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‘ख़ूबसूरत बंदा देख, नूरजहां को गुदगुदी होती थी’

रेहान फ़ज़ल बीबीसी संवाददाता, दिल्ली ये वो ज़माना था जब लाहौर के गवर्नमेंट और लॉ कालेज के नौजवान या तो शीज़ान ओरिएंटल जाया करते थे या कॉन्टिनेंटल. यहाँ वो खिड़कियों के पास बैठकर गुज़रती हुई लड़कियों को निहारा करते थे. बाहर मुख्य सड़क पर पर फ़रीदा ख़ानम अपनी लंबी कार पर नूरजहाँ के साथ बहुत […]

ये वो ज़माना था जब लाहौर के गवर्नमेंट और लॉ कालेज के नौजवान या तो शीज़ान ओरिएंटल जाया करते थे या कॉन्टिनेंटल. यहाँ वो खिड़कियों के पास बैठकर गुज़रती हुई लड़कियों को निहारा करते थे.

बाहर मुख्य सड़क पर पर फ़रीदा ख़ानम अपनी लंबी कार पर नूरजहाँ के साथ बहुत तेज़ी से निकला करती थीं. दोनों जिगरी दोस्त थीं. अक्सर इनकी कार जब इन लड़कों के सामने से गुज़रती थी तो धीमी हो जाया करती थीं ताकि ये दोनों मशहूर गायिकाएं उन नौजवान लड़कों पर कनखियों से नज़र डाल सकें.

जब 1998 में नूरजहाँ को दिल का दौरा पड़ा, तो उनके एक मुरीद और नामी पाकिस्तानी पत्रकार खालिद हसन ने लिखा था- "दिल का दौरा तो उन्हें पड़ना ही था. पता नहीं कितने दावेदार थे उसके! और पता नहीं कितनी बार वह धड़का था उन लोगों के लिए जिन पर मुस्कराने की इनायत की थी उन्होंने."

अली अदनान पाकिस्तान के जाने माने पत्रकार हैं और इस समय अमरीका में रहते हैं. उन्होंने नूरजहाँ पर ख़ासा शोध किया है. जब वो पहली बार उनसे मिले तो वो काफ़ी ख़राब मूड में थीं.

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अली याद करते हैं, "नूरजहाँ उस दिन नज़ीर अली के लिए गाना रिकॉर्ड कर रही थीं और उनके गुस्से का निशाना थे मशहूर बांसुरीवादक ख़ादिम हुसैन. राग दरबारी की बंदिश में नूरजहाँ कोमल धैवत को और बारीक चाह रही थीं लेकिन ख़ादिम हुसैन से बात बन नही पा रही थी. उनके मुंह से ख़ादिम हुसैन के लिए अपशब्दों का जो सैलाब निकला था उसे सुन कर सब हक्का बक्का रह गए थे."

अली अदनान के मुताबिक नूरजहाँ की ये अदा हुआ करती थी कि वो कोई भी फ़होश या बेहूदा बात कह कर मुस्करा देती थीं कि ये मैंने क्या कहा दिया और सामने बैठा शख़्स ये सोचने पर मजबूर हो जाता था कि नूरजहाँ के मुंह से इस तरह की बात कैसे निकल सकती है. अली कहते हैं, "मैंने उनके मुंह से ऐसे ऐसे अपशब्द सुने हैं कि हीरा मंडी के बाउंसर या पुलिस के थानेदार का चेहरा भी उन्हें सुनकर शर्म से लाल हो जाए."

गाना रिकॉर्ड करते समय नूरजहाँ उसमें अपना दिल, आत्मा और दिमाग़ सब कुछ झोंक देती थीं. अली बताते है कि उन्होंने अक्सर स्टूडियो में नूरजहाँ को उनके पीछे बैठकर रिकॉर्डिंग कराते सुना है.

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अली ने बताया, "वो जो ब्लाउज़ पहनती थीं उसका गला भी बहुत लो होता था और कमर से भी उसका बहुत सा हिस्सा पीछे बैठे शख़्स को नज़र आता था. वो करीब डेढ़ बजे के आसपास रिकॉर्डिंग शुरू करती थीं लेकिन घंटे भर के अंदर उनकी पीठ पर पसीने की बूंदें दिखनी शुरू हो जाती थीं. रिकॉर्डिंग ख़त्म होतो होते वो पूरी तरह से पसीने से सराबोर होती थीं. यहाँ तक कि वो जब माइक से हटतीं थीं तो उनके नीचे का फ़र्श भी पसीने से गीला हो चुका होता था. कहने का मतलब, वो बहुत मुश्किल से गातीं थी और उनको गाने में बहुत जान मारनी पड़ती थी."

भारत और पाकिस्तान की संगीत परंपराओं पर ख़ासा काम करने वाले प्राण नेविल भारत के राजनयिक भी रह चुके हैं. उनकी नूरजहाँ से पहली मुलाक़ात 1978 में हुई थी जब वो अमरीका में सिएटल में एक कंसर्ट करने आई थीं.

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बीबीसी हिंदी स्टूडियो में प्राण नेविल के साथ रेहान फ़ज़ल.

