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डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम, तीन साल में बनी दुनिया की सबसे बड़ी योजना

केंद्र सरकार की ओर से नागरिकों को कई प्रकार की चीजों पर विविध रूपों में सब्सिडी दी जाती है. इस सब्सिडी का लाभ वास्तविक लाभार्थी तक पूरी तरह से पहुंचाने के उद्देश्य से एक जनवरी, 2013 को ‘डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम’ यानी डीबीटी की शुरुआत की गयी थी. इस स्कीम के तहत सरकार द्वारा दी […]

केंद्र सरकार की ओर से नागरिकों को कई प्रकार की चीजों पर विविध रूपों में सब्सिडी दी जाती है. इस सब्सिडी का लाभ वास्तविक लाभार्थी तक पूरी तरह से पहुंचाने के उद्देश्य से एक जनवरी, 2013 को ‘डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम’ यानी डीबीटी की शुरुआत की गयी थी.
इस स्कीम के तहत सरकार द्वारा दी जानेवाली सब्सिडी की रकम सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाने लगी है. इसका प्राथमिक मकसद पारदर्शिता बढ़ाते हुए सब्सिडी वितरण में होनेवाली धांधलियों को रोकना था. पिछले तीन सालों में इस योजना को मिली सफलता और इसके व्यापक विस्तार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह मिली है. डीबीटी स्कीम के अब तक के सफर पर नजर डाल रहा है आज का विशेष…
गरीबी दूर करने में सहायक है योजना
प्रवीण झा
अर्थशास्त्री
दुनिया के अनेक देशों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना लागू की गयी है, जिसका मुख्य मकसद गरीबी कम करना रहा है. भारत में साल 2011 के बजट में जनवितरण प्रणाली, केरोसिन और खाद की सब्सिडी सीधे लोगों के खाते में पहुंचाने की योजना की घोषणा की गयी थी. जनवरी 2013 में इसे 20 जिलों में लागू किया गया. मौजूदा समय में यह काफी आगे बढ़ चुकी है और केंद्र सरकार की 42 में से 26 योजनाओं में डीबीटी का प्रयोग किया जा रहा है. मोदी सरकार ने इसे व्यापक बनाने का फैसला लिया है. डीबीटी योजना का मुख्य स्तंभ आधार नंबर है.
सरकार विभिन्न सब्सिडी जैसे स्वास्थ्य, पीडीएस, मनरेगा जैसी योजना पर सालाना लगभग 28 बिलियन डॉलर खर्च करती है और यह जीडीपी का दो फीसदी है. लेकिन भ्रष्टाचार के कारण योजनाओं का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा था.
सब्सिडी के बढ़ते बोझ के कारण राजस्व घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा था. एशियन डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, खाद्य पदार्थ पर सरकार की सब्सिडी के बावजूद गरीबी के स्तर में व्यापक पैमाने पर कमी नहीं आयी और इसका 70 फीसदी लाभ गैर-गरीबों को मिला. डीबीटी योजना से न सिर्फ योजनाओं में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में काफी मदद मिलेगी, बल्कि इसका लाभ सही लोगों को मिल पायेगा. लोगों के खाते में सीधे पैसा जाने से न सिर्फ नौकरशाही का दखल कम होगा, बल्कि बिचौलियों की भूमिका भी खत्म हो जायेगी.
डीबीटी योजना से सब्सिडी और विभिन्न योजनाओं का लाभ लोगों को बिना किसी परेशानी के मिल रहा है.हालांकि मौजूदा समय में विभिन्न योजनाओं के लिए अलग-अलग पहचान पत्र मुहैया कराना पड़ता है. अगर इस योजना को और बेहतर तरीके से लागू किया गया, तो न सिर्फ सरकार का खर्च कम होगा, बल्कि लोगों को और आसानी से इसका लाभ मिलेगा. ब्राजील जैसे देशों में इस योजना के कारण बड़े पैमाने पर गरीबी कम करने में मदद मिली है. इस योजना की सफलता मजबूत सामाजिक ढांचागत सुविधा पर निर्भर करती है. भारत की सार्वजनिक सेवाएं इतनी मजबूत नहीं हैं कि डीबीटी जैसी योजनाओं को संबल प्रदान कर सकें. लेकिन, सब्सिडी के बोझ को कम करने और योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता लाने में यह योजना क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.
