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सेना में भ्रष्टाचार की सेंध? : सैन्य बलों में जासूसी और घपले की खबरों से बढ़ रही चिंता
भारतीय सशस्त्र सेनाएं हमारी सीमाओं की प्रहरी हैं. देश के भीतर विपदा, सामाजिक तनाव, आतंकी हमला और अस्थिरता की स्थितियों में वह हमारा बड़ा सहारा होती हैं. उनके त्याग, बलिदान और समर्पण की कहानियां किंवदंतियां बन चुकी हैं. इन्हीं कारणों से उन्हें अतिशय आदर के साथ देखा जाता है. ऐसे में, हाल के वर्षों में […]
भारतीय सशस्त्र सेनाएं हमारी सीमाओं की प्रहरी हैं. देश के भीतर विपदा, सामाजिक तनाव, आतंकी हमला और अस्थिरता की स्थितियों में वह हमारा बड़ा सहारा होती हैं. उनके त्याग, बलिदान और समर्पण की कहानियां किंवदंतियां बन चुकी हैं. इन्हीं कारणों से उन्हें अतिशय आदर के साथ देखा जाता है.
ऐसे में, हाल के वर्षों में सशस्त्र बलों में भीतर से आती जासूसी या भ्रष्टाचार की खबरें न सिर्फ सैन्य सेवाओं की छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को लेकर चिंताएं भी बढ़ा रही हैं. एक तरफ हमारे सैनिक अपनी जान की बाजी लगा कर देश और नागरिकों की रक्षा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सेनाओं में घुस आये कुछ लोग अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं. दुर्भाग्य से इनमें शीर्ष पदों पर बैठे कुछ अधिकारी भी शामिल पाये जा रहे हैं. इस समस्या के विविध पहलुओं के विश्लेषण पर आधारित है आज का समय…
केस 1
िचंता बढ़ानेवाले कुछ चुिनंदा मामले
पठानकोट हमले में भीतर का मददगार?
पिछले माह पठानकोट एयर बेस पर हुए हमले के कुछ दिनों बाद सूत्रों के हवाले से यह दावा किया गया कि इसमें भारतीय वायुसेना के एक स्टाफ की भी हिस्सेदारी थी. खबरों में दावा किया गया कि एक एयरमैन ने एक पाकिस्तानी महिला को 2014 में एयर बेस से जुड़ी कुछ जरूरी सूचनाएं मुहैया करायी थी. इसकी एवज में उन्हें रकम भी हासिल हुई थी. इसके तार अन्य आर्मी बेस से भी जुड़े पाये गये और ग्वालियर, बठिंडा व जैसलमेर से भी कई गिरफ्तारियां हुईं. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस हमले में बेस पर तैनात दो लोग शामिल हो सकते हैं.
इस आतंकी हमले में छह आतंकवादी शामिल थे, पर उनमें से सिर्फ चार की ही पहचान हो सकी है. सेना ने भी चार हमलावरों के ही घुसने की बात कही थी. इसलिए ऐसा संदेह जताया जा रहा है कि मारे गये अन्य दो हमलावर एअरबेस के भीतर के हो सकते हैं. ठिकाने के भीतर चार एके-47 राइफलें बरामद हुई हैं. एनआइए टीम हमले के समय मौजूद सभी सैनिकों और अन्य लोगों की जांच कर रही है. माना जा रहा है कि उस दौरान वहां करीब साढ़े तीन हजार लोग थे, जिनमें कर्मचारी और उनके परिवार के लोग शामिल हैं.
केस 2
दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की संपत्ति और कमाई की जांच पहली बार सीबीआइ से
पिछले महीने रक्षा मंत्री ने दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की संपत्ति और कमाई की जांच सीबीआइ से कराने का निर्देश दिया है.
मेजर जनरल अशोक कुमार और मेजर जनरल सुरेंदर सिंह लांबा पर घूस देकर पदोन्नति पाने का आरोप है. यह पहला मौका है जब सरकार को कई पदकों से सम्मानित वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के विरुद्ध जांच का आदेश देना पड़ा है.
