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सोनिया, राहुल जेल पसंद करेंगे या जमानत?

नेशनल हेरल्ड मामसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की आज अदालत में पेशी होने वाली है. राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि कांग्रेस बेल बॉन्ड नहीं भरने की बजाय जेल भेजे जाने का विकल्प चुनेगी. हालांकि कांग्रेस के अंदर ही इसको लेकर दो मत हैं और दूसरा धड़ा जमानत लेने की […]

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नेशनल हेरल्ड मामसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की आज अदालत में पेशी होने वाली है.

राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि कांग्रेस बेल बॉन्ड नहीं भरने की बजाय जेल भेजे जाने का विकल्प चुनेगी.

हालांकि कांग्रेस के अंदर ही इसको लेकर दो मत हैं और दूसरा धड़ा जमानत लेने की बात कर रहा है.

लेकिन बेल बॉन्ड न भरे जाने की सूरत में सोनिया और राहुल को जेल जाना पड़ेगा? इस मामले में मजिस्ट्रेट का क्या फैसला हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरविंद जैन का कहना है कि चूंकि यह मामला शिकायत का है इसलिए मजिस्ट्रेट उन्हें जमानत पर छोड़ सकते हैं और फिर मुक़दमा आगे चलेगा, गवाहियां होंगी और बहस होगी.

यह एक लंबी चौड़ी क़ानूनी प्रक्रिया है, इसमें कितना समय लगेगा ये कहा नहीं जा सकता.

उनका कहना है कि सोनिया और राहुल गांधी की भले ही कोर्ट में पेशी हो रही है, लेकिन ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट आम तौर पर जमानत दे देते हैं.

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अरविंद जैन कहते हैं, "एक और सूरत है जिस पर कांग्रेस के अंदर चर्चा चल रही है कि बेल बॉन्ड न दिया जाए. अगर ऐसा होता है तो कोर्ट के पास जेल भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता है, जैसा कि अरविंद केजरीवाल के केस में हुआ था."

"लेकिन कांग्रेस का एक धड़ा इसे बहुत बुद्धिमानी वाला क़दम नहीं मानता. भले ही ग़ैरजमानती अपराध हो, फिर भी ज़मानत पर छोड़ देने की एक परम्परा चलती आई है."

हालांकि इस मामले में अभी भी कई जटिलताएं हैं और अभी तक पूरी तरह साफ नहीं हो पाया है कि अनियमितता क्या हैं?

जैन कहते हैं, "जहां तक मैंने इस मामले को समझा है, उसके मुताबिक़, एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड एक कंपनी थी. आज़ादी के पहले कांग्रेस के मुखपत्र के रूप में जवाहरलाल नेहरू की पहल पर इसे शुरू किया गया था."

वो कहते हैं कि आज़ादी के काफ़ी दिनों बाद भी ये कंपनी चलती रही, हालांकि इस बीच घाटे और मज़दूरों की समस्याएं बनी रहीं. कंपनी की खस्ता हालत को देखते हुए कांग्रेस ने कंपनी को 2002 से 2012 के बीच 90 करोड़ रुपए कर्ज के रूप में दिया, ताकि कंपनी चलती रहे. लेकिन इसके बावजूद यह कंपनी नहीं चल पाई.

जैन के मुताबिक़, इसके बाद एक नई कंपनी यंग इंडिया ने इसे 50 लाख रुपए और दिए और इसके बदले इसने एजेएल के शेयरों को अपने नाम करवा लिया.

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इसे लेकर भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने चुनाव आयोग को भी शिकायत दी थी और आयोग ने कहा कि हमारे हिसाब से तो इसमें क़ानून का कोई उल्लंघन नहीं बनता है और इनकम टैक्स के लिहाज से भी कोई मामला नहीं बनता.

अरविंद जैन कहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि राजनीतिक दलों के बारे में कोई स्पष्ट क़ानून नहीं है कि वो किस दायरे में आते हैं.

इसके बाद स्वामी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ कोर्ट में अर्जी दी और फिर इन दोनों के ख़िलाफ़ समन जारी हुए.

कांग्रेस पार्टी ने इस शिकायत के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाली, लेकिन अदालत ने कहा कि आप मजिस्ट्रेट के सामने ही जाएं और जो कुछ बताना है, वहीं बताएं.

और इस तरह यह मामला कोर्ट सोनिया और राहुल गांधी की निजी पेशी तक पहुंचा.

(वरिष्ठ वकील अरविंद जैन के साथ बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत के आधार पर)

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