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भारत सरकार अब कह रही है कि पाकिस्तान के साथ वार्ता जारी रहेगी, हालांकि पठानकोट के वायुसेना अड्डे पर हुए चरमपंथी हमले ने भारत-पाकिस्तान में फिर शुरू हुई शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने का ख़तरा तो पैदा कर ही दिया था.
बैंकॉक में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच मुलाक़ात के बाद जिस वार्ता की घोषणा हुई थी उसका जारी रहना क्यों ज़रूरी है, आइए जानते हैं इसके पांच कारण…
1. वार्ता का समय आ गया हैः अगर पाकिस्तान की ओर से कोई चरमपंथी हमला नहीं हो रहा होता, तो भारत को पाकिस्तान से बातचीत की ज़रूरत ही क्या रहती?
भारत को अपने यहां होने वाले चरमपंथी हमलों के लिए पाकिस्तान की ज़मीन के इस्तेमाल किए जाने के सबूत उसे दिखाने चाहिए, शायद इसमें उसकी सरकारी संस्थाओं के समर्थन के भी. आमने-सामने मेज़ पर बैठकर उनसे पूछना चाहिए कि यह क्या है?
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पाकिस्तान तब चरमपंथ पर बात नहीं करेगा जब तक भारत कश्मीर पर बात नहीं करता और इसीलिए इसे ‘संयुक्त वार्ता’ प्रक्रिया कहा जाता है. मोदी सरकार इसे विस्तृत वार्ता कह रही है.
चूंकि कश्मीर में एक नियंत्रण रेखा है, जो अक्सर सुलगती रहती है और चरमपंथियों की घुसपैठ का एक स्रोत है. इसलिए भारत को कश्मीर पर भी बात करनी चाहिए.
व्यापार, वीज़ा और बाकी अन्य सभी चीज़ों के साथ कश्मीर और पाकिस्तान पर बात करने से भारत को दीर्घकालिक फ़ायदे मिलेंगे.
2. ऐसा पक्ष दिखे जो शांति चाहता है : अमरीका और दुनिया के अन्य देश चाहते हैं कि भारत पाकिस्तान से बात करे क्योंकि बात न करने से अक्सर सीमाओं पर और नई दिल्ली-इस्लामाबाद के विदेश मंत्रालय में तनाव बढ़ता ही है.
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अमरीका इसलिए डरता है क्योंकि इससे न सिर्फ़ उसकी पाकिस्तान को अफ़गानिस्तान (शांति प्रक्रिया) में बनाए रखने की कोशिशों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है बल्कि इसलिए भी कि भारत-पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं.
जब भारत पाकिस्तान के साथ बात नहीं करता, तब वह ऐसा देश नज़र आता है तो शांति वार्ता नहीं करना चाहता. पाकिस्तान यह कहता रहता है कि वह भारत से बिना-शर्त बातचीत करना चाहता है, भारत कहता है कि चरमपंथ का क्या. पाकिस्तान कहता है कि चलिए चरमपंथ पर भी बात कर लेते हैं.
खुद को ऐसा देश दिखाने के बजाय जो मुद्दे सुलझाने के लिए वार्ता की मेज पर नहीं आना चाहता भारत को बैठकर बातचीत करनी चाहिए.
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3. सैन्य विकल्पों का अभाव : परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों के लिए युद्ध कोई विकल्प नहीं है, छोटे-मोटे संघर्ष का भी सवाल नहीं उठता. सीमित सैन्य कार्रवाई कभी भी बढ़कर बड़ी हो सकती है.
जैसा कि कुछ लोग सलाह देते रहते हैं एक या दो हवाई हमले पाकिस्तान में चरमपंथ के ढांचे को ख़त्म नहीं करेंगे बल्कि यकीनी तौर पर भारत-विरोधी जिहादी तैयार करेंगे.
सीमित सैन्य विकल्प और गैर-पारंपरिक युद्ध की क्षमताएं न होने (इसे चरमपंथियों के मरने के लिए तैयार होने की तरह पढ़ें) की वजह से एकमात्र विकल्प बच जाता है, वह है कूटनीति.
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भारत पाकिस्तान से बात नहीं करता तो उसे कोई नुक़सान नहीं होगा. केवल बात करके और उसे इस प्रक्रिया में शामिल करके ही भारत पाकिस्तान पर कुछ दबाव बना सकता है. इसीलिए ‘रणनीतिक सख़्ती’ भारत की पाकिस्तान नीति का हिस्सा रही है.
4. ब्लैकमेल होना बंद करो: अगर चरमपंथी हमलों का उद्देश्य भारत-पाकिस्तान वार्ता को रोकना ही है, तो ऐसा करके उनके मन की क्यों की जाए? ब्लैकमेलिंग से हार क्यों मानी जाए?
अगर भारत बम फोड़ते जिहादियों की परवाह किए बिना वार्ता जारी रखता है तो उनके आकाओं को संदेश मिल जाएगा कि यह तरकीब काम नहीं कर रही है.
5. भारत-पाकिस्तान में जनमत तैयार किया जाए : भारतीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तान से वार्ता करने पर मजबूर होना पड़ा. इसके बदले में चरमपंथी हमलों का अपमान भी झेलना पड़ा है.
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अब समय आ गया है कि वृहद राजनीतिक सहमति बनाई जाए कि पाकिस्तान से बात करना भारत के हित में है, पाकिस्तान के प्रति दरियादिली नहीं है.
पाकिस्तान के साथ वार्ता का इस्तेमाल दोनों देशों में शांति के लिए जनमत बनाने के मौके के रूप में भी किया जाना चाहिए.
इसके बाद इस आधार पर आगे बढ़िए. उदाहरण के लिए बढ़े हुए व्यापारिक संबंध शांति का समर्थन करने वालों को आर्थिक हितों के नाम पर नई ज़मीन दे सकते हैं.
लोगों में आपसी संपर्क छवि बदलने में मददगार हो सकता है, क्योंकि लोग दूसरे देश को वास्तविक रूप में देखेंगे, ख़बरों की हेडलाइन में दिखने वाले राक्षस के रूप में नहीं.
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इसी तरह एक सुविचारित प्रक्रिया के तहत बातचीत को सियाचिन और कश्मीर जैसे मुद्दे पर सबके फ़ायदे वाले अनूठे हल के प्रति जनमत बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
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