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वेलेंटाइन डे : सिर्फ प्रेम ही ला सकता है बुनियादी बदलाव
जे कृष्णमूर्ति,दार्शनिक दुनिया के पागलपन भरे मौजूदा हालात में प्रेम एक ऐसा खूबसूरत अहसास, जो जीवन को आनंद से भर देता है. एक ऐसी भावना, जिसकी मजबूत डोर परिवार को एक सूत्र में बांधती है, समाज में मौजूद संघर्ष का समाधान प्रस्तुत करती है. कभी कबीर ने कहा था- ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो […]
जे कृष्णमूर्ति,दार्शनिक
दुनिया के पागलपन भरे मौजूदा हालात में
प्रेम एक ऐसा खूबसूरत अहसास, जो जीवन को आनंद से भर देता है. एक ऐसी भावना, जिसकी मजबूत डोर परिवार को एक सूत्र में बांधती है, समाज में मौजूद संघर्ष का समाधान प्रस्तुत करती है. कभी कबीर ने कहा था- ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय. लेकिन, इस प्रेम के सही अर्थ को समझने-समझाने का प्रयास सदियों से जारी है और सदियों तक चलता रहेगा. प्रेम के पर्व ‘वेलेंटाइन डे’ पर जीवन में प्रेम की अहमियत के कुछ महत्वपूर्ण आयाम…..
प्रेम क्या नहीं है, यह समझकर ही हम तथ्य का पता लगा पाएंगे कि प्रेम क्या है. प्रेम अज्ञात है, इसलिए ज्ञात को छोड़ कर हमें उस तक आना होगा. ज्ञात से भरा मन अज्ञात को नहीं खोज सकता. हम ज्ञात के मूल्य को समझें, ज्ञात को देखें, और जब हम ज्ञात का अवलोकन कर पाते हैं, मन ज्ञात से मुक्त हो जाता है, तभी हम जान पाते हैं कि प्रेम क्या है. अत: हमें प्रेम को निषेध के द्वारा समझना होगा, न कि उसे परिभाषित करते हुए.
हममें से अधिकांश के लिए प्रेम क्या है? जब हम कहते हैं कि हम किसी सेप्रेम करते हैं, तो हमारा क्या तात्पर्य होता है? हमारा तात्पर्य होता है कि उस व्यक्ति पर हमारा अधिकार है. उस अधिकार से ईर्ष्या पैदा होती है, क्योंकि अगर मैं उसे खो दूं तो क्या होगा? मैं अपने आपको खाली-खाली, लुटा हुआ अनुभव करूंगा, इसीलिए मैं उस अधिकार को वैधानिक बना लेता हूं, मैं उस स्त्री या पुरुष पर अपनी पकड़ बनाये रखता हूं. इस प्रकार उस व्यक्ति पर पकड़ और कब्जा बनाये रखने का सिलसिला ईर्ष्या लाता है, भय लाता है तथा कई तरह के दूसरे द्वंद्व पैदा करता है. निस्संदेह ऐसा कब्जा प्रेम नहीं है. या है?
भावनाओं में डूबना नहीं है प्रेम
जाहिर है कि प्रेम भावावेश नहीं है. भावाविष्ट होना, भावुक होना प्रेम नहीं है, क्योंकि भावावेश या भावुकता संवेदन मात्र हैं. ईसा या कृष्ण के लिए, अपने गुरु के लिए या किसी और के लिए रोनेवाला धार्मिक व्यक्ति बस भावुक होता है, भावनाओं में डूबा होता है. वह संवेदन में, उत्तेजना में लिप्त होता है, जो विचार की प्रक्रिया है, और विचार प्रेम नहीं है. विचार संवेदन का परिणाम है, अत: भावाविष्ट या भावुक व्यक्ति संभवत: प्रेम को नहीं जान सकता.
क्या हम भावाविष्ट नहीं हैं, भावुक नहीं हैं? भावुकता, भावावेश आत्मविस्तार का ही एक रूप है. भावपूर्ण होना तो प्रेम नहीं है, क्योंकि जब किसी भावाविष्ट व्यक्ति को अपनी भावनाओं का प्रत्युत्तर नहीं मिलता, जब उसे अपने जज्बात का कोई निकास नहीं मिलता, वह क्रूर हो जाता है. किसी भावुक व्यक्ति को घृणा के लिए, युद्ध के लिए, नरसंहार के लिए उकसाया जा सकता है. एक मनुष्य, जो भावनाओं में डूबा है, अपने धर्म के लिए आंसू बहा रहा है, उसका प्रेम से कोई संबंध नहीं.
