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ट्रेन ड्राइवर जाएं तो जाएं कहाँ!

रवि प्रकाश राँची से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए अगर आप भारतीय रेल में ड्राइवर बनना चाहते हैं, तो पहले शौच और पेशाब पर नियंत्रण हासिल करना सीखना होगा. भारत में क़रीब 22 हज़ार सवारी रेल गाड़ियां और मालगाड़ियां हर रोज़ पटरी पर दौड़ती हैं. ये क़रीब तीन करोड़ मुसाफ़िरों और अरबों रुपए के […]

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अगर आप भारतीय रेल में ड्राइवर बनना चाहते हैं, तो पहले शौच और पेशाब पर नियंत्रण हासिल करना सीखना होगा.

भारत में क़रीब 22 हज़ार सवारी रेल गाड़ियां और मालगाड़ियां हर रोज़ पटरी पर दौड़ती हैं. ये क़रीब तीन करोड़ मुसाफ़िरों और अरबों रुपए के माल को हर रोज़ मंज़िल तक पहुंचाती हैं.

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ऑल इंडिया रेलवे मेंस फ़ेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्र ने बीबीसी को बताया कि ट्रेनों को चलाने के लिए हर रोज़ क़रीब 50 हज़ार ड्राइवर ड्यूटी करते हैं. दस घंटे बाद बदलने वाली शिफ़्ट पर ध्यान दें तो यह संख्या और बड़ी हो जाती है. लेकिन इनके लिए ट्रेनों के इंजन में शौचालय या पेशाबघर का इंतज़ान नहीं है.

हटिया-राउरकेला रूट पर ट्रेन चलाने वाले लोको पायलट विनोद उरांव ने बीबीसी को बताया, "इंजन में टॉयलेट नहीं होने से काफ़ी दिक्कत होती है. हमें नेचुरल कॉल पर नियंत्रण रखना पड़ता है. इस वजह से 40 की उम्र आते-आते ज़्यादातर ट्रेन ड्राइवर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं."

उन्होंने बताया कि कई बार मांग करने के बाद भी इंजन में टॉयलेट की व्यवस्था नहीं की गई है.

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विनोद कहते हैं, "एक तरफ़ प्रधानमंत्री खुले में शौच से रोकने के लिए स्वच्छता अभियान चला रहे हैं, वहीं हम ड्राइवरों को खुले में शौच करना पड़ता है. हमें इंजन से दूर जाने की इजाजत नहीं होती है, इसलिए हम पैसेंजर बोगी में जाकर भी शौच नहीं कर सकते."

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ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के रांची मंडल के असिस्टेंट सेक्रेटरी फारूक अंसारी ने बताया, ”इंजन में टॉयलेट बनाने और कुछ अन्य मांगों को लेकर 14 व 15 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ड्राइवरों की रैली निकाली जाएगी.

रांची के सीनियर डीसीएम नीरज कुमार ने बीबीसी को बताया कि चलती ट्रेन में अगर ड्राइवर को नेचुरल काल आए तो वह अगले स्टेशन को ‘आइ एम नॉट वेल’ का संदेश भेजता है. फिर अगले स्टेशन पर उनके शौच की व्यवस्था कराई जाती है. इस दौरान ट्रेन को सेफ लाइन में रखा जाता है ताकि दूसरी ट्रेनें इससे प्रभावित न हों.

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तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी मानते हैं कि यह गलत परंपरा है. इंजन में टॉयलेट होना ही चाहिए. उन्होंने बीबीसी को बताया कि दुनिया के कई देशों में इंजन में टॉयलेट है. भारतीय इंजन की डिजाइन में भी टायलेट के लिए जगह निकाली जा सकती है.

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उन्होंने कहा कि बिहार के मढ़ौरा और मधेपुरा में बनने वाले इंजन कारख़ानो में इस तरह के इंजन बनाने पर काम हो रहा है. यहां बनने वाले इंजनों में शौचालय भी रखा जाना चाहिए.

ऑल इंडिया रेलवे मेंस फ़ेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्र ने बताया कि प्रयोग के तौर पर क़रीब पांच डीजल इंजन और दस बिजली के इंजन में शौचालय की व्यवस्था की गई है. लेकिन फ़िलहाल यह प्रयोग के तौर पर ही चल रहा है और इंजन में शौचालय की सुविधा अभी भी एक सपना है.

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