
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस महीने की शुरुआत में एक प्रेस कांफ्रेंस में रो पड़े थे. उनके ये आंसू शायद बंदूक़ नियंत्रण पर नाकामी से उपजी निराशा के कारण थे.
देश में लगातार गोलीबारी की घटनाओं के बावजूद बंदूक़ों पर नियंत्रण के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है.

इसके लिए अक्सर नेशनल रायफ़ल एसोसिएशन (एनआरए) को ज़िम्मेदार माना जाता है. एनआरए ने बंदूक़ों के पक्ष में ज़बर्दस्त खेमेबाज़ी कर रखी है और यह ज़मीनी स्तर पर बेहद प्रभावशाली है.
बीबीसी ने चार विशेषज्ञों से बात की और यह जानने की कोशिश की है कि एनआरए के पास इतनी ताक़त कैसे आई.
वारेन कासिडी, एनआरए के पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी
1871 में गृहयुद्ध के तुरंत बाद एनआरए बनी. 20वीं सदी के शुरुआती आधे हिस्से तक ये सिर्फ़ निशानेबाज़ों का संगठन माना जाता था जो एक तरह से शिकारियों और संग्राहकों के लिए घर जैसा था.
पहले जैक केनेडी, फिर मार्टिन लूथर किंग और बॉबी केनेडी की हत्या के बाद अमरीका में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गईं. उसके बाद सचमुच एक राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत हुई.

हमें सक्रिय होना पड़ा क्योंकि क़ानून की मौजूदगी दिखने लगी थी. इसके अलावा 1968 के बंदूक़ नियंत्रण क़ानून के तहत ज़्यादा लाइसेंसी डीलरों की ज़रूरत थी ताकि हथियार बेचे जा सकें. सुनने में तो यह सही लगता है लेकिन इसने क़ानून का पालन करने वालों की मुसीबतें बढ़ा दीं.’’
एनआरए के कुछ निदेशक ऐसे थे जो राजनीतिक संकट के ख़िलाफ़ बोर्ड के संयत रुख से खुश नहीं थे. कुछ ने खुलकर विरोध किया और कुछ ने तो राजनीति में अपने हाथ भी गंदे कर लिए.
इसके बाद 1977 में सिनसिनाटी विद्रोह हुआ. तब हम अपने एजेंडे पर आए और सालाना बैठक में हमने अपने प्रस्ताव रखे.
हममें से कई लोग कहेंगे कि उस वक़्त हम एक राजनीतिक संगठन बन गए थे.
आज एनआरए युवा शूटरों के लिए ट्रेनिंग की बड़ी जगह है और शिकार की परंपरा को बचा रहा है. लेकिन साथ ही इसके पास बड़ी राजनीतिक पहुँच भी है.

राज्यों के स्थानीय संघ हमारी बड़ी ताक़त हैं. जैसे कैलिफ़ोर्निया रायफ़ल एंड पिस्टल एसोसिएशन, मास राइफ़ल एसोसिएशन, गन ओनर्स एक्शन लीग आदि. ये संगठन पिछले 50 सालों से अपनी मर्ज़ी से काम कर रहे हैं. हम अपने प्रतिनिधि भेजते हैं और चुनाव के लिए पैसा जुटाने में मदद करते हैं.
बंदूक़ रखने के अधिकार के मामले में उनके रुख के आधार पर स्थानीय चुनावों के उम्मीदवारों को हम ग्रेड देते हैं. उसके बाद उनके पूरे कार्यकाल पर हमारी नज़र होती है. अब वो चाहे सिटी काउंसलर, मेयर या गवर्नर हों या फिर कांग्रेस के लिए लड़ रहे हों.
हम अपना बहुत सा पैसा वोटरों पर खर्च करते हैं. आप सीनेट में पहुँचे किसी भी उम्मीदवार से पूछ सकते हैं कि एनआरए ने उनकी कैसे मदद की.
उन्हें हमारे शहर, हमारे राज्य में वोट मिलता है और यही हमारे काम करने का तरीक़ा है.
प्रोफ़ेसर कार्ल बोगस, रोजर विलियम यूनिवर्सिटी में लॉ प्रोफ़ेसर

