मधुमेह का असर शरीर के कई अंगों पर पड.ता है. आंखें भी सबसे ज्यदा प्रभावित होने वाले अंगों में हैं. मधुमेह में सामान्य व्यक्ति की तुलना में आंखों की रोशनी खत्म होने की आशंका20गुना ज्यादा रहती है. इस बीमारी की वजह से आंखों में होने वाली बीमारी को आइ-रेटिनोपैथी कहा जाता है.
डायबिटिक रेटिनोपैथी : मधुमेह के मरीजके खून में ग्लूकोज यानी शुगर की मात्रा बढ. जाती है जो शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर उन्हें कमजोर बनाती है. रेटिना को घेरे रखने वाली रक्त कोशिकाएं भी ब्लड शुगर का स्तर बढ.ने की वजह से कमजोर होने लगती है. इनमें सूजन आने लगती है. इस वजह से रेटिना तक रोशनी पहुंचने में दिक्कत होती है. किसी वस्तु पर पड.ने वाला प्रकाश उससे टकराकर हमारी आंखों के रेटिना पर पड.ता है, जिससे हम उस वस्तु को देख पाते हैं. रेटिनोपैथी दोनों आंखों को प्रभावित कर सकती है. हो सकता है कि शुरुआत में आपको कोई लक्षण न दिखें.
मोतियाबिंद : मोतियाबिंद किसी भी व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन मधुमेह के रोगियों को इसका खतरा ज्यादा होता है. मोतियाबिंद में आंख के लेंस पर धुंध जैसी जम जाती है जिसकी वजह से हमें कोई भी चीज साफ दिखाई नहीं देती है. इसे दूर करने के लिए सर्जरी की जाती है. सर्जरी के दौरान आंख के लेंस को निकाल कर उसकी जगह प्लास्टिक का लेंस लगा दिया जाता है.
ग्लूकोमा : जब आंखों के अंदर बनने वाली फ्लूइड (तरल पदार्थ) बाहर नहीं निकल पाती, तो ये आंख पर अतिरिक्त दबाव डालती हैं. दबाव आंखों की मुख्य तंत्रिका तंत्र ऑप्टिक नर्व (यह तंत्रिका मस्तिष्क को रेटिना से दृश्य जानकारी देती है) को नुकसान पहुंचाता है, जिसकी वजह से धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम होने लगती है.
हालांकि इसका इलाज मोतियाबिंद या डायबिटिक रेटिनोपैथी की अपेक्षा आसान है. इसमें आंखों का दबाव कम करने और फ्लूइड को बाहर निकालने के लिए ड्रॉप दी जाती है.