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एक-समान शिक्षा प्रणाली से होगा बेहतर समाज का निर्माण

बेहतर देश के निर्माण के लिए बेहतर समाज का होना पहली शर्त है. किसी भी देश का सतत विकास तभी मुमकिन है, जब वहां के विभिन्न समाज और समुदायों के बीच सौहार्द, शांति व भाईचारा हो. बीता साल 2015 इस लिहाज से कुछ अच्छी यादों के साथ-साथ कई कड़वी यादें भी छोड़ गया है. हाल […]

बेहतर देश के निर्माण के लिए बेहतर समाज का होना पहली शर्त है. किसी भी देश का सतत विकास तभी मुमकिन है, जब वहां के विभिन्न समाज और समुदायों के बीच सौहार्द, शांति व भाईचारा हो. बीता साल 2015 इस लिहाज से कुछ अच्छी यादों के साथ-साथ कई कड़वी यादें भी छोड़ गया है.
हाल के दशकों में तेज आर्थिक विकास के बावजूद हमारे समाज में व्याप्त कुछ बुराइयां कम होने की बजाय लगातार बढ़ ही रही हैं. हमने देश के कुछ जाने-माने समाजशास्त्रियों से पूछा कि आखिर क्यों है यह स्थिति और 2016 में वे कौन से ऐसे कदम उठाये जाने चाहिए, जिससे हमारा समाज बेहतरी की ओर अग्रसर हो. नये साल से समाजशास्त्रियों की उम्मीदों और आकांक्षाओं के साथ पेश है आज का नववर्ष विशेष.
– हर्ष मंदर
प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता
– देश में जिस तरह से सामाजिक मूल्याें में क्षरण देखने को मिल रहा है, ऐसे वक्त में इस नये साल में भारतीय समाज के लिहाज से क्या उम्मीदें हैं और बेहतर समाज के लिए क्या किये जाने की जरूरत है?
हमारे समाज के बुनियादी मूल्य और परंपराओं के जो पहलू हैं, उनकी सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि व्यापक सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विभिन्नताओं के बावजूद हम एक-दूसरे के साथ प्यार-मुहब्बत से रहते आये हैं. हम आगे भी ऐसे ही रहते जायें, इसके लिए हमें कोशिश यह करनी होगी कि इन पहलुओं को लेकर हम रूढ़िवादी न हो जायें, बल्कि नवीन और लोकतांत्रिक विचारों का संचार करें, तभी हम अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं, तभी हम सामाजिक मूल्यों के क्षरण को रोक सकते हैं.
किसी भी समाज की बेहतरी में राजनीति की अहम भूमिका होती है, जो उसकी प्रगति को लेकर नीतियों का निर्धारण करती है. यह उसकी अपनी जिम्मेवारी है और जब वह अपनी इस जिम्मेवारी को नहीं निभा पाती है, तो उसका थोड़ा सा असर हमारे समाज पर पड़ता है. लेकिन, हमें इससे घबराने की नहीं, बल्कि इसमें निहित अवांछनीय तत्वों को पहचान कर उन्हें दूर करने की जरूरत है.
– खुद समाज की क्या जिम्मेवारी है, खुद काे बेहतर से बेहतरीन बनाने या बनाये रखने के लिए?
किसी भी चीज की बेहतरी के लिए सबसे पहली जिम्मेवारी उसी चीज की होती है, कि वह अपने को कितना बेहतरीन सांचे में ढालने की कोशिश करता है. ठीक इसी तरह एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए भी समाज की ही पहली जिम्मेवारी है कि वह खुद को बेहतर बनाने की हरमुमकिन कोशिश करे. एक बेहतर समाज का निर्माण समानता की बुनियाद पर ही हो सकता है. समाज में बिना किसी भेदभाव के सबके अंदर सबके प्रति समानता का भाव हो, यह समाज की नैतिक जिम्मेवारी है, जिसके जरिये बेहतर से बेहतरीन समाज बनाया जा सकता है.