(बातचीत पर आधािरत)
‘डीबीटी स्कीम को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में जगह’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में पिछले दिनों बताया कि सब्सिडी की विभिन्न योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में भेजे जाने की योजना को असाधारण सफलता मिली है और इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह मिली है. उन्हें इस बात की खुशी है कि इस योजना का सीधा लाभ गरीब व्यक्ति को मिल रहा है. करोड़ों रुपये सरलता से उनके खाते में जा रहे हैं.
पहले यह सुनिश्चत करना कठिन था कि लाभार्थी का पैसा उसी के पास पहुंच रहा है या नहीं, लेकिन उनकी सरकार ने इसमें थोड़ा बदलाव किया है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जन-धन खाते और आधार कार्ड की मदद से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम विश्व की सबसे बड़ी योजना बनी है और इसे सफलतापूर्वक देशभर में लागू कर दिया गया है. पहल योजना भी बहुत सफल रही. बीते नवंबर तक करीब 15 करोड़ रसोई गैस के उपभोक्ताओं को पहल योजना का लाभ मिला और उनके खाते में सरकारी पैसा सीधे जाने लगा है.
क्या है डीबीटी
डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम के तहत सरकार द्वारा मुहैया करायी जाने वाली सब्सिडी की रकम सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाती है.
कब लागू हुआ
इस स्कीम को एक जनवरी, 2013 को कुछ चुनिंदा जिलों में लागू किया गया. आरंभ में गैस सब्सिडी पर इसे लागू किया गया. धीरे-धीरे इसे अन्य स्कीम्स के साथ पूरे देश में लागू किया गया. अब 28 से ज्यादा स्कीम्स को इसके दायरे में लाया जा चुका है.
क्या है इसका फायदा
इससे जहां एक ओर सरकार को सब्सिडी भुगतान के क्रम में होने वाली धांधलियों से बचनेवाले रकम का फायदा होता है, वहीं दूसरी ओर लाभार्थी तक इसकी पूरी रकम पहुंचने से उसे भी इसका फायदा होता है. इसमें पारदर्शिता बरकरार रहती है और कुल मिला कर यह सरकार और नागरिक दोनों ही के हित में है.
सब्सिडी बिल में 2015-16 में हुई 10 फीसदी की कटौती
2.27 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी का प्रावधान किया गया 2015-16 के लिए अनाज, खाद और पेट्रोलियम पदार्थों के मद में.
10 फीसदी कम सब्सिडी का प्रावधान किया गया है, इसके पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले. हालांकि इसका बड़ा कारण पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतों का कम होना है.
2.53 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी का प्रावधान किया गया था 2014- 15 के लिए अनाज, खाद और पेट्रोलियम पदार्थों के मद में.
1.24 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी का प्रावधान किया गया 2015-16 के लिए अनाज के मद में. इसमें से 65,000 करोड़ रुपये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने के मद में किया जायेगा.
(स्रोत : इकोनोमिक टाइम्स)
विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों में डीबीटी स्कीम
मनरेगा
वर्ष 2005 में शुरू की गयी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है. इसमें काम करनेवाले बहुत से मजदूरों की मजदूरी के भुगतान में बिचौलिये हावी रहते थे और मजदूर के नाम से जारी होनेवाली पूरी रकम उस तक नहीं पहुंच पाती थी.
अकसर यह शिकायत मिल रही थी कि मजदूरी बांटने की प्रक्रिया में शामिल लोग इसमें धोखाधड़ी करते हैं. इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान में डीबीटी स्कीम लागू किया. इसके लिए मजदूरों के बैंक खाते खुलवाये गये और उन्हें ‘आधार’ नंबर से लिंक किया गया. अब मजदूरी का भुगतान सीधे मजदूर के बैंक खाते के माध्यम से किया जा रहा है. ठेकेदारों द्वारा मजदूरों की संख्या बढ़ा कर फर्जी भुगतान के मामलों पर भी इस प्रक्रिया से रोक लगी है.
घरेलू गैस सिलेंडर
प्रत्येक एलपीजी ग्राहक को साल में 12 सब्सिडाइज्ड सिलेंडर दिये जाते हैं. केंद्र सरकार ने ‘पहल’ यानी प्रत्यक्ष हस्तांतरित लाभ योजना के तहत समूचे देश में एलपीजी उपभोक्ताओं के खातों को इससे लिंक कर दिया और इस सब्सिडी की रकम को सीधे बैंक खाते में भेजा जाने लगा है.
