
सियाचिन ग्लेशियर पर हिमस्खलन के बाद बर्फ में दबे भारतीय सेना के जवानों को वहां से निकालने में 150 जवानों, दो क्रेनों, रडार के साथ-साथ डॉट और मिशा नाम के कुत्तों की मदद ली गई.
समचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ अधिकारियों का कहना है कि डॉट और मिशा ने इन अभियान में ज़बरदस्त काम किया. इन कुत्तों को इस तरह के अभियान के लिए प्रशिक्षित किया गया है.
इसी कार्रवाई में लांस नायक हनमनथप्पा क़रीब 6000 मीटर की ऊंचाई पर आठ मीटर बर्फ के भीतर ज़िंदा मिले.
तीन फ़रवरी को हुए हिमस्खलन में 800×400 फ़ीट की बर्फ की एक दीवार के नीचे भारतीय सेना के 10 जवान दब गए थे.
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सियाचिन को दुनिया का सबसे ऊंचा लड़ाई का मैदान माना जाता है.

हिमस्खलन के मलबे में बर्फ के कुछ टुकड़े एक छोटे कमरे के आकार के थे. यह मलबा 800×1000 मीटर के दायरे में फ़ैला था.
राहत और बचाव में लगी टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती ब्लू आइस को 25-30 फ़ुट तक तोड़ना था. ब्लू आइस कंक्रीट से भी अधिक मज़बूत होता है.
इस अभियान में ग्लेशियर में काम करने लिए अभ्यस्त 150 सैनिकों ने घटनास्थल पर पहुंचकर दिन-रात काम किया.

सियाचिन में दिन का औसत तापमान शून्य से क़रीब 30 डिग्री सेल्सियश नीचे होता है. रात में यह शून्य से 55 डिग्री सेल्सियश नीचे तक चला जाता है.
घटनास्थल पर मेडिकल टीम और उपकरणों को पहुँचाने के अलावा जवानों को घटनास्थल पर ही इलाज करने के लिए एक मेडिकल पोस्ट बनाई गई.
इस अभियान में खुदाई करने वाले और पहाड़ों में सुराख करने वाले उपकरण और बिजली से चलने वाली आरी की भी मदद ली गई.
इनके अलावा बहुत गहराई में भेदने वाले रडार की भी मदद ली गई. यह रडार 20 मीटर की गहराई में धातु के टुकड़ों, गरमी के संकते और रेडियो सिगनल को पकड़ने में सक्षम है.

इस तरह के उपकरणों का प्रयोग कर बचावकर्मी उस स्थान का पता लगा पाए, जहाँ खुदाई करनी थी.
इस दौरान तेज़ हवाओं और बर्फीले तूफ़ान की वजह से काफी परेशानी हुई.
लांस नायक हनमनथप्पा को ज़िदा देख राहत और बचाव के काम में जुटे जवानों में नई ऊर्जा का संचार हुआ.
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