21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नारीवादी लेखनः ‘हमारा’ विमर्श इस बरस

अनामिका वरिष्ठ कवि, नारीवादी चिंतक, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए बरस शब्द से याद आया बंदिनी में फ़िल्माया गया वह पुरबिया लोकगीत, ”अब की बरस भेजो भैया को बाबुल…" ज़माने बीत गए स्त्रियों को पुकारते हुए, कभी बाबुल कभी भैया, कभी परदेसी पिया, कभी राम कभी कान्हा कभी ये कभी वो! पिछले कुछ वर्षों […]

Undefined
नारीवादी लेखनः 'हमारा' विमर्श इस बरस 7

बरस शब्द से याद आया बंदिनी में फ़िल्माया गया वह पुरबिया लोकगीत, ”अब की बरस भेजो भैया को बाबुल…"

ज़माने बीत गए स्त्रियों को पुकारते हुए, कभी बाबुल कभी भैया, कभी परदेसी पिया, कभी राम कभी कान्हा कभी ये कभी वो! पिछले कुछ वर्षों में ये हुआ कि ये गुहार स्वयं को निवेदित हो गई.

वैसे तो आत्माह्वान का यह सिलसिला 19वीं सदी से आरंभ हुआ लेकिन पिछले बरस इस पुकार में स्वयं पर हँस लेने का शील भी उभरा.

आत्माह्वान का एक बड़ा पक्ष आत्मविश्लेषण तो होता ही है. पश्चिम में ‘डिस्कोर्स’ चाहें गिरजाघर से लबादे पहनकर अकेला निकला हो, पर हमारे यहां विचार-विमर्श की जोड़ी शंकर जयकिशन, कल्याण जी-आनंद जी और नदीम-श्रवण की मस्त मलंग जोड़ी बनकर उभरी.

विमर्श यानी सलाह मशविरा, सार्वजनिक जीवन में उस नए विचार का प्रवेश जो अब तक भीतर-भीतर उमड़ा. पिछले बरस जो कृतियां सामने आईं उन्हें एकसूत्र करता है, नई स्त्रियों में इस समझ का विकास कि विचार-विमर्श की तरह स्वानुभूति-सहानुभूति भी सदा साथ चलने वाला सुंदर समझदार जोड़ा है.

Undefined
नारीवादी लेखनः 'हमारा' विमर्श इस बरस 8

स्वानुभूति सहानुभूति का महत्व कम करके नहीं आंकती, परकाया प्रवेश का महत्व समझती है. वह यह भी समझती है कि सत्य एकमुखी रुद्राक्ष नहीं होता, बहुआयामी, बहुतलीय रत्न होता है. भाषा और अस्मिता की तरह मनःसामाजिक यथार्थ का हर आयाम तरणशील और परतदार होता है.

और लिंग, वर्ण, वर्ग, नस्ल, धर्म, काल और स्थानादि कई गढ़ंतों के लैंस एक साथ या एक-एक करके आज़माए जाएं, तब भी ‘संपूर्ण’ यथार्थ की शाश्वत समझ विकसित नहीं हो सकती.

हिंदी के अद्यतन स्त्रीविमर्श के तीन पक्ष उभरते हुए दिखाई देते हैं- 1) स्त्री लैंस से देश-दुनिया की और स्वयं स्त्री के देह-मन की नई समझ का विकास.

2) विकास के नए मॉडलों की तलाश जहां कोई किसी पर हावी न हो, न प्रकृति का दोहन हो न मनुष्य का. विकास के अवसर सबको बराबर मिलें.

3) करुणासंबलित न्यायदृष्टि का पल्लवन हर तरह हो. यानी युद्ध और दंगा, घरेलू और बाहरी आतंकधर्मिता, हिंसा और असंतुलन धीरे-धीरे वैयक्तिक जीवन और जनजीवन से ग़ायब हो जाए

Undefined
नारीवादी लेखनः 'हमारा' विमर्श इस बरस 9

कहानियों, कविताओं और निबंधों के समवेत संकलन ‘एकला चलो रे’ या ‘हंस अकेला जाई’ का सुखद प्रतिपक्ष रचते हैं और बहनापे के सातों रंग आकाश में पंख तोलते और एक साथ उड़ते दिखाई दे जाते हैं.

आत्मकथा भी अयं से वयं की तरफ बढ़ती दिखाई देती है. निर्मला जैन की सद्य प्रकाशित आत्मकथा का तो नाम ही है, ‘ज़माने में हम’.

