ड कैपेसिटी 23,762 मेगावॉट तक की रही है़
भारत में भी विंड एनर्जी का राज्यवार उत्पादन :
राज्य उत्पादन
तमिलनाडु 82
महाराष्ट्र 28
गुजरात 25
कर्नाटक 24
राजस्थान 15
अन्य 5
नोट : उत्पादन अरब यूनिट में है़
डेनमार्क ने कायम किया वर्ल्ड रिकॉर्ड
कुल खपत का 42 फीसदी ऊर्जा उत्पादन विंड से
वर्ष 2015 में डेनमार्क ने अपनी खपत का करीब 42 फीसदी बिजली का उत्पादन विंड टरबाइनों से किया़ इस दिशा में डेनमार्क ने कम समय में बड़ी उपलब्धि हासिल की है़ वर्ष 2005 में इस देश ने अपनी खपत का करीब 18़ 7 फीसदी बिजली का उत्पादन विंड टरबाइनों के जरिये किया था और वर्ष 2015 में यह आंकडा बढ़ कर 42 फीसदी तक पहुंच गया़ डेनमार्क सरकार वर्ष 2020 तक इसे 50 फीसदी तक ले जाना चाहती है़ जुलाई महीने में जब ज्यादा तेज हवाएं चलती हैं, उस दौरान यहां कुल खपत से भी ज्यादा करीब 140 फीसदी बिजली का उत्पादन होता है़
उन दिनों यहां की सरकार जर्मनी, नॉर्वे और स्वीडन जैसे देशों को बिजली बेचती भी है़ डेनमार्क के ऊर्जा मंत्री लैयर्स क्रिस्टियन लिलहॉल्ट का कहना है कि डेनमार्क ने इस लिहाज से अन्य देशों के लिए एक बेहतर उदाहरण पेश किया है कि किस तरह से महत्वाकांक्षी हरित नीतियों को अपना कर हम बेहद प्रतिस्पर्धी कीमतों और सप्लाई की निरंतरता को कायम रखते हुए विंड टरबाइनों को इस्तेमाल में ला सकते है़
हालांकि, रिपोर्ट में यह बताया गया हैै कि वर्ष 2015 में डेनमार्क की इस कामयाबी का बड़ा कारण इस वर्ष ज्यादा तेज हवाओं का बहना भी रहा, लेकिन वर्ष 2008 से ही इस देश में विंड पावर से बिजली बनाने में साल-दर-साल वृद्धि देखी जा रही है़
यहां तक कि हवा के सामान्य बहाव वाले सालों में भी पिछले साल के मुकाबले वृद्धि ही हुई है़ इसमें एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि विंड से सालोंभर समान मात्रा में ऊर्जा हासिल नहीं होती है और न ही प्रत्येक घरों तक रोजाना इस बिजली को पहुंचाने में कामयाबी मिली है़ इस देश में अन्य पावर स्टेशंस भी बंद कर दिये गये हैं, तो फिर शेष बिजली कहां से आती है? दरअसल, डेनमार्क ने इसके लिए अन्य देशों से समझौता कर रखा है़ स्वीडन से यह न्यूक्लियर पावर, जर्मनी से सोलर पावर और नॉर्वे से यह हाइड्रोपावर हासिल करता है़
डेनमार्क ने इन देशों से अपना कारोबारी तालमेल बना रखा है और जरूरत के वक्त वह इन देशों से बिजली प्राप्त करता है और ज्यादा उत्पादन होने पर इन देशों को वह बिजली वापस करता है़ इसके अलावा, इस देश में विंड टरबाइनों का वितरण भी एकसमान नहीं है और ज्यादातर टरबाइन देश के पश्चिमी इलाके में इंस्टॉल किये गये है़ं इस कारण से पश्चिमी इलाके में 55 फीसदी बिजली विंड एनर्जी से बनायी जाती है, जबकि पूर्वी इलाके में मात्र 23 फीसदी बिजली ही विंड एनर्जी से बनायी जाती है़ डेनमार्क निरंतर इस दिशा में आगे बढ़ रहा है और उसकी योजना है कि अगले कुछ वर्षों में अपने देश में जीवाश्म ईंधन आधारित सभी ऊर्जा केंद्रों को पूरी तरह से बंद कर दे़
डेनमार्क में कुल बिजली खपत में पिछले 10 सालों में विंड एनर्जी का योगदान
2015 : 42़ 0 फीसदी
2014 : 39.1 फीसदी
2013 : 32.7 फीसदी
2012 : 30.0 फीसदी
2011 : 28.3 फीसदी
2010 : 22.0 फीसदी
2009 : 19.4 फीसदी
2008 : 19.3 फीसदी
2007 : 19.9 फीसदी
2006 : 17.0 फीसदी
2005 : 18.7 फीसदी
लंदन एरे : यूके का सबसे बड़ा विंड फार्म
पर्यावरण को बचाने की मुहिम के लिए किये गये अध्ययनों के बाद वर्ष 2001 में ही ‘लंदन एरे’ प्रोजेक्ट की अवधारणा सामने आयी थी, लेकिन वर्ष 2009 में इसका निर्माण कार्य शुरू हो सका. हालांकि, जनवरी, 2012 में ही इसका पहला टरबाइन पूरी तरह काम करने लगा था, लेकिन समग्र रूप से यह प्रोजेक्ट अक्तूबर, 2012 में तैयार हुआ. इस प्रोजेक्ट का निर्माण दो चरणों में किया जा रहा है.