क्या क्षमा प्रेम है? क्षमा में क्या निहित है? आप मेरा अपमान करते हैं और मुझे इस पर गुस्सा आता है, मैं इसे याद रखता हूं, तब या तो दबाव के कारण या पाश्चाताप के कारण मैं कहता हूं, ‘मैं आपका क्षमा करता हूं’. पहले तो मैं गुस्सा पालता हूं और फिर उसको नकारता हूं.
तो इसका मतलब क्या हुआ? यही कि मैं अब भी केंद्र में हूं, मैं अब भी महत्वपूर्ण हूं, मैं ही हूं जो किसी को क्षमा कर रहा हूं. जब तक क्षमा का यह तौर-तरीका बना रहता है, तब तक महत्वपूर्ण मैं ही रहता हूं, न कि वह व्यक्ति जो जिसने तथाकथित मेरा अपमान किया है. अत: जब मैं रोष को इकट्ठा करता हूं और फिर उसे नकारता हूं जिसे आप क्षमा कहते हैं, तो वह प्रेम नहीं होता. प्रेम करनेवाले व्यक्ति में वैरभाव नहीं होता, और इन तमाम बातों के विषय में वह उदासीन रहता है. सहानुभूति, क्षमा, आधिपत्य का संबंध, ईर्ष्या, भय- यह सब तो प्रेम नहीं है. ये सब तो मन के क्रियाकलाप हैं.
जब तक मन मध्यस्थ की भूमिका में है, प्रेम संभव नहीं है, क्योंकि मन केवल आधिपत्य के द्वारा ही मध्यस्थता करता है. उसकी मध्यस्थता मात्र आधिपत्य ही है, उसके रूप अलग-अलग हो सकते हैं. मन प्रेम को भ्रष्ट कर सकता है, वह प्रेम को जन्म नहीं दे सकता, वह सौंदर्य नहीं ला सकता. आप प्रेम पर कोई कविता लिख सकते हैं, पर वह प्रेम नहीं है.
सम्मान के बिना नहीं हो सकता प्रेम
बेशक जब वास्तविक सम्मान नहीं होता, जब आप दूसरे का सम्मान नहीं करते, चाहे वह आपका नौकर या आपका मित्र हो, तो प्रेम भी नहीं होता. क्या आपने इस पर कभी गौर किया है कि अपने नौकरों के प्रति, उन लोगों के प्रति जिन्हें आप से ‘निम्न’ कहा जाता है, आप सम्मानपूर्ण, दयालु, उदार नहीं होते.
जो आपसे उच्च माने जाते हैं- जो आपका अफसर है, जो खूब पैसेवाला है, जिसका अच्छा बड़ा मकान है, अच्छी पदवी है, जो आपको बेहतर पद-प्रतिष्ठा दे सकता है, जिससे आपको कुछ हासिल हो सकता है- सम्मान आप ऐसे ही लोगों को देते हैं. पर जो आपसे नीचे होते हैं उन्हें आप ठोकरें मारते हैं, उनके लिए आपके पास एक खास जबान होती है.
अब, जहां सम्मान नहीं होता, वहां प्रेम भी नहीं होता. जहां करुणा नहीं है, दया नहीं है, क्षमा नहीं है, वहां प्रेम भी नहीं है. और चूंकि हममें से अधिकांश इसी स्थिति में हैं, हममें प्रेम नहीं है. हम न तो आदर करना जानते हैं, न हममें करुणा व उदारता है. हममें तो स्वामित्व का भाव है, भावुकता है, भावावेश है, जिन्हें किसी ओर मोड़ा जा सकता है : चाहे हत्या करानी हो, मार-काट करानी हो, या फिर किसी बेवकूफी भरे जाहिल मकसद के लिए लोगों को जुटाना हो. तो प्रेम हो ही कैसे सकता है?
प्रेम को आप तभी जान पाएंगे जब यह सब कुछ विदा हो चुका हो, समाप्त हो चुका हो, जब अधिकार जमाने का भाव न रहे, जब किसी विषय के प्रति भक्तिभाव में आप बहे न जा रहे हों. ऐसा भक्तिभाव तो याचना ही है, किसी अन्य रूप में कामनापूर्ति की तलाश. जो प्रार्थना कर रहा है, उसे प्रेम नहीं मालूम.
