।। अनुज सिन्हा ।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)
दिल्ली में जिस दिन विधानसभा चुनाव हुए, उसके दूसरे दिन चाय दुकान पर खड़ा था. अखबारों में विभिन्न एग्जिट पोलों के नतीजे छपे थे. जो बता रहे थे कि तीन- चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है. सुबह-सुबह होने लगी बहस. सब अपनी-अपनी राय दे रहे थे. एक का कहना था- देख रहे हैं न नरेंद्र मोदी का असर. बॉस, इस नेता में दम है. किसी से डरता ही नहीं है. कांग्रेस को अभी से ही चित कर दिया है. ये रिजल्ट तो ट्रेलर है. असली फिल्म तो अगले साल लोकसभा चुनाव में दिखेगी..
और बढ़ाइए महंगाई. भोगना तो पड़ेगा ही. देश संभल नहीं रहा. काम हो नहीं रहा. नौकरी दे नहीं रहे. बहाना बनाते हैं. ऐसे में तो कांग्रेस का साफ होना तय है. दूसरा खेमा कहां चुप रहनेवाला था. कहने लगा- यह एग्जिट पोल है. इस पर अभी से ही भरोसा कर भाषण मत दीजिए. ये तो बेवकूफ बनाता है. देखिएगा रविवार को जब रिजल्ट आयेगा, तो मोदी जी की हवा निकल जायेगी. यह भी देखिए कि यही चार-पांच राज्य पूरा देश नहीं है. दिल्ली में राज करने के लिए पूरे देश का वोट मिलना चाहिए जो मोदी को मिलनेवाला नहीं है. बहस ऐसे ही आगे बढ़ रही थी.
यह दृश्य सिर्फ एक शहर या राज्य का नहीं है. पूरे देश में आज यही चर्चा हो रही है. पहले ऐसा नहीं होता था. अगर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हो रहे हों, तो देश के अन्य राज्यों के लोगों को इसमें बहुत रुचि नहीं रहती थी. उन्हें सिर्फ लोकसभा चुनाव से या फिर अपने राज्य में होनेवाले विधानसभा चुनाव से मतलब होता था. इस बार बात कुछ और है. लोगों में उत्सुकता है कि नरेंद्र मोदी का असर दिखता है या नहीं. नरेंद्र मोदी बहस के केंद्र में हैं. एक वर्ग मोदी के पक्ष में और दूसरा खिलाफ खड़ा है.
खुद मोदी के लिए भी ये चुनाव महत्वपूर्ण हैं. मिजोरम के चुनाव परिणाम से कोई फर्क नहीं पड़ता पर बाकी चार राज्यों में नरेंद्र मोदी ने पूरी ताकत झोंक दी है. बड़ी-बड़ी सभाएं की हैं. अगर इन राज्यों में भाजपा जीतती है तो जीत का सेहरा नरेंद्र मोदी के माथे बंधेगा. हो सकता है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकार ने बेहतर कार्य किये हों, पर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा यही संदेश देना चाहेगी कि यह मोदी का ही असर है. इसके विपरीत अगर भाजपा की हार होती है (जिसकी संभावना कम ही दिखती है) तो नरेंद्र मोदी पर ही सवाल उठेगा और कांग्रेस इसे एक हथियार के रूप में लोकसभा चुनव में इस्तेमाल करेगी. सिर्फ कांग्रेस ही क्यों, भाजपा में मोदी विरोधी खेमा उन्हें घेर लेगा.
चौक-चौराहे पर मोदी के बारे में, देश के बारे में ऐसे ही चर्चा नहीं हो रही है. देश में जिस तरीके से महंगाई-बेरोजगारी बढ़ी है, भ्रष्टाचार बढ़ा है, उससे देश का बड़ा तबका परेशान है. गरीबों का जीना मुश्किल हो गया है. पड़ोसी देश आंखें दिखा रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. भारत घिर रहा है. लोग एक बेहतर विकल्प की तलाश में हैं. वह विकल्प नजर नहीं आता, इसलिए अगर कोई चेहरा (मोदी भी उनमें से एक हैं) सामने आता है, तो वह बहस का केंद्र बन जाता है. अब यह उस चेहरे पर निर्भर है कि वह पूरे भारत के वोटरों को कितना विश्वास में ले पाता है. नरेंद्र मोदी ने चुनाव के ठीक पहले पूरे देश को यही संदेश देने का प्रयास किया है कि उनकी अगुवाई में भाजपा (एनडीए) ही देश को इन परेशानियों से मुक्ति दिला सकती है.
यही कारण है कि लोगों में राज्यों में होनेवाले इन चुनावों के परिणामों में दिलचस्पी है. अगर भाजपा मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित नहीं करती तो राज्यों के इन चुनावों में शायद ही किसी को रुचि होती. अब यह भाजपा और मोदी पर निर्भर करता है कि इन चुनावों के परिणामों से उसके पक्ष में जो आवाज निकलती है (एग्जिट पोल के संकेत), उसका फायदा वह कैसे ले सकती है. यह सही भी है कि भाजपा हो या कांग्रेस, किसी में यह दम नहीं दिखता कि अकेले वह केंद्र में सरकार बना ले. छोटे-छोटे दलों का दिल जीतना आवश्यक है और यह काम मोदी के लिए भी आसान नहीं होगा.