खबरों के अनुसार, इस प्रकरण में पूर्व सैन्य सचिव लेफ्टिनेंट जनरल आर भल्ला की जांच भी की जा रही है, जिनके कार्यकाल में इनकी प्रोन्नति की संस्तुति की गयी थी. सेना में प्रत्येक 100 में से तीन-चार अधिकारी ही मेजर जनरल के स्तर तक पहुंच पाते हैं. सैन्य सेवाओं में प्रोन्नति का निर्णय सैन्य सचिव शाखा द्वारा किया जाता है.
केस 3
बंगाल में कार्यरत राइफलमैन पकड़ा गया
दिसंबर, 2015 में पश्चिम बंगाल से भारतीय सेना में कार्यरत एक राइफलमैन को गिरफ्तार किया गया. रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता के हवाले से खबरों में बताया गया कि फरीद अहमद नामक इस सैनिक पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिए काम करने का आरोप है.
केस 4
सेना का अधिकारी जासूसी में गिरफ्तार
अगस्त, 2014 में भारतीय सेना के एक अधिकारी को फेसबुक के माध्यम से दोस्त बनी एक पाकिस्तानी महिला को संवेदनशली सूचनाएं मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. आर्टिलियरी सेंटर में कार्यरत एक नायक सूबेदार को हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया. खबरों के मुताबिक, एक पाकिस्तानी महिला ने इस अधिकारी को गलत नाम से अपने जाल में फंसा लिया और फेसबुक व इमेल के माध्यम से महत्वपूर्ण सूचनाएं मुहैया करायी.
केस 5
पदक के िलए रची सािजश!
वर्ष 2003 में जुलाई से नवंबर के बीच सियाचिन में तैनाती के दौरान गोरखा राइफल्स रेजिमेंट की पांचवीं बटालियन ने ग्लेशियर में मारे गये पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर दिखायी थी, ताकि उसे अधिक वीरता पदक मिल सकें. रिपोर्टों के मुताबिक कथित रूप से मारे गये करीब 52 पाकिस्तानी सैनिकों में से एक-तिहाई संख्या भारतीय सैनिकों की हो सकती है. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, तत्कालीन राष्ट्रपति और सशस्त्र बलों के सेनापति एपीजे अब्दुल कलाम की सियाचिन यात्रा के दौरान इस तथ्य को उनसे छुपाया गया था.
केस 6
पूर्व सैनिकों को स्वास्थ्य लाभ देने में घपले
का संदेह
जून, 2015 में चर्चा में आयी पूर्व सैनिकों को स्वास्थ्य लाभ देने की योजना में घपले के संदेह की खबर ने रक्षा मंत्रालय की नींद उड़ा दी थी. यूपीए सरकार के कार्यकाल में इन लाभों को देने के लिए 400 करोड़ रुपये का ठेका एक निजी कंपनी को दिया गया था. एक्स-सर्विसमेन कंट्रिब्यूटरी हेल्थ स्कीम नामक इस योजना में 43 लाख से अधिक सेवानिवृत सैनिकों को स्वास्थ्य लाभ दिया जाता है.
सेना के जिन चार अधिकारियों ने इस कथित घपले को उजागर करने की कोशिश की थी, उनके साथ सेना में बहुत बुरा व्यवहार किये जाने के आरोप हैं. कर्नल विवेक भट्ट और लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष त्यागपत्र दे चुके हैं तथा कर्नल बलराज सदाना और ब्रिगेडियर राजन जामवाल को सेवा से हटा दिया गया है.
आधिकारिक शिकायत लिखनेवाले एक अन्य कर्नल रैंक के अधिकारी को वरिष्ठ अधिकारियों की आज्ञा न मानने के आरोप में विदा कर दिया गया है. इस अधिकारी ने सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग से विभाग में अनियमितताओं तथा निजी ठेकेदारों से वरिष्ठ अधिकारियों के मिलीभगत की शिकायत की थी. विडंबना है कि सेना ने इन आरोपों की जांच का कोई प्रयास नहीं किया है. मामले के सार्वजनिक होने और सरकार के पास शिकायत जाने के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने जवाब-तलब किया है.
