रोजमर्रा की जिंदगी में हमें अकसर ऐसे लोग मिलते हैं, जो यह कहते हैं कि कोई काम अकेले मेरे करने से क्या होगा? सब करेंगे, तभी तो इसका निष्कर्ष निकलेगा. जब हम देश में फैले भ्रष्टाचार की भी चर्चा करते हैं, तब भी हम यही सोचते हैं कि अकेले मेरे करने से क्या होगा? हमारा इशारा दूसरों की तरफ होता है. हम यह प्रश्न खुद से करना भूल जाते हैं कि क्या हमने अपनी जिम्मेवारी निभायी? आज की कहानी हमें इस बात को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगी.
किसी जमाने में एक राजा हुआ करता था. उसकी प्रजा अपने राजा से बेहद खुश थी. राजा भी अपनी प्रजा पर जान छिड़कता था और उनकी भलाई के लिए हर काम करने को तैयार रहता था. एक बार उसके राज में भीषण अकाल पड़ा, लोग मरने लगे. राजा बहुत चिंतित हो गया और किसी भी तरह अकाल से निकलने का उपाय करने लगा.
पूजा-पाठ कराया, हवन कराया, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला. तभी राजा को किसी ने बताया कि पास के जंगल में कोई महान साधु पधारे हैं, जो इस समस्या का हल निकाल सकते हैं. राजा भागा-भागा साधु के पास गया और अपनी समस्या का वर्णन किया. साधु ने ध्यान लगाया और थोड़ी देर बाद राजा से बोला, तुम्हारे महल के पास एक सूखा कुआं है. तुम अपनी प्रजा से कहो कि हर व्यक्ति अपने घरों से एक-एक लोटा दूध आज रात उस कुएं में डाल दें. ऐसा करते ही कल से तुम्हारे राज से अकाल खत्म हो जायेगा. साधु की बात सुन कर राजा अपने राज लौटा और उसने इस बात की मुनादी पूरे राज्य में करा दी कि हर व्यक्ति आज रात उस कुएं में एक-एक लोटा दूध अवश्य डाले. प्रजा में एक बुढ़िया भी थी.
उसने सोचा कि सारे लोग तो दूध डालेंगे ही, यदि मैं दूध की जगह पानी डाल दूं, तो किसी को क्या पता चलेगा. बुढ़िया ने चुपचाप जाकर एक लोटा पानी डाल दिया. सबने यही किया. अगले दिन राजा ने देखा कि अकाल अभी खत्म नहीं हुआ और लोग ऐसे ही मर रहे थे. राजा कुएं के पास यह देखने के लिए गया कि प्रजा ने रात को दूध डाला कि नहीं. राजा कुएं के अंदर देख कर दंग रह गया. कुएं में पानी भरा था. सारी प्रजा ने यह सोच कर एक लोटा पानी डाल दिया था कि दूसरा तो दूध डालेगा ही.
तात्पर्य यह है कि हमें किसी भी दूसरे को प्रवचन देने का अधिकार तभी है, यदि सबसे पहले हम स्वयं उस काम को करने के लिए तैयार हैं. यदि हमें सचमुच आत्मसंतुष्टि चाहिए, तो हमें अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपने की आदत से बचना होगा.
आशीष आदर्श, कैरियर काउंसेलर,
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