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अच्छी पत्रकारिता के लिए सजग समाज चाहिए

प्रभात खबर : 23 वर्ष की यात्रा हरिवंश 14 अगस्त 2007 को प्रभात खबर के 23 वर्ष पूरे हए. 14 अगस्त 1984 को यह पहली बार छपा. इस अखबार का उद्देश्य था, झारखंड की आवाज बनना. अक्तूबर 1989 में इसका प्रबंधन बदला. अपने समय की सबसे प्रभावी, प्रतिष्ठित और सर्वाधिक प्रसारित साप्ताहिक धर्मयुग (मुंबई, टाइम्स […]

प्रभात खबर : 23 वर्ष की यात्रा

हरिवंश
14 अगस्त 2007 को प्रभात खबर के 23 वर्ष पूरे हए. 14 अगस्त 1984 को यह पहली बार छपा. इस अखबार का उद्देश्य था, झारखंड की आवाज बनना. अक्तूबर 1989 में इसका प्रबंधन बदला. अपने समय की सबसे प्रभावी, प्रतिष्ठित और सर्वाधिक प्रसारित साप्ताहिक धर्मयुग (मुंबई, टाइम्स ऑफ इंडिया संस्थान) और कोलकाता के आनंद बाजार पत्रिका समूह से प्रकाशित, मशहूर और चर्चित साप्ताहिक रविवार में काम करने के बाद, बंद प्राय: प्रभात खबर में काम करना, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली छोड़ कर रांची में सिमटना, उस समय भी जिद या खब्त ही माना जाता था. शायद जेपी आंदोलन, वैचारिक राजनीति के जीवंत होने या सामाजिक सरोकार के कारण यह अल्प अंश हममें भी रहा हो. शायद इसी कारण रांची आना हुआ. नयी जगह. पर आदिवासी समाज और इस अंचल की समस्याओं ने प्रेरित किया, यह चुनौती स्वीकारने के लिए. मकसद सिर्फ एक था, क्या पत्रकारिता पिछड़े, गरीब लोगों और अविकसित इलाकों में सार्थक हस्तक्षेप कर सकती है? यह अनुभव करना और जानना.
जीवन, अनुभवों का दस्तावेज है. इस दृष्टि से प्रभात खबर की पत्रकारिता के अनुभव समृद्ध हैं. टीम की दृष्टि से भी. प्रभात खबर की टीम ने हर असंभव परिस्थितियों के मुकाबले खड़े होकर प्रभात खबर को मजबूत बनाया. और पाठक, जिन्होंने प्रभात खबर की पत्रकारिता को लगातार प्रोत्साहित किया. फिसलन दिखी, तो पाठकों ने सवाल उठाये, सावधान किया और वे पाठक ही आंदोलन की पत्रकारिता के मार्गदर्शक बने.
पत्रकारिता, क्रांति नहीं लाती. पर वह अपने समय का दस्तावेज है. रोज का जीवंत इतिहास. सच के अनेक पक्ष हो सकते हैं, देखनेवालों के अनुसार. पर तथ्यों के कई रूप नहीं होते. अखबार ईमानदारी से अपने समय के अधिकाधिक तथ्य दर्ज करें, यही पत्रकारिता का मूल धर्म है. बिना लाग-लपेट. ईमानदारी से हम पत्रकार यही करें, तो निश्चित मानिए, देर-सबेर हालात बदलेंगे. प्रभात खबर की कोशिश है कि हर अड़चन के बावजूद इस रास्ते पर चले.
पर प्रभात खबर समेत पूरी मीडिया के सामने आज गंभीर चुनौतियां हैं. इन सवालों पर सार्वजनिक चर्चा जरूरी है.
समाज और पाठकों का सार्थक हस्तक्षेप भी.
अखबार के प्रबंधन के सहयोग के बगैर पत्रकारिता सही धर्म नहीं निभा सकती. बिना आमद, व्यवसाय या कारोबार के मीडिया या कोई व्यवसाय नहीं चल सकता. पर इस कारोबार के आज दो रूप हैं, पहला साफ-सुथरा, दूसरा ब्लैकमेलिंग. पूरे देश या पूर्वोत्तर भारत में अनेक टीवी चैनल्स या अखबार घराने अपनी गुणवत्ता, निष्पक्षता, पारदर्शिता के आधार पर विज्ञापन व्यवसाय करते हैं. और बेहतर, उच्च स्तरीय पत्रकारिता भी. पर कुछ जगहों पर शुद्ध ब्लैकमेलिंग का दौर शुरू हो गया है. खबरों से धमकाने, गलत खबर छापने, ताकतवर और पैसेवालों के इशारे पर खबरें प्लांट करने का दौर. यह वक्त है कि समाज सावधान हो. विज्ञापनदाता सजग हों और समाज को ब्लैकमेलरों के हाथ जाने से रोकें. समाज की यह पहरेदारी, हिंदी इलाके की पत्रकारिता को विश्वसनीय बनाये रखने के लिए जरूरी है. प्रभात खबर का प्रबंधन हर कीमत पर साफ-सुथरे रास्ते पर चलने का मूल्य मंत्र बताता रहा है. यह भी एक कारण है कि राख (बंदी के कगार) से उठ कर यह अखबार खड़ा हुआ.