प्राण नेविल याद करते हैं, "उन दिनों मैं सिएटल में भारत का काउंसल जनरल हुआ करता था. चूँकि वहाँ पाकिस्तान का कोई दूतावास नहीं था इसलिए आयोजक मुझे मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाना चाहते थे. उन्होंने नूरजहाँ से इसकी इजाज़त माँगी. नूरजहाँ ने कहा कि ये शख़्स हिंदुस्तानी हो या पाकिस्तानी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. मेरी शर्त ये है कि वो देखने में अच्छा होना चाहिए. सामने बदशक्ल व्यक्ति को बैठे देख मेरा मूड ऑफ़ हो जाएगा."

नेविल ने आगे बताया, "आयोजकों ने उन्हें समझाया कि वो साहब देखने में बुरे नहीं है, सबसे बड़ी बात ये है कि वो लाहौर के हैं और आपके बहुत बड़े फ़ैन हैं. तब जा कर नूरजहाँ मानी. जब मैंने उनसे फ़रमाइश की कि लगा है मिस्र का बाज़ार गाइए तो उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और उन्होंने वो गाना गाया."

नूरजहाँ ने महान बनने के लिए बहुत मेहनत की थी और अपनी शर्तों पर ज़िंदगी को जिया था. उनकी ज़िंदगी में अच्छे मोड़ भी आए और बुरे भी! उन्होंने शादियाँ की, तलाक दिए, प्रेम संबंध बनाए, नाम कमाया और अपनी ज़िंदगी के अंतिम क्षणों में बेइंतहा तकलीफ़ भी झेली. एक बार पाकिस्तान की एक नामी शख़्सियत राजा तजम्मुल हुसैन ने उनसे हिम्मत कर पूछा कि आपके कितने आशिक रहे हैं अब तक?

उन्होंने जवाब दिया, "सब आधे सच."

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अली अदनान ने नूरजहाँ पर काफी शोध अध्ययन किया है.

"तो आधे सच ही बता दीजिए"- तजम्मुल ने जोर दिया. नूरजहाँ कुछ ज्यादा ही दरियादिल मूड में थीं. उन्होंने गिनाना शुरू किया. कुछ मिनटों बाद उन्होंने तजम्मुल से पूछा, "कितने हुए अब तक?"

तजम्मुल ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया- अब तक सोलह! नूरजहाँ ने पंजाबी में क्लासिक टिप्पणी की- "हाय अल्लाह! ना-ना करदियाँ वी 16 हो गए ने!"

नूरजहाँ का सबसे मशहूर इश्क था पाकिस्तान के टेस्ट क्रिकेटर नज़र मोहम्मद से और इसी वजह से नज़र मोहम्मद का टेस्ट कैरियर वक्त से पहले ही ख़त्म हो गया.

अली अदनान कहते हैं, "नूरजहाँ को पुरुष बहुत पसंद थे. उनके ही अलफ़ाज़ इस्तेमाल करता हूँ, पंजाबी में कहती थीं- जदों मैं सोहना बंदा देखती हां, ते मैन्नू गुदगुदी हुंदी है. एक बार उनको और नज़र मोहम्मद को उनके पति ने एक कमरे में रंगे हाथ पकड़ लिया. नज़र ने पहली मंज़िल की खिड़की से नीचे छलांग लगा दी, जिसकी वजह से उनका हाथ टूट गया. उन्होंने एक पहलवान से अपना हाथ बैठवाया लेकिन वो ग़लत जुड़ गया और उनको वक्त से पहले ही टेस्ट क्रिकेट से रिटायर हो जाना पड़ा."

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय उनका नाम पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया ख़ाँ से भी जोड़ा गया. नूरजहाँ ने खुद कभी इसकी पुष्टि नहीं की. लेकिन ये सर्वविदित है कि जनरल याहिया को सुंदर औरतों का साथ बहुत पसंद था और मैडम नूरजहाँ से बेहतर साथ और किसका हो सकता था.

पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार ख़ालिद हसन ने एक बार इसका ज़िक्र करते हुए लिखा था कि एक बार जनरल याहिया ने अपनी शामों के साथी और मातहत जनरल हमीद से कहा था, "हैम, अगर में नूरी को चीफ़ ऑफ़ द स्टाफ़ बना दूँ, तो वो तुम लोगों से कहीं बेहतर काम करेगी." नूरजहाँ याहिया को सरकार कह कर पुकारा करती थीं और उनके लड़के अली की शादी में उन्होंने गाने भी गाए थे.

नूरजहाँ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का बेहद सम्मान करती थीं. एक बार एक समारोह में मलिका पुखराज ने कहा कि फ़ैज़ मेरे भाई की तरह हैं. जब नूरजहाँ की बारी आई तो वो बोलीं कि मैं फ़ैज़ को भाई नहीं महबूब समझती हूँ. एक बार फ़ैज़ से एक मुशाएरे में उनकी मशहूर नज़्म मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग सुनाने के लिए कहा गया तो वो बोले ‘भाई वो नज़्म तो अब नूरजहाँ की हो गई है… वही उसकी मालिक है. अब उस पर मेरा कोई हक़ नहीं रहा.’