शुरू में इसमें कुछ ही जिलों को शामिल किया गया, लेकिन एक जनवरी, 2015 से इसे देशभर में लागू कर दिया गया. इससे एक अन्य फायदा यह भी हुआ कि एक मकान के पते पर एक से ज्यादा कनेक्शन होने का पता लगाना भी आसान हो गया. इससे घरेलू गैस सिलिंडर को कॉमर्शियल इस्तेमाल में लाये जाने से रोकने में भी मदद मिली है.
पेंशन स्कीम
केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जानेवाली विविध पेंशन योजनाओं में अनेक प्रकार की धांधलियाें की खबरें आती हैं. इसे रोकने और इसमें पारदर्शिता कायम करने के लिए सरकार ने सभी पेंशन स्कीम को डीबीटी के दायरे में लाना शुरू कर दिया है. इससे पेंशनधारी के बैंक खाते में बिना किसी बाधा के पेंशन की रकम सीधे भेजी जाती है. इस वर्ष के अंत तक सरकार सभी पेंशन योजनाओं में डीबीटी सिस्टम को पूरी तरह से कार्यान्वित कर देगी. राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली पेंशन योजनाओं में भी डीबीटी लागू किया जायेगा.
खाद्य सब्सिडी
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बेचे जानेवाले अनाज में अक्सर धांधली होने की शिकायतें आती हैं. इन धांधलियों से मुकम्मल तरीके से निबटने के लिए डीबीटी स्कीम को प्रभावी समझा जा रहा है. सरकार का मानना है कि इससे सब्सिडी लीकेज को 30 से 40 फीसदी तक रोका जा सकेगा. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में 1.24 खरब रुपये की खाद्य सब्सिडी दी गयी थी. डीबीटी लागू करने पर सरकार यदि इसमें 40 फीसदी तक सब्सिडी बचाने में कामयाब रही, तो इससे सालाना 50,000 करोड़ तक का मुनाफा हो सकता है.
पूर्व खाद्य मंत्री शांता कुमार के नेतृत्व में गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार द्वारा दी जानेवाली खाद्य सब्सिडी का करीब आधा (47 फीसदी) हिस्सा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित किये जानेवाले अनाज में प्रयुक्त होता है. हालांकि, अभी यह स्कीम केंद्र शासित क्षेत्र चंडीगढ़ और पुदुचेरी में ही लागू की गयी है, लेकिन इसके सफल होने पर इसे पूरे देश में लागू किया जा सकता है.
फर्टिलाइजर सब्सिडी
छोटे और मंझोले किसानों को सरकार द्वारा खाद सब्सिडी मुहैया करायी जाती है. लेकिन औद्योगिक कार्यों में यूरिया खाद का इस्तेमाल होने से इस सब्सिडी का ज्यादातर फायदा कारोबारियों को मिल जाता है. इसलिए सरकार यूरिया को औद्योगिक इस्तेमाल से बचाने के लिए किसानों को इसे मुहैया कराने में डीबीटी लागू करेगी. सरकारी सूत्रों के मुताबिक, इसकी तैयारी चल रही है.
इस वर्ष बजट में सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किये थे, जिसमें से 38,000 करोड़ यूरिया के लिए दिया गया. ‘इकोनोमिक टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल सरकार ने इसकी अधिकतम खुदरा कीमत 5,360 रुपये प्रति टन तय कर रखी है और इसके उत्पादन में आनेवाली ज्यादा लागत पर उत्पादकों को सब्सिडी दी जाती है. हालांकि, यूरिया पर दी जानेवाली सब्सिडी का अवैध इस्तेमाल होने से बचाने के लिए सरकार ने उत्पादकों को ‘नीम कोटेड यूरिया’ का उत्पादन अनिवार्य कर दिया है, लेकिन अन्य सभी फर्टिलाइजर के साथ ऐसा नहीं हो पाया है. लिहाजा सरकार इसे भी डीबीटी के दायरे में ला सकती है. सरकार इसे आधार संख्या के साथ लागू कर सकती है.
डीबीटी स्कीम सही, पर जरूरतें और भी हैं
जेडी अग्रवाल
अर्थशास्त्री
डी बीटी योजना को लेकर सरकार की यह सोच अच्छी है कि वह लोगों को सीधे उनके खाते में पैसे पहुंचा रही है, जिससे बिचौलियों से निजात मिल रही है. इस योजना को सही तरीके से लागू किया जाये, तो इससे भ्रष्टाचार में 20-25 प्रतिशत तक कमी आ सकती है. भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए ही हमें ऐसी ही पारदर्शिता वाली और योजनाओं की जरूरत पड़ है.
