
4G स्मार्टफोन ख़रीदने के बाद क्या आपने देखा है कि आपके स्मार्टफोन पर टेलीकॉम ऑपरेटर के सिग्नल के साथ 4G लिखा होता है या LTE?
4G मोबाइल डेटा टेक्नोलॉजी का एक ख़ास तरीका है जिसे टेलीकॉम स्टैंडर्ड की अंतरराष्ट्रीय संघ, ITU ने मान्यता दी है.
‘लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन’ या LTE एक और तरीक़ा है जिसमें आपको बढ़ते ब्रॉडबैंड स्पीड का फायदा मिलता है.
4G के बारे में ITU ने क़रीब आठ साल पहले स्टैंडर्ड तय किया था.
ITU के स्टैंडर्ड के मुताबिक इसमें मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों के कनेक्शन 100 एमबी प्रति सेकेंड की रफ़्तार से कनेक्ट होने चाहिए.
अगर आप मोबाइल हॉटस्पॉट इस्तेमाल करते हैं तो इसे एक जीबी प्रति सेकेंड की रफ़्तार की कनेक्टिविटी मिलनी चाहिए.

लेकिन अपने स्मार्टफोन पर आपको हमेशा ऐसी रफ़्तार मिलती नहीं है.
इसीलिए ख़ास कर बड़े शहरों में, स्मार्टफोन पर आपको जो रफ़्तार मिलती है वो बहुत कम होती है.
टेलीकॉम कंपनियों ने कई बार अपने विज्ञापनों में अपनी सर्विस को 4G LTE का नाम दिया है.
इससे उन्हें 4G की रफ़्तार दिए बिना 4G सेवा को लोगों को बेचने का मौका मिल गया.
कभी-कभी आपको बेहतर रफ़्तार ज़रूर मिलती है, लेकिन हर समय आपका इंटरनेट फर्राटे से नहीं काम करता है.
वोडाफोन और आइडिया ने कई शहरों में अब 4G सर्विस लॉन्च कर दिया है.

एयरटेल कई शहरों में पहले से ही अपनी सर्विस चला रहा है.
अब सबको इंतज़ार रिलायंस जिओ का है जो अगले दो महीने में ग्राहकों को अपना सर्विस बेचना शुरू कर देगी.
इन सभी कंपनियों को आपको मोबाइल इंटरनेट सर्विस बेचने की जल्दी है. इंटरनेट की रफ़्तार? वो, अब तक, एक अलग कहानी है.
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