।। डॉ रमेश चंद्र हांसदा ।।
(एचओडी, कंप्यूटर साइंस, इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु)
स्थापना दिवस-1 : झारखंड को अलग राज्य बने हो गये 13 साल
आनेवाले 15 नवंबर को झारखंड अलग राज्य बने 13 साल पूरे हो जायेंगे. राज्य बनने के बाद लोगों की जो आंकाक्षाएं थीं, वे आज तक पूरी नहीं हो सकी हैं. इस मौके पर प्रभात खबर विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित एक सीरीज शुरू कर रहा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अब भी देर नहीं हुई है, अगर हर स्तर पर झारखंड को आगे ले जाने की कोशिश की जाये, तो वह अब भी देश के विकसित राज्यों में शुमार हो सकता है. आज पढ़िए इसी कड़ी में पहली किस्त..
झारखंड देश का बहुत खूबसूरत राज्य है. लेकिन उसकी खूबसूरती को बचाये रखना राज्य के लोगों के सामने बड़ी चुनौती है. औद्योगिक विकास जरूरी है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की तिलांजलि देकर विकास कतई नहीं होना चाहिए. राज्य और राज्य के लोगों के विकास के लिए यह जरूरी है कि राज्य में पावर प्लांट लगे.
बिजली के रहने से ना सिर्फ राज्य का चौतरफा विकास होगा, बल्कि लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार होगा. सिंचाई की सुविधा दी जाये. इसके लिए ना सिर्फ सरकार को आगे आना चाहिए, बल्कि राज्य के किसानों को भी इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर करने का प्रयास करना चाहिए.
हालत यह है कि किसान खेती करना छोड़ कर छोटी-छोटी कंपनियों में काम कर रहे हैं. इसके पीछे कारण है कि खेती करने के बाद उनके परिवार का रहन-सहन का स्तर नहीं सुधर पाता है. लेकिन इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. राज्य को खाद्य सामग्री के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ेगा.
सोलर पावर को लेकर भी राज्य सरकार को कोई ठोस पहल करनी चाहिए. ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के बाद राज्य के चौतरफा विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.
एजुकेशन पॉलिसी में बदलाव है जरूरी : झारखंड को अलग राज्य बने 13 साल हो गये. राज्य के सरकारी स्कूलों में अब भी पुरानी पद्धति से ही पढ़ाई होती है. सरकारी स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, तो कई स्कूल बिना भवन के हैं. कोर्स भी वही पुराने वाले हैं. उनमें बदलाव नहीं हो पाया है. जबकि यह आवश्यक है कि समय-समय पर कोर्स में बदलाव किया जाना चाहिए.
यह समय की मांग है. राज्य सरकार को खास तौर पर छात्रवास बनाने पर जोर देना चाहिए. राज्य के ग्रामीण इलाके के लोग पेट काट कर अपने बच्चों को पढ़ने के लिए शहरों में भेजते हैं, लेकिन शहरों में भी छात्रवास नहीं हैं. छात्रवास नहीं होने की वजह से अभिभावक उन्हें ज्यादा दिनों तक बाहर रख कर नहीं पढ़ा पाते हैं, इससे बीच में ही बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है. इसी वजह से राज्य में बड़े पैमाने पर छात्रवास का निर्माण करना जरूरी है.
भाषा के विकास को मौका मिले
मैं इसका पक्षधर नहीं हूं कि झारखंड में पठन-पाठन में आदिवासी भाषा को प्रयोग किया जाये, लेकिन आदिवासी भाषा के विकास को भी मौका दिया जाना चाहिए. आदिवासी भाषा फिलहाल उतनी समृद्ध नहीं हो पायी है कि उसे राज्य के पठन-पाठन में शामिल किया जाये, लेकिन उसे विकास का मौका जरूर दिया जाना चाहिए.
इसके लिए यह प्रस्ताव किया जाना चाहिए कि गैर आदिवासी भी अगर चाहें तो संथाली या फिर कोई अन्य आदिवासी भाषा पढ़ सकते हैं, इसे वैकल्पिक विषय के रूप में रखना चाहिए. तुरंत इसे अनिवार्य या फिर इसमें पास करना अनिवार्य करना सही नहीं होगा, लेकिन इसे पढ़ने के प्रति रुचि पैदा करने की कोशिश राज्य सरकार द्वारा किया जाना चाहिए.
(प्रस्तुति: संदीप सावर्ण)