दूसरे संशोधन में साफ कहा गया है: एक नियमित नागरिक सेना स्वतंत्र राज्य की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है. लोगों के हथियार रखने के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, और ऐसा कहने का मतलब यह है कि अगर संघीय सरकार नागरिक सेना को हथियार नहीं देती तो लोग यह काम कर सकते हैं.
दूसरे संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ़ तीन केस दर्ज हुए. सबमें माना गया कि दूसरा संशोधन नागरिक सेना से जुड़ा है और सामूहिक अधिकार देता है न कि व्यक्तिगत. 1960 तक माना जाता रहा कि मामला सुलझ गया है.
एनआरए ने इसे बदलने के लिए बड़ा अभियान चलाया. अमरीका की क़ानून समीक्षाओं में उन्होंने खूब लेख लिखवाए. इनमें कहा गया कि दूसरे संशोधन को व्यक्तिगत अधिकार (हथियार रखने) की मंज़ूरी देनी चाहिए.
उन्होंने 2008 में एक बड़ी जंग जीत ली जब द डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया बनाम हेलर केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार कहा कि दूसरा संशोधन व्यक्तिगत अधिकार की मंजूरी देता है.
सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की बेंच में जज विचारों के आधार पर दो खेमों में बंटे थे. रुढ़िवादियों ने व्यक्तिगत अधिकारों को हां कहा जबकि उदारवादियों ने सामूहिक अधिकारों की बात की.
एनआरए ने व्यक्तिगत अधिकारों के जिस विचार को प्रचारित किया वो आधुनिक रुढ़िवादी आंदोलन बन गया.
बंदूक़ों पर नियंत्रण में राजनीतिक बाधा अमरीकी वोटर नहीं हैं. शायद 80 या 90 फ़ीसदी अमरीकी ज़्यादा सख़्त कानूनों को हां कहेंगे.
लेकिन महज़ एक दो फ़ीसदी वोटरों के एक बहुत छोटे से तबके के तीव्र विरोध ने इसे मुद्दा बना रखा है. ये लोग कभी भी बंदूक़ों पर नियंत्रण की बात करने वाले उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे.
रिचर्ड फेल्डमैन, अध्यक्ष, इंडिपेंडेंट फायरआर्म ओनर्स एसोसिएशन

एनआरए की अविश्वसनीय सफलता को समझने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम थोड़ा पीछे जाएं. जब हम बंदूक़ों की बात कर रहे हों तब हम कुछ और के बारे में भी बात कर रहे होते हैं, बंदूक झंडे से अलग एक सांकेतिक मुद्दा है.
करोड़ों अमरीकियों के लिए बंदूक़ आज़ादी और स्वच्छंदता का एक सकारात्मक, पारंपरिक संकेत है. जब सरकार अपने नागरिकों की रक्षा नहीं कर पाती और ऐसे लोगों के अधिकारों पर अंकुश लगाना चाहती है जिन्होंने कभी भी अपने बंदूक़ों का दुरुपयोग नहीं किया तो ये लोग डर जाते हैं.
एनआरए ऐसे चुनावों में कोई असर नहीं डाल पाती जब फ़ासला बड़ा हो. लेकिन मामला नज़दीकी हो तो पांच फ़ीसदी वोटरों का झुकाव भी हार को जीत में बदल सकता है.
1994 में जब राष्ट्रपति क्लिंटन ने असॉल्ट हथियारों पर प्रतिबंध लगाया तो मुझे याद है कि मुझसे पूछा गया आपको इन हथियारों की क्या ज़रूरत है. मेरा जवाब था मुझे पहले कभी जरूरत नहीं पड़ी लेकिन अगर सरकार सोचती है कि मैं इन्हें हासिल नहीं कर सकता तो मुझे लगता है कि मैं उन्हें लेना चाहूंगा. मैं अभी जाऊंगा और प्रतिबंधों से पहले कम से कम 15 खरीदकर लाऊंगा.
जब भी कोई राष्ट्रपति बंदूक़ ख़रीद पर रोक लगाने की सोचता है, लोग और अधिक हथियार खरीदते हैं. राष्ट्रपति ओबामा भले इसे पसंद करे, य न करें लेकिन वास्तव में वो ‘सेल्समैन ऑफ़ द मिलेनियम’ अवॉर्ड के हक़दार हैं.
प्रोफ़ेसर ब्रायन आंस पैट्रिक, विशेषज्ञ, गन कल्चर
एनआरए पहला ऐसा ग्रुप था जो ऑनलाइन था. इसके पास ईमेल बुलेटिन थे. इसका लोगों के बीच काफ़ी असर है. बहुत से लोग गन कल्चर के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स से ज़्यादा फोरम में पढ़ते हैं.
एनआरए खुद तीन पत्रिकाएं छापता है. इनमें से एक राजनीतिक है, दूसरी शिकारियों के लिए है और तीसरी उनके लिए है जो बस गोली चलाना चाहते हैं. एनआरए के पास कम से कम 50 लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें ये पत्रिकाएं मिलती हैं.
इसके अलावा बहुत से छोटे-छोटे गुट हैं, जैसे टारगेट शूटर्स, वूमन एंड गन ऑर्गनाइजेशन, गे गन राइट्स ग्रुप.
अगर न्यूयॉर्क टाइम्स और गन कल्चर के ख़िलाफ़ उसकी घेराबंदी नहीं होती तो शायद एनआरए आज जितना शक्तिशाली नहीं होता. मैं 10 सालों की कवरेज से बता सकता हूं कवरेज जितनी ज़्यादा नकारात्मक होती है एनआरए को उतने ही ज़्यादा सदस्य मिलते हैं.
इसकी एक वजह यह है कि यहां गन कल्चर को सामाजिक क्रांति समझा जाता है. इन सामाजिक क्रांतियों से लोगों में पहचान की भावना जगती है. ऐसी पहचान जो किसी मुश्किल से जुड़ी है. यहीं संघर्ष होता है और इसका नतीजा यह होता है कि लोग इसके साथ खड़े हो जाते हैं.
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