चूंकि आपमें अधिकारभाव है, चूंकि आप ऐसी भक्ति के द्वारा, ऐसी प्रार्थना के द्वारा जो आपको भावाविष्ट और श्रद्धालु बना देती है, किसी लक्ष्य या किसी परिणाम की खोज कर रहे हैं, तो भला वहां प्रेम कैसे हो सकता है. जब अादर नहीं होता, जाहिर है प्रेम भी नहीं होता. आप कहते हैं कि आप तो आदर करते हैं, लेकिन आपका यह आदर केवल ऊंचे लोगों के लिए है, ऐसा आदर तो कुछ पाने की तमन्ना या किसी डर की वजह से है. यदि आप वास्तव में सम्मान करते हैं, तो आप निम्नतम का भी उतना सम्मान करेंगे जितना कि तथाकथित उच्चतम का. आपके अंदर वह भाव नहीं है, इसलिए प्रेम भी नहीं है.
जब हृदय मन के विषयों से नहीं भरा होता, तब प्रेम होता है
हममें से कितने कम लोग उदार, क्षमाशील और करुणापूर्ण होते हैं. जब आपको उदारता से कोई लाभ होता है तब आप उदार हो जाते हैं, जब आपको करुणा से कुछ मिलनेवाला होता है तब आप करुणापूर्ण हो जाते हैं. जब ये सारी विसंगतियां समाप्त हो जाती हैं, जब ये सब बातें आपके मन को नहीं घेरे रहती हैं और जब आपका हृदय मन के विषयों से नहीं भरा होता, तब प्रेम होता है, औरसिर्फ प्रेम ही इस दुनिया के खब्त और पागलपन भरे मौजूदा हालात में बुनियादी बदलाव ला सकता है.
विचारों-पद्धतियों से, सिद्धांतों से, चाहे वे वामपंथी हों या दक्षिणपंथी, कोई सच्चा परिवर्तन नहीं आ सकता. प्रेम आप वास्तव में केवल तभी कर पाते हैं जब आपमें स्वामित्वभाव नहीं होता, जब आप ईर्ष्यालु नहीं होते, लोभी नहीं होते, जब आप आदरयुक्त होते हैं, जब आपमें दया एवं करुणा होती है, जब आप अपनी पत्नी का, अपने बच्चों का, अपने पड़ोसी का, अपने अभागे नौकरों का ख्याल रखते हैं.
प्रेम के बारे में सोचा नहीं जा सकता, उसका अभ्यास नहीं किया जा सकता. प्रेम का अभ्यास, भाईचारे का अभ्यास, मन के ही दायरे में होता है, अत: वह प्रेम नहीं है. जब यह सब नहीं रहता, तभी प्रेम संभव होता है, तभी आप जान पाएंगे कि प्रेम करना किसे कहते हैं.
तब प्रेम मापतोल का विषय नहीं होता, गुणात्मक होता है. तब आप यह नहीं कहते, ‘मैं सारे विश्व से प्रेम करता हूं’, बल्कि जब आप एक से प्रेम करना नहीं जानते, मानवता के प्रति हमारा प्रेम थोथी कल्पना है. जब आप प्रेम करते हैंं तो वहां न एक होता है, न अनेक : बस प्रेम होता है. केवल तभी, जब प्रेम होता है, हमारी सारी समस्याओं का समाधान हो पाता है, और तभी हम इसके आनंद, इसके प्रसाद को जान पाते हैं.
सीनियर सिटीजन : उम्र के नये मोड़ पर अंदाज भी हो नया
प्यार भरे रिश्तों की जिम्मेवारियों के बीच न जाने कितने वेलेंटाइन डे बीते होंगे, जब आपको अपने बारे में कुछ खास करना तो दूर सोचने तक का मौका नहीं मिला होगा. आज जब आपके बच्चे पढ़ने के लिए बाहर जा चुके हैं, बेटियों की शादी हो चुकी है, तो ऐसे में आप वेलेंटाइन डे के दिन उन हसरतों को पूरा करने की शुरुआत करने के साथ खास बना सकते हैं, जिनके लिए आपको अपने व्यस्ततम दिनों में समय नहीं मिल पाया.
