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.. कल्पना से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं

खान श्रमिकों की अवदशा : दो गुजराती में एक कहावत है कि ‘जानकीनाथ को भी पता न था कि सवेरे क्या होगा..’ अर्थात जीवन कितना अनिश्चित है, लेकिन अनिश्चितता का यह फलसफा एक बात है और धरती के नीचे 8 या 10 मंजिलों तक की गहराई में काम करना दूसरी. यह कितना खतरनाक है, इसकी […]

खान श्रमिकों की अवदशा : दो

गुजराती में एक कहावत है कि ‘जानकीनाथ को भी पता न था कि सवेरे क्या होगा..’ अर्थात जीवन कितना अनिश्चित है, लेकिन अनिश्चितता का यह फलसफा एक बात है और धरती के नीचे 8 या 10 मंजिलों तक की गहराई में काम करना दूसरी.

यह कितना खतरनाक है, इसकी कल्पना करने पर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. दीवारें धंस जाये, छत धराशायी हो, सिर पर लटकते किसी यंत्र साधन का लोहे का भारी टुकड़ा गिर जाये, केबल में अचानक लिपट कर इधर-उधर टकराते हुए घसीटे जायें, मशीनरी में शरीर का कोई हिस्सा दब जाये, ब्लास्टिंग के दौरान कोई चपेट में आ जाये, ऊपर से नीचे तक पटखनी खा जाये आदि कुछ भी हो सकता है. दुर्घटना आखिर दुर्घटना है.

सिर पर लाइटवाला हेलमेट पहन कर मुलाकाती के रूप में किसी खदान में अमिताभ बच्चन या शशि कपूर के वहम में रौब से एक चक्कर काट आने में और लगातार सिर पर मौत मंडरा रही हो, ऐसे माहौल में अपने और अपने परिवार का पेट भरने के लिए दिन-रात जी-तोड़ मेहनत करने में काफी फर्क है. सारी जिंदगी खदानों में गुजारी हो, ईश्वर की कृपा से अच्छे-भले बचे हों और वहां से रिटायर हों, तो उसके बाद क्या?

झारखंड की खदानों का जो सत्य है, वही सत्य बिहार, ओड़िशा या पश्चिम बंगाल की खदानों का भी होगा ही. मेरे पास एक ऐसे व्यक्ति की दर्दनाक कथा है, जिसने देश की मिनी रत्न कही जानेवाली कंपनी सेंट्रल कोल फील्ड्स लिमिटेड के एक्जक्यूटिव के तौर पर (खान श्रमिक नहीं, एक्जक्यूटिव) 37 साल काम किया.

31 दिसंबर-1995 को यह एक्जक्यूटिव 58 साल की आयु में रिटायर हुआ. उसके बाद उसे हर महीने 1,626 रुपये बतौर पेंशन मिलते हैं. एक निवर्तमान एक्जक्यूटिव का यह हाल है, तो रिटायर मजदूर का क्या हाल होगा? जानना चाहेंगे? 31 दिसंबर को रिटायर हुए नन एक्जक्यूटिव कर्मचारी को सिर्फ रुपये दो सौ (जी हां! दो सौ रुपये) की माहवार पेंशन मिलती है.

इनकी दशा या अवदशा की कोई कल्पना करे भी, तो क्या? कोयला खदानों के संबंध में 1998 में एक पेंशन योजना बनी, जो एक अप्रैल 1994 की पिछली तारीख से लागू की गयी. इसमें हर तीन साल में पेंशन फंड की समीक्षा कर पेंशन की रकम बढ़ाने की स्पष्ट व्यवस्था है. फिर भी यह हालत है.

इस 21वीं सदी की एक जबरदस्त अजायब घटना कही जाये, ऐसी एक बात यह है कि इस कोल माइंस पेंशन योजना में न्यूनतम 73 रुपये माहवार पेंशन का उपलब्ध है. ऐसे में ‘जानकीनाथ’ खुद भी क्या करें? इतना ही नहीं, वर्ष 1955 में कोल इंडिया के अध्यक्ष (नाम जान-बूझ कर नहीं लिखा) रिटायर हुए थे. उन्हें प्रतिमाह 2,344 रुपये बतौर पेंशन मिलती है. यह दशा है.

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