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सफलता के पीछे है, मेहनत, रियाज और साधना : शिव खेड़ा

दिल्ली से लौट कर हरिवंश शिव खेड़ा को एक पाठक के रूप में बरसों से पढ़ता रहा हूं. आधुनिक प्रबंधन के जानकार, मोटिवेटर (प्रेरित करनेवाले), ओजस्वी वक्ता के रूप में उन्होंने दुनिया में अलग पहचान बनायी है. दुनिया की बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के वह चहेते हैं. उनके व्याख्यान मुरझाये लोगों में संकल्प पैदा करते हैं. […]

दिल्ली से लौट कर हरिवंश
शिव खेड़ा को एक पाठक के रूप में बरसों से पढ़ता रहा हूं. आधुनिक प्रबंधन के जानकार, मोटिवेटर (प्रेरित करनेवाले), ओजस्वी वक्ता के रूप में उन्होंने दुनिया में अलग पहचान बनायी है. दुनिया की बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के वह चहेते हैं. उनके व्याख्यान मुरझाये लोगों में संकल्प पैदा करते हैं. 40-50 हजार फी देकर लोग उन्हें सुनने आते हैं. खेड़ा से संबंधित ये और ऐसी अनेक सूचनाएं एक सजग पाठक के रूप में जानता था, पर भारत, भारतीय समाज और अपनी मिट्टी से उनका इतना गहरा जुड़ाव है, यह उनसे मिलने के बाद ही पता चला.
दिल्ली की सर्द सुबह, उनके घर पहंचा. सुबह साढ़े सात बजे. पता था कि अमेरिकावासी होने के कारण वह रात देर तक पढ़ते हैं, सुबह देर से उठते हैं. पर वह तैयार मिले. बिल्कुल तरोताजा और इनर्जेटिक. इन दिनों वह कंट्री फर्स्ट (देश पहले) अभियान में लगे हैं.
देर तक बातचीत होती है. बातचीत को अधूरा मान कर वह एयरपोर्ट छोड़ने आते हैं. दिल्ली में वह ऐसे रचे-बसे हैं कि लगता नहीं कि अमेरिका, यूरोप और दुनिया में उनकी इतनी धूम है. जिन भारतीय लोगों ने दुनिया स्तर पर शिव खेड़ा जैसी पहचान बना ली है, उनकी जड़ें भी अमेरिका, यूरोप में हैं. पर बार-बार अमेरिका-यूरोप, सिंगापुर वगैरह से समय मिलते ही शिव खेड़ा भारत आते हैं. अपने अभियान में लगते हैं.
वह बताते हैं कि पिछले 10 वषा में मैंने छुट्टियां नहीं मनायीं. यह भी कहते हैं कि पत्नी-बेटी बार-बार कहती हैं कि आप अपने घर अमेरिका में स्थिर क्यों नहीं रहते? फिर बताते हैं कि मैं हर भारतीय से पूछता घूम रहा हूं कि गुजरे पचास सालों (आजादी के बाद के पचास साल से तात्पर्य) की तरह ही आप भविष्य के पचास साल चाहते हैं? (डू यू वांट द नेक्स्ट फिफ्टी इयर्स टू बी लाइक द लास्ट फिफ्टी इयर्स).
हाल में वह भोपाल, इंदौर और रायपुर में लाखों लोगों को संबोधित कर लौटे हैं. वह बार-बार कहते हैं कि पचपन साल बीत गये. हम और 200 सालों तक इंतजार नहीं कर सकते, जिन्हें इंतजार करना है, करें. हम 15 अगस्त, 2004 तक देश बदलने का संकल्प लेकर निकले हैं. खेड़ा के अनुसार जिंदगी एक फैसला भी है और समझौता भी. फैसला करने की हमें आजादी है. इसके बाद फैसला के हम अनुयायी बन जाते हैं. इसलिए फैसला, सोच-समझ कर करना चाहिए. जीवन अगर ताश की बाजी है, तो ताश के पत्तों पर हमारा इख्तियार नहीं, पर हम खेल किस तरह खेलते हैं, यह हम पर निर्भर है. जिंदगी में सफलता-विफलता में लब्जों का फेर नहीं है. सफलता का मतलब किस्मत का होना भी नहीं है. सफलता के पीछे लंबे संघर्ष की दास्तान है. वह अपना मशहर जुमला दोहराते हैं. जीतनेवाले ने कोई अलग काम नहीं किया है, लेकिन हर काम को सिर्फ अपने ढंग से किया है. जीतनेवाले उस काम की आदत बना लेते हैं, जो हारनेवाले कभी करना नहीं चाहते-मेहनत, रियाज और साधना. कोई असफल क्यों है? तह में जायें, तो पायेंगे कि वहां सिर्फ सफलता की इच्छा है, इरादा नहीं. इच्छा-इरादा में भारी अंतर है. इच्छा का सौदा हो जाता है, इरादे का सौदा नहीं हो सकता. किसी दबाव में इच्छा कमजोर पड़ जाती है, लेकिन इरादा मजबूत होता है. हम काबिलियत की कमी से नहीं पिछड़ते, इरादे की कमी से असफल होते हैं.

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