।। दक्षा वैदकर ।।
हम शिकायतों का भंडार हैं. सुबह से शाम तक हम सिर्फ शिकायत करते रहते हैं. ‘यह कंप्यूटर क्यों नहीं काम कर रहा; मोबाइल बार-बार क्यों हैंग होता है; इतनी आवाज बढ़ा कर लोग टीवी क्यों देख रहे हैं; इसने इतना स्ट्रॉन्ग परफ्यूम क्यों लगाया है; यह ऑफिस में चेयर पर पालकी मार कर क्यों बैठा है;
यह आदेशपाल ऐन मौके पर कहां गायब हो जाता है; बेटा क्यों पढ़ नहीं रहा है; बाई ने झाड़ ठीक से क्यों नहीं लगायी; लोग इतनी खराब गाड़ी क्यों चलाते हैं; सरकार ने इतनी घटिया सड़केंक्यों बनायी हैं; इस बारिश को भी इसी वक्त होना था क्या’ और न जाने क्या-क्या शिकायत करते हैं हम.’
हम खुद को शिकार समझते हैं और अन्य लोगों व परिस्थितियों को खुद के दुख का जिम्मेवार. हमें लगता है कि मुझ बेचारे इनसान को पूरी दुनिया परेशान कर रही है. परिस्थितियां मेरे पक्ष में नहीं हैं, तो मैं कैसे खुश रह सकता हूं. यानी मेरी खुशी लोगों और परिस्थितियों पर निर्भर है.
यदि लोग मेरे मुताबिक नहीं चलेंगे, परिस्थितियां मेरे पक्ष में नहीं होंगी, तो मैं खुश नहीं होऊंगा. यानी मैं कभी भी खुश नहीं होऊंगा, क्योंकि लोग और परिस्थितियां कभी मेरे मुताबिक चल ही नहीं सकतीं, क्योंकि हर दिन, हर पल, हर जगह कोई न कोई चीज होगी ही, जो आपके मुताबिक सही नहीं होगी. अगर आपके जीवन का भी यही समीकरण है, तो आप खुश नहीं रह सकते
जब भी हम किसी पर गुस्सा करते हैं और लोग कहते हैं कि गुस्सा मत करो. हम जवाब देते हैं, ‘सामनेवाले ने काम ही ऐसा किया है, गुस्सा तो आयेगा ही.’ हमें लगता है कि जैसी-जैसी परिस्थितियां होगी, वैसी-वैसी हमारी प्रतिक्रिया होगी. सामनेवाले ने अच्छे से बात की, तो मैं खुश हो गया.
उसने डांटा, तो मैं रोने लगा. उसने जोक सुनाया तो हंस दिया. उसने इग्नोर किया तो दुखी हो गया. यानी मेरी हर प्रतिक्रिया सामनेवाले पर निर्भर है. मेरा रिमोट सामनेवाले के हाथ में है. वह जब चाहे मुङो रुला सकता है.
दोस्तों, इससे बचें. आपको जानना होगा कि आपको अपनी प्रतिक्रिया चुनने की आजादी है. आप चाहेंतो हर चीज पर केवल और केवल ‘खुश’ प्रतिक्रिया चुन सकते हैं. ऐसा कर के देखें.
बात पते की..
– अपना रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथ में न दें. खुद के दिमाग को इस तरह बना लें कि कोई कुछ भी कहे, आपको फर्क ही न पड़े.
– आपकी खुशी केवल और केवल आपके हाथ में है. आप खुद को इतना कमोजर ने बनायें कि परिस्थितियां आपको तोड़-मरोड़ दें.