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खुदरा में विदेशी निवेश लाना होगा

भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि में एफडीआइ की है बड़ी भूमिका खुदरा में एफडीआइ को बाजी पलटनेवाला माना गया था. सरकार का सोचना था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां आधुनिक प्रौद्योगिकी और काम का तरीका लेकर आयेंगी. बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करेंगी. किसानों और उत्पादकों के साथ सीधा संपर्क कायम कर पायेंगी. पर ऐसा हुआ नहीं. […]

भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि में एफडीआइ की है बड़ी भूमिका

खुदरा में एफडीआइ को बाजी पलटनेवाला माना गया था. सरकार का सोचना था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां आधुनिक प्रौद्योगिकी और काम का तरीका लेकर आयेंगी. बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करेंगी. किसानों और उत्पादकों के साथ सीधा संपर्क कायम कर पायेंगी. पर ऐसा हुआ नहीं. अभी तक एक भी विदेशी कंपनी भारतीय खुदरा क्षेत्र में नहीं आयी है.

प्रियंका जालान

जब एक देश की कंपनी किसी दूसरे देश के कारोबार में निवेश करती है या नया कारोबार शुरू करती है, तो इसे दूसरे देश में आया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) माना जाता है. यह निवेश आम तौर से विदेशी कंपनी द्वारा देसी कंपनियों में शेयर खरीद कर अपनी हिस्सेदारी के जरिये या विदेशी कंपनियों की शाखाएं/ संपर्क कार्यालय स्थापित कर किया जाता है.

इन दिनों एफडीआइ भारतीय कॉरपोरेट जगत के लिए धन जुटाने का सबसे आकर्षक माध्यम बना हुआ है. हमारा देश अपने बाजार में विदेशी खिलाड़ियों के प्रवेश को प्रोत्साहन भी दे रहा है. भारत दुनिया के उन चुनिंदा बाजारों में से एक है, जहां व्यापार के सभी क्षेत्रों में ऊंची वृद्धि और कमाई का भरपूर मौका उपलब्ध है. संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (व्यापार और विकास) यानी अंकटाड के अनुसार, भारत वर्ष 2010 में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में दूसरे स्थान पर रहा और वित्तीय वर्ष 2010-12 की अवधि के दौरान अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए शीर्ष पांच आकर्षक देशों की सूची में शामिल रहा. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ को विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 और उसके अंतर्गत बनाये गये विभिन्न नियमों और विनियमों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है. इसके अनुसार, एक भारतीय कंपनी को इन मार्गो से विदेशी निवेश प्राप्त हो सकता है :

ऑटोमेटिक रूट : कंपनियों को उन सभी सेक्टरों में विदेशी निवेश लेने की अनुमति है, जिनका जिक्र समग्र एफडीआइ नीति में किया गया है. इसके लिए भारत सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक से किसी पूर्व-अनुमति की जरूरत नहीं होती है.

सरकारी रूट : इस मार्ग से कंपनियां उन सेक्टरों के लिए विदेशी निवेश की अनुमति सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से मांग सकती हैं, जिन सेक्टरों में ऑटोमेटिक रूट के तहत एफडीआइ नहीं आ सकती है. इसके तहत एफडीआइ प्रस्तावों पर वित्त मंत्रलय के विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआइपीबी) द्वारा विचार किया जाता है. यह बोर्ड वित्त मंत्रलय के आर्थिक मामलों के विभाग के अधीन है.

आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत, 1991 की औद्योगिक नीति में भारत में लगभग सभी क्षेत्रों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया. हालांकि, सरकार समय-समय पर विभिन्न सेक्टरों में एफडीआइ की सीमा को तय करती रही है. तेज आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिए हमारे यहां घरेलू पूंजी पर्याप्त नहीं थी, इस कमी को पूरा करने में एफडीआइ की अहम भूमिका है. भारतीय अर्थव्यवस्था में एफडीआइ आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख कारक है. एफडीआइ के साथ भारतीय बाजारों में न केवल पूंजी का प्रवाह बढ़ा है, बल्कि तकनीकी ज्ञान, प्रबंधकीय कौशल और व्यापार विशेषज्ञता की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है. घरेलू बाजार में विदेशी कंपनियों के प्रवेश से स्थानीय उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और अर्थव्यवस्था की उत्पादन गुणवत्ता में सुधार आता है.

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लाभ के बावजूद कुछ सेक्टरों जैसे खुदरा व्यापार और बीमा, में काम कर रही घरेलू कंपनियों को यह डर सता रहा है कि इन क्षेत्रों में एफडीआइ की सीमा बढ़ने से वे कंपनियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सामना नहीं कर पायेंगी. विदेशी निवेशकों पर सरकार का सबसे कम नियंत्रण होता है, क्योंकि वे आम तौर से शाखा कार्यालय या एक विदेशी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के रूप में काम करती हैं.

खुदरा में एफडीआइ : हाल के वर्षो में घरेलू खुदरा कारोबारियों के बीच एफडीआइ एक ज्वलंत मुद्दा रहा है. हाल ही में, इस क्षेत्र में एफडीआइ की अनुमति दी गयी है. इस क्षेत्र में कारोबार कर रही वॉलमार्ट, टेस्को और कैरफोर जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश के लिए उत्सुक हैं. सरकार चाहती है कि एकल-ब्रांड खुदरा और बहु-ब्रांड खुदरा, दोनों में ऑटोमेटिक रूट से एफडीआइ आये. लेकिन, फिलहाल एकल ब्रांड खुदरा में 100 प्रतिशत और बहु-ब्रांड खुदरा में 51 प्रतिशत तक एफडीआइ की अनुमति है. वह भी केवल सरकारी मार्ग से.

अभी भारतीय खुदरा कारोबार ज्यादातर किराना दुकानों के रूप में है यानी असंगठित है. इस क्षेत्र में कुल बाजार के केवल पांच प्रतिशत पर कॉरपोरेट खिलाड़ियों का कब्जा है. उचित भंडारण और परिवहन व्यवस्था की कमी की वजह से भारतीय खुदरा बाजार में जल्दी खराब होनेवाली चीजों का काफी नुकसान होता है. सब्जियों और फलों को तोड़े जाने के बाद उनका जो हिस्सा बरबाद होता है, सिर्फ उससे करीब 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. खेतों और उत्पादकों से सामान सीधे उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचता, बल्कि उसे कई बिचौलियों के बीच से होकर गुजरना होता है. इससे वस्तु के मूल्य में बहुत ज्यादा वृद्धि होती है. इसके अलावा, खाने की मेज तक पहुंचने तक खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता भी गड़बड़ हो चुकी होती है.

हालांकि, बड़े भारतीय कॉरपोरेट घराने पिछले दस वर्षो से खुदरा बाजार में पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वो इसमें असफल रहे हैं. खुदरा में एफडीआइ को बाजी पलटनेवाला माना गया था. सरकार का सोचना था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां आधुनिक प्रौद्योगिकी और काम का तरीका लेकर आयेंगी. बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करेंगी. किसानों और उत्पादकों के साथ सीधा संपर्क कायम कर पायेंगी. पर ऐसा हुआ नहीं. अभी तक एक भी विदेशी कंपनी भारतीय खुदरा क्षेत्र में नहीं आयी है. इससे साफ है कि भारत सरकार को खुदरा में एफडीआइ नीति में बदलाव की जरूरत है. एफडीआइ के लिए शर्तो को आसान करना होगा.

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