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प्रकृति के रुख से मिले संकेत व सबक
किसानों के लिए आपदा का वर्ष हिमांशु ठक्कर पर्यावरणविद् मॉनसून की बारिश का सिस्टम बिगड़ रहा है और खेती की जरूरत के मुताबिक बारिश नहीं होे रही. सूखे से निबटने के लिए जल संचयन और बाढ़ से निबटने के लिए जल निकासी जैसे मसलों पर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन व्यावहारिक रूप से […]
किसानों के लिए आपदा का वर्ष
हिमांशु ठक्कर
पर्यावरणविद्
मॉनसून की बारिश का सिस्टम बिगड़ रहा है और खेती की जरूरत के मुताबिक बारिश नहीं होे रही. सूखे से निबटने के लिए जल संचयन और बाढ़ से निबटने के लिए जल निकासी जैसे मसलों पर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इस वर्ष हमें इन चीजों में ज्यादा सफलता नहीं मिली है. सरकार इन चीजों पर कम ध्यान दे रही है. अलविदा 2015 की कड़ी में आज पढ़ें किसानों के लिए कैसा रहा यह साल.
बीत रहे वर्ष 2015 में मॉनसून की बारिश औसत से करीब 14 फीसदी कम रही और देश के कई इलाकों के सूखे की चपेट में आने से फसलों को व्यापक नुकसान हुआ. कुछ क्षेत्रों में लगातार दूसरे साल ऐसा हुआ है. दूसरी ओर अनेक इलाकों में बाढ़ भी आयी और इसकी बारंबारता बढ़ी है.
‘जलवायु परिवर्तन’ का असर बढ़ता दिख रहा है और देश के करोड़ों किसान इसके असर को भुगत रहे हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर उन्हें उचित न्याय नहीं मिल पा रहा है. किसी भी अधिकृत मंच पर किसानों की गंभीर होती समस्या को नहीं उठाया जा रहा है.
पेरिस में ‘क्लाइमेट चेंज’ पर आयोजित हालिया सम्मेलन में भी भारत सरकार ने अपनी ओर से देश के किसानों के हितों के संदर्भ में कोई खास मांग नहीं रखी.
जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाली चुनौतियों से निबटने के लिए दुनिया के करीब 186 देशों ने ‘इंटेंडेड नेशनली डिटरमाइंड कंट्रिब्यूशंस’ (आइएनडीसी) के रूप में एक मसौदा तैयार किया. इसमें भारत भी शामिल है. भारत सरकार ने भी कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनी ओर से समयबद्ध योजना बना कर दी है. उस पर प्रतिबद्धता से काम करने का वादा भी किया है. लेकिन, भारत सरकार ने इसमें ‘क्लाइमेट चेंज’ से किसानों को होनेवाले नुकसान और उसकी भरपाई की ओर बहुत कम ध्यान दिया है.
इस साल रबी के दौरान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में बेमौसम बारिश से फसलों काे नुकसान हुआ. कई इलाकों में लगातार दूसरे साल ऐसा हुआ. ये किसान एक प्रकार से जलवायु परिवर्तन के भुक्तभोगी बन रहे हैं, लेकिन सरकार इनके साथ न्याय नहीं कर रही है.
अलनीनो का भी खेती पर स्पष्ट असर हो रहा है और वैज्ञानिकों के मुताबिक रिकाॅर्डेड इतिहास में इस साल का अलनीनो सर्वाधिक असरकारक रहा है. सिंचाई की सुविधा से वंचित, छोटे और हाशिये पर खड़े किसान इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. हमारी सरकार इसकी चुनौतियों से निबटने में ज्यादा कुछ नहीं कर रही है.
मॉनसून के दौरान बारिश का चक्र बदल रहा है. कई इलाकों में इस साल औसत बारिश हुई है, लेकिन वहां भी किसानों को नुकसान हुआ है. ओड़िशा के नवरंगपुर जिले का ही उदाहरण लें. यहां सालाना औसतन 1200 मिली बारिश होती है और इस बार 1400 मिली हुई है. फिर भी किसानों को नुकसान हुआ. दरअसल, यहां मॉनसून के दौरान बारिश का चक्र बदल गया.
खेती की जरूरत के वक्त यानी जुलाई-अगस्त में कम बारिश हुई और जून व सितंबर में ज्यादा बारिश हो गयी. स्पष्ट है कि बारिश का सिस्टम बिगड़ रहा है और खेती की जरूरत के मुताबिक बारिश नहीं होे रही. सूखे से निबटने के लिए जल संचयन और बाढ़ से निबटने के लिए जल निकासी जैसे मसलों पर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इस वर्ष हमें इन चीजों में ज्यादा सफलता नहीं मिली है. सरकार इन चीजों पर कम ध्यान दे रही है.
हालांकि सरकार ने इस साल कुछ नदियों को आपस में जोड़ने का काम किया है, जिसे उपलब्धि कही जा सकती है. साथ ही बड़े डैम भी बनाये हैं, लेकिन छोटी-छोटी योजनाओं पर सरकार का कम ध्यान है.
किसानों को उसकी जमीन पर छोटे व स्वतंत्र तालाब बनाने में सरकार को मदद करनी चाहिए. महाराष्ट्र सरकार ने इस पर कुछ काम किया है. बारिश के पानी को भूजल के रूप में संग्रह करने की व्यापक योजना बननी चाहिए. इससे भूजल रिचार्ज होता है. भूजल का स्तर बढ़ा कर सूखे के समय इसका सदुपयोग किया जा सकता है.
देश में बाढ़ नियंत्रण का काम भी ठीक से नहीं हो रहा. हाल ही में बंगाल के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को बताया कि दामोदर घाटी इलाके में ज्यादा बारिश होने और डैम के अव्यवस्थित होने के कारण ही बाढ़ की स्थिति पैदा हुई. चेन्नई में इस माह आयी बाढ़ का प्रमुख कारण डैम को ही ठहराया गया है. डैम बनाते समय समग्रता से चीजों को नहीं समझा जाता. इसका इस्तेमाल भी हम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं. उत्तर भारत में गंगा समेत अन्य प्रमुख नदियों के पानी का भी किसानों के हितों के अनुरूप इस्तेमाल नहीं हो पाता है.
कुल मिला कर यह वर्ष किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से आपदा का ही रहा है. विकास की मौजूदा दौड़ में किसान यह नहीं समझ पा रहे हैं कि पानी की व्यवस्था कैसे की जाये और सरकार को किसानों की इस चिंता की अनदेखी कर रही है.
(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)
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