– हालिया आंकड़ों के मुताबिक देश में वंचित तबकों के खिलाफ हिंसा तेजी से बढ़ रही है. इसके कारण क्या हैं और वंचित तबकों को समाज की मुख्यधारा में लाने में कितनी बड़ी जिम्मेवारी है हमारी?
इस हिंसा का सबसे बड़ा कारण आर्थिक है. पिछले दस-पंद्रह सालों में आर्थिक विकास में जो बढ़ोतरी हुई है, उससे अपेक्षा थी कि इसका फायदा समाज के हर तबके तक पहुंचेगा. नौकरियां बढ़ेंगी और बेरोजगारी कम होगी. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं. साल 2004 से 2010 तक सबसे अच्छा आर्थिक विकास रहा, लेकिन उन्हीं सालों में सबसे कम नौकरियों का सृजन हुआ. इस स्थिति ने समाज में आर्थिक असमानता को बढ़ाया है, जिसके परिणामस्वरूप हिंसा बढ़ी है.
बीते सालों में हमारे गांवों में भूमिहीनता भी बढ़ी है, जिससे कि आर्थिक रूप से कमजोर तबका और भी कमजोर होता चला गया है. उनकी यह कमजोरी उन्हें किन्हीं भी परिस्थिति में कोई भी काम करने के लिए मजबूर बना रही है. अमीर-गरीब की खाई जितनी गहरी होगी, वंचित तबका हिंसा का आसान लक्ष्य बनता चला जायेगा. इसलिए हमारे देश-समाज की यह एक बड़ी जिम्मेवारी है कि वंचित तबकों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जाये और उन्हें मुख्यधारा में लाया जाये. उनके लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करने की जरूरत है. एक दूसरी बात यह है कि कुछ साल पहले देश का वंचित तबका आसानी से हर बात मान लेता था और अपने खिलाफ होनेवाली किसी हिंसा के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता था, इसलिए हिंसा की घटनाएं छिप जाती थीं.
लेकिन, अब समाज में जागरूकता बढ़ी है और वंचित तबकों के लोगों ने भी आवाज उठाना शुरू कर दिया है. इससे अब सारी हिंसक घटनाएं खबरों का हिस्सा बन रही हैं. समाज को चाहिए कि वंचित तबकों की आवाज को सुने और हिंसा का सहारा लेने की बजाय उनका बुनियादी हक उन्हें दे. हमें इसे एक बड़ी जिम्मेवारी के रूप में स्वीकार करना चाहिए.
– देश में महिलाओं के खिलाफ भी अपराध लगातार बढ़ रहे हैं. इस नये साल में यह न बढ़े, इसके लिए हमें क्या कदम उठाने और क्या संकल्प लेने की जरूरत है?
महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ने के कारणों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जो शोध हुए हैं, उनसे पता चलता है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की तकरीबन नब्बे प्रतिशत घटनाएं महिलाओं-लड़कियों के नजदीकी या परिचित लोगों द्वारा ही अंजाम दी जाती हैं.अकसर वे अपने ही घर-परिवार के लोग, पास-पड़ोस के लोग या करीबी रिश्तेदार आदि होते हैं, जो ऐसा घिनौना काम करते हैं.
अफसोस की बात यह है कि इस नब्बे प्रतिशत हिंसक घटनाओं के बारे में हम कभी बात ही नहीं करते. बाकी जो यौन हिंसा की दस प्रतिशत घटनाएं हैं, जो बिल्कुल अजनबी जगहों पर अजनबियों द्वारा कहीं-कहीं, कभी-कभी अंजाम दी जाती हैं, हम इसके बारे में खूब बहस करते हैं और कड़ी से कड़ी सजा के लिए सख्त से सख्त कानून बनाने की मांग करते हैं. सबसे पहले जरूरी यह है कि परिवार और समाज के अंदर, कार्यस्थलों पर और रात में बाहर की दुनिया में हम महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान दें. यह भी हमारे समाज की ही जिम्मेवारी है कि वह ऐसा करने का संकल्प ले. सिर्फ सख्त कानून बना देनेभर से तो कुछ नहीं होगा.