शुरुआत करें खुद से : जीवन में आपने जिस व्यक्ति की पसंद-नापसंद के बारे में जानने और उसे समय देने के बारे में शायद कभी नहीं सोचा, वह कोई और नहीं बल्कि खुद आप हैं.
बच्चों की फरमाइशें पूरी करने और घर-गृहस्थी की जिम्मेवारियों के बीच बहुत से लोगों को अपने बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिल पाता. ऐसे में आप वेलेंटाइन के दिन खुद को एक बार फिर उन कामों से जोड़ सकते हैं, जो कभी आपका शौक हुआ करते थे. मसलन, आप पेंटिंग या बागबानी में वक्त बिताना शुरू कर सकते हैं. यदि आपको किताबें पढ़ने का शौक है, तो अपने पसंदीदा लेखकों की लेटेस्ट किताबें मांगा कर एक बार फिर पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं.
खुद को करें प्रोत्साहित : प्रोत्साहन की जरूरत हर किसी को हर जगह, समय एवं परिस्थिति में होती है. यह श्रेष्ठ परिणाम पाने का मूलमंत्र है. अगर कोई और न दे तो आपको खुद को ही प्रोत्साहन देना होगा. स्वयं के श्रेष्ठ प्रोत्साहक बनें. अगर आप स्वयं ऊर्जावान और उत्साहित रहेंगे, तभी आपके आसपास के दूसरे लोग भी आपका साथ पाकर उत्साह महसूस करेंगे.
जीवन साथी के लिए समय निकालें : वेलेंटाइन के दिन जीवनसाथी को एक प्यारा तोहफा देने का चलन नया नहीं है. ऐसे में आप यह बिल्कुल न सोचें कि इस उम्र में आपका अपने जीवनसाथी को उपहार देना ठीक नहीं लगेगा. उम्र के इस मोड़ पर भी, आज के दिन अपने साथी को एक छोटा-सा उपहार देकर उन्हें आप यह एहसास दिला सकते हैं कि किस तरह उन्हाेंने जीवन में आयी तमाम मुश्किलों का सामना करने में आपका साथ दिया. आप चाहें तो अपने साथी के साथ किसी गजल, नाटक या कला से जुड़े कार्यक्रम में शामिल होकर भी इस दिन को खास बना सकते हैं.
करें खुश रहने का वादा : आज के दिन आप खुद से खुश रहने का वादा भी कर सकते हैं. क्योंकि सभी की जिंदगी में कोई न कोई परेशानी होती है. इसका मतलब यह नहीं होता कि हम खुश न रहें. खुशियां अपनी जगह हैं और परेशानियां अपनी जगह. आपको जरूरत है तो बस अपने लिए खुशनुमा पलों को तलाशने की. आप अपनी जिंदगी से खुश रहेंगे तो उसका असर आप पर, आपके बच्चों पर और आसपास रहने वाले लोगों की जिंदगी पर भी पड़ेगा.
खुशनुमा बनाएं आस-पास का माहौल : कहा जाता है कि मुश्किल वक्त में रिश्तेदारों में से ज्यादा पड़ोसी काम आते हैं. ऐसे में यदि आप पिछले काफी समय से पड़ोसियों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के बारे में सोच रहे हैं, तो इस काम की शुरुआत भी आज के दिन कर सकते हैं.
सिर्फ पड़ोसी ही नहीं, बल्कि अपने ड्राइवर या वॉचमैन जैसे लोगों से भी आप एक दोस्ताना व्यवहार करने की शुरुआत आज के दिन से कर सकते हैं. अापके करीब रहनेवाले ये लोग जरूरत पड़ने पर न सिर्फ आपके लिए मददगार हो सकते हैं, बल्कि आते-जाते आपको देखकर इन लोगों के चहरे पर आयी मुस्कान आपको एक अलग तरह ही खुशी का एहसास दिला सकती है.
करें सेहत का ख्याल रखने का वादा : सेहत अमूल्य होती है और इसका ख्याल रखना हमेशा ही बेहद जरूरी है. खासतौर से बढ़ती उम्र के साथ इस दिशा में सजग रहना और भी जरूरी हो जाता है. वेलेंटाइन के इस खास मौके पर आप खुद से अपनी और अपने जीवनसाथी की सेहत का ख्याल रखने का वादा कर सकते हैं. इस दिन के साथ योग करने, वॉक पर जाने या फिर अच्छी सेहत को बढ़ावा देनेवाली अन्य आदतों की शुरुआत भी की जा सकती है.