पिछले बरस तीन बहनों की समवेत कथा जिस लय में मृदुला गर्ग ने शुरू की थी, उसमें भी परिवेश और आत्मन के पारस्परिक परावर्तन की कई श्रुतियां अनुश्रुतियां एक साथ सुनाई दी थीं.

Undefined
नारीवादी लेखनः 'हमारा' विमर्श इस बरस 10

कृष्णा अग्निहोत्री और रमणिका गुप्ता की आत्मकथाएं पत्रकारिता और सड़क खदान आदि की राजनीति में अपना स्पेस गढ़ती स्त्रियों के देह दोहन की अंतर्व्यथा उधेड़ती थीं. निर्मला जी की आत्मकथा वृहत्तर सामाजिक राजनीतिक विडंबनाओं में स्त्री निजता की फ्रेमिंग करती दिखाई देती है.

स्त्री चिंतकों और दार्शनिकों की भी एक पूरी नई पीढ़ी उभर रही है. इसमें आलोचक, अनुवादक, प्रकाशक, भाष्यकार, संपादक और लोकवक्ता के रूप में पढ़ी-लिखी धैर्यवान युवा स्त्रियां उसी कौशल और प्रखरता से इखरे-बिखरे स्त्री पाठों का तेजस्वी पुनःपाठ कर रही हैं, जैसे पुरानी स्त्रियां घर में इधर-उधर बिखरी चींज़ें और मन में चारों तरफ़ बिखरी हलचलें संभालती थीं, अपनी ही नहीं, आसपास के हर परेशानहाल व्यक्ति के मन की हलचलें.

Undefined
नारीवादी लेखनः 'हमारा' विमर्श इस बरस 11

विमर्श का यह सर्वसमावेशी पक्ष अपने अन्यतम रूप में जिनके लेखन, संपादन, अनुवाद और प्रकाशन में उजागर हुआ है, वे हैं, रेखा कस्तूरवार, रोहिणी अग्रवाल, अर्चना वर्मा और गरिमा श्रीवास्तव, सुधा सिंह, सुनीता सृष्टि, हेमलता माहेश्वर, अनीता भारती और अदिति माहेश्वर.

अनीता भारती ने बजरंग बिहारी तिवारी के साथ मिलकर दलित साहित्य के इतिहास लेखन की जो महत्वपूर्ण पहल की है, उसकी जितनी सराहना की जाए, कम है. अदिति ने ‘थर्ड जेंडर’ पक्ष से लक्ष्मी का जीवन-जगत उजागर किया है.

इसमें भी दुनिया बड़ी करने की वही आत्मीय दृष्टि है, जो हिंदी में पनप रहे स्त्रीविमर्श का प्रस्थान बिंदु कही जा सकती है. इस क्रम में निर्मला मुराड़िया की ‘ग़ुलाममंडी’ का भी महत्वपूर्ण स्थान है.

Undefined
नारीवादी लेखनः 'हमारा' विमर्श इस बरस 12

विमर्श की इस प्रवृत्ति का भी सजग रेखांकन होना चाहिए कि यहां मिथकों की उलझी जटाएं सुलझाने और कई बार उनका शीर्षासन करा देने के क्रम में पुनर्पाठ और पुनर्लेखन का तेजस्वी सिलसिला भी उभरा है.

इनमें वोल्गा की कहानियों के अनुवाद क्रम में तेलुगु-हिंदी के अनुवादक जेएल रेड्डी की सीता के अन्य पौराणिक पात्रों से अंतःपाठीय संवाद की प्रस्तुति उल्लेखनीय है.

पुरानी इमारतें ढहाकर नए मॉडल के फ़्लैटों में तब्दील करने के उत्तर आधुनिक अभियानों को एक रूपक के रूप में अलका सरावगी का सद्य प्रकाशित उपन्यास जिस तेवर में उठाता है, उसके आलोक में हम कुछ तेजस्वी नई लेखिकाओं के कविता-कहानी संकलनों की धार परख सकते हैं- सोनी पांडे सोनल, पंखुड़ी सिन्हा, बाबुशा कोहली, वंदना राग, इंदिरा दांगी आदि.

ममता कालिया जैसी वरिष्ठ स्त्री चिंतक का ‘भविष्य का स्त्रीविमर्श’ उत्कृष्ट व्यंग्य के अपने ख़ास तेवर में पब्लिक स्पेस में खड़ी नई स्त्री के निजी जीवन की विडंबनाएं उजागर करता दिखाई देता है. यही वो जगह है जहां विधाओं की सरहद भी अन्य पदानुक्रमों की तरह सहज टूटती नज़र आती है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें