।। एमजे अकबर ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
क्या ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का चरित्र निर्लज्ज दोहरेपन से भरा है? या वे सिर्फ एक और कंजर्वेटिव राजनेता हैं? टेन डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर कैमरे के सामने नेल्सन मंडेला को दी गयी अपनी श्रद्धांजलि में वे परिपूर्ण नजर आ रहे थे, लेकिन कैमरन इस बात का जिक्र करना भूल गये कि जब वे विश्वविद्यालय में थे, तब अपने कमरे में उन्होंने ‘हैंग मंडेला’ (मंडेला को फांसी दो) का पोस्टर लगा रखा था.
कैमरन और उनके दल के लोग आज भी मार्गरेट थैचर की इस बात के लिए सराहना करते हैं कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन को बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभायी. यह वह दौर था जब अमेरिका और पश्चिम के अधिकतर देशों को एहसास हो गया था कि इस नस्लीय क्रूरता को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है. उन्हें एहसास हो गया था कि ऐसे बर्बर अन्याय को समर्थन देना किसी लोकतांत्रिक देश के आधुनिक सभ्यता के सर्वश्रेष्ठ का प्रतिनिधित्व करने के दावे को झूठा ठहराता है. ब्रिटेन के कंजर्वेटिव स्कूल के समर्थक अंत तक रंगभेद का समर्थन करनेवालों में से थे. वे मानते रहे कि स्थानीय लोगों के लिए यूरोपीय हस्तक्षेप का दौर वरदान की तरह आया.
यह महज संयोग नहीं है कि 20वीं सदी के तीन महानतम दूरद्रष्टाओं में से दो का आविर्भाव दक्षिण अफ्रीका की धरती से हुआ और एक मार्टिन लूथर किंग का अमेरिका में दासता के लंबे साये में. शायद मंडेला या महात्मा गांधी जैसे जीनियस के प्रादुर्भाव के लिए निकृष्टतम अपमान का सामना करने की जरूरत पड़ती है. जब आप नरक भोगते हैं, तब समझते हैं कि प्रतिशोध विकल्प नहीं हो सकता है, जो एक दूसरा नरक तैयार करता है. गांधी बार-बार कहा करते थे, अगर हम एक आंख के बदले में एक आंख लेने के रास्ते पर चलें, तो पूरी दुनिया जल्दी ही अंधी हो जायेगी.
हमें उस गुस्से को कम करके नहीं आंकना चाहिए, जिसका सामना गांधी या मंडेला को करना पड़ा होगा, जब उन्होंने उन तंत्रों को चुनौती देने की ठानी होगी, जिनका अस्तित्व तब की समझदारी के हिसाब से सदियों तक रहनेवाला था. लेकिन, उन्होंने यह समझा कि दमन के मूल में मालिक की ताकत नहीं, गुलाम की कमजोरी होती है. उनके सामने चुनौतियां एक जैसी थीं. अगर उन्हें अपने देश को सबकुछ निगल जानेवाली तानाशाही के चंगुल से बाहर निकालना था, तो उन्हें सबसे पहले अपने लोगों को भय से मुक्त करना था. उनका जीवन, अदम्य साहस और असीम त्याग, लाचार और निराश पीढ़ियों को अत्याचार के कुचक्र से बाहर निकालने वाला आकाशदीप बना.
अपनी जवानी के 27 वर्ष एक द्वीप पर जेल में बर्बाद कर लौटे मंडेला ने जब राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तब उन्होंने कहा था- कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं- दक्षिण अफ्रीका कभी नहीं उस बर्बर गुलामी को लौटता देखेगा. 1947 में जब गांधी ने जंजीर को तोड़ दिया, तब अफ्रीका और एशिया को उपनिवेश बनाने की यूरोपीय परियोजना ताश के पत्ताें के महल की तरह बिखर गयी. लेकिन सबसे ज्यादा चकित करनेवाला तथ्य यह है कि जहां साम्यवादियों ने जार की हत्या कर दी, मंडेला और गांधी ने यह समझा कि भविष्य को सुरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका सामंजस्य और सद्भाव ही हो सकता है, न कि गृह या बर्बर युद्ध.
महान शख्सीयतों को हम अकसर अपने जीवन से बाहर कर देते हैं और उन्हें किताबों की शोभा मात्र बना देते हैं. हमारे जैसे साधारण इनसानों के पास ऐसा चरित्र नहीं होता है कि हम आश्रम का त्यागपूर्ण जीवन जीनेवाले गांधी या आत्मसमर्पण करने की जगह जेल के अकेलेपन को सहनेवाले मंडेला का अनुकरण कर पाएं. हममें इतनी आंतरिक शक्ति नहीं है कि हम अपनी कमजोरियों को दुनिया को बता पायें, जैसा कि गांधी ने अपनी आत्मकथा में किया है. लेकिन हम भाईचारे के उनके अतिसाधारण दर्शन से काफी कुछ सीख सकते हैं. गांधी और मंडेला कहीं गहरे धर्म के अनुयायी थे, जो दूसरा गाल आगे करना सिखाता था. वे ऐसा निर्दयी प्रतिपक्ष के सामने कर पाये. उनका यकीन था कि दुनिया कमजोरों की है. उन्होंने अपने पड़ोसियों को अपनी तरह प्यार किया. खासतौर पर जब वे हिंदू थे और पड़ोसी मुसलिम, जब वे अश्वेत थे और पड़ोसी श्वेत.
वे संपूर्ण नहीं थे. ऐसी बातों पर वे हंसते थे. नायकों को चाटुकारों की जरूरत नहीं होती. वे संत नहीं थे. वे इतने कच्चे नहीं थे कि मान लें कि आदर्श, हकीकत बन जायेगा. लेकिन, वे इतने समझदार थे कि समझ सकें कि आदर्शवाद के बिना, किसी देश या समाज की राजनीति भूल-भुलैया में खो जाती है और जल्द ही दिमाग की बदबूदार जेल में तब्दील हो जाती है.
दोनों ईश्वर में यकीन करते थे. दोनों को आपस में संवाद करने का मौका नहीं मिला. शायद स्वर्ग में उन्हें इसका मौका मिले. जब वे नीचे देखेंगे, तो अपनी विरासत को संभालनेवालों के विचलन और भ्रष्टाचार के कारण संतुष्ट नहीं होंगे. मगर मुङो पक्का यकीन है कि उन्हें कैमरन की ईमानदार और छलकती हुई श्रद्धांजलि अच्छी लगेगी, क्योंकि यह उनकी चरम जीत को दर्शाता है. विंस्टन चर्चिल और मार्गरेट थैचर के वारिसों को पता है कि आधे नंगे फकीर और उस अश्वेत युवा को इसलिए जीत मिली, क्योंकि उन्होंने शांति में यकीन किया.