दोस्तों के साथ को बनाएं खास : इस दिन को खास अंदाज में सेलेब्रेट करने के लिएअाप अपने दोस्ताें के साथ एक गेट-टु-गेदर भी ऑर्गनाइज कर सकते हैं. कहते हैं दोस्तों का साथ जीवन के हर पड़ाव को खुशमुना बनाये रखता है. ऐसे में आप वेलेंटाइन के दिन दोस्तों के साथ पुरानी खुशनुमा यादों को ताजा करके एक बार फिर उसी खुशी को महसूस कर सकते हैं.
– प्राची खरे
जीने की राह : पारिवारिक कलह को प्रेम में बदलें
सद्गुरु जग्गी
वासुदेव
अपने भीतर मौजूद सीमाओं को समझने के लिए परिवार एक अच्छी जगह है. परिवार में रह कर आप अपनी ट्रेनिंग कर सकते हैं. परिवार के साथ रह कर आप कुछ लोगों के साथ हमेशा जुड़े रहते हैं, जिसका मतलब है, आप जो कुछ भी करते हैं, उसका एक-दूसरे पर असर पड़ता है. ऐसा हो सकता है कि उनके कुछ काम या आदतें आपको पसंद न हो, फिर भी आपको उनके साथ रहना पड़ता है. यह आपके फेसबुक परिवार की तरह नहीं है, जिसमें आपने हजारों लोगों को जोड़ रखा है, और अगर आप किसी को पसंद नहीं करते, तो एक क्लिक से उसे बाहर कर सकते हैं. अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठने के लिए परिवार बहुत ही कारगार साबित हो सकता है.
पसंद और नापसंद से परे जाना सीखें : जब आप पसंद और नापसंद में अटके रहते हैं, तो चेतन होने का सवाल ही नहीं उठता. आप जिस पल किसी चीज को पसंद या नापसंद करते हैं, आपका व्यवहार कुदरती रूप से आपके लिए एक बंधन बन जाता है. आपकी पसंद-नापसंद आपको मजबूर बना देती है.
परिवार एक खोल की तरह भी होता है, जिसके भीतर, चाहे आपको पसंद हो या नहीं, लोगों के साथ एक निश्चित समय तक जीवन बिताना होता है. अब चाहे आप इसे एक कड़वा अनुभव बना लें या अपनी पसंद और नापसंद से परे जाना सीख लें, यह आप पर निर्भर है. मान लीजिए, आपको अपने पति की कुछ बातें पसंद नहीं हैं. अगर कुछ समय बाद आप कहती हैं, ‘ये तो ऐसे ही हैं- कोई बात नहीं,’ तो इसका मतलब है कि आपके पति नहीं बदले हैं, मगर उनकी जो चीज आपको अखरती थी, उसके लिए आप अपनी नापसंदगी से ऊपर उठ गयी हैं.
हालांकि अगर आप इसके लिए मन में कड़वाहट पाल लेती हैं या यह कहते हुए हार मान लेती हैं कि ‘मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है- मुझे ये चीजें बरदाश्त करनी ही होंगी’, तो परिवार के लोगों के साथ रहने की सारी पीड़ा और संघर्ष का कोई फल नहीं मिलेगा. लेकिन, अगर आप ऐसा कहती हैं, ‘हां, ये लोग ऐसे ही हैं, मगर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझे इन लोगों के साथ आनंदपूर्वक रहना है,’ तो आप पूरी चेतनता के साथ अपनी नापसंद से परे चली जाती हैं.
आध्यात्मिक होने का सबसे अच्छा तरीका : जब आप अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठ जाते हैं, तो अनजाने में आप चेतन हो जाते हैं. अनजाने में, आप आध्यात्मिक हो जाते हैं, जो आध्यात्मिक होने का सबसे अच्छा तरीका है. आप यह नहीं कहते कि ‘मैं आध्यात्मिक मार्ग पर चलने जा रहा हूं’ बल्कि एक जीवन के रूप में आप इतने चेतन हो जाते हैं कि अपनी सीमाओं, अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठ जाते हैं और ‘आध्यात्मिक’ शब्द से जुड़े बिना आध्यात्मिक हो जाते हैं.
आध्यात्मिक होने का सबसे अच्छा तरीका पूरी चेतनता में उस सीमा तक विकास करना है, जहां आप मजबूर होकर कोई प्रतिक्रिया न करें.
