स्थापना दिवस-7
विकास के लिए कभी एकजुट नहीं हुए झारखंड के दल
स्थापना दिवस श्रृंखला की इस कड़ी में आज आप रू –ब–रू होंगे जैनेंद्र कुमार के विचारों से. फिलहाल वह केयर इंडिया में कार्यरत हैं. जैनेंद्र का मानना है कि झारखंड के विकास के लिए सरकार प्लान बनाये और उसे जमीन पर उतारे.
झारखंड (तब संयुक्त बिहार) में ही जन्मा. यहीं पला–बढ़ा. यहीं से उच्च शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद देश के कई राज्यों में नौकरी करने का मौका मिला. कई राज्यों में जाकर कामकाज देखने का मौका मिला. जब अपने घर (झारखंड) लौटता हूं तो लगता है आज भी हमारा झारखंड दिशाहीन है.
गठन के 13 साल के बाद भी कोई दिशा नहीं दिखती. पता नहीं चलता राज्य जाना कहां चाहता है? 72 साल पहले आदिवासी महासभा ने जयपाल सिंह मुंडा की अगुवाई में अलग झारखंड का सपना देखा था. 15 नवंबर 2000 (आदिवासी नायक भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिन) को देश का 28 वां राज्य बना.
झारखंड एक लंबे आंदोलन के बाद बना राज्य है. 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की साक्षरता दर 67.63 फीसदी है. यूएनडीपी की रिपोर्ट बताती है कि 2007-08 में मानव सूचकांक दर 0.376 था (देश में 19 वां स्थान). इसके अनेक कारण हो सकते हैं. नक्सल, भ्रष्टाचार, बार–बार सरकार का बदलना आदि.
इसके अलावा भी कई मौलिक प्रश्न हैं, जिसे बाहर से देखता हूं, तो दुख होता है. मुझे याद है जब अन्ना का आंदोलन चल रहा था, तो झारखंड की सहभागिता नहीं के बराबर थी. मेरा मानना है कि शायद यहां के लोगों ने भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लिया है. किसी सरकारी संस्था या एजेंसी का डर नहीं है, क्योंकि वे खुद इसमें इतने लिप्त हैं कि कार्रवाई क्या करेंगे.
इसी बात को जब हम आगे बढ़ाते हैं तो पाते हैं कि बगल के राज्य बिहार ने इस पर अच्छा काम किया है. यहां भ्रष्टाचार के आरोप में डीएम, डीजीपी, इंजीनियर, सरकारी क्लर्क, बीडीओ जैसे लोगों को सरकार ने पकड़ा है. कार्रवाई भी की है. अभी–अभी बिहार में अलग से पुलिस डिपार्टमेंट के अंदर आर्थिक अपराध शाखा बनायी गयी है. यह त्वरित जांच करती है.
आर्थिक अपराध के मामले को जल्द निबटाती है. झारखंड बनने के बाद भी अभी तक कितने लोगों को सरकार ने पकड़ा है? शर्म की बात है कि जो पकड़े गये हैं, उसमें ज्यादातर लोग ऊंचे ओहदेवाले हैं. उनको राज्य की एजेंसी नहीं, केंद्र की एजेंसी ने पकड़ा है. वह भी न्यायालय के दबाव में. इससे पता चलता है कि अब तक हमने कितनी लापरवाह और निकम्मी सरकार को चुना है.
मेरा मानना है कि अलग राज्य के आंदोलन की लड़ाई लड़ने वालों के पास आंदोलन करने का विजन तो था. केंद्र से लेकर राज्य पर दबाव बनाने का आइडिया तो था. लेकिन, राज्य कैसे चलेगा, इसका विजन नहीं था. आंदोलन के लिए सभी दल एकजुट तो हुए. कभी वनांचल, तो कभी झारखंड के नाम पर. लेकिन, राज्य के विकास के लिए कभी एकजुट नहीं हुए.
यही कारण है कि झारखंड जैसे राज्य में लीडर्स ज्यादा हो गये हैं, फॉलोअर्स कम. इसका नतीजा हुआ कि स्टेट ऑफ रूल्स खत्म हो गया. लोगों ने मनमाने तरीके से काम ईजाद कर लिया. यही हाल आज प्रखंड से लेकर राज्य स्तरीय कार्यालयों में दिखता है. शिक्षा विभाग जाइए या बिजली विभाग, सभी जगह स्थिति एक जैसी ही है.
मुझे याद है जब झारखंड आंदोलन चल रहा था, तो कई राजनीतिज्ञों के नाम लोग सम्मान से लेते थे. उनके चेहरे पर एक विश्वास झलकता था. आज उन्हीं चेहरों पर हताशा क्यों है? आज उनके चेहरे भी दागी लगने लगे हैं. लगता है सत्ता की चकाचौंध ने इनकी आंखों में धूल झोंक दिया है. इसी राज्य में ऐसा पहली बार हुआ कि 22 विधायकों के यहां छापा पड़ा.
सच कहूं तो तब से (जब राज्य छोड़ दूसरे प्रदेशों में काम करने ले लिए गया) अब तक कुछ नहीं बदला. बिजली अब भी 10-12 घंटे ही उपलब्ध है, वह भी सिर्फ शहरों में. बिना मास्टर प्लान के अपार्टमेंट खड़े हो गये हैं. बेतरतीब तरीके से जमीनें बेची जा रही है. करीब छह वर्षो तक राजस्थान में रहा.
वहां के गांव में गया. सब कुछ सिस्टम से. सरकार से चाहता हूं कि नीति बनाने पर ध्यान दें. विकास का प्लान बनाएं. उसे जमीन पर उतारें. आगे की सोचें. यहां से जाने वाले अपने राज्य में आने की सोचें, जाने की नहीं.