दक्षा वैदकर
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है, ‘नर हो न निराश करो मन को. कुछ काम करो, कुछ काम करो. जग में रह कर कुछ नाम करो’. गुप्तजी की कविता की इन पंक्तियों में गूढ़ रहस्य छिपा है.
रहस्य जिंदगी में हमेशा विजयी बनने का, रहस्य हर तरह की बाधा से पार पाकर जिंदगी को सही मायने में जीने का. निराशा चाहे प्रबल क्यों न हो, लेकिन जब उस पर आशा की किरणें पड़ती हैं, तो उसे अपना साम्राज्य समेटना ही पड़ता है. आज जब जिंदगी मशीन की तरह बन गयी है, तकनीकों ने मानवीय मूल्यों का महत्व कम कर दिया है और संवेदनाएं सिसकियां ले रही हैं, तो निराशा का हम पर हावी होने में आश्चर्य की नहीं. जाहिर सी बात है कि जब तकनीकें ही हमारी सब कुछ बन जायेंगी, तो निर्जीव चीजों से ही हमें काम चलाना पड़ेगा.
तकनीकों की वजह से जब हमारे मानवीय मूल्यों का ह्रास होगा, तो दूसरों के प्रति आदर, स्नेह, ममता जैसी गुणों का भी क्षय होगा. ऐसे में हमारे काम में भी जब प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, तो यह ऐसी नहीं होगी कि केवल सकारात्मक परिणाम ही दे. इस प्रतिस्पर्धा से पैदा होगा द्वेष, वैमनस्य, बदला लेने की भावना और भी बहुत कुछ. जब ऐसे अवगुण हावी होंगे, तो चाहे आप कितनी भी अच्छी तरह से काम क्यों न कर लें, चाहे आप कितना भी सहयोगियों का ख्याल क्यों न कर लें, लेकिन उनके लिए तो आप केवल एक ऐसे ही इनसान ही रहेंगे, जिनसे उन्हें चुन-चुन कर बदला लेना है. जिसे हर हाल में उन्हें पराजित करना है. जिसे हर हाल में उन्हें हराना है. आपके खिलाफ शुरू हुई इस जंग में आपको मानसिक और शारीिरक दोनों तरीके से न जाने कितने ही आक्रमण झेलने होंगे. कई वार सामने से होंगे और कई पीछे से, जिनकी आपको भनक तक नहीं लगेगी, लेिकन इन सबके बीच भी आपके पास एक ऐसा हथियार है जो आपको हारने नहीं देगी. इसी हथियार का नाम है आशा. आशा के साथ जब आपकी सच्चाई, आपका आत्मविश्वास और आपकी अपने काम के प्रति आस्था मिल जायेगी, तो निश्चित तौर पर आपकी आशा की ही विजय होगी.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
जब भी कुछ बुरा हो, तो भगवान को कोसने से पहले अपने बीतों दिनों को याद करें कि आपने भी जाने-अनजाने किसी के साथ ऐसा तो नहीं किया?
अगर अपनी गलती याद न आये, तो भी यह मान लें कि यह पिछले जन्मों का फल है. इस तरह आप उस घटना से जल्दी बाहर निकल सकेंगे.
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