– हमारे घर-परिवारों में बच्चों और बुजुर्गों को लेकर भी लापरवाहियां खूब दिखती हैं. बच्चाें में हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही है और बुजुर्ग बोझ की तरह समझे जाने लगे हैं. बेहतर समाज के लिहाज से यह एक दुखद स्थिति है. इसे ठीक करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
बड़े-बुजुर्ग लोग अपने बच्चाें से डरें या बच्चे अपने बड़े-बुजुर्गों से डरें, इस बात की स्पष्टता बहुत जरूरी है हमारे समाज के लिए. देखना यह भी है कि बड़ों के हाथ बच्चे सुरक्षित हैं कि नहीं या बच्चों के हाथ बड़े सुरिक्षत हैं कि नहीं. पहले तो ये बातें बिल्कुल साफ होनी चाहिए. एक बच्चा अगर सड़क पर किसी हिंसक गतिविधि में लिप्त होने को मजबूर होता है, तो वह अपने घर में होनेवाली हिंसा के कारण होता है. बहुत से घरों में ऐसी हिंसक घटनाएं घटित होती हैं, जिससे बच्चे घर छोड़ कर चले जाते हैं और शहरों की सड़कों पर जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
हम आज तक देश में अपनी सड़कों के माहौल को ऐसा नहीं बना पाये हैं कि बेघर बच्चों को सुरक्षित जीवन दे सकें. उनके लिए बेघर आवास की व्यवस्था भी नहीं है. जाहिर है, ऐसे बच्चों की सोच में हिंसा आसानी से अपना घर बना सकती है. फिर भी मेरे पास यह मानने के तथ्यात्मक आधार नहीं हैं कि बच्चों में हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ी है. लेकिन, यह जरूर है कि बच्चों को सुरक्षित और प्यार भरा माहौल मिले, तो बच्चों में अच्छी प्रवृत्ति को पनपाया जा सकता है.
जहां तक बुजुर्गों की बात है, तो वे भी अपनी हालत में सुरक्षित नहीं हैं. अगर वे परिवार में नहीं रहना चाहते या परिवार के पास उनके लिए समय नहीं है, तो एेसी स्थिति में बुजुर्गों के लिए ऐसी कोई जगह नहीं बनायी गयी है, जहां जाकर वे रह सकें. हमें इन दोनों की सुरक्षा और सम्मान के लिए प्रयास करने चाहिए और यह समाज को ही करना होगा, खुद घर-परिवार को ही यह जिम्मेवारी निभानी होगी. अगर इसके लिए हम किसी अन्य पर या सरकार पर निर्भर रहेंगे, तो मैं समझता हूं बहुत देर हो जायेगी.
– हमारे समाज को बेहतर से बेहतरीन बनाने के लिए आपके हिसाब से पांच बड़े और महत्वपूर्ण कदम क्या होने चाहिए, जिनका हम इस नये साल में संकल्प लें?
सबसे पहला कदम यह होना चाहिए कि बच्चों की शिक्षा के अधिकार के तहत एक-समान शिक्षा प्रणाली लागू हो, जहां अमीर-गरीब और हर धर्म-जाति के बच्चे एक साथ बैठ कर पढ़ सकें, ताकि उनमें ऊंच-नीच के भेदभाव वाले संकीर्ण भाव न पनपने पायें.
समाज के परिवर्तन के लिए यह पहला कदम होना चाहिए कि बच्चों की बुनियादी शिक्षा में उनके अंदर हरेक के प्रति समानता का भाव पैदा हो, ताकि वे भविष्य में स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें. शिक्षा के निजीकरण से ही देश में असमान शिक्षा प्रणाली विकसित हुई है, इसे ठीक करना बहुत जरूरी है.
