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गांधी मार्ग से ही मजबूत होगा देश
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भले ही हमारे बीच से 68 साल पहले जा चुके हैं, लेकिन उनका कर्म और दर्शन आज भी हमें उन तमाम चुनौतियों से मुकाबला करने का संबल प्रदान करता है, जिनसे आज देश दो-चार हो रहा है. उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता तथा हिंसा से मुक्ति के […]
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भले ही हमारे बीच से 68 साल पहले जा चुके हैं, लेकिन उनका कर्म और दर्शन आज भी हमें उन तमाम चुनौतियों से मुकाबला करने का संबल प्रदान करता है, जिनसे आज देश दो-चार हो रहा है.
उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता तथा हिंसा से मुक्ति के लिए आज दुनिया जिस रास्ते की तलाश कर रही है, गांधी के विचारों में उसकी सबसे सटीक दिशा मौजूद है. गांधी दर्शन के मूल में मौजूद सत्य, अहिंसा, सादगी, अपरिग्रह, श्रम और नैतिकता को अपना कर ही देश और दुनिया में सहयोग, सहअस्तित्व एवं समानता पर आधारित शोषणमुक्त समाज का निर्माण संभव है. आज के समय में गांधी दर्शन की प्रासंगिकता से जुड़े महत्वपूर्ण सवालों पर वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक राजीव वोरा से बात की वसीम अकरम ने…
राजीव वोरा
वरिष्ठ गांधीवादी िचंतक
– देश में जो मौजूदा समस्याएं हैं, गरीबी, बेरोजगारी, असमानता, हिंसा आदि, इनके समाधान में गांधीजी के विचारों की कितनी प्रासंगिकता रह गयी है आज के दौर में?
िजन समस्याओं का आप िजक्र कर रहे हैं, ये तमाम समस्याएं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों और समाज में हाशिये पर पड़े लोगों में ज्यादा देखने को मिलती हैं. बरसों पहले ये समस्याएं बहुत कम थीं, लेकिन आज ये ज्यादा हैं, आखिर क्यों? इसे समझने के िलए थोड़ा सा पीछे चलते हैं.
चाहे वह हािशये पर पड़ा किसान हो, चाहे वह कारीगर हो, या चाहे वह छोटा-मोटा काम करनेवाला हो, आज से कुछ पीढ़ियों पहले तक ये लोग अपनी मेहनत से काम करके इज्जत की रोटी खा सकते थे, लेकिन आज वे लोग क्यों नहीं खा सकते, यहां यह सवाल पूछा जाना चाहिए, न कि यह कि हमारे देश की जीडीपी कितनी है. गांधीजी जिस हाशिये के लोगों की उन्नति की बात करते थे, आज उसकी बात ही नहीं हो रही है. ऐसे में आज गांधीजी की प्रासंगिकता सबसे ज्यादा है. उनके विचारों पर चल कर ही इन समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है.
– प्रासंिगकता और जरूरत के बावजूद देश-समाज गांधीजी के विचारों को पूरी तरह अपनाने में विफल क्याें रहा है?
अपने शासनकाल के दौरान देश में अंगरेजों ने जिस पश्चिमी सभ्यता को भारत में फैलाना शुरू किया, उसे लेकर गांधीजी का मानना था कि यह उद्योग और तकनीक वाली आधुनिकता मूलभूत रूप से व्यक्ति का शोषण करनेवाली, समाज में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद करनेवाली और मनुष्य को अनैतिक बनानेवाली है. हिंद स्वराज में गांधीजी ने इसे लिखा भी है़ आधुनिकता वाली यह जीवन-व्यवस्था व्यक्ति को कमजोर करने के साथ ही प्रकृति का भी नाश करती है.
गांधीजी ने इसे समझा, लेकिन संपूर्ण रूप से देश-समाज में यह समझ नहीं विकसित हो पायी, जिससे पश्चिमी सभ्यता का हावी होती चली गयी और हम विफल हो गये. अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, अब से भी हम अपनी तैयारी शुरू कर लें और गांधीजी के बताये रास्ते पर चलने की शुरुआत कर दें, तो मैं समझता हूं कि हमारा देश बहुत जल्द ही हर स्तर पर मजबूत हो जायेगा.
– आज के दौर में, जब हम आधुनिक जीवन-पद्धति को ही अपनाये हुए जी रहे हैं, जो पूरी तरह तकनीकों पर निर्भर है, क्या इस तकनीकी दौर में गांधीजी के विचारों को नये सिरे से समझने की जरूरत है?
आधुनिक जीवन-पद्धति के रास्ते पर चलने के लिए तकनीक पर निर्भरता जरूरी है, ऐसा कहने का आधार क्या है? रूस और यूरोप ने भी आधुनिक जीवन-पद्धति पर जीने के लिए अपनी आधारभूत संरचनाओं पर बहुत काम किया है.
