।। प्रोवीरामगोपालराव ।।
– आइआइटी बांबे के प्रोफेसर
– राव ने बनायी नैनो मशीन
वैज्ञानिक नैनो तकनीक को 21 वीं सदी की सबसे बड़ी क्रांति बताते हैं. नैनो उपकरण सुरक्षा के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं. इस दिशा में आइआइटी बांबे के प्रोफेसर राव ने उल्लेखनीय काम किया है. कई अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में उनके रिसर्च प्रकाशित हुए हैं.
– म्यूनिख, जर्मनी के यूनिवर्सिटेट डेर बुंदेश्वर से पीएचडी (1997)
– काकातीय विवि से 1986 में बीटेक
– आइआइटी बांबे से 1991 में एमटेक
कल्पना कीजिए कि किसी रैली में वीआइपी के आने से पहले सुरक्षा दस्ते स्निफर कुत्तों की बजाय ई–डॉग से मैदान का मुआयना करें. हो सकता है कि आप यह सुनकर चौंक गये हों कि यह ई–डॉग क्या बला है. पर सच्चाई है कि दिन–ब–दिन एडवांस होते टेक्नोलॉजी में नैनो टेक्नोलॉजी सभी पर भारी पड़ने वाली है.
आइआइटी बांबे के सेंटर ऑफ एक्सलेंस इन नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स के प्रमुख शोधकर्ता और इलेक्ट्रिक्ल इंजीनियरिंग में इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसर डॉ वी रामगोपाल राव ने 15 ऐसे नैनो उपकरण तैयार किये हैं, जो समाज के लिए उपयोगी हो सकती हैं.
ई–डॉग और प्वांइट ऑफ केयर सेंसर ऐसे ही नैनो टूल्स हैं. तकनीक का कमाल : ई–डॉग भीड़ भरे मॉल में या रेलवे स्टेशन पर प्लांट किये गये बमों की पहचान कर सकता है. आइआइटी बांबे से एमटेक डिग्री और म्यूनिख, जर्मनी की यूनिवर्सिटेट डेर बुंदेश्वर से पीएचडी प्राप्त प्रोफेसर रामगोपाल राव से प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार प्रो सीएनआर राव (भारत रत्न देने की घोषणा) ने विस्फोटकों की पहचान करने वाले किसी ठोस तकनीक पर काम करने को कहा.
प्रो रामगोपाल ने 2008 में ई–डॉग प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया. अब ई–डॉग प्रोजेक्ट पर काम पूरा हो चुका है. डॉ रामगोपाल ने आइआइटी बांबे की सोसाइटी फॉर इनोवेशन एंड इंटरप्रेन्योरशिप (एसआइएनइ) में सौम्या मुखर्जी और अन्य 20 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर नैनोस्निफ टेक्नोलॉजिज प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की. इस टीम ने कम लागत वाले ‘प्वांइट ऑफ केयर’ सेंसर का निर्माण किया, जो कुछ मिनटों में ही रक्त में कार्डियक मार्कर की पहचान कर सकता है. इस प्रोजेक्ट की फंडिंग डीआरडीओ ने की थी.
बसों में सेंसर का प्रयोग : प्रोफेसर रामगोपाल की टीम मुंबई की बेस्ट बसों में सेंसर नेटवर्क लगाने की तैयारी कर रही है. इसमें भी ई–डॉग जैसी तकनीक का ही इस्तेमाल किया जायेगा. प्रो रामगोपाल बताते हैं कि पूरे बस में कई सेंसर लगे होंगे. ये सेंसर किसी बैटरी या चाजर्र से चार्ज नहीं होंगे, बल्कि बसों में होने वाले वाइब्रेशंस से चार्ज होंगे.
इस तकनीक को पेटेंट भी कराया गया है. सेंसर लगे बस में यदि विस्फोटक रखे जाते हैं, तो उस पूरे एरिया में लाल सिग्नल दिखने लगेगा. इसकी जानकारी बस के ड्राइवर को टैबलेट के माध्यम से हो सकेगी और फिर तुरंत इसकी जांच की जा सकेगी.
रिसर्च को बाजार का साथ नहीं : प्रो रामगोपाल को इस बात की शिकायत है कि नये इनोवेशंस और रिसर्च को बाजार का समर्थन नहीं मिलता. रिसर्च का कमर्शियल इस्तेमाल और प्रोडक्ट को मार्केट में उतारना टेढ़ी खीर है. भारत में रिसर्च और इनोवेशंस की जगह सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू करना अधिक आसान है.
वह कहते हैं कि अमेरिका जैसे देशों में रिसर्च के लिए जिस तरह सरकार और कॉरपोरेट कंपनियां फंड उपलब्ध कराती हैं, वैसा भारत में नहीं है. राव द्वारा स्थापित नैनोस्निफ टेक्नोलॉजिज प्राइवेट लिमिटेड को केवल आइआइटी बांबे से ही फंड उपलब्ध हो पाता है.
रिसर्च का दायरा : प्रो राव के रिसर्च का फोकस नैनो उपकरणों के डिजाइन, सर्किट, सेंसर और उनके इस्तेमाल और प्रभाव को लेकर है. उनका रिसर्च सेमीकंडक्टर इंजीनियरिंग में नैनो तकनीक के अधिकाधिक इस्तेमाल को लेकर केंद्रित है. वह दुनिया की बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियों इंटेल, आइबीएम, अप्लाइड मेटेरियल्स आदि से जुड़े रहे हैं.