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वो 8 पहलू जो बदल सकते हैं बिहार की तस्वीर

प्रोफ़ेसर अलख नारायण शर्मा निदेशक, मानव विकास संस्थान बिहार की अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय स्तर की ग्रोथ दर हासिल करने के लिए कई पहलूओं पर काम करने की ज़रूरत है. इस कोशिश में राज्य प्रशासन के सामने उन क्षेत्रों में बेहतर क़दम उठाने की ज़रूरत है, जिसमें राज्य अच्छा कर रहा है और दूसरे पहलूओं को […]

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बिहार की अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय स्तर की ग्रोथ दर हासिल करने के लिए कई पहलूओं पर काम करने की ज़रूरत है. इस कोशिश में राज्य प्रशासन के सामने उन क्षेत्रों में बेहतर क़दम उठाने की ज़रूरत है, जिसमें राज्य अच्छा कर रहा है और दूसरे पहलूओं को भी विकास के रास्ते तलाशने होंगे.

एक नज़र उन क्षेत्रों पर जिसमें आर्थिक विकास के लिए बिहार को ध्यान देने की ज़रूरत है-

1. कृषि पर ज़ोर:- बिहार के आर्थिक विकास के लिए यह ज़रूरी है कि कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाई जाए और इसे बरक़रार रखा जाए.

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राज्य का कृषि रोडमैप इन मुद्दों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि राज्य कामगारों को कृषि क्षेत्र से ग़ैर कृषि क्षेत्र में ले जाने के लिए मध्य अवधि से लंबी अवधि की एक रणनीति बनाए.

2. शहरीकरण को तेज़ करने की चुनौती:- बिहार के विकास की धीमी गति की एक वजह कम शहरीकरण भी है. राज्य की सिर्फ़ 11 फ़ीसदी आबादी शहरों में रहती है. इस मामले में राष्ट्रीय औसत 31 प्रतिशत है. यहां घनत्व 1193 लोग प्रति घन मीटर है, बिहार पूरे देश में सबसे अधिक घनत्व वाले राज्यों में एक है.

इसके अलावा, बिहार में जो शहर हैं, वहां भी ढांचागत सुविधाएं और सेवाएं बुरी हालत में हैं. उन शहरों और क़स्बों का अपने आप विकास भी नहीं हो रहा है. इन शहरी क्षेत्रों में पिरामिड के आकार की संरचना भी नहीं है.

हालांकि राज्य से पलायन की वजह निर्माण क्षेत्र का छोटा होना और कम शहरीकरण का होना भी है, पर यह भी सच है कि कृषि उत्पादन प्रसंस्करण के लिए राज्य के बाहर ले जाए जाते हैं. यह बिहार में स्वतंत्र और मज़बूत अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि शहरीकरण की प्रक्रिया तेज़ होने और शहरों के विकास की गति बढ़ने से राज्य के विकास को बल मिलेगा. इसके लिए यह ज़रूरी है कि मौजूदा शहरों मे ढांचागत सुविधाएं बढ़ाई जाएं और वहां आर्थिक गतिविधियां तेज़ की जाएं.

इसके साथ ही बड़े गावों को छोटे क़स्बों और बाज़ारों में बदला जाना भी आवश्यक है. यह भी ज़रूरी है कि इसके लिए आर्थिक विकास और सुविधाओं का विकास किया जाए.

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3. आधारभूत सुविधाओं का विकास:- ढांचागत सुविधाओं के विकास में राज्य की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. बीते कुछ सालों में बिहार में इस दिशा में, ख़ास कर, सड़क निर्माण में काफ़ी काम हुआ है.

हालांकि बिजली के क्षेत्र में बिहार में काफ़ी सुधार हुआ है, पर अभी भी इसकी बहुत ही कमी है. सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी जैसे जल प्रबंधन पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है.

4. राजस्व का आधार बढ़ाना होगा:- जहां तक विकास के लिए संसाधनों की बात है, बिहार में राजस्व लगातार बढ़ा है. पर राज्य की वित्तीय स्थिति सुधरने की बड़ी वजह केंद्र से मिलने वाला पैसा है.

इस मामले में अभी काफ़ी कुछ करने गुंजाइश है. इसमें राज्य में राजस्व से होने वाली आमदनी का आधार बढ़ाना भी शामिल है.

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बिहार में काम कर रहे बैंकों में क्रेडिट में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी होने के बावजूद क्रेडिट-जमा अनुपात देश में सबसे कम अनुपातों में एक है.

5. मानव संसाधर पर ध्यान:- बिहार से बाहर गए लोग राज्य का संसाधन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

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ज़बरदस्त ग़रीबी, ज़मीन पर ज़्यादा दबाव और दूसरी प्रतिकूल वजहों से बिहार कमज़ोर संसाधनों वाली खुली अर्थव्यवस्था का माक़ूल उदाहरण है. यहां ग़रीबी का कुचक्र चलता रहता है, जहा ग़रीबी की वजह से एक बिंदू के बाद संसाधन नहीं बनते, और इस वजह से राज्य को राष्ट्रीय औसत विकास स्तर तक निकट भविष्य में पंहुचने में दिक़्क़त होगी.

6. शासन में सुधार:- शासन में सुधार मज़बूत संस्थानों के निर्माण की दिशा में बड़ा क़दम है. इसके साथ ही बीते कुछ सालों में बिहार में सामाजिक आर्थिक सेवा के क्षेत्र में काफ़ी सुधार हुआ है.

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पर इस दिशा में अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है. विशेष रूप से निचले और मध्य स्तर की अफ़सरशाही में क्षमता निर्माण करने और पंचायत स्तर के नेताओं के कामकाज सुधारने के मामले में काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है.

7. सिविल सोसायटी की भूमिका:- दरअसल बिहार के ज़्यादातर मुद्दे देश के मुद्दों के ही बड़े रूप हैं. इसमें जातियों और समुदायों में समाज के बंटे होने की चुनौती भी शामिल है. इसके साथ ही कमज़ोर सिविल सोसाइटी और कमज़ोर स्थानीय निकाय भी बड़ी चुनौती बन कर सामने आए हैं.

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इसलिए ज़रूरी है कि बिहार में जीवंत सिविल सोसाइटी और मज़बूत स्थानीय निकायों का विकास किया जाए.

8. बेहतर शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण:- बिहार के शैक्षणिक संस्थान, ख़ास कर, उच्च शिक्षा के संस्थान देश के सबसे बुरे संस्थानों में एक हैं. ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के इस युग में इसके महत्व को आसानी से समझा जा सकता है. बिहार को इस पर बहुत ही अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है.

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इसके अलावा यह भी आवश्यक है कि बिहार के दूसरे तमाम संस्थान बिहार से बाहर गए लोगों से संपर्क में रहें. वे बाहर में बसे बिहारियों से सामाजिक सुरक्षा, हुनर विकास, सूचना के प्रसार और व्यापार और वित्त के मामले में काफ़ी कुछ हासिल कर सकते हैं.

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