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फ़ैज़ अहमद फ़ैज अपनी पत्नी के साथ.

अपने करियर के शिखर पर भी पहुंचने के बावजूद भी नूरजहाँ की मानवीय मूल्यों में आस्था कम नहीं हुई थी.

नूरजहाँ पर किताब लिखने वाले एजाज़ गुल बताते हैं, "मशहूर संगीतकार निसार बज़्मी ने मुझे बताया था कि नूरजहाँ अक्सर अपने घर पर गानों का रिहर्सल किया करती थी. एक बार वे उनसे मिलने गए तो उन्होंने चाय मंगवाई. जब वो निसार को चाय दे रही थीं तो उसकी कुछ बूंदें प्याली से छलक कर उनके जूतों पर गिर गई. वो फ़ौरन झुकीं और अपनी साड़ी के पल्लू से उन्होंने गिरी हुई चाय की बूंदों को साफ़ किया. निसार ने उन्हें बहुत रोका लेकिन उन्होंने कहा, आप जैसे लोगों की वजह से ही मैं इस मुक़ाम तक पहुंची हूँ."

एक बार किसी ने उनसे पूछने की जुर्रत की कि आप कब से गा रही हैं? नूरजहाँ का जवाब था, "मैं शायद पैदा होते समय भी गा ही रही थी."

सन 2000 में जब उनकी मौत हुई, तो उनकी एक बुजुर्ग चाची ने कहा था, "जब नूर पैदा हुई थी तो उनके रोने की आवाज़ सुनकर उनकी बुआ ने उनके पिता से कहा था- यह लड़की तो रोती भी सुर में है."

नूरजहाँ के बारे में एक और कहानी भी मशहूर है. तीस के दशक में एक बार लाहौर में एक स्थानीय पीर के भक्तों ने उनके सम्मान में भक्ति संगीत की एक ख़ास शाम का आयोजन किया. एक लड़की ने वहाँ पर कुछ नात सुनाए. पीर ने उस लड़की से कहा, "बेटी कुछ पंजाबी में भी हमको सुनाओ." उस लड़की ने तुरंत पंजाबी में तान ली, जिसका आशय कुछ इस तरह का था…इस पाँच नदियों की धरती की पतंग आसमान तक पहुँचे!

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जब वह लड़की यह गीत गा रही थी, तो पीर अवचेतन की अवस्था में चले गए. थोड़ी देर बाद वह उठे और लड़की के सिर पर हाथ रख कर कहा, "लड़की तेरी पतंग भी एक दिन आसमान को छुएगी." ये लड़की नूरजहाँ थीं. नूरजहाँ को दावतों के बाद या कहें लोगों की फरमाइश पर गाना सख़्त नापसंद था. एक बार दिल्ली के विकास पब्लिशिंग हाउस के प्रमुख नरेंद्र कुमार उनसे मिलने लाहौर गए. उनके साथ उनका किशोर बेटा भी था.

यकायक नरेंद्र ने मैडम से कहा, "मैं अपने बेटे के लिए आपसे कुछ माँगना चाह रहा हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वह इस क्षण को ताज़िंदगी याद रखे. सालों बाद वह लोगों से कह सके कि एक सुबह वह एक कमरे में नूरजहाँ के साथ बैठा था और नूरजहाँ ने उसके लिए एक गाना गाया था."

वहाँ उपस्थित लोगों की सांसें रुक गईं क्योंकि उन्हें पता था कि नूरजहाँ ऐसा कभी कभार ही करती हैं. नूरजहाँ ने पहले नरेंद्र को देखा, फिर उनके पुत्र को और फिर अपने उस्ताद गुलाम मोहम्मद उर्फ गम्मे खाँ को. "जरा बाजा तो मँगवाना." उन्होंने उस्ताद से कहा. एक लड़का बगल के कमरे से बाजा उठा लाया. बाजा यानी हारमोनियम.

उस्ताद गम्मे खान ने तान ली…फिर दूसरी और फिर तीसरी…फिर उनकी तरफ देखा. मैडम ने कहा, "अपर वाला सा लाओ" वह चाहती थीं कि वह एक सप्तक और ऊँचा लगाएं. उन्होंने नरेंद्र से पूछा क्या गाऊँ? नरेंद्र को कुछ नहीं सूझा. किसी ने कहा "बदनाम मोहब्बत कौन करे गाइए." नूरजहाँ के चेहरे पर जैसे नूर आ गया.

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उन्होंने मुखड़ा गाया और फिर बीच में रुक कर नरेंद्र से कहा, "नरेंद्र साहब, आपको पता है इस देश में ढंग का हारमोनियम नहीं मिलता. सिर्फ कलकत्ता में अच्छा हारमोनियम मिलता है. यह सभी लोग भारत जाते हैं, बाजे लाते हैं और मुझे उनके बारे में बताते हैं लेकिन मेरे लिए कोई हारमोनियम नहीं लाता."

नरेंद्र ने कहा मैं भेजूँगा आपके लिए. नरेंद्र यह वादा शायद कभी पूरा नहीं कर पाए.

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