केस 7
हेलीकॉप्टरों की खरीद में कथित भ्रष्टाचार
वर्ष 2013 के शुरू में अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टरों की खरीद में कथित भ्रष्टाचार के मामले की संसदीय जांच शुरू हुई थी जिसमें कई राजनेताओं, नौकरशाहों और सैन्य अधिकारियों के शामिल होने की बात सामने आयी थी. सीबीआइ ने 11 लोगों के खिलाफ प्रारंभिक प्राथमिकी दर्ज की थी जिसमें पूर्व वायुसेनाध्यक्ष चीफ मार्शल एसपी त्यागी और उनके रिश्तेदारों का नाम था.
केस 8
वीके सिंह के बयान से सनसनी
मार्च, 2012 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने आरोप लगाया था कि हथियारों के धंधे में लगे एक पूर्व अधिकारी ने उन्हें कमतर गुणवत्ता के 600 वाहन खरीदने की अनुमति देने के एवज में 14 करोड़ के रिश्वत की पेशकश की थी. महीनेभर बाद जनरल सिंह ने उक्त अधिकारी की पहचान सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जेनरल तेजिंदर सिंह के रूप में की.
उन्होंने कहा था कि उस अधिकारी ने उनसे कहा था कि ‘आपसे पहले भी लोगों ने पैसे लिये हैं और आपके बाद भी लेंगे’. हालांकि इस आरोप के खिलाफ तेजिंदर सिंह ने पूर्व सेनाध्यक्ष के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा भी दर्ज कराया था.
केस 9
सुकना जमीन घोटाला
वर्ष 2011 में सैन्य अदालत ने सुकना जमीन घोटाले में पूर्व सैन्य सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अवधेश प्रकाश को दोषी ठहराया था. इस घोटाले में पश्चिम बंगाल के सुकना सैन्य ठिकाने से सटे 71 एकड़ जमीन को 2008 में अवैध ढंग से एक निजी शैक्षणिक ट्रस्ट को हस्तांरित करने का आरोप था. इससे पहले एक अन्य अधिकारी और 33 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीके रथ को भी इस मामले में दंडित किया गया था, जिन्हें बाद में अदालत ने आरोपमुक्त कर दिया था.
केस 10
आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला
मुंबई के आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले में सीबीआइ ने जिन लोगों पर आरोप मढ़ा है उनमें ब्रिगेडियर, डिफेंस इस्टेट ऑफिसर, दो मेजर जनरल (सभी सेवानिवृत) शामिल हैं. इस सोसाइटी से लाभ उठानेवालों में दो पूर्व सेनाध्यक्ष तथा पूर्व नैसेनाध्यक्ष भी थे. हालांकि नाम सार्वजनिक होने के बाद इन अधिकारियों ने अपने फ्लैट वापस कर दिये थे.
केस 11
गोपनीय फाइलों की चोरी का मामला
हथियारों के दलाल अभिषेक वर्मा पर कई सेवानिवृत्त और सेवारत सैन्य अधिकारियों तथा रक्षा मंत्रालय के कर्मचारियों के साथ मिलकर वर्ष 2009-10 तथा 2011-12 में वायुसेना की खरीद योजना से जुड़ी संवेदनशील और गोपनीय फाइलों की चोरी का मामला बहुत चर्चित हुआ था. जिन अधिकारियों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, उनमें दो नौसेना के कमांडर और एक वायुसेना का विंग कमांडर था.
सिविलियन के जरिये खेला जा रहा सेना में जासूसी का खेल
जीडी बख्शी
रिटायर्ड मेजर जनरल
देश में सेना ही ऐसी संस्था है, जो सबसे अधिक ईमानदारी के साथ काम कर रही है. ठोस तथ्यों के बिना उस पर कोई दोष मढना सही नहीं है. जहां तक पठानकोट प्रकरण में अंदर का कोई मददगार होने की खबरें हैं, तो इसकी तह में जाने पर इतना स्पष्ट हो जाता है कि सिविलन कर्मचारी, जो कैंप की दीवार और लाइट आदि के मेंटीनेंस का काम देखते थे, उनमें से कुछ लोगों का इस्तेमाल किया गया. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पंजाब में ड्रग्स तस्करी का धंधा है.