इस तरह की तैयारी के लिए परिवार एक अच्छी जगह है. आप हमेशा के लिए इसमें फंसे नहीं रहते. चाहे आप किसी भी तरह के परिवार के साथ रहते हों, यह एक निश्चित समय के लिए ही होता है. आपको इस समय का लाभ उठाते हुए अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठना चाहिए. अगर आपके आस-पास के लोगों के साथ आपके मतभेद होते रहते हैं, तो आप बहुत अच्छी स्थिति में हैं. मैं हमेशा आश्रम के लोगों से कहता हूं, ‘किसी ऐसे इनसान को चुनें, जिसे आप बरदाश्त नहीं कर सकते और उनके साथ आनंदपूर्वक काम करना सीखें.
यह आपके लिए बहुत ही लाभदायक होगा.’ अगर आप अपने किसी पसंदीदा व्यक्ति के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो यह आपके लिए एक बंधन बन जायेगा, क्योंकि आप केवल ऐसे ही लोगों के साथ रहना पसंद करेंगे. परिवार कोई समस्या नहीं है. समस्या यह है कि आपको जो पसंद है, आप उसी के साथ रहना चाहते हैं. आपको जो पसंद है, उसे ही मत चुनिये. यह सोचिये कि जो मौजूद है, उसे बढ़िया कैसे बनाया जा सकता है.
आपको जो मिलता है, वह आपके हाथ में नहीं है, लेकिन उसे आप क्या बनाते हैं, यह आपके ऊपर है. इस की परवाह न करें कि दुनिया खुद को एक खास तरीके से व्यवस्थित करती है या नहीं, महत्वपूर्ण यह है कि आप खुद को ऐसे व्यवस्थित करें, कि आप एक खूबसूरत इनसान बन जाएं. वास्तव में यही प्रक्रिया प्रेम है.
प्रेम जो हाट बिकाय!
– कमलानंद झा –
प्रेम एक अद्भुत और विलक्षण किस्म की जीजिविषा है. इसका पक्ष मानवीय गरिमा का पक्ष है. इसलिए मानवीय गरिमा को पैर तले रौंदनेवाला समाज प्रेम करनेवालों को खुलेआम मौत की सजा सुनाने में कोई कोताही नहीं करता. बावजूद इसके, लोग हैं कि प्रेम किये जा रहे हैं. प्रेम करने पर जितनी अधिक पाबंदियां लगायी जायेंगी, जितनी दुश्वारियां बढ़ेंगी, प्रेम और अधिक सबल होकर पूरे दम-खम के साथ ऊंची नाकवाले समाज को धता बता कर सामने आयेगा.
स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम को छोड़ कर अन्य किसी भी तरह का प्रेम- मसलन देश प्रेम, मातृ-पितृ प्रेम, गुरु प्रेम आदि को पाने के लिए प्रेमी को संघर्ष नहीं करना पड़ता है. इस तरह के प्रेम के लिए प्रेमी को समाज की ओर से वाहवाही मिलती है, पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं.
किंतु स्त्री-पुरुष प्रेम को समाज सहन नहीं कर पाता है. इस प्रेम को पाने के लिए उसे एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है. विरले भाग्यशाली प्रेमी इस लड़ाई को जीत पाते हैं. मजेदार बात यह है कि अन्य किसी भी तरह के प्रेम के मध्य देह नहीं आती है, पर स्त्री-पुरुष प्रेम की समस्या यह है कि इसके बीच में देह आ जाती है. और देह को अनावश्यक रूप से एक विचित्र तरह की पवित्रता की अवधारणा से जोड़ दिया गया है. यही पवित्रता की अवधारणा आॅनर किलिंग को जन्म देती है. इसलिए आवश्यक है कि इस पवित्रता की अवधारणा के नफा-नुकसान पर विचार किया जाये.
प्रेम करने से अधिक कठिन है प्रेम करने की इजाजत देना या प्रेम लायक माहौल बनाना. प्रेम विवाह करनेवाले कई दंपत्ति भी अपने बेटे-बेटियों को प्रेम करने की इजाजत नहीं दे पाते हैं.
