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बंद करें अपनी तरफ से शब्दों को जोड़ना
दक्षा वैदकर मेरी एक दोस्त है. उसे नींद में बड़बड़ाने की आदत है. वैसे, वह कुछ ज्यादा नहीं बोलती. बस, एक-दो शब्द बोल कर चुप हो जाती है. बचपन में उसने नींद में कभी ‘झुमरी तिलैया’ जगह का नाम बोला और सो गयी. दरअसल रेडियो पर अक्सर इस जगह से गाने की फरमाइश आती थी, […]
दक्षा वैदकर
मेरी एक दोस्त है. उसे नींद में बड़बड़ाने की आदत है. वैसे, वह कुछ ज्यादा नहीं बोलती. बस, एक-दो शब्द बोल कर चुप हो जाती है. बचपन में उसने नींद में कभी ‘झुमरी तिलैया’ जगह का नाम बोला और सो गयी. दरअसल रेडियो पर अक्सर इस जगह से गाने की फरमाइश आती थी, तो उसे यह नाम याद रह गया था.
उस रात जब उसने नींद में वह शब्द बोला, तो पास लेटी उसकी बहन ने सुन लिया. उसने सुबह उठ कर सभी को हंसते-हंसते बताया कि बहन नींद में कह रही थी ‘भैया.. झुमरी तिलैया’. इस तरह उसने भैया शब्द अलग से जोड़ दिया. यह किस्सा घरवालों ने किसी और को हंसी-मजाक में बताया और उसमें हर व्यक्ति द्वारा हर बार नये शब्द जुड़ते चले गये. इस बात को सालों हो गये हैं और अब यह पूरी लाइन बन चुका है, यानी ‘ओ रिक्शा वाले भैया.. झुमरी तिलैया जाने का कितना रुपये लोगे?’
जब भी सभी रिश्तेदार साथ में बैठते हैं, मेरी उस दोस्त का मजाक यह लाइन कह-कह कर उड़ाते हैं. उससे पूछते है कि नींद में रिक्शे में बैठ कर झुमरी तलैया क्यों जाना चाह रही थी? मेरी दोस्त समझा-समझा कर थक गयी है कि मैंने इतनी लंबी लाइन नहीं कही थी, लेकिन कोई उसकी बात पर यकीन नहीं करता. ये तो हो गयी हंसी-मजाक की बात, लेकिन कई बार लोग यूं ही अपने मजे के लिए गंभीर बातों में भी अपनी तरफ से शब्द जोड़ते चले जाते हैं. कहानियां बनाते चले जाते हैं.
किन्हीं दो लोगों को मॉल में साथ देख लिया, तो पूरी कहानी बन जाती है. कोई कहेगा कि साथ में बात करते देखा. कोई जोड़ेगा कि साथ में खाना भी खाया. कोई कहेगा, हाथ में हाथ डाले घूम रहे थे. कोई कहेगा कि पूरा दिन साथ थे. शॉपिंग की और साथ में उन्होंने फिल्म भी देखी. कोई कहेगा कि मैंने फिल्म देखते देख लिया, तो सकपका कर छिपने लगे.
कोई कहेगा कि इनकी तो शादी होने वाली है. इस तरह किसी के बारे में भी लोग बिना कुछ सोचे-समझे लाइनें जोड़ते चले जायेंगे. जबकि सच्चई यह होगी कि दोनों अलग-अलग किसी काम से गये थे और मॉल में आमना-सामना हुआ, तो दो मिनट रुक कर बात कर ली.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
– जब तक किसी बात का पक्का सबूत न हो, सुनी-सुनायी बातों को आगे न बढ़ाएं. किसी को वह बात बताते वक्त अपनी तरफ से कुछ भी न जोड़ें.
– अगर आप दूसरों की जिंदगी के बारे में ऐसे ही कहानियां बनाते जायेंगे, तो अपनी कहानी दूसरे के द्वारा बनाने जाने के लिए भी तैयार रहें.
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