पहला चरण 2012 में ही चालू हो चुका है और उसकी क्षमता 630 मेगावॉट है, जबकि दूसरे चरण पर काम चल रहा है और इसकी क्षमता 1,000 मेगावॉट तक होगी. समुद्र तट से दूर भीतर जाकर बड़ी-बड़ी पवन चक्कियों को इंस्टॉल करना बेहद चुनौतीपूर्ण माना जाता है.
लेकिन लंदन एरे ने इसे कर दिखाया है. इसमें 60 समुद्री जहाजों और एक हजार कामगारों की मदद ली गयी. इसे बनाने में करीब 55 लाख मानव श्रम घंटे लगे.
इस योजना के तहत समुद्र की भीतर 175 टरबाइनों के निर्माण की नींव रखी गयी़ इसमें लंबे सिलिंड्रिकल स्टील ट्यूब्स लगाये गये़ इनमें से प्रत्येक की लंबाई 68 मीटर, चौडाई 5़ 7 मीटर और वजन 650 टन है़ इस नींव के ऊपर 28 मीटर ऊंचा और 245 से 345 टन भारी एक अन्य पिलर आरोपित किया गया़ इसकी मरम्मत के लिए इसमें सीढियां और प्लेटफॉर्म्स भी बनाये गये है़ं साथ ही इसे पीले रंग से रंगा गया है, ताकि दूर से ही स्पष्ट रूप से दिखाई दे सके़ इस कार्य के लिए खास समुद्री जहाजों का इस्तेमाल किया गया, जिनके माध्यम से नींव इंस्टॉल करने, टरबाइन और सब-स्टेशंस आदि बनाये गये़
आंकड़ों में लंदन एरे प्रोजेक्ट
100 वर्ग किमी इलाके में फैला है यह पूरा प्रोजेक्ट समुद्र के भीतर.
175 विंड टरबाइन इंस्टॉल किये गये हैं इसमें.
2 ऑफ शॉअर सब-स्टेशन जुड़े हैं इससे.
450 किमी की लंबाई में बिछाये गये हैं इसके केबल.
630 मेगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता है इसकी.
5 लाख घरों को बिजली मुहैया कराया जा रहा है इससे.
9,25,000 टन से भी ज्यादा हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आ रही है सालाना इस प्रोजेक्ट के माध्यम से.