भाई स्वयं प्रेम करना चाहेगा, किंतु बहन के प्रेमी को गला रेतने में गुरेज नहीं करेगा. नीतिश कटारा हत्याकांड का फैसला इसका गवाह है. 13 वर्षों तक नीतिश की मां न्याय की लड़ाई लड़ती रही, तब जाकर प्रेम करने का दुस्साहस करनेवाले नीतिश के हत्यारे को सजा मिल पायी. नीतिश जिस लड़की से प्रेम करते थे, उसके भाइयों ने नीतिश की बुरी तरह हत्या कर दी थी.
‘उलटबांसी’ में मार्मिक अभिव्यक्ति
कविता की कहानी ‘उलटबांसी’ इस संदर्भ की मार्मिक अभिव्यक्ति करती है. कहानी में वर्णित एक दंपति अपने तीनों बेटे और एक बेटी को उत्साह पूर्वक प्रेम विवाह करने की इजाजत देते हैं, और धूम-धाम से शादी भी करवाते हैं.
लेकिन पति की मृत्यु के बाद मां जिस डाॅक्टर से इलाज करवा रही होती है, उससे सहारा पाना चाहती है और विवाह करना चाहती है, तो उसके तीनों बेटे और बहू ताल ठोक कर इसका विरोध करते हैं. अंत में बेटी मां का साथ देती है, किंतु दामाद उस मां की बेटी और अपनी पत्नी को इस ‘अपराध’ में शामिल हाेने के कारण उसे हमेशा के लिए छोड़ देने की धमकी देता है. लेकिन, बेटी पति की परवाह न कर मां की शादी में मां के साथ खड़ी होती है.
सामा-चकेवा से लेनी चाहिए प्रेरणा
इस संदर्भ में मिथिला में प्रचलित लोककथा ‘सामा-चकेवा’ से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए. इसमें कृष्ण अपनी बेटी सामा को प्रेम करने का भीषण दंड देते हैं और सामा का भाई साम्ब पिता की इस राजाज्ञा के खिलाफ जनअांदोलन छेड़ता है.
प्रेम का वास्तविक अर्थ मुक्ति में है, बंधन में नहीं. आप जिससे प्रेम करते हैं, वह दूसरे से प्रेम न करे, यह एक बंधन है. प्रेम तो अत्यंत विराट और उदात्त भाव है. इस भाव में यह भाव तिरोहित हो जाता है कि मेरा प्रेमी या प्रेमिका किससे प्रेम कर रहे हैं. उसमें तो सिर्फ यह भाव प्रधान रहता है कि मैं उसे प्रेम करता या करती हूं और वह भी मुझसे प्रेम करता या करती है.
लेनिन के प्रेम का व्यापक पक्ष
लेनिन की प्रेमिका इनेसा पांच बच्चों की मां थी और उसका पति अत्यंत संपन्न व्यक्ति था. इनेसा का प्रेम अपने ही देवर से हुआ और वह उसके पास रहने लगी, लेकिन उसका पति उससे प्रेम भी करता रहा और आर्थिक मदद भी.
इनेसा के जीवनी लेखक फ्रेविल बताते हैं कि जब इनेसा का लेनिन से प्रेम हुआ, तो लेनिन की पत्नी क्रुप्यकाया दोनों को मिलने का इंतजाम कर दिया करती थी. क्रुप्यकाया स्वयं एनेसा को बहुत पसंद करती थी. यह प्रेम का अत्यंत व्यापक पक्ष है. गोपियों को भी इससे मतलब नहीं था कि कृष्ण किस किससे कितना प्रेम करते हैं, वह तो सिर्फ और सिर्फ अपने प्रेम को देख रही थीं.
लोरिकायन लोककथा की यह उदात्तता
मैथिली लोककथा लोरिकायन की नायिका मांजरि का पति शिवधर किसी कारण से नपुसंक हो जाता है. काम क्रीड़ा में उसकी उदासीनता से त्रस्त जब मांजरि इसका कारण जानना चाहती है, तो शिवधर उदारतापूर्वक कहता है- ‘हे रूपसी, मैं नपुंसक हो गया हूं. मेरा वैवाहिक जीवन अब व्यर्थ हो गया है, तुम किसी सुपुरुष का साथ पकड़ लो.’
पारंपरिक भारतीय समाज का पति जीते जी तो पत्नी को मुक्त नहीं ही करता है, अपनी मृत्यु के बाद भी मुक्त नहीं करता. अपनी मृत्यु के बाद वह ऐसी व्यवस्था कर जाता है कि पत्नी जीते जी मृतक समान हो जाती है. भारतीय समाज में एक विधवा की पीड़ादायक जिंदगी का सच किसी से छिपा हुआ नहीं है. शिष्ट साहित्य में लोरिकायन लोककथा की यह उदात्तता और गरिमा खोज पाना अत्यंत कठिन है.