देश में गरीबों के उत्थान के लिए ऐसी योजनाओं की जरूरत तो है ही, जिससे उनका हक सीधे उन तक पहुंचे. लेकिन, इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि ऐसी योजनाओं से अनपढ़ और हाशिये पर पड़े लोगों को पूरा लाभ मिलने की संभावना थोड़ी कम है. दूरदराज के गांवों में गरीब-अनपढ़ों को एक चिट्ठी तक लिखवाने-पढ़वाने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है.
यही चीज इस योजना को लेकर भी है कि ऐसे लोग बैंक खाता खुलवाने और उससे पैसे निकालने को लेकर भी दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं, जिसका नाजायज फायदा पैसा निकलवानेवाला व्यक्ति उठा सकता है. यह भी मुमकिन है कि बहुत से लोग फर्जी बैंक खाते खुलवा लें और इन योजनाओं का लाभ लेते रहें, जिससे जरूरी हकदारों तक इसका लाभ ही न पहुंच पाये. सरकार को इन पहलुओं पर भी विचार करना होगा, ताकि इस योजना को व्यापक पैमाने पर कामयाब बनाया जा सके.
खाद्य सब्सिडी हो, गैस सब्सिडी हो, केरोसिन सब्सिडी हो या कोई अन्य सब्सिडी हो, सरकार की प्रथम जिम्मेवारी है कि जरूरतमंदों तक जरूरी लाभ पहुंचे. मसलन, भुखमरी के शिकार लोगों तक भोजन की पहुंच सुदृढ़ बनायी जाये. मेरे ख्याल से इस मामले में सरकार की सोच सकारात्मक है.
लेकिन, सब्सिडी के पैसे को लाभार्थियों के खातों में नकद भेजना या यूं कह लें कि एक तरफ से टैक्स वसूल कर दूसरी ओर वंचितों तक नकद पैसे भेजना मुझे तार्किक नहीं लगता. सरकार का काम योजनाओं को जमीन पर उतारना है, न कि सीधे खाते में पैसे भेज कर निश्चिंत हो जाना कि हमने तो पैसे भेज दिये. ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर किसी के खाते में पैसे आते हैं, तो यह कोई जरूरी नहीं कि वह उसकाे उसी चीज के लिए खर्च करेगा, जिस चीज के लिए उसे पैसे मिले हैं. इस बात की जिम्मेवारी भी सरकार ले, तो यह योजना निश्चित रूप से कामयाब हो जायेगी.
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार अपनी जिम्मेवारी के तहत जनकल्याणकारी योजनाएं बनाती है और उसके लिए पैसे खर्च करती है.
लेकिन डीबीटी योजना में पैसे खर्च करने का नहीं, बल्कि पैसे बांटने का काम होता है. पैसे खर्च करने और बांटने में अंतर है. पैसे खर्च करने में बिचौलिए और नौकरशाही दोनों भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं, जिससे बचने के लिए पैसे बांटने की योजना लायी गयी है. भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिहाज से तो ऐसी योजना लाना अच्छी बात है, लेकिन इससे भी अच्छी बात तब होती, जब सरकार बिचौलियों और नौकरशाही पर अंकुश लगा कर जरूरतमंदों तक उसकी जरूरत का सामान पहुंचाने की कोशिश करती.(बातचीत पर आधािरत)
केरोसिन में डीबीटी
केरोसिन (मिट्टी तेल) सब्सिडी भी आगामी एक अप्रैल से सीधे ग्राहकों के बैंक खातों में जमा होगी. इसके तहत उपभोक्ता गैस सिलिंडर की ही तरह मिट्टी तेल की खरीद बाजार मूल्य पर करेंगे और इसकी सब्सिडी का भुगतान उनके बैंक खातों में किया जायेगा. बीते साल केरोसिन सब्सिडी पर सरकार ने 24,799 करोड़ रुपये खर्च किये, लेकिन माना जा रहा है कि इसका एक बड़ा हिस्सा इसके हकदार लाभार्थियों को नहीं मिल पाता है. दरअसल, अनेक इलाकों में औद्योगिक कार्यों के लिए इसकी खपत होने और डीजल में अवैध रूप से इसकी मिलावट के कारण इसकी कालाबाजारी होती है और सरकार द्वारा दी जानेवाली सब्सिडी का फायदा इन लोगों को भी हो जाता है. डीबीटी से इस पर रोक लगायी जा सकेगी. हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान के 26 जिलों में एक अप्रैल से इस योजना की शुरुआत होने की उम्मीद है.

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