खासकर छोटे तबके के लोगों का इस धंधे में बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. एक साजिश के तहत पूरी युवा पीढ़ी को बरबाद कर दिया गया है. ड्रग्स के कारोबार में फंसा कर कर्मचारियों से लाइटों को ऊपर करवा दिया गया और तारों को कटवा दिया गया. इसमें तो सेना का कोई दोष नहीं है. सारा खेल सिविलियन लोगों के जरिये खेला गया. कैंप में लाइट आदि की देखरेख का काम इन्हीं के जिम्मे होता है.
ऐसे ज्यादातर मामलों में सेंधमारी या सूचना के लीक होने की समस्याएं सिविलन लोगों की वजह से ही होती रही हैं. इसमें सेना को दोष देना गलत है. जो सेना देश की रक्षा के लिए लड़ रही है और मर रही है, उस पर बिना किसी साक्ष्य के दोष देना सही नहीं है. जब सेना के लोग मरते हैं, तभी लोगों को सेना पर गर्व महसूस होता है. ऊफा वार्ता के बाद पाकिस्तान के गलत रवैये के कारण ही बातचीत पटरी से उतर गयी. हमारे एयरबेस पर हमला हुआ. हमारे सात जवान मारे गये, 20 लोग घायल हुए और बोला गया कि वार्ता तो चलती रहेगी. इन्हें शांति की जरूरत है. मैं पूछना चाहता हूं कि क्या सेना के लोगों की जान दो टके की है?
सेना में जहां तक भ्रष्टाचार का मामला है, तो ऐसे मामले यहां अन्य संस्थाओं के मुकाबले 100वां हिस्सा भी नहीं है. कभी-कभार कहीं कोई भ्रष्टाचार का मामला आता भी है, तो जल्द-से-जल्द उसमें कठोर कार्रवाई की जाती है. यदि भ्रष्टाचार या किसी अन्य अापराधिक मामलों में कोई पकड़ा जाता है, तो उसके लिए मजबूत मिलिट्री जस्टिस सिस्टम है. इसके तहत कुछ महीनों में ही उम्रकैद आदि की सजा दे दी जाती है.
हमें ध्यान रखना होगा कि सेना में हमारे समाज से ही लोग भरती होकर आ रहे हैं. जब हमारा समाज अकंठ भ्रष्टाचार में डूबा है, तो आखिर कहां से पूरी तरह ईमानदार बंदे लाये जायेंगे. लेकिन, जब ऐसे लोग हत्थे चढ़ते हैं, तो उन पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाती है.
फौजी कानून से कोई आसानी से नहीं बच सकता है. दूसरी ओर, शासन-प्रशासन में देखें तो भ्रष्टाचार के मामलों में किसी नेता या ब्यूरोक्रेट को जल्दी सजा नहीं मिलती, जबकि मिलिट्री में जनरल कोर्ट मार्शल जैसे कानून भी हैं.
यदि आप वाकई में भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं, तो सबसे पहले स्कूलों में नैतिकता का पाठ पढ़ाना शुरू करना पड़ेगा. सीबीएसइ के पाठ्यक्रम में सच बोलो, झूठ मत बोलो, डकैती मत करो, पराई स्त्री पर नजर मत डालो आदि की सीख देनेवाला पाठ दिखता है कहीं आपको? सबसे पहले हमें अपने स्कूलिंग सिस्टम को सही करना होगा. शादी के लिए लोग जाते हैं तो पूछा जाता है कि इनकम क्या है और ऊपर से क्या आता है. एक फौजी से पूछा गया तो उसने कहा साहब ऊपर से तो गोले आते हैं.
