मेलबर्न वनडे में जब ऑस्ट्रेलियाई पारी के 39वें ओवर की पहली गेंद पर ईशांत शर्मा ने मैथ्यू वेड का विकेट झटक लिया, तब यही लगा कि मैच भारत की पकड़ में है. ऑस्ट्रेलिया का स्कोर तब 215 रन था, जीत से टीम अभी भी 80 रन दूर थी.
बावजूद इसके टीम इंडिया ये मुक़ाबला तीन विकेट से हार गई. इस मुक़ाबले के साथ-साथ पांच मैचों की सिरीज़ भी उसके हाथ से निकल गई.
पहले पर्थ, फिर ब्रिसबेन और उसके बाद मेलबर्न में भी इंडिया का प्रदर्शन बदलता रहा, लेकिन मैच का नतीजा वही रहा. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि वो क्या क्या पहलू हैं, जिससे भारतीय टीम पार नहीं पा सक रही है.
इन तीन मैचों में भारत की सबसे बड़ी ख़ामी जो उभर कर सामने आई है, वह ये है कि अंतिम 10 ओवरों में भारतीय गेंदबाज़ विकेट नहीं ले पा रहे हैं.

मेलबर्न वनडे में ऑस्ट्रेलिया के 6 विकेट 40 ओवर से पहले ही गिर चुके थे, इसके बाद क़रीब 9 ओवरों के खेल में भारतीय गेंदबाज़ों को महज़ एक कामयाबी मिली, वह भी तब जब दबाव ऑस्ट्रेलिया पर था.
वहीं भारतीय पारी में आख़िरी दस ओवरों में ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों ने चार विकेट चटकाए थे.
इससे पहले खेले गए ब्रिसबेन वनडे में भी भारतीय गेंदबाज़ों को आख़िरी 10 ओवरों में महज़ एक विकेट हासिल हुआ था. जबकि इसी दौरान भारत ने अपनी पारी में छह विकेट गंवा दिए थे.
सिरीज़ के पहले मुक़ाबले में स्थिति थोड़ी ही बेहतर थी, जब भारतीय गेंदबाज़ों ने आख़िरी 10 ओवरों में तीन विकेट ले लिए थे, लेकिन वहां भी मैच ऑस्ट्रेलिया की पकड़ में आ चुका था.

आख़िरी 10 ओवरों के दौरान न तो ईशांत शर्मा का अनुभव और न ही उमेश यादव की तेज़ी टीम के काम आ रही है. मेलबर्न में अश्विन की जगह आज़माए गए गेंदबाज़ों की अनुभवहीनता भी सामने आ गई.
अगर ये समस्या टीम इंडिया के साथ बनी रही तो सिरीज़ के बाक़ी दो मैचों के नतीजे अलग होंगे, इसकी उम्मीद कम ही है.

लगातार हार के बावजूद टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अपने गेंदबाज़ों का बचाव किया है. उन्होंने मैच के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ”मेलबर्न में मेरे हिसाब से गेंदबाज़ी ठीक ठाक रही.”
लेकिन उन्होंने गेंदबाज़ों की अनुभवहीनता का ज़िक्र किया. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा, "दबाव के वक़्त हमारे गेंदबाज़ों से रन नहीं रुक रहे हैं."
कप्तान धोनी ने मेलबर्न वनडे में हार के बाद ये भी कहा कि अगर हमारे पास कुछ और रन होते, 15 या उससे ज़्यादा रन होते, तो नतीजा कुछ और होता.
दरअसल, इस नज़रिए से टीम इंडिया की एक और मुश्किल सामने आती है. पावरप्ले के बदले नियम के मुताबिक़ अब 41 से 50 ओवरों के बीच पांच फ़ील्डर बाउंड्री लाइन पर तैनात होते हैं, यानी उस वक़्त ज़्यादा रन नहीं बन सकते.
यानी विपक्षी टीम के सामने बड़ा टारगेट देना हो तो बल्लेबाज़ों को 41 ओवर से पहले ही रफ़्तार दिखानी होगी. अब बल्लेबाज़ों को 30 से 40 ओवरों के बीच कहीं ज़्यादा रन बनाने की ज़रूरत है.
मेलबर्न वनडे में भारतीय बल्लेबाज़ों ने इस दौरान 60 रन जोड़े थे. वहीं पर्थ और ब्रिसबेन में इस दौरान टीम इंडिया ने 67-67 रन बनाए थे. ज़ाहिर है 31 से 40 ओवरों के बीच में टीम जब ज़्यादा रन बना पाएगी तभी बोर्ड पर ज़्यादा रन होंगे.
लेकिन लचर गेंदबाज़ी से ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ कोई भी चुनौती हासिल कर लेंगे, यह उन्होंने सिरीज़ के अब तक के मैचों में साबित किया है.
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