-सेंट्रल डेस्क-
-स्विट्जरलैंड में वेतन असमानता पर नियंत्रण के लिए ‘1:12 कैंपेंन’-
स्विट्जरलैंड में वेतन असमानता के विरुद्ध एक कैंपेन चलाया जा रहा है. इसे ‘1:12 इनिशिएटिव’ का नाम दिया गया है. कैंपेन के तहत यह मांग की जा रही है कि कंपनी के सीइओ या बड़े अधिकारियों का वेतन सफाई कर्मचारियों के वेतन से 12 गुना से अधिक न हो.
स्विट्जरलैंड की गिनती यूरोप के सर्वाधिक धनी देशों में की जाती है. मजबूत और हाइटेक अर्थव्यवस्था वाले देश में प्रति व्यक्ति आय सालाना लगभग 85 हजार अमेरिकी डॉलर (भारतीय मुद्रा में लगभग 53 लाख रुपये) है. 2012 में प्रति व्यक्ति आय की सूची में विश्व में स्विट्जरलैंड का स्थान चौथा था. ऐसे धनी अर्थव्यवस्था वाले देश में मुहिम चल रही है, जिसे 1:12 कैंपेन का नाम दिया गया है. स्विट्जरलैंड के सबसे बड़े शहर ज्यूरिख में जगह-जगह 1:12 लिखे झंडे लगाये गये हैं. सोशल डेमोक्रेट्स की यूथ विंग पिछले कई दिनों से पूरे देश में हस्ताक्षर अभियान चला रही है. इसका मकसद कर्मचारी-अधिकारी के बीच बढ़ती वेतन असमानता पर अंकुश लगाना है.
उनकी मांग है कि शीर्ष अधिकारी (सीइओ, टॉप एक्जीक्यूटिव) का वेतन एक माह में उतना से ज्यादा नहीं होना चाहिए, जितना कि एक सफाई कर्मचारी एक साल में कमाता है. इस मुद्दे पर रविवार को वोट होना है. अगर जनमत संग्रह कैंपेन के पक्ष में होता है, तो स्विट्जरलैंड के बड़े अधिकारियों के वेतन में बड़ी कटौती होगी.
आय का बढ़ता अंतर : स्विस ट्रेड यूनियंस एसोसिएशन के अनुसार, 2010 में स्विट्जरलैंड के कुल कार्यबल की 10 प्रतिशत जनसंख्या सबसे कम वेतन पर काम कर रही थी. उन्हें प्रतिमाह महज चार हजार स्विस फ्रैंक मिल रहे थे. ग्लेनकोर एक्सट्रेटा (ग्लेन.एल) कंपनी के सीइओ इवान ग्लेसनबर्ग को पिछले साल 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर (भारतीय मुद्रा में 9 करोड़ 40 लाख रुपये) का भुगतान किया गया था. जबकि कंपनी के शेयर होल्डर के रूप में उन्हें 173.5 मिलियन डॉलर का लाभ हुआ था. आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि लोग कैंपेन को बहुमत देते हैं, तो शीर्ष अधिकारियों का वेतन सालाना 5 लाख 76 हजार स्विस फ्रैंक से अधिक नहीं हो सकेगा.
सामाजिक विषमता का खतरा: कैंपेन का नेतृत्व करने वाले जूसो (यूथ विंग ऑफ सोशल डेमोक्रेट्स) के प्रेसिडेंट डेविथ रोथ के अनुसार, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वेतन और धन-संपदा में वृद्धि बहुत असमान नहीं थी. लेकिन पिछले दस सालों में समाज के एक छोटे तबके को सबसे अधिक लाभ हो रहा है, जबकि एक बड़ी आबादी को उनके मुकाबले बहुत कम मिल रहा है. वह बताते हैं कि स्विट्जरलैंड में उच्च जीवन स्तर होने के बावजूद लोगों में आय में बढ़ते अंतर को लेकर जबरदस्त असंतोष है. इससे समाज में विषमता बढ़ने का खतरा है.
कंपनियों पर पड़ेगा असर : कैंपेन के विरोधियों का कहना है कि इससे स्विट्जरलैंड की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी. न केवल प्रतियोगिता को झटका लगेगा और कंपनियां बाहर की ओर रुख करेंगी, बल्कि इससे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को जारी रखना मुश्किल होगा.
अन्य देशों में भी कैंपेन: वेतन असमानता के खिलाफ कैंपेन केवल स्विटजरलैंड में ही नहीं चल रहा है, बल्कि यूरोप के कुछ देशों में भी ऐसा हो रहा है. ऑक्यूपाइ कैंपेन के दौरान, वेतन असमानता को लेकर रोष दिखा था. फांस के राष्ट्रपति फ्रैंकोइस अोलांद राज्य स्वामित्व वाली फर्मो में शीर्ष अधिकारियों का वेतन निचले कर्मचारियों की तुलना में अधिक से अधिक 20 गुना तक करने की योजना बना रहे हैं. जबकि स्पेन में विपक्षी सोशल डेमोक्रेट्स ने अपनी आर्थिक नीति में 1:12 योजना को ही रखा है.
भारत में स्थिति : 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति आय सालाना 60 हजार रुपये है यानी प्रति माह पांच हजार रुपये. प्रति व्यक्ति आय में भारत का स्थान 135 वां है. दूसरी ओर भारत में मोटी रकम पानेवाले सीइओ की संख्या बहुतायत में है. कुछ कंपनियों के सीइओ का उदाहरण लिया जा सकता है. मसलन- हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के एमडी डी भट्टाचार्य को मार्च 2013 में 20.61 करोड़ वेतन दिया गया था. एल एंड टी कंपनी के एमडी और सीइओ के वेंकटरमणन को मार्च 2013 में 14.28 करोड़ रुपये दिये गये थे. वेलस्पुन कॉर्प के एमडी ब्रज कुमार मिश्र को मार्च 2013 में 13.72 करोड़ रुपये दिये गये थे. इसकी सूची लंबी है. पर, भारत में आय असमानता के खिलाफ किसी तरह का कैंपेन नहीं चलाया जाता. इसके उलट यह चर्चा होती है कि फलां सीइओ को इतने करोड़ रुपये का पैकेज मिला है और लोग दांतों तले उंगलियां ही दबाते हैं.