फौज के 80 प्रतिशत लोग लड़ाका फौजों में हैं. ये लोग 24 घंटे अपनी जान पर खेल रहे हैं. इनके पास कोई मौका नहीं है कि वह पैसा मारे और भ्रष्टाचार करें. पैसे के लेन-देन का जहां तक मामला है, तो लॉजिस्टक जैसे कुछ डिवीजन हैं, जहां लोगों को सप्लाई आदि के लिए सिविलियन लोगों के साथ डील करनी होती है. सप्लाई कोर, एमइएस, मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज, जहां सिविलियन के लोगों की पहुंच है, इसमें बाहर से भ्रष्टाचार होने का खतरा रहता है. इसमें कभी-कभार जो हाथ चढ़ता है, उसको अच्छी तरह से सजा दी जाती है. उसको किसी भी सूरत में बक्शा नहीं जाता है. अभी एनडीए में लेफ्टिनेंट जनरल साहब पकड़े गये. उन पर कार्रवाई हो रही है. जल्द ही हमें यह सुन कर बड़ी खुशी होगी कि वह जेल भुगत रहे हैं.
आमतौर सामने आनेवाले भ्रष्टाचार के मामलों में 10-10 साल तक सजा नहीं मिल पाती है, लेकिन मिलिट्री जस्टिस सिस्टम काफी सख्त है. इसलिए सेना बिल्कुल अलग है. सेना में लोग देश सेवा की भावना लेकर आते हैं, पैसे बनाने के लिए नहीं आते हैं. एक ब्यूरोक्रेट को गुवाहाटी में रहने के लिए 70 हजार रुपये दिये जाते हैं, जबकि सेना में दिया जानेवाला वेतन बहुत कम होता है. अभी दो-तीन दिन पहले ही हमारे 10 जवान सियाचिन में मर गये, उनको सरकार एक टका नहीं देगी.
कुल मिलाकर, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि देश में तुलनात्मक रूप से सबसे ईमानदार संस्था फौज ही है. सेना में भरती भारतीय समाज से हो रही है, जहां भ्रष्टाचार जड़ों तक पहुंच चुका है. ऐसे में कुछ आ ही जाते हैं, जो सप्लाई कोर, ऑर्डिनेंस कोर आदि में सिविलियन के साथ डीलिंग में कुछ हेराफेरी कर लेते हैं.
गुप्तचर का आदमी हमेशा ऐसी किसी कमजोर कड़ी की तलाश में रहता है. उसका यही लक्ष्य रहता है कि किसी तरह हम शिकार फंसाएं और ब्लैकमेल करें. जासूसी तो बहुत पुरानी प्रक्रिया है, लेकिन पकड़े जाने पर ढंग से कार्रवाई होती है.
(ब्रह्मानंद मिश्र से बातचीत पर आधारित)
िरपोर्ट : रक्षा खरीद में भारत में घपले की आशंका बहुत अधिक
अपने सकल घरेलू उत्पादन का 2.4 फीसदी रक्षा बजट पर खर्च करनेवाला भारत दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े खरीददारों में शामिल है. पिछले दशक से इस बजट में 147 फीसदी की बढ़त हुई है.
सरकारी पारदर्शिता और भ्रष्टाचार का अध्ययन करनेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा नवंबर, 2015 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की बहुत आशंका है. एशिया प्रशांत क्षेत्र के 17 देशों की इस अध्ययन सूची में भारत का स्थान आठवां है और इसे ‘डी’ श्रेणी में रखा गया है. चीन, पाकिस्तान और श्रीलंका का स्थान भारत से नीचे है. इस सूची में शीर्ष पर न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और जापान हैं.
ग्लादेश भी भारत से ऊपर है. रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि ‘भारत एकमात्र लोकतांत्रिक देश है, जहां इंटेलिजेंस एजेंसियों पर विधायिका को निगरानी के अधिकार नहीं हैं तथा इंटेलिजेंस एजेंसियों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर किये गये ‘गोपनीय’ खर्च का लेखा-जोखा संसद नहीं करती है’.