गांधीजी के अलावा भी भारत के कुछ महान बौद्धिकों ने इस बात को माना है कि आधुनिक होने के लिए तकनीक जरूरी नहीं, बल्कि नैतिक और नवीन सोच का होना जरूरी है. इसका दूसरा जो पक्ष यह था कि कुछ लोग यह मानते थे कि हमें इस सभ्यता (पश्चिमी) का वरण कर लेना है. तकनीक, विज्ञान, उद्योगवाद, उसकी शिक्षा पद्धति और उसकी कुछ संस्कृति का हमें वरण कर लेना है और भारतीय सभ्यता को नकारना है. पंडित नेहरू से गांधीजी का सारा संवाद इन्हीं बातों को लेकर है.
यहीं पर एक तीसरा पक्ष भी था, जो सोचता था कि हमें पश्चिमी आधुनिकता और भारतीय परंपरा के संयोजन से बननेवाली मिल-जुली नीति पर चलना है. राजाराम मोहन राय, विवेकानंद जैसे लोग इस तीसरे पक्ष में आते हैं, जिन्होंने इस संयोजन के रास्ते आगे बढ़ने की बात की. लेकिन जब आप दो चीजों का संयोजन करते हैं, तो आप एक मिथ्या चेतना (फाल्स कंसेसनेस) का निर्माण करते हैं, जो कि दार्शनिक रूप से गलत है. और इसी मिथ्या चेतना पर चलते हुए देश आजादी के सात दशक पूरा करने को है.
बीते साठ साल में आधुनिकता लाने के बावजूद, लोकतंत्र के बावजूद, लोगों के अपने अधिकार आने के बावजूद, संपूर्णरूप से भारत को आधुनिक बनाने के बावजूद भी आज से साठ साल पहले देश में जितनी गरीबी थी, उससे कहीं ज्यादा आज है. तो फिर इस आधुनिकता और तकनीक का क्या फायदा, जब सामाजिक रूप से, आर्थिक रूप से, शैक्षिक रूप से, वैचारिक रूप से देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी कमजोर बना हुआ है?
– भारत युवाओं का देश कहा जाता है. युवाओं का मुख्यरूप से रुझान आधुनिक तकनीक की ओर है. उन्हें गांधी मार्ग से कैसे जोड़ा जा सकता है?
मैं गांधीजी के हिंद स्वराज का प्रयोग करता हूं. मैं जहां भी जाता हूं, युवा मुझसे जुड़ ही जाते हैं. सही मायनों में आज के दौर में देश के युवाओं के साथ सही बात करनेवाला कोई नहीं है.
गांधीजी को सही ढंग से रखनेवाला कोई नहीं है, जो युवा मन को गहरे तक प्रभावित कर सके. आज हमारे युवाओं में कुछ अनिश्चितता है, क्योंकि वह पढ़ तो रहा है, लेकिन उसे इस बात की चिंता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरा क्या होगा. पूरा का पूरा भारतीय समाज अनिश्चितता और अस्थिरता को लिये जी रहा है, लेकिन हम कह रहे हैं कि भारत प्रगति कर रहा है. जहां पर भी अनिश्चितता और अस्थिरता होती है, वहां हिंसा अपना प्रभाव जमाने लगती है.
ऐसे में युवाओं को गांधी मार्ग पर चलने के लिए हमें उन्हें वैचारिक रूप से मजबूत करना होगा, ताकि वे अनिश्चितता और अस्थिरता का मुकाबला करते हुए देश-समाज की दशा-दिशा बदल सकें. युवा दो चीजों से जल्दी प्रभावित होते हैं- पहला शौर्य से, जो उनके जोशवान होने का परिचायक है और दूसरा, बौद्धिक जवाब से, जो आसानी से उनकी बुद्धि में उतरे. दुनियाभर में जो कुछ भी घट रहा है, उसका विश्लेषण करके युवाओं की स्मृति में उस घटना की वास्तविकता को सही-सही तरीके से रखना बहुत जरूरी है, ताकि उनमें किसी प्रकार का द्वंद्व न पनपने पाये.
– एक गांधीवादी चिंतक के रूप में मौजूदा भारत में ऐसी कौन सी बातें हैं, जो आपको चिंतित करती हैं और कौन सी ऐसी बातें हैं, जो आपको खुशी देती हैं?
हमारे आधुनिक भारत में दो काम बहुत अच्छे हुए हैं. पहला, अपने देश में जो अछूत थे, जिनको हिंदू समाज को नीचे गिरा दिया था, उन्हें समाज के हाशिये पर फेंक दिया था, उनमें अात्मविश्वास आया और वे अपने पैरों पर खड़े होना सीखने लगे. यह एक आधुनिक भारत के लिए और बड़े लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी बात है. एक बार आदमी का आत्मविश्वास जग जाये कि मैं दूसरे के बराबर हूं और मैं अपने जन्म की वजह से किसी से हीन नहीं हूं, तो फिर वह बड़ी से बड़ी बाधा भी पार कर जाता है.