जिस बाजार में विदेशी पूंजी और शेयर बाजार से 800-1000 करोड़ लेकर बड़े मीडिया घराने खड़े हों, वहां मामूली पूंजी के साथ खड़ा होना, फैलना और बढ़ना, इस मिट्टी, पाठक संसार, विज्ञापनदाताओं और प्रभात खबर की युवा टीम का ही चमत्कार है. देश के सबसे पिछड़े राज्य बिहार और उसके सबसे पिछड़े भाग (रांची, छोटानागपुर) से 1984 में निकलकर, एक अखबार अब तीन राज्यों के सात केंद्रों से प्रकाशित हो, यह शुद्ध रूप से ग्लोबलाइजेशन (आक्रामक पूंजी) की दुनिया में लोकलाइजेशन का महत्व रेखांकित करता है. यह झारखंडी सफलता है.
अगर समाज को अच्छी पत्रकारिता चाहिए, तो उसे सजग भी होना पड़ेगा. आज भी हर अखबार में बहसंख्यक, सजग और अच्छे लोग हैं. पर कुछेक जगहों पर प्रभावी पदों पर गलत लोग भी हैं. इन चंद गलत लोगों के कारण पत्रकारिता, अपनी चमक, ताप, विश्वसनीयता, ईमानदारी और पारदर्शिता खो रही है. ये खबरों का धंधा करते हैं. ये तथ्यों के प्रति नहीं, अपनी भ्रष्ट जमात के संरक्षक, मंत्री, ठेकेदार और दलालों के प्रति ईमानदार हैं. ऐसे पत्रकारों के खिलाफ, पत्रकारिता जगत से ही प्रामाणिक आवाज उठनी चाहिए. जैसे कुछेक वर्ष पहले काशी में हुआ. पत्रकारों (जिसमें हर अखबार के लोग थे) के एक विश्वसनीय समूह ने नारा दिया पत्रकारों दलाली छोड़ो, दलालों पत्रकारिता छोड़ो. गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले, चौक-चौराहों पर काशी में यह बहस का विषय बना. जरूरत है कि देश में जहां भी पत्रकारिता फिसले, वहां पत्रकार या मीडियाकम, संस्थान, अखबार वगैरह की सीमा तोड़ कर, मीडिया की विश्वसनीयता बचाने के लिए आगे आयें.
समाज को पहचानने की जरूरत है कि यह ब्लैकशीप कौन हैं? कहां हैं? डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने कहा था कि व्यवस्था में दो नंबर के राजा ही परमानेंट होते हैं. ये ब्लैकशीप, असल में दो नंबर के राजा (दलाल) हैं. मसलन, उदहारण से समझें. अगर बाबूलाल जी झारखंड के मुख्यमंत्री थे, तो उनकी दरबारगिरी, उनके जाने के पहले ही अर्जुन मुंडा का चारण बनना, मुंडा जी की कुरसी खिसके, इसके पहले ही कोड़ा जी का प्रियपात्र बनना या उनके दरबारियों का गुणगान, यही कला कौशल, कार्यसंस्कृति और पटुता है, ब्लैकशीपों की. इसके बदले ब्लैकशीप क्या कराते हैं? ठेका दिलाना, ट्रांसफर-पोस्टिंग कराना, जमीन कब्जा करवाना-करना, दलाली कमाने का अवसर देना और खुद करोड़ों-करोड़ कमाना. पर सत्ता में बैठे लोग नहीं जानते कि ये चापलूस, चारण और दलाल कितना उनका अहित और नुकसान कर रहे हैं. यह बात उन्हें बाद में समझ में आती है. शायद इसी कारण झारखंड में कभी-कभार मंत्री भी पत्रकारिता के बारे में उपदेश देते हैं. कहते हैं कि पत्रकार मेरे पास गलत काम लेकर आते हैं. जरूरत है कि जो भी मंत्री पत्रकारिता के बारे में यह अमूर्त बयान दे, उससे पत्रकार बिरादरी, स्पष्ट नाम और प्रमाण पूछे. अंतत: सफाई की शुरुआत कहीं से होगी या नहीं?
कुछेक पाठक भी पत्रकारिता के स्खलन की बात करते हैं. यह सुखद संकेत है. पर इससे ऊपर उठ कर पाठकों को पाठक समूह या क्लब बनाने चाहिए. गलत खबरों पर सवाल उठाने चाहिए. हर स्तर पर सार्थक हस्तक्षेप और विरोध होना चाहिए. यह काम देश के कुछेक हिस्सों में हो रहा है. अगर पाठक और समाज, पत्रकारिता पर यह अंकुश रखने के लिए तैयार हैं, तो पत्रकारिता बेहतर होगी. और बेहतर पत्रकारिता ही नयी दुनिया गढ़ने में कारगर होगी. वह पत्रकारिता समाज, राज और व्यक्ति के हित में होगी. पत्रकारिता के संसार में जो भी कमियां हैं, वे प्रभात खबर में भी हैं, होंगी. पर 23 वर्ष पहले जब झारखंड के साकार होने के संकेत नहीं थे, तब प्रभात खबर ने झारखंड की बात की. आज झारखंड बनने के बाद, देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनने का सपना शेष है. इस सपने को साकार करने के लिए साफ-सुथरी पत्रकारिता बुनियादी जरूरत है. आप सभी पाठक, विज्ञापनदाता, समाज के हर वर्ग के लोग सत्ता के बाहर-अंदर बैठे रहनुमा और सभी पत्रकार, मिल कर इस दिशा में सोचें और पहल करें. यह वक्त की जरूरत है. प्रभात खबर के 23 वर्ष पूरे होने पर आप सबको बधाई!

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