सेना से जुड़ी खबरों में गंभीर पड़ताल और ठोस तथ्य जरूरी
अजय लेले
रक्षा मामलों के जानकार
इस साल के दूसरे ही दिन यानी दो जनवरी को पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले की जांच को लेकर अब खबरें आ रही हैं कि आतंकियों के कैंप में घुसने में कैंप के अंदर का आदमी भी मददगार रहा है. ऐसी खबरों में कितनी सच्चाई है, मुझे नहीं मालूम, लेकिन फिलहाल मैं ऐसी खबरों पर यकीन नहीं करता, क्योंकि इनके आधिकारिक स्रोत के बारे में कुछ पता नहीं है. जब तक सेना खुद आधिकारिक रूप से सच बतायेगी नहीं, तब तक हवा में उड़ती खबरों के बारे में कुछ कहना मेरे लिए लाजमी नहीं होगा. हालांकि, हमारे लिए ये खबरें चिंता का विषय जरूर हैं, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि ऐसी खबरें आ कहां से रही हैं.
तथ्य यह भी है कि किसी भी संस्था में आधिकारिक व्यक्तियों के अलावा बहुत से ऐसे सिविलियन एलिमेंट (गैर-सांस्थानिक नागरिक) भी होते हैं, जो संस्था के लिए जरूरी होते हैं और संस्था से संबंधित कई जरूरी दैनिक कामों को अंजाम देते हैं. इसी तरह सेना में भी कुछ ऐसे लोगों की जरूरत होती है, जो सैन्य कार्यों के अलावा विभिन्न दैनिक कार्यों की अपनी जिम्मेवारी निभा सकें. देश के कई इलाकों में ऐसे कुछ सिविलियन संदिग्ध गतिविधियों में शामिल पाये गये हैं.
इसके अलावा कई बार मीडिया बहुत सी ऐसी खबरों को भी लोगों को दिखाता-पढ़ाता रहता है, जिनका कोई ओर-छोर नहीं होता. मीडिया को ध्यान रखना चाहिए कि यह कोई सिनेमा का गॉसिप नहीं है, बल्कि सेना की साख का सवाल है, देश की रक्षा-सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील और गंभीर मामला है, इसलिए इस बारे में बिना गंभीर पड़ताल और ठोस तथ्यों के साथ ही रिपोर्टिंग होनी चाहिए.
(बातचीत पर आधारित)
देश की सुरक्षा को लेकर ईमानदारी जरूरी
सी उदयभास्कर
रक्षा विशेषज्ञ
हमारे यहां एक कहावत है कि ‘यदि घर में चोर है तो शिवजी भी उसे पकड़ नहीं सकते’. जहां तक सेना में आतंकियों के मददगार आंतरिक घटकों या देश में स्पीलर सेल वगैरह की बात है, जब ऐसा पैटर्न बनता है तो सुरक्षा को लेकर चिंतित होना स्वभाविक है. एक प्रकार की ईमानदारी सुरक्षा को लेकर होनी चाहिए. ऐसी समस्याओं को रेखांकित करना जरूरी है. लेकिन, बुनियादी बात यह है कि जब हम अंदरूनी सुरक्षा से जुड़ी कोई बात करते हैं तो तथ्यों पर विशेष रूप से गौर करना जरूरी है.
सेना में हर प्रकार की गलती के लिए कड़ी सजा तय है
अजय साहनी
रक्षा विशेषज्ञ
पठानकोट आतंकी हमले के पहले एयरबेस कैंप में आतंकियों के घुसने में सेना का कोई जवान शामिल था, इसकी अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है. इस संबंध में जो भी जांच एजेंसियां जांच कर रही हैं, उन्होंने भी अभी तक ऐसा कुछ नहीं बताया है, जिससे इन खबरों पर यकीन किया जाये. इसलिए जब तक कि इस संबंध में कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आ जाती, तब तक ये सब महज अफवाहें हैं और कुछ भी नहीं.