हमारे हिंदू समाज ने उनके दिमाग में सदियों से यही भर दिया था कि वे समाज के हाशिये पर रहने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि वे नीच लोग हैं. यह हिंदू समाज का बहुत बड़ा पाप था या अभी भी कहीं-कहीं पर है. इस व्यवस्था से उन्होंने खुद को निकाला. लेकिन आज वंचितों और अछूत माने जानेवाले लोगों में विश्वास जगा है और वे हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहे हैं और वंचना का मुकाबला अपनी काबिलियत से कर रहे हैं. एक सभ्य और लोकतांत्रिक भारत के लिए पिछले साठ-सत्तर सालों में एक बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है, जिससे मुझे बहुत खुशी मिलती है.
आजादी के बाद का दूसरा बड़ा काम मुझे यह लगता है कि गांधीजी का संपूर्ण वांग्मय (सौ खंडों में) को नेहरू से लेकर अब तक देश की सरकारों ने संग्रहण किया. इस वांग्मय में हिंदुस्तान का पूरा संघर्ष दर्ज है, जो गांधीजी के नेतृत्व में हुआ या गांधीजी ने आधुनिकता के साथ, ब्रिटिश साम्राज्य के साथ, भारतीय समाज के साथ, जो संघर्ष किया, वह सब कुछ दर्ज है. भारत की लड़ाई कई स्तर पर थी, एक तरफ अंगरेजों से थी, दूसरी तरफ अपने अव्यवस्थित और असमान समाज से थी और तीसरा अपने अंदर की बुराईयों से लड़ने से थी. पिछले सौ-दो सौ सालों में जो दुनियाभर में आधुनिकता ने अपना पैर पसारा, तो उसने कई तरह की बुराईयां भी दीं. उसने मनुष्य को अनैतिकताओं में जकड़ लिया और उन्हें हिंसक बनाया है. इस चीज को समझने और इसके खिलाफ लड़ने का तरीका बतानेवाले पूरी दुनिया में एकमात्र गांधीजी ही हैं.
इसके लिए उन्होंने जितनी भी कोशिशें की, जिस तरह से विश्लेषण किया, जिस तरह से आधुनिकता से जन्म लेनेवाली बुराइयों के चेहरे को सामने लाया, अपने समाज और परंपराओं की मौलिकता को समझाया, वह सब गांधीजी के दौर में ही संभव हुआ, इसकी मुझे बहुत ही खुशी है. इसलाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने भी भौतिकवादी आधुनिक सभ्यता को शैतान की संज्ञा दी है और इसी बात को हिंदू धर्म-परंपरा में घोर कलयुग कहा गया है.
मुझे इस बात का दुख है कि हम इस बात को समझ ही नहीं पा रहे हैं कि हमारे देश-समाज में यह भौतिकवादी आधुनिक सभ्यता एक मूलभूत राक्षस की तरह है, जिसके खिलाफ लड़ने की आंतरिक, आध्यात्मिक और धार्मिक ताकत किसी में है, तो हिंदू धर्म और इसलाम धर्म में है. भौतिकवाद से मनुष्य को ऊपर उठाने की ताकत इन्हीं दोनों धर्मों में है. जाहिर है, भौतिकता से ऊपर उठने की प्रक्रिया नैतिक बनने की प्रक्रिया है. इसी का पूरा धर्मशास्त्र ‘गांधी वांग्मय’ है, जिसका पूरा संकलन भारत सरकार ने करवा रखा है. मनुष्य जीवन को नैतिक बनाने के लिए और समाज को वैचारिक उच्चता देने के लिए गांधीजी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया और दुनिया को एक अाधुनिक धर्मशास्त्र दिया, जिसमें सभी धर्मों की मूलभूत नैतिक तत्व मौजूद हैं.
मैं जहां भी जाता हूं, वहां सबसे एक सवाल जरूर करता हूं. वह सवाल है- हमारे सामने जो एक नया अौर आधुनिक भारत खड़ा हुआ है, इसमें कहीं कोई हमारी तस्वीर दिखती है क्या? आज तक मुझे ऐसा कोई शख्स नहीं मिला, जो यह कह सके कि इस नये भारत में मेरी तस्वीर दिखती हो. जिस दिन यह तस्वीर दिख जायेगी, उस दिन भारत दुनिया का सबसे बेहतरीन लोकतंत्र होगा. लेकिन इस तस्वीर को देखने के लिए गांधीजी के रास्ते पर चलना ही हाेगा,
– गांधीजी को उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर याद करने का तरीका कितना सही है और उन्हें कैसे याद किया जाना चाहिए?
जिस तरह से हम अपने महान विभूतियों को भुलाते जा रहे हैं, उस ऐतबार से अगर गांधीजी को उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर हम याद कर रहे हैं, वही बड़ी बात है. यह तरीका कुछ हद तक इसलिए सही माना जा सकता है, क्योंकि कुछ न करने या किसी को भुलाने से बेहतर है कि साल में एक बार ही सही, उसे याद कर लिया जाये. अगर हम ऐसा भी नहीं करेंगे, तो मुझे लगता है कि आगे आनेवाले दिनों में यह भी भूल जायेंगे कि आखिर गांधीजी की पुण्यतिथि या जयंती मनाने के दौरान सोची जानेवाली उनके विचारों की प्रासंगिकता भी कोई चीज है.
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