दूसरा कदम यह होना चाहिए कि सामाजिक सुरक्षा को लेकर जो बुनियादी कदम हैं- जैसे हर इंसान को स्वास्थ्य की अच्छी व्यवस्था मिले, मुफ्त इलाज मिले- इन कदमों को ईमानदारी से उठाये जाने चाहिए. दुनिया के कई देशों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था है, लेकिन हमारे देश में जीडीपी का सिर्फ करीब एक प्रतिशत ही स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, जो बहुत कम है.
तीसरा कदम यह होना चाहिए कि देश में बुजुर्गों के लिए यूनिवर्सल पेंशन की व्यवस्था हो, ताकि बुजुर्गों को सम्मान से जीने का हक मिल सके.
चौथा कदम यह होना चाहिए कि कोई चाहे किसी भी धर्म से हो, वह संविधान की सेक्युलर भावना का सम्मान करे. अगर देशभर में हर स्तर पर संविधान की मूल भावना बहाल होती है, तो हमारा समाज एक बेहतरीन समाज बन जायेगा.
पांचवां और आखिर कदम यह होना चाहिए कि देश में प्रशासनिक स्तर पर सुधार के तहत सबसे पहले चुनाव सुधार हो, क्योंकि यह कई प्रकार के भ्रष्टाचार की जड़ है. चुनाव सुधार हो जाये, तो राजनीति की दशा-दिशा कुछ ठीक होगी और भ्रष्टाचार कम होगा, तो समाज की दशा-दिशा सकारात्मक होगी.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
‘डेमोक्रेटिक इकोनॉमिक्स’ से सुलझेंगी समाजिक समस्याएं
– शिव विश्वनाथन
वरिष्ठ समाजशास्त्री
कृषि में सुधार जरूरी
किसानों द्वारा आत्महत्या के मामलों को कोई संजीदगी से नहीं ले रहा है. मौजूदा सरकारें बायोटेक्नोलाॅजी से खेती का परिदृश्य बदलना चाहती हैं. इस दिशा में काफी चर्चा भी हो रही है, लेकिन इस पूरे सिस्टम को लोकतांत्रिक तरीके से लागू करना होगा, अन्यथा किसानों की दशा को नहीं सुधारा जा सकता.
फॉरमल इकोनॉमी का दायरा बढ़े
आज देशभर में जिस स्मार्ट सिटी की बात हो रही है, उसमें कहीं भी कोई स्मार्टनेस नहीं दिख रहा है. इसमें इनफाॅरमल इकोनॉमी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा. देश में करीब 70 फीसदी आबादी इनफाॅरमल इकोनॉमी से जुड़ी है. इतनी बड़ी आबादी के फाॅरमल इकोनॉमी से वंचित रहने की दशा में अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव नहीं आ सकता. इसलिए सबसे पहले इन्हें फाॅरमल इकोनॉमी से जोड़ना होगा.
सभी के लिए हो समान अवसर
सरकार को सामाजिक क्षेत्र की नीतियों की समीक्षा करनी होगी. देशभर में अनेक प्रकार की हिंसा हो रही है, जिसे रोकना होगा. विस्थापन की बड़ी समस्या पैदा हो गयी है. सभी को समान अवसर मुहैया कराने पर जोर देना होगा. बेरोजगारी जैसी समस्या से सबसे पहले निबटना होगा.
डेमोक्रेटिक इकोनॉमिक्स की जरूरत
मौजूदा आर्थिक विशेषज्ञ इस दिशा में ज्यादा नहीं सोचते हैं. साहित्य, विचारधारा, विज्ञान आदि पर तो चर्चा हो रही है, लेकिन इकोनॉमिक्स पर इस तरह की कोई चर्चा नहीं होती है.
केवल ‘मेक इन इंडिया’ की बात करने से कुछ नहीं होगा. एग्रीकल्चर और इनफाॅरमल सेक्टर पर जब तक ध्यान नहीं दिया जायेगा, तब तक अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होगा. इसके लिए विश्व बैंक से बात की जा सकती है. इसके लिए केवल मिडल क्लास को प्रोमोट करने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा. हाशिये पर मौजूद लोगों को बढ़ावा देने पर ही आर्थिक सुधार की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है.