जहां तक सेना में जासूसी की घटनाएं बढ़ने की बात है, तो वहां जासूसी होती रहती है. सुरक्षा की दृष्टि से सेना में जासूसी अभी हमारे लिए बड़ी चिंता का विषय नहीं है, यह सेना का अंदरूनी मामला है. पठानकोट जैसे एकाध हादसे से यह सोच लेना कि हमारी सेना और आतंकियों में कोई मिलीभगत है, मैं समझता हूं कि इससे सेना की छवि खराब करने जैसी बात होगी.
हां, कुछ लोग अपनी किसी मजबूरी के चलते फंस जाते हैं या आतंकियों द्वारा फंसा दिये जाते हैं, और इससे सेना की छवि को खराब करने की कोशिश की जाती है. सेना में तो किसी भी प्रकार की गलती के लिए सजा तय है.
अगर सेना का कोई जवान किसी आतंकी को मदद करता है, तो उसको सख्त सजा मिल सकती है. उसे नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है, उसका कोर्ट मार्शल हो सकता है, उसे जेल हो सकती है, यानी उसकी सजा की एक सख्त प्रक्रिया है. यह अपने आप में एक कड़ा कदम है, ताकि सेना में किसी प्रकार का भ्रष्टाचार या बड़ी गलती न होने पाये.
(बातचीत पर आधारित)
प्रतिदिन कम से कम एक घंटा ऑनलाइन रहते हैं 70 प्रतिशत किशोर
70 प्रतिशत से अधिक किशोर हर दिन कम से कम एक घंटा जरूर ऑलनाइन रहते हैं, 48 प्रतिशत किशोरों के लिए कंप्यूटर की अपेक्षा स्मार्टफोन के जरिये ऑनलाइन रहना ज्यादा आसान है. यह तथ्य सामने आया है हाल में हुए एक सर्वेक्षण में…
हा ल में जारी की गयी द टीसीएस यूथ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 71 प्रतिशत किशोरों ने यह स्वीकार किया है कि वे प्रतिदिन न्यूनतम एक घंटे का समय ऑनलाइन रहने में बिताते हैं. वहीं 31 प्रतिशत किशोर कहते हैं कि वे कभी-कभी ही लगातार एक घंटे ऑनलाइन रह पाते हैं. 30 प्रतिशत किशोरों ने एक दिन में पांच मिनट तक ऑनलाइन रहने की बात स्वीकार की है.
यह सर्वेक्षण 12 से 18 वर्ष की आयु वर्ग वाले किशाेरों की डिजिटल हैबिट्स को जानने के उद्देश्य से किया गया. इस सर्वेक्षण में यह तथ्य भी सामने आया है कि फेसबुक जैसी वेबसाइट पर ऑनलाइन रहने के दौरान लगभग 75 प्रतिशत किशोरों को दोस्तों व परिजनों द्वारा पोस्ट किये गये लिंक्स की मदद से कई मुख्य घटनाओं की जानकारी मिल जाती है.
प्रतिदिन ऑनलाइन रहनेवाले किशोरों में लगभग 43 प्रतिशत किशोरों की ऑनलाइन गतिविधियों पर उनके अभिभावक नजर रखते हैं और जरूरत पड़ने पर उनके अकाउंट चेक भी करते हैं. 82 प्रतिशत किशाेरों में स्मार्टफोन सबसे अधिक प्रयोग किया जानेवाला इलेक्ट्रॉनिक गैजेट पाया गया है. 48 प्रतिशत किशोर कहते हैं कि कंप्यूटर की अपेक्षा स्मार्टफोन के जरिए ऑनलाइन रहना ज्यादा आसान है.
सोशल नेटवर्किंग साइटों में अाज भी फेसबुक किशोरो द्वारा पसंद की जानेवाली लीडिंग वेबसाइट है. आज भी 90 प्रतिशत किशोर सोशल नेटवर्किंग के लिए इसका प्रयोग करते हैं. इसके बाद पसंद की जानेवाली सोशल नेटवर्किंग साइटों में गूगल प्लस व ट्विटर का नाम सामने आया है.
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