वर्ष 2020 तक 26 प्रतिशत ऊर्जा हासिल होगी अक्षय स्रोतों से सौर और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रोत दिन-प्रतिदिन सस्ते और प्रभावी होते जा रहे हैं. इसी वजह से दुनियाभर के तमाम देश ऐसी तकनीकों को तेजी से अपना रहे हैं. कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल जैसे ऊर्जा स्रोतों के इतर अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पर ज्यादातर देश प्रतिवर्ष अपनी क्षमता में वृद्धि कर रहे हैं. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आइइए) की एक नयी रिपोर्ट में भी बताया गया है कि यह प्रवृत्ति हाल-फिलहाल धीमी नहीं पड़ेगी.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बात करें, तो अध्ययन में यह दावा किया गया है कि अगले पांच वर्षों यानी 2020 तक जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता एक हद कम हो जायेगी और ऊर्जा बाजार की निर्भरता एक-चौथाई (26 प्रतिशत) से अधिक अक्षय स्रोतों पर हो जायेगी. फिलहाल, दुनियाभर में सौर, जलीय और वायु ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता मात्र 22 प्रतिशत है. हालांकि, ऐसे स्रोतों पर मात्र एक चौथाई निर्भरता संतोषजनक नहीं कही जा सकती, लेकिन आइइए का दावा है कि बेहद कम समय में इस आंकड़े को पार करना उत्साहजनक है.
यह प्रगति यह प्रदर्शित करती है कि दुनिया अक्षय ऊर्जा के मामले में क्षमता बढ़ोतरी पर काम कर रही है. एक पूर्वानुमान के मुताबिक, इस दशक के अंत तक अक्षय ऊर्जा के मामले में दुनिया 700 गीगावाट ऊर्जा क्षमता को हासिल कर लेगी.
आइइए के अनुसार, वर्ष 2020 तक अक्षय ऊर्जा से होने वाला कुल वैश्विक विद्युत उत्पादन आज की तारीख में चीन, भारत और ब्राजील की संयुक्त रूप से ऊर्जा जरूरतों से अधिक होगा. जापान जैसे देश के लिए यह कुल ऊर्जा मांग का दोगुना उत्पादन होगा. इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले एजेंसी ने पिछले एक दशक के ट्रेंड के आंकड़ों के साथ अक्षय ऊर्जा के प्रस्तावित इंस्टॉलेशंस के बारे में भी बारीकी से अध्ययन किया.
दूसरी ओर, कुछ लोग इस संस्था के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न खड़ा करते हैं. इनका मानना है कि आइइए द्वारा जारी किये गये उक्त आंकड़े बढ़ा-चढ़ा कर पेश किये गये हैं. दरअसल, वर्ष 1973 में उपजे तेल संकट के बाद सरकारों को सुझाव देने के उद्देश्य से आइइए की स्थापना की गयी थी.
दुनिया को रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों परअपनी निर्भरता बढ़ानी होगी, क्योंकि जीवाश्म ईंधन धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं. यहां तक कि अमेरिका में भी, जो अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर अधिक ध्यान देने के लिए नहीं जाना जाता है, वहां भी इस बारे में जागरूकता बढ़ रही है. ब्रायन मर्चेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में पांच वर्ष पूर्व संचालित होनेवाले कोल प्लांट में से 40 प्रतिशत बंद हो चुके हैं. स्वीडन जैसे देश भी जीवाश्म ईंधनों पर से अपनी निर्भरता को लगातार कम कर रहे हैं. इस गति के बावजूद, अभी इस क्षेत्र में लंबी दूरी तय करनी है.
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता बढ़ानी होगी. कुल ऊर्जा जरूरतों में से एक-चौथाई ऊर्जा के लिए भले ही हम अक्षय स्रोतों की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन 75 प्रतिशत बिजली के लिए अभी भी हम जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर हैं, जिससे सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि नीतियों के स्तर पर दुनियाभर में बड़ा बदलाव किया जायें, तो हम ऐसी तकनीक और सामर्थ्य रखते हैं, जिसके बल पर 2050 तक पूर्ण रूप से हम ऊर्जा जरूरतों के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर हो सकते हैं. आइइए का अनुमान भले ही हमें बता रहा हो कि रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन यह गति उतनी तेज नहीं है कि जिससे कि हम उस लक्ष्य को कम समय में हासिल कर सकें.
आइइए के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर फतिह बिरोल ने कुछ दिनों पहले कहा था कि रिन्यूएबल एनर्जी वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति के लक्ष्य को पूरा कर सकती है, लेकिन इसे पूरा करने में काफी समय लगेगा. सरकारों को रिन्यूएबल एनर्जी पर सवाल करने के बजाय तकनीकों की मदद से इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग करना चाहिए और ऊर्जा तंत्र को सुरक्षित और दीर्घकालिक बनाना चाहिए.

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