
विकलांगों के अधिकारों के लिए काम कर रहे कई संगठनों ने ‘विकलांग’ शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हुए इसका इस्तेमाल ना करने की अपील की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 27 दिसंबर को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक ‘दिव्य क्षमता’ है और उनके लिए ‘विकलांग’ शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

विकलांगों के अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठन ‘नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर द राइटस ऑफ डिसएबिल्ड’ ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है, ‘‘इस अभिव्यक्ति को गढ़ने के पीछे की मंशा पर सवाल ना करते हुए, यह कहना बेमानी होगा कि केवल शब्द बदलने मात्र से ही विकलांगों के साथ होने वाले व्यवहार के तौर तरीके में कोई बदलाव आएगा.’’
संगठनों का तर्क है कि ‘दिव्यांग’ शब्द के इस्तेमाल से विकलांगों को बहिष्कार और हाशिए पर रहने से बचाया नहीं जा सकता. इसके विपरीत, ये केवल सहानुभूति और दान की भावना को ही दर्शाएगा.

"विकलांगों ने तमाम बाधाओं पर काबू पा कर अपनी क्षमताएं सिद्ध की है और ये किसी दिव्य शक्ति का नतीजा है कहना ग़लत होगा. बल्कि इस तरह की रचनाशीलता केवल भ्रम पैदा करेगी. यही नहीं इससे विकलंगों के मुद्दों का समाधान भी नहीं होगा."
संगठनों ने कहा, "विकलांगता कोई दैवीय उपहार नहीं है और ‘दिव्यांग’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल से विकलांगों के साथ भेदभाव खत्म किया जाना सुनिश्चित नहीं किया जा सकता."

संगठनों का कहना है कि सबसे बड़ी ज़रुरत विकलांगों से जुड़े अपयश, भेदभाव और हाशिए पर डालने के मुद्दों पर ध्यान देने की है. ताकि वो देश की राजनीति के साथ साथ आर्थिक, सामाजिक विकास में बेहतर भागीदारी कर सकें.
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