ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रहे खतरे और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने भविष्य के लिए नये सवाल खड़े कर दिये हैं. इससे बाढ़, सूखा, तूफान और पिघलती बर्फ के अलावा आॅक्सीजन की कमी भी हो सकती है. ‘साइंस डेली’ के मुताबिक, ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी आॅफ लीसेस्टर के एप्लाइड मैथेमैटिक्स के प्रोफेसर सरगेइ पेट्रोव्स्की के नेतृत्व में इस संबंध में एक नया शोध किया गया है.
उनका कहना है कि उन्होंने ग्लोबल वॉर्मिंग के एक अन्य खतरे को पहचाना है, जो ज्यादा खतरनाक हो सकता है. उनका शोध फाइटोप्लैंकटन के कंप्यूटर मॉडल पर आधारित है. ये सूक्ष्म समुद्री पौधे होते हैं, जो वायुमंडल में दो तिहाई आॅक्सीजन की सप्लाई करते हैं. औसत छह डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वॉर्मिंग वह तापमान है, जिस पर फाइटोप्लैंकटन आॅक्सीजन का निर्माण नहीं कर पायेंगे. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा होने पर न सिर्फ पानी में, बल्कि हवा में भी आॅक्सीजन की कमी हो जायेगी.
यदि ऐसा हुआ, तो धरती पर जीवन मुश्किल हो जायेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कभी तापामन इतना बढ़ा, तो इसकी मुख्य वजह कार्बन उत्सर्जन होगा. ज्ञात हो कि लंबे अरसे से दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन की मात्रआ तेजी से बढ़ी है. सरजेइ ने यह भी चिंता जतायी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर औद्योगीकरण से पहले के स्तर से कुछ डिग्री ज्यादा बढ़ा, तो उसके गंभीर नतीजे सामने आयेंगे.