इकोलाॅजिकल डिजास्टर से बचाव
आपदाग्रस्त इलाकों में होने वाली रिकवरी बेहद धीमी गति से हो रही हैं. आपदाग्रस्त इलाकों पर सरकार का पूरा ध्यान नहीं होने की दशा में अर्थव्यवस्था पर उसका बुरा असर पडता है. उदाहरण बहुत से हैं, जिसमें चेन्नई हमारे सामने है. इकोलाॅजी का अर्थशास्त्र अलग होता है, जिसे हमें समझना होगा.
समाज के वंचित तबकों को मुख्यधारा में लाने की हो कोशिश
-शम्सुल इस्लाम
सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक
नये साल में बढ़े सामाजिक सौहार्द
बीते साल देशभर में जितनी भी नकारात्मक घटनाएं घटीं, उन सबके मद्देनजर नये साल में इस बात से ज्यादा उम्मीद होगी कि भाजपा सहित तमाम राजनीतिक पार्टियां देश की सांविधानिक, लोकतांत्रिक और सेक्यूलर ढांचे के हिसाब से अपने आप को बदलें, ताकि समाज में सौहार्द बढ़ सके. हमारे समाज में राजनीतिक गंदगी की वजह से ही ढेर सारी दिक्कतें पैदा हो रही हैं, इसलिए सबसे पहले राजनीति को अपने आप को बदलना होगा.
नकारात्मक तत्वों से रहें सावधान
हमारा देश इतना मजबूत है कि इसको बाहर का कोई भी तोड़ नहीं सकता, हमें डर अपने अंदर के दुश्मनों से है. पाकिस्तान का आज जो हाल है, क्या उसमें किसी बाहरी का हाथ है? नहीं. उसके लिए खुद पाकिस्तान ही जिम्मेवार है. कुछ राजनीतिक पार्टियां और संस्थाएं भी देश को पाकिस्तान की राह पर ले जाने की कोशिश कर रही हैं, उनसे हमें सावधान रहना होगा.
ऊंच-नीच की खाई कम हो
हमारा समाज अब भी ऊंच-नीच की गहरी होती खाई को नजरअंदाज कर रहा है, जिसका खामियाजा दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार बढ़ रहे हैं. दलितों के खिलाफ तीन सौ गुना हिंसा बढ़ी है
हमारे देश में. अगर यह नहीं रुका, तो इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन इनका गुस्सा फूट पड़ेगा और तब हमारा समाज मुश्किल में पड़ जायेगा. जो सत्ता में हैं, वे आरक्षण खत्म करने की बात करते हैं, जबकि वंचित तबकों के सशक्तीकरण के लिए यह बहुत जरूरी है. वंचितों को ये आश्वासन देना होगा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार हरसंभव पहल करेगी.
औरतों की स्थिति सुधरे
भारतीय औरतों की स्थिति भी ठीक नहीं है, उनकी अस्मिता को लेकर खतरा बढ़ रहा है. जो सत्ता में हैं, वे मनुस्मृति को लागू करना चाहते हैं, जो औरतों को सिर्फ बच्चे जनने की बात करता है. इस सोच का नतीजा है कि देश में औरतों के खिलाफ हिंसात्मक वारदातें लगातार बढ़ रही हैं. इन्हें रोकने का संकल्प लेना होगा.
सबके लिए समान शिक्षा
देश में शिक्षा का सत्यानाश होता जा रहा है. जिस तरह से शिक्षा का निजीकरण किया जा रहा है, उससे लगता है कि आनेवाले दिनों में अच्छी शिक्षा मध्यवर्ग के दायरे से भी बाहर की चीज हो जायेगी. इसलिए सरकार को चाहिए कि शिक्षा का निजीकरण न करे और हर अमीर-गरीब के लिए एकसमान शिक्षा की व्यवस्था करे, तभी देश में समानता और सामाजिक सौहार्द कायम हो पायेगा.

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