प्रेम का अलग-अलग वर्ग चरित्र
प्रेम का अपना वर्ग चरित्र भी होता है. श्रमिक वर्ग में प्रेम या औरत पहेली नहीं होती. उच्च वर्ग में प्रेम का नाट्य और समारोह अधिक होता है. यहां प्रेम फुर्सती क्षण का आनंद है, जीने-मरने का सवाल नहीं. इसलिए वेलेंटाइंस डे अब ‘वेलेंटाइंस वीक’ में तब्दील हो गया है. चाॅकलेट और टेडीबियर तो कहने भर के उपहार होते हैं. लाखों रुपये के उपहार से प्रेम का बाजार सजता है.
अगर कबीर जीवित होते, तो उन्हें अपना दोहा संशोधित कर लिखना पड़ता ‘प्रेम जो हाट बिकाय’. बाजार ने तो प्रेम को भी नहीं बख्शा है. इस वर्ग में प्रेम की तीव्रता गिफ्ट के साइज और मूल्य पर निर्भर है. प्रेम ऐसा तत्व गिफ्ट में रिड्यूस हो गया है. कहना गलत नहीं होगा कि जैसे-जैसे समाज आधुनिक होता गया है, प्रेम के मामले में दकियानूस और पाखंडी होता चला गया है.
एक तरफ टीवी और उसके सैकड़ों चैनल के अंतर्जाल तथा विभिन्न तरह के साइट प्रेम और काम-क्रीड़ा के बहुविध चित्र को सर-ए-आम परोस रहे हैं, तो दूसरी तरफ नित नये-नये जन्म लेते खाप पंचायत प्रेम के विरुद्ध अनाप-शनाप फतवे जारी कर रहे हैं.
पूर्व का समय कदाचित प्रेम और काम को लेकर अधिक उन्मुक्त और उदार था. शिवलिंग की पूरी अवधारणा प्रेम के उन्मुक्त रूप का परिचायक है. खजुराहो के भित्तिचित्र हों या वात्स्यायन का कामसूत्र, कालिदास की रचना कुमारसंभवम् हो या जयदेव का गीतगोविंद, विद्यापति की पदावली हो या रीतिकालीन हिंदी कविता, प्रेम के नितांत अकुंठ भाव के दर्शन हमें यहां मिलते हैं.
मिथिला समाज में आज भी सोहागकक्ष में कोहबर बनाये जाते हैं, जिसमें काम-भाव को उदीप्त करने संबंधी चित्र और संदेश लिखे होते हैं. और ये सारे चित्र वर-वधू की मां, चाची, दादी और नानियां बनाया करती हैं. आदिवासी समाज में आज भी प्रेम करना अत्यंत सहज भाव है. वहां घोटुल प्रथा में पहले प्रेम करते हैं, तब विवाह पर विचार करते हैं.
प्रेम दुनिया को अधिक से अधिक हसीन बनाने का जज्बा भी है. पहाड़ पुरुष दशरथ मांझी अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार करते थे. हाॅस्पीटल दूर होने के कारण उनकी पत्नी उनसे हमेशा के लिए बिछुड़ गयीं. दशरथ मांझी ने ठान लिया कि पहाड़ को काट-काट कर हाॅस्पीटल की दूरी को कम करना है. उन्होंने अकेले ऐसा करना आरंभ कर दिया और कई किलोमीटर की दूरी कम कर दी. बाद में गांव वालों ने भी उनकी मदद की. एटीएम का आविष्कार और कैंसर इलाज की खोज प्रेम का ही सुपरिणाम है. ‘प्रेम बिछोही ना जिए जिए तो बावर होए’ प्रेम नहीं होता.
प्रेम होता है प्रेमी की याद में दुनिया के लिए कुछ कर गुजरना. प्रेमी-प्रेमिका प्रेम करने के अलावा यदि साथ मिल कर दुनिया को खूबसूरत बनाने का सपना संजोते हों, तो प्रेम का अत्यंत उदीप्त रूप सामने उपस्थित होता है.
(लेखक बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में िहंदी िवभाग